‘टुगेदर वी आर्ट’ : विभिन्न संस्कृतियों और कला परंपराओं से परिचित कराती प्रदर्शनी (भाग-2)

  • बिहार संग्रहालय में सम्पन्न हुआ जी-20 देशों की प्रदर्शनी

बिहार के मौजूदा कला लेखन की बात करें तो जो थोड़े से नाम इस विधा में नियमित तौर पर सक्रिय हैं उनमें से एक महत्वपूर्ण नाम अनीश अंकुर हैं। उनकी सदैव कोशिश रहती है बिहार से बाहर के कला जगत को बिहार की कला गतिविधियों से रूबरू कराते रहा जाए। बिहार म्युजियम में जी-20 देशों की भागीदारी वाली प्रदर्शनी पिछले दो महीनों से चल रही थी। जी-20 के ध्येय वाक्य ‘टुगेदर वी आर्ट’ को इस प्रदर्शनी का थीम बनाया गया था। विगत दो-तीन सालों से बिहार संग्रहालय में होने वाली गतिविधियों के प्रति पूरे देश भर के कलाकारों की निगाह बनी रहती है कि यहां क्या चल रहा है। जी-20 शिखर सम्मेलन की यह प्रदर्शनी बिहार संग्रहालय को अंतर्राष्ट्रीय फलक प्रदान करने वाली रही। आलेखन डॉट इन के विशेष अनुरोध पर प्रस्तुत है इस अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी पर अनीश अंकुर की यह विस्तृत समीक्षात्मक रपट का दूसरा भाग ……

अनीश अंकुर

इस प्रदर्शनी का एक मुख्य आकर्षण इटली के कलाकार फ्रांसिस्का लियोने द्वारा धातु की चादर पर जंग और रंग का उपयोग कर बनाया गया है। गुलाब के फूलों के खिलने का आभास कराता इंस्टालेशन को ” ऊना राजा, ए ऊना राजा ,ए ऊना राजा (एक गुलाब, एक गुलाब , एक गुलाब रहा) का नाम दिया गया है।अच्छी खासी स्पेस घेरने वाला यह इंस्टालेशन धातु के चादर से बने तीन बड़े आकार के फूलों को दर्शकों के सामने रखता है। तीनों फूलों का आकार भिन्न-भिन्न है। तीनों फूलों का रंग हल्का पीला, बैंगनी और जंग के रंग से मिलता भूरे रंग का है।

फ्रांसिस्का लियोने की कृति

फ्रांसिस्का लियोने ने इस कृति के माध्यम से हमारे जीवन पर समय के पड़ने वाले प्रभावों को पकड़ने का प्रयास किया है। समय के संकेतों को अभिव्यक्त करने के लिए धातु पर कटाव, खरोंच और जंग के चिन्ह उकेरे गए हैं। मानों ये चिन्ह हमारी त्वचा पर समय के दाग सदृश हों। देखने वाले को ऐसा प्रतीत होता है कि एक पुराने बागीचे के इन फूलों की प्राचीन सुंदरता की स्मृति को बचा लिया जाए इससे पहले की वे मुरझा जाएं। यह इंस्टॉलेशन देखने वाले के अंदर हल्की उदासी की अनुभूति कराता है कि जिस खूबरसूरत फूल को प्रेक्षक देख रहा है वह अंततः मुरझा जाने को अभिशप्त है। यह कृति हमें अपने आसपास की चीजों को देखने के नए नए ढंग से परिचित कराती है। यह इंस्टॉलेशन रोम के कला संग्रहालय के सहयोग से तैयार किया गया है। इसका आकार 70/120 सेमी था।

मेक्सिको के कलाकार एडगर ऑर्लेनेटा द्वारा त्रिआयामी आकार की बनी कृति का शीर्षक ‘द वेफ माउंटेन ‘ है। वार्निश लकड़ी, एक्रीलिक पेंट, ताड़ के वस्त्र, रंगीन पेंसिल और मोम से बने ‘ द वेफ माउंटेन ‘ में एक मनुष्याकृति है। लकड़ी की अलग- अलग अवस्थाओं को उसके रंगों के माध्यम से पकड़ने की कोशिश के गई है। भूरा, काला मानो लकड़ी जली हुई हो और चिकने तने का भूरा प्रभाव लिए सफेद रंग के अलावा बने लकड़ी के छोटे टुकड़ों की सहायता से कुछ ऐसा प्रभाव निर्मित करने का प्रयास किया गया जैसा हाथ से काम करने के दौरान मन ध्यानमग्न मुद्रा में रहा करता है। हाथ से लकड़ी की अलग-अलग आकार की टुकड़ियों को इस करीने से सजाया गया है कि वह एक सौंदर्यात्मक अहसास कराता है। यह कृति हस्तनिर्मित प्रक्रिया में हाथ और मन के एकाग्रता एक ऐसे स्वायत्त संसार को सृजित करता है जो जिस समय में हम रह रहे हैं उससे कुछ कुछ स्वतंत्र सा रहा करता है। यानी जिस स्थान और काल में एक व्यक्ति की उपस्थिति बनी रहती है उसके हाथ और मन के द्वारा सृजन की प्रक्रिया में उससे कुछ वक्त के लिए एक आंतरिक अलगाव उपजता है। कुछ इस प्रकार की दुर्लभ अनुभूति को अभिव्यक्त करती है ‘द वेफ माउंटेन’।

भारत के के.एस राधाकृष्णन का इंस्टॉलेशन ‘ एफेमेरा’ में समुद्र, नाव, सुनहरे रैंप के माध्यम से वर्तमान समय के एक आयाम को अभिव्यक्त करने की कोशिश की गई है। एक उठते हुए चमकीले रैंप पर कई नावों को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है कि देखने वाले को समुद्रतल का अहसास होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि तूफानी समुद्री लहरों ने नावों को डुबोकर उसे तह तक पहुंचा दिया है। जहां उन नावों पर झाड़ – झंखाड़ उग आए हैं। प्रकृति की विनाशलीला का कुछ कुछ आभास भी ‘ एफेमेरा’ कराती है।

के.एस राधाकृष्णन का इंस्टॉलेशन ‘ एफेमेरा’

रैंप का तांबई रंग का टाइल्स महासागरीय सतह और उसपर लहरों का उथल-उथल को प्रकट करता प्रतीत होता है। समुद्रतल के सतह को समतल न कर उसे एक स्लोप आकर देने से एक प्रतीकात्मक रूप से गत्यात्मक प्रभाव आता है। इसे बड़ी सूझ-बूझ से बनाया गया है। प्रकृति में बड़ी घटनाओं और समाज पर पड़ने वाले उसके अक्स को पकड़ने का प्रयास है। महासागर के ज्वारभाटा को समाज के उत्थान – पतन से जोड़कर देखने की कोशिश राधाकृष्णन कर रहे हैं। यह इंस्टॉलेशन एक नया चाक्षुष अनुभव प्रेक्षक को कराता है।

पी.आर. दारोज का सिरेमिक

भारत के कलाकार पी.आर दारोज का सिरेमिक में बना काम है ‘समुद्रतल’। 2022 में निर्मित यह कृति में पृथ्वी पर मनुष्य द्वारा की जाने वाली गतिविधियों और परिणामस्वरूप पड़े प्रभावों को दर्शाती है। मनुष्य द्वारा किए जा रहे श्रम ने पृथ्वी के स्वरूप को गहराई से बदल डाला है। सिरामिक के इस काम को देखने से हल्के हरे, काई और बालुई रंग की आकृतियां समय और काल द्वारा छोड़े गए चिन्ह प्रतीत होते हैं। पानी, मिट्टी और पत्थर के घर्षण से बनी समुद्र के नीचे की अनजानी और रहस्यमई दुनिया से वाकिफ कराती है यह कृति। और अब तक कुछ अनदेखे रह जाने का दुर्लभ अनुभव कराता है। पी.आर दारोज दर्शकों को लैंडस्केप और सीस्केप की सुंदरता अनुभव करने के लिए को आमंत्रित करते हैं। इस आमंत्रण के पीछे प्रकृति के उन दुर्लभ चीजों को संरक्षित और सुरक्षित रखने के लिए लोगों को मदद करने हेतु हाथ बढ़ाने की अपेक्षा है।

जापानी कलाकार मिसाको शाइन की कृति का शीर्षक है ‘सीजन ‘। कागज़ पर जापानी सुमी-इंक पेंटिंग का आकार है 182/152 सेमी। यह चित्र पहली नजर में किसी प्राकृतिक दृश्य सरीखा नजर आता है पर चित्रकार के दृष्टिकोण में यह उस दृश्य का प्रतिनिधित्व करता है जो न केवल जापान अपितु एशिया और अफ्रीका में भी अनुपस्थित है। प्रकृति की सुंदरता और रहस्मयता को सामने लाने के लिए मिसाको शाइन ने जापानी सुमी स्याही का उपयोग किया है। प्राकृतिक दृश्य को सीधे चित्रित करने के बजाए चित्रकार एक काल्पनिक लैंडस्केप को लाते हैं । प्रेक्षक को एक खोए हुए दृश्य को देखने की टीस सी मन में बनी रहती है। एक ऐसा दृश्य जो शायद अब दुबारा देखने को न मिले। इससे हल्का अवसाद भी दिखता है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस अनेदखे लैंडस्केप की ओर लंबे अरसे से कोई गया ही नहीं है।

भारत के सुनील पहवाल की कृति का शीर्षक है ’65 पृष्ठों का वाकचतुर मौन’ ( एक प्राप्त किताब, प्राप्त पोस्टकार्ड, स्टांप पेपर, रॉयल्स, पहियों पर पक्षी और पशु, वनस्पति, कंक्रीट और वर्तमान समय की कहानियां ) मुगल लघु चित्रों की याद दिलाते हैं। इसी वर्ष बनी यह कृति 274/131 सेमी क्षेत्रफल घेरती है। इसे बनाने का माध्यम आइसोग्राफ पेन, माइक्रोन पेन, चारकोल, पेंसिल, और प्राप्त किताबों के पन्ने की स्याही है। 5 लघु चित्र उर्धवाकर में जबकि 13 क्षितिज आकार में। इस प्रकार 65 लघु चित्रों में अपने आसपास की छवियों को सामने लाया गया है।अखबारों और पुस्तकों के पन्नों पर पशु, पक्षी, पत्ते, पेड़, चेहरे आदि की छोटी-छोटी आकृतियां इसका हिस्सा है। इन पैंसठ लघु चित्रों का स्वतंत्र अस्तित्व है पर समग्रता में देखने पर एक भिन्न विजुअल इमेज उभर कर आता है। अपने विषय से अधिक अपने माध्यम की वजह से इस और ध्यान जाता है।

परेश मैती की कृति ‘आस्था का प्रकाश ‘

परेश मैती का कैनवास पर मिक्सड मीडिया में बनाई गई कृति का शीर्षक है ‘आस्था का प्रकाश ‘। इस चित्र का कैनवास बड़ा लगभग 152/457 सेमी का है। चित्र में लालटेन, पतंग, शतरंज की बिसात, सीढ़ी, नदी के घाट का किनारा जैसी छवियों के माध्यम से अपनी बात कहने की कोशिश की गई है। परेश मैती का चित्र ‘ वसुधैव कुटुंबकम् ‘ के विचार से बंधे भारत की एकता, एकजुटता और उसके विविध सांस्कृतिक रंगों का प्रतीक है। परेश मैती ने प्रकाश का बेहद कुशल चित्रण किया है। रौशनी का प्रभाव चित्र के प्रति आकर्षण पैदा करता है। यह चित्रकार की कला का आवश्यक तत्व है। चित्