संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर की पुस्तक का लोकार्पण

  • इस अवसर पर बड़ी संख्या में जुटे लेखक, रंगकर्मी और सामाजिक कार्यकर्ता

पटना। संस्कृतिकर्मी  अनीश अंकुर की पुस्तक ‘ रंगमंच के सामाजिक सरोकार’ का लोकार्पण 13 दिसंबर को पटना पुस्तक मेला में किया गया।  इस मौके पर पटना के साहित्यकार, रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता, सहित कला के विभिन्न अनुशासनो में काम करने वाले   लोग बड़ी संख्या में मौजूद थे।

लोकार्पण करने वालों में प्रमुख थे हिंदी के प्रख्यात कवि आलोकधन्वा, साहित्य अकादमी से सम्मानित कवि अरुण कमल, चर्चित लेखक एवं नाट्य-समीक्षक हृषीकेश  सुलभ,  कथाकार संतोष दीक्षित, कवि व मनोचिकित्सक डॉ. विनय कुमार , मैथिली के प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक कुणाल, भारतीय जन नाट्य संघ के राष्ट्रीय महासचिव तनवीर अख्तर,  वरिष्ठ अभिनेता सुमन कुमार, जनगायक अनिल अंशुमन,  संस्कृतिकर्म  से जुड़े आई.पी.एस अधिकारी सुशील कुमार। इस अवसर पर आगत अतिथियों का स्वागत प्रकाशन संस्थान के निदेशक हरिश्चंद्र शर्मा ने किया।

साहित्य अकादमी से सम्मानित सुप्रसिद्ध कवि अरुण कमल ने किताब के बारे में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा ”  आज जब मैं पुस्तक मेला में आया तो जिससे भी मिला, उनका कहना था कि अनीश अंकुर की किताब के  लोकार्पण समारोह में आया हूं।  इस लोकार्पण समारोह में  सब तरह के लोगों को  देख अनीश अंकुर की लोकप्रियता का पता चलता है। मैंने आज तक कोई नाटक खेला नहीं है। हां नाटक देखता जरूर रहा हूं। मंच पर नुक्कड़ों पर।  यह अनीश अंकुर की पहली मुकम्मल किताब है।  यह किताब बड़े कलेवर को सामने लाती है, इसमें बर्तोल्त ब्रेख्त, हार्वड फास्ट, पीट सीगर से से लेकर शेक्सपियर तक पर आलेख हैं।  जब मुझे किताब मिली सबसे पहले मैंने शेक्सपीयर वाला आलेख पढ़ा। शेक्सपीयर पर हिंदी में बहुत कम लिखा गया है। अनीश अंकुर ने शेक्सपीयर पर बहुत अधिकार के साथ लिखा है। मुझे सबसे अच्छा लगा कि  इसमें बिहार के  रंगमंच पर बहुत सारी सामग्री है। रामगोपाल बजाज से लिया गया साक्षात्कार का शीर्षक दिलचस्प है जिसमें वे कहते हैं कि यदि दुबारा जन्म मिले तो मैं स्त्री होना चाहूंगा। आप सब लोगों को भी यह किताब पढ़नी चाहिए। ”

चर्चित रंग समीक्षक और नाटककार और लेखक हृषीकेश सुलभ के अनुसार “मुझे लगातार लग रहा था कि रंगमंच का इतिहास लिखा जाना चाहिए और अब यह काम अनीश अंकुर ने कर दिखाया है। यह किताब रंग सक्रियता का इतिहास है। इस किताब में बहुत सारे   ऐसे रंगकर्मियों के बारे में लिखा गया है  जिनका काम लोगों के सामने अभी तक नहीं आ पाया था जिन्होंने बहुत कम समय के लिए रंगमंच में काम किया था पर उनका योगदान महत्वपूर्ण था।”

हिंदी मैथिली के चर्चित निर्देशक और नाटककार कुणाल ने पुस्तक पर टिप्पणी करते हुए कहा “अब तक उन्हें मैं एक अभिनेता के रूप में जानता था, अब उनका एक दूसरा रूप एक समीक्षक का हमारे सामने आ चुका है। इन्होंने पूरी ईमानदारी से यह श्रमसाध्य कार्य किया है।”

कथाकार  संतोष दीक्षित ने रंगमंच के सामाजिक सरोकार के संबंध में बताया कि ” मैं नाटक से बहुत अधिक जुड़ा हुआ नहीं हूं, इस नाते भी मैं इस किताब को पढ़ना चाहता था। आज की तारीख में हमारे सामाजिक सरोकार संकट में हैं । ऐसे में यह पुस्तक साहित्यकारों और रंगकर्मियों को दिशा देगी। क्योंकि समय के साथ-साथ आज हमारे सरोकार भी बदल गए हैं।”

