- ‘अभियान संस्कृतिक मंच’ ने किया विवान सुंदरम व सुनीत चोपड़ा की स्मृति सभा का आयोजन
पटना, 17 अप्रैल। प्रख्यात चित्रकार विवान सुंदरम तथा चर्चित कला समीक्षक सुनीत चोपड़ा की स्मृति में सभा का आयोजन पटना की संस्था ‘अभियान सांस्कृतिक मंच’ के तत्वाधान में किया गया। इस स्मृति सभा में खासी संख्या में पटना के चित्रकार, मूर्तिकार, फोटोग्राफ़र, साहित्यकार, सामाजिक -राजनीतिक कार्यकर्ता आदि मौजूद थे। प्रारम्भिक वक़्तव्य व संचालन जयप्रकाश ने किया।

सुप्रसिद्ध कला समीक्षक सुमन कुमार सिंह ने स्मृति सभा को संबोधित करते हुए कहा ” दिल्ली की व्यावसायिक कला दीर्घाओं द्वारा कला समीक्षकों आने जाने के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराये जाते हैं, जबकि अधिकांश युवा कलाकारों के पास उतना संसाधन नहीं रहा करता है। सुनीत चोपड़ा ऐसे युवा कलाकारों को अधिक तरजीह दिया करते थे। उभरते कलाकारों की वे भरपूर मदद किया करते थे। मैंने अपनी ज़िन्दगी में मैं ऐसे लोगों को कम् ही देखा है जो एक तरफ किसान -मज़दूर के लिए काम कर रहे हों, वहीँ साथ में कला लेखन भी कर रहे हों । विवान सुंदरम ने न्यू मीडिया को सबसे पहले समकालीन भारतीय कला में शामिल किया। वे समकालीन भारतीय कला में संस्थापन कला के ध्वजवाहक थे। उनका पारिवारिक जुड़ाव अमृता शेरगिल के साथ था। विवान मानवता के जितने पक्षधर थे मानवधिकारों के भी उतने ही बड़े समर्थक थे। विवान सुंदरम का मानना था कि पेंटिंग में कलाकार एक फ्रेम में बंध जाता है, और ऐसे में दर्शक भी उसी सीमा में बंधा रह जाता है, जबकि अभिव्यक्ति के स्तर पर संस्थापन पेंटिंग से एकदम अलग होता है। जब आप इंस्टालेशन के आसपास चलेंगे तो हर दिशा में आपको एक नया अनुभव प्राप्त होगा, एक नया अर्थ मिलेगा ।

माकपा से जुड़े नेता अरुण मिश्रा ने सुनीत चोपड़ा के साथ अपने संबंधों को याद करते हुए कहा ” सुनीत चोपड़ा पटना तब आया करते थे ज़ब वे छात्र हुआ करते थे। उनका अपनी पत्नी से अलगाव वैचारिक मतभेद के कारण हुआ। वे खाने के भी बड़े शौक़ीन थे। जिस दिन उनकी मृत्यु हुई उस दिन वे अगले दिन यानी 5 अप्रैल को होने वाली रैली के लिए आये अपने साथियों से मिलने जा रहे थे। सुनीत चोपड़ा से जो सीखने की बात है कि आप भले कितने भी ज्ञानी हैं लेकिन यदि जनता से आपका जुड़ाव नहीं है तो फिर उस ज्ञान का कोई मतलब नहीं है। विवान सुंदरम से मेरा रिश्ता तब था ज़ब हम यूथ डेलीगशन में हवाना जा रहे थे। तब के प्रधानमंत्री ने कहा था कि आप हवाना मात्र 50 डॉलर ले जा सकते हैं । हमारा कोई खास खर्च था नहीं, ऐसे में इतनी राशि भी पर्याप्त ही थी । ऐसे में एक दिन हम लोगों से कहा गया कि विवान को मैक्सिको जाना है और ऐसे में 50 डॉलर की राशि पर्याप्त नहीं होगी। तब हम सभी साथियों ने अपने हिस्से के पचास डॉलर में से कुछ राशि विवान को दी थी। 1968 में फ्रांस में जो क्रांतिकारी उभार आया था उससे विवान का जुड़ाव था। माच्चू -पिच्चू के शिखर पर जो कविता लिखी थी। उनकी जो विद्वता थी, लिखने पढ़ने की एक बड़ी विरासत वह हमलोगों के लिए छोड़ गए हैं।”

सामाजिक कार्यकर्ता गोपाल कृष्ण ने अपने संबोधन में कहा ” सुनीत चोपड़ा ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय का संविधान ड्राफ्ट किया था। उन्होंने ऐसे छात्र संघ की कल्पना की जिसके बारे में लिंगड़ोह कमिटी भूल कर गई। यदि भारत को देखना हो तो यहाँ की विविधता से परिचित होना है तब जे.एन.यू को देखना चाहिए। भारत में छात्र संघ के मॉडल का निर्माण किया सुनीत चोपड़ा ने। 2014 में क़ृषि कानून को अध्यादेश के जरिये जमीन अधिग्रहण किया जाए। उस आंदोलन के अगुआ लोगों में थे सुनीत चोपड़ा। विवान सुंदरम ने प्रगतिशील दुनिया बनाने के जो चिन्ह छोड़े हैं वे मिटाये नहीं जा सकते।”

संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर ने अपने संबोधन में कहा ” विवान सुंदरम ने ‘वेज ऑफ रेजिस्टेंस’ जैसी प्रदर्शनी आयोजित की। गुजरात दंगों तथा साम्प्रदायिक हिंसा में मारे गए लोगों को ध्यान में रखकर यह प्रदर्शनी थी। सुनीत चोपड़ा ने अपनी समीक्षा में विवान सुंदरम की इस प्रदर्शनी के बारे में कहा कि हिंसा के विक्टिम जहां हैं उनके रिसीस्टेंस को लाया गया ये अच्छी बात है, विशेषकर गुजरात, उत्तरप्रदेश आदि राज्योँ में लेकिन जहां प्रतिरोध की ताकतों को स्थायित्व है जैसे पश्चिम बंगाल, जहाँ वामपंथ की सरकार तीन दशकों से है, उसे विजुअल मीडियम में लाना चाहिए था। विवान सुंदरम अपने प्रारम्भिक जीवन में एकटीविस्ट थे। मई 1968 के फ्रांस में शुरू हुए आंदोलन में वे शामिल हुए, इस कारण सिकसीएटर्स भी कहे जाते थे। वियतनाम युद्ध के खिलाफ हुए प्रदर्शनी में शामिल होने के कारण दो महीने जेल में भी रहे। इन अनुभवों ने उन्हें कला जगत में हमेशा सामाजिक सरोकारों से जोड़ कर रखा। सुनीत चोपड़ा ने एक ओर सबसे असंगठित माने जाने वाले खेत मज़दूरों को संगठित किया तो दूसरी ओर कला पर भी नियमित तौर पर लिखते रहे। ”

कला समीक्षक व प्रशासनिक पदाधिकारी विनय कुमार ने कहा ” हमें इस बात का फ़ख्र है कि बोध गया बिनाले के प्रथम संस्करण के कलाकारों की सूची विवान सुंदरम ने जारी की थी। उस वक़्त उन्होंने कहा था कि कलाकारों को बोधगया के इतिहास को ठीक से जानकरअपना काम करना होगा । ज़ब वे नालंदा गए थे तो मैं भी उनके साथ गया था। उस दौरान उनसे बात करने का मौका मिला। कला की दुनिया में सामाजिक सरोकार की बात, मुद्दों की बात उठाते थे । जो भी आंदोलन रहे उससे उनका गहरा सरोकार रहा। सफदर हाश्मी की हत्या के बाद ‘सहमत’ संस्था को बनाने में उनका बड़ा योगदान रहा। चित्त प्रसाद, सोमनाथ होर ने जो परम्परा शुरू की उसे अपने ढंग से आगे बढ़ाया । कोच्चि बिनाले से पता चलता है वे कला की विरासत को भी समझने की कोशिश करते थे, उसमें गहरे तौर पर जुड़ते थे। कई लोग सरोकारों की बात तो करते हैं लेकिन गहरे नहीं उतरते हैं। अमृता शेरगिल परिवार को रिक्रीएट किया। ज़ब मध्यपूर्व में तेल का संकट होता है उसपर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। विवान कला को भी सिर्फ सौंदर्य नहीं बल्कि मनुष्य बने रहने के माध्यम के रूप में भी देखते थे। सुनीत चोपड़ा जैसे कला समीक्षक बहुत कम् है जिन्होंने खुलकर बातें की। ऐसे समीक्षक बहुत कम् है। चाक्षुष कलाओं की दुनिया बहुत आडंबर युक्त दुनिया है उसमें ऐसे लोग बेहद कम् हैं। ”

बिहार म्यूजियम, पटना के अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने दोनों को याद करते हुए कहा ” अभी सुनीत चोपड़ा के बारे में ज़ब बात हो रही थी तो मुझे लोहिया जी याद आ रहे थे। जब वे जर्मनी से पढ़कर आये तो उनके पास पैसा न था। तब उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस दफ्तर जाकर एक आलेख लिखा और उसी पैसे से घर गए। ठीक ऐसे ही हाल कर्पूरी ठाकुर के पास एक बार बस का भाड़ा नहीं था। लेकिन इनके पास किताबें रहती थी। उन्होंने किताबों को बेचा तब लौटे। विवान सुंदरम से मेरी दो मुलाक़ातें हुई। 2012 में ज़ब मेरी पोस्टिंग उपेंद्र महारथी में हुई। वहां एक बार केदार नाथ सिंह से पूछा कि किसको कला समीक्षक के रूप में बुलाएं तब विनोद भारद्वाज, प्रयाग शुक्ला, प्रभु जोशी वगैरह जैसे नाम आये। लेकिन तब विवान सुंदरम नहीं आ पाए थे। लेकिन जब एक बार ज़ब मैं इंदौर गया तो प्रभु जोशी के घर पर विवान सुंदरम से मुलाकात हुई। लगभग दो ढाई घंटे तक बात होती रही। प्रभु जोशी और विवान सुंदरम की बातचीत से समकालीन कला के बारे में बहुत कुछ पता चला। चार -पांच साल पहले विवान सुंदरम अंजनी कुमार सिंह के अतिथि के रूप में आमंत्रित थे। मैंने विवान सुंदरम से पूछा था कि यहां के लोककला का भविष्य है या नहीं। तब विवान सुंदरम ने बताया था कि बिहार के कलाकार जिन विषम परिस्थितियों में काम कर रहे हैं उसमें यदि कला की दुनिया में कुछ बढ़िया हुआ तो बिहार से होकर ही गुजरेगा। ”
युवा चित्रकार राकेश कुमुद ने जसम के पूर्व महासचिव अजय सिंह का विवान सुंदरम पर लिखे आलेख का पाठ किया।

इस मौके पर बिहार के चर्चित कलाकार एवं कलागुरु बीरेश्वर भट्टाचार्य की पत्नी छन्दा भट्टाचार्य को श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। विदित हो कि छन्दा भट्टाचार्य कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना की पूर्व छात्रा थी, जिनका आज निधन हो गया।
इस कार्यक्रम में रंगकर्मी राजू कुमार ने अपनी कविता का पाठ किया। सभा में मौजूद प्रमुख लोगों में थे लेखक अरुण सिंह,अर्चना सिन्हा,फोटोग्राफ़र शैलेन्द्र कुमार, मूर्तिकार रामू कुमार, कमल किशोर, प्रो.राखी, बिट्टू भारद्वाज, मुकेश,अभिषेक, पुष्पेंद्र शुक्ला,अक्षय, गगन गौरव, प्रमोद, रविशंकर उपाध्याय, गौतम ग़ुलाल, मधु,अंकिता, समप्रीत, प्रेम प्रतिज्ञा आदि।