उत्तर प्रदेश के बाराबंकी निवासी कलाकार आनन्द नारायण लखनऊ कला महाविद्यालय के पूर्व छात्र हैं ।
यह प्रदेश के लिए बड़े हर्ष का विषय है कि प्रतिष्ठित चित्रकार आनन्द नारायण को हाल ही में राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया है। नई दिल्ली स्थित डॉ. अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में आयोजित 64वें राष्ट्रीय ललित कला अकादमी पुरस्कार समारोह में महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने उन्हें उनकी अद्वितीय पेंटिंग “कण-कण में हैं राम” के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया। इस समारोह में सांस्कृतिक एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत, संस्कृति मंत्रालय के सचिव विवेक अग्रवाल, अपर सचिव अमिता प्रसाद सरभाई और ललित कला अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. नंदलाल ठाकुर सहित कला और संस्कृति के प्रमुख हस्ताक्षर मौजूद थे। इस राष्ट्रीय प्रदर्शनी में 5922 आवेदकों की 283 श्रेष्ठ कृतियों का चयन किया गया, जिनमें आनंद की पेंटिंग को विशेष स्थान मिला। यह कृति संग्रहणीय है।
भूपेंद्र कुमार अस्थाना
आनन्द नारायण की कला केवल रंग और रूपों का संयोजन नहीं है, बल्कि यह दर्शन, संस्कृति और आध्यात्म का सजीव अनुभव प्रस्तुत करती है। उनके काम में प्रकृति, मानवीय संवेदनाएँ, ग्रामीण जीवन और भारतीय सांस्कृतिक धरोहरें गहराई से प्रवेश करती हैं। उनके चित्रों की श्रृंखला “अनछुई प्रकृति” में भारतीय ग्रामीण दृश्य के विस्तृत मैदान, नदियों के किनारे उपजाऊ या बंजर भूमि, जीवंत वनस्पतियाँ और पुल-पुलियाँ शामिल हैं। आनन्द नारायण की पेंटिंग्स पवित्र नगरी बनारस (वाराणसी) को अमूर्त होते हुए भी यथार्थ के करीब चित्रित करती हैं। शहर की स्थापत्य सुंदरता, असाधारण दृष्टिकोण, ग्रामीण समाज में गहराई से बसे विश्वास और मिथक, गंगा के पवित्र एवं शांत घाट, राजसी मंदिरों का समूह और नावों का संचलन—इन सब तत्वों ने उनके चित्रों की विषयवस्तु को आकार दिया है।
उनकी श्रृंखला “अनछुई प्रकृति” में भारतीय मैदानों की विस्तृतता, नदियों के किनारे बसे निवास, उपजाऊ या बंजर भूमि, पुल और क्रॉसिंग, जीवंत वनस्पति और प्राकृतिक वातावरण को चित्रित किया गया है। आनन्द नारायण की स्पैचुला तकनीक उनकी कला की खास पहचान है। रचनात्मक अमूर्तता के माध्यम से लायी गई सादगी यथार्थ के बहुत करीब है, जिससे दर्शक और चित्र के बीच गहरा संबंध स्थापित होता है। उनके रंगों का चयन और संयोजन विषय और स्थान को कला मूल्य के साथ जोड़ता है, जिससे चित्रों में एक विशिष्ट आभा और सौंदर्यात्मक शक्ति पैदा होती है। उनकी कृतियाँ बहुत दार्शनिक हैं; कैनवास पर दिख रही चीज़ों से कहीं अधिक अर्थ और अनुभव देती हैं। अमूर्त होते हुए भी वास्तविकता के समीप, सरल होते हुए भी बहुपरत अर्थ लिए हुए—उनकी पेंटिंग्स दर्शक को केवल देखने नहीं, बल्कि उस वातावरण को महसूस करने और अनुभव करने का अवसर देती हैं। स्पैचुला का उपयोग, जो आमतौर पर अमूर्त चित्रों में कम होता है, उनकी पेंटिंग्स को त्रि-आयामी दृश्यात्मकता, तकनीकी स्थायित्व और संग्रहणीयता प्रदान करता है। आनन्द नारायण की यह रचनात्मक यात्रा ‘अनछुई’ और सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करने के उनके प्रयास का प्रतीक है।
पुरस्कृत कृति
पुरस्कृत कृति “कण-कण में हैं राम” विशेष रूप से आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसमें अयोध्या नगरी के प्रमुख स्थल जैसे सरयू जी, सीता रसोई, कनक भवन, हनुमानगढ़ी, राम मंदिर और अंगद टीला की संस्कृति और सभ्यता का समावेश है। आनंद की दृष्टि में राम केवल धार्मिक प्रतीक नहीं हैं; वे आदर्श, दिव्यता और हर व्यक्ति के जीवन में विद्यमान हैं। पेंटिंग के प्रत्येक भाग में यह संदेश समाहित है कि राम सर्वत्र हैं, हर कण कण और रोम रोम में हैं। इसके माध्यम से आनंद न केवल धार्मिक भक्ति का चित्रण करते हैं, बल्कि यह भी दिखाते हैं कि कला और आध्यात्मिकता का समन्वय किस प्रकार मानवीय चेतना को ऊँचाइयों तक ले जाता है।
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी, हरख कस्बे के निवासी आनन्द नारायण, 70 के दशक में जन्मे, एक प्रतिष्ठित समकालीन चित्रकार हैं, जिनकी कला वास्तविकता और प्रतीकात्मकता के बीच एक अद्वितीय संतुलन प्रस्तुत करती है। उन्होंने 1987 में लखनऊ के कला महाविद्यालय से बीएफए और 1989 में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, दिल्ली से एमएफए पूरा किया, तथा 1992 में राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली से कला-सम्मानना (Art Appreciation) का अध्ययन किया। उन्हें अनेक सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, जिनमें 1991 का ललित कला अकादमी रिसर्च ग्रांट, 1995 का उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी पुरस्कार शामिल हैं। आनन्द नारायण ने प्रमुख प्रदर्शनियों में चौदह एकल प्रदर्शनियां आयोजित की हैं, जिनमें ललित कला अकादमी, त्रिवेणी आर्ट गैलरी, श्रीधराणी आर्ट गैलरी, जहांगीर आर्ट गैलरी और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर शामिल हैं, तथा भारत और विदेशों में पचास से अधिक समूह प्रदर्शनियों में भाग लिया है। उन्होंने 2011 में “द कॉन्फ्लुएंस” जैसी महत्वपूर्ण समूह प्रदर्शनी का संचालन भी किया और राष्ट्रीय छात्रवृत्ति (सीसीआरटी), ऑल इंडिया कैमल कलर प्रतियोगिता और स्वामी विवेकानंद केंद्र एवं डीएवी द्वारा आयोजित वार्षिक चित्रकला प्रतियोगिताओं में जूरी सदस्य के रूप में सेवा दी। 1982 से सक्रिय, उन्होंने मॉस्को में चौथे अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन (1988) और जकार्ता, इंडोनेशिया में भारतीय चित्रकला प्रदर्शनी (2006) सहित अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी कला प्रस्तुत की है। उन्होंने गोल्डन ट्रायंगल आई कैम्प (1996), ऑल इंडिया सीनियर आर्टिस्ट कैम्प और कुम्भ कलाकार शिविर, प्रयागराज (2019) जैसे कलाकार शिविरों में भाग लेकर अपनी कला को और समृद्ध किया है।
आनंद नारायण अपने स्टूडियो में
उनकी रचनाएँ, जो अछूते प्राकृतिक अनुभव और सूक्ष्म रंग-साधना के माध्यम से वास्तविकता के करीब रहते हुए प्रतीकात्मक रूप में प्रकट होती हैं, भारत और विदेशों में निजी और संस्थागत संग्रहों में शामिल हैं, जिनमें आईएफ़को के लिए पचास तैलचित्र शामिल हैं। चित्रकला के अतिरिक्त, आनन्द नारायण कविता और आलेख लेखन के माध्यम से साहित्यिक क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। वे वर्तमान में नई दिल्ली में रहते और कार्य करते हैं, और उनका स्टूडियो दिल्ली एनसीआर में स्थित है। उनकी कला में प्रयोग, सृजनात्मक विविधता और नवीन दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। उन्होंने केवल चित्रकारी ही नहीं की, बल्कि अपने शब्दों के माध्यम से कविताओं के रूप में भी अनुभव साझा किया। “बेबाक बाराबंकवी” नाम से उनकी कविताएँ उनकी संवेदनशीलता और सामाजिक जागरूकता को दर्शाती हैं। चयनित एवं पुरस्कृत कृति कण कण में राम पर भी आनन्द ने एक मार्मिक कविता लिखी है –
“जिससे हो हर रोज़ दिवाली ,ऐसा दिया दिला दो राम । दिया तले अंधेरे को भी ,अबकी बार जला दो राम ।। श्रद्धा के सरयू तट पर , दो दीप जलाए मैंने भी । इक मेरे अन्दर जगमग है , इक तेरे मन के अन्दर भी ।। चंचल मन पावन हो जाए,मेरे मन मन्दिर में राम । जिससे हो हर रोज़ दिवाली ,ऐसा दिया दिला दो राम ।। “
आनन्द की पेंटिंग्स अमूर्त होते हुए भी वास्तविकता के करीब हैं। उनका उद्देश्य केवल सौंदर्यशास्त्र या तकनीकी कौशल का प्रदर्शन नहीं, बल्कि दर्शक को उन चमत्कारों से परिचित कराना है जो तब घटित होते हैं जब परिप्रेक्ष्य, रंग, भाव और अमूर्तता एक साथ मिलकर एक आभा और वातावरण का निर्माण करते हैं। उनके काम में प्रयुक्त रंग—चमकीले पीले और नारंगी के आध्यात्मिक रंगों के बीच गेरू, धूल भरे रंग—दृश्य अनुभव के साथ-साथ भावनात्मक गहराई भी प्रदान करते हैं।
अपने पुरस्कार और कला यात्रा के संबंध में आनन्द नारायण कहते हैं कि उनकी सफलता केवल राम की कृपा है। जनवरी 2024 में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान उन्होंने इस पेंटिंग की शुरुआत पंक्तियों से की थी—’जिससे हो हर रोज दिवाली, ऐसा दिया दिला दो राम। दिया तले अंधेरे को भी, अबकी बार जला दो राम’। यह पंक्तियाँ न केवल उनके आध्यात्मिक दृष्टिकोण को दर्शाती हैं, बल्कि उनके कार्य में समाहित सामाजिक और सांस्कृतिक जागरूकता को भी उजागर करती हैं।
आनन्द नारायण का यह राष्ट्रीय सम्मान केवल उनका व्यक्तिगत गौरव नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश और भारतीय कला जगत का भी गौरव है। उनकी कृतियाँ यह संदेश देती हैं कि कला केवल दृश्य सौंदर्य नहीं, बल्कि चेतना, संस्कृति और विरासत का संवाहक भी है। प्रकृति, आध्यात्म, ग्रामीण जीवन और सांस्कृतिक धरोहर को समेटते हुए आनन्द नारायण ने भारतीय चित्रकला को नई दिशा और दृष्टि प्रदान की है। उनके काम की सार्वभौमिकता और दार्शनिक गहराई इसे भविष्य के पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणादायक बनाती है।