इप्टा  के राष्ट्रीय महासचिव तनवीर अख्तर ने  कहा “इस पुस्तक का सबसे महत्वपूर्ण अंग अलग-अलग विषयों पर संग्रहित साक्षात्कार हैं।  साक्षात्कारों के माध्यम से नाटक के सरोकार स्पष्ट होते चले जाते हैं।”

पटना रंगमंच के वरिष्ठ अभिनेता सुमन कुमार ने बताया ” मैंने अनीश अंकुर की  प्रकाशित पुस्तिकाओं को  अब तक नहीं पढ़ा था। लेकिन रंगमंच के सामाजिक सरोकार मुझे काफी अच्छी लगी। मैं भी इनको बतौर एक्टर जानता रहा हूं। अनीश अंकुर की सहजता मुझे बहुत अच्छी लगती है। एक बार एक नाटक शुरू होने के आधे घंटे पहले तक मुझसे बात करते रहे फिर जब मैंने मंच पर इन्हें देखा तो पाया कि इनका माथा मुड़ा हुआ है। मुझे आश्चर्य हुआ कि सब कुछ इतनी जल्दी कैसे हुआ।”

संस्कृतिकर्मी और जनगायक अनिल अंशुमन ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा ” इस किताब ने बिहार के पूरे रंगकर्मियों को एक मान- सम्मान दिया है। रंगमंच में  यह सिलसिला और आगे भी बढ़ना चाहिए। वैसे इस किताब में अपनी बात कहते हुए अनीश अंकुर ने डिस्कलेकमर भी लिख दिया है। जिसे हमें पढ़ने की जरूरत है।”

पूरे कार्यक्रम का संचालन  आई. पी. एस अधिकारी और संस्कृतिकर्मी सुशील कुमार और जयप्रकाश ने किया I उपस्थित लोगों में प्रमुख थे पूर्व आई.ए. एस अधिकारी व्यास जी, लेखिका मीरा मिश्रा पटना पर लिखे किताबों के लिए चर्चित  लेखक अरुण सिंह, पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर एन.के.चौधरी, लेखक और पत्रकार श्रीकांत, पटना साइंस कॉलेज में लेक्चरर अखिलेश कुमार, सार्थक संवाद से जुड़े कुमार सर्वेश,  मगध विश्विद्यालय के आलोक रंजन,  बिहार महिला समाज की अध्यक्ष निवेदिता झा, चित्रकार अर्चना सिन्हा,  पटना वीमेंस कॉलेज में नृत्य शिक्षिका और रंगकर्मी  एनाक्षी दे विश्वास,  खगौल महिला कॉलेज में हिंदी के प्रोफेसर उदय राज उदय,  पटना विश्विद्यालय में अर्थशास्त्र के अध्यापक सचिन, अभिनेत्री अर्चना सोनी, वरिष्ठ रंगकर्मी अभय सिन्हा, आर नरेंद्र, युवा रंगकर्मी मृत्युंजय शर्मा, भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता प्रवीण सप्पू,  राकेश रंजन, अमरेंद्र  अनल, अभिषेक आनंद, जदयू नेता नवल शर्मा,  कवि मुसाफिर बैठा, युवा कवि अंचित,  शिरीष, उमंग, चंद्रबिंद, राजेश कमल,  मौलाना अरबी फारसी विश्विद्यालय में पत्रकारिता के प्राध्यापक और कवि निखिल आनंद गिरि, बिट्टू भारद्वाज, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के  राज्य सचिव मंडल सदस्य रामबाबू कुमार,  प्रमोद प्रभाकर, पटना जिला सचिव विश्वजीत कुमार, नौजवान संघ के नेता रौशन कुमार सिन्हा, शंभू देवा, शिक्षक नेता राकेश कुमार सिंह, डी.जी मीडिया के अमित कुमार, पटना रिपब्लिक के साकेत कुमार, पत्रकार डॉ रंजीत, रविशंकर उपाध्याय,  यूट्यूब चैनल आजादी के अभिषेक विद्रोही, सामाजिक कार्यकर्ता  डॉ आनंद कुमार, सुधाकर कुमार, संध्या,निखिल कुमार झा, डॉ. अंकित, आनंद विद्यार्थी, ए.एन. कॉलेज के प्राध्याक मणिभूषण, कुमार वरुण, पाटलिपुत्र विश्विद्यालय में सिनेमा शिक्षक विमलेंदु सिंह, फिल्म अभिनेता राकेश राय, गौतम गुलाल, सुनील कुमार सिंह आदि ।

 -चंद्रबिंद सिंह,  कवि 

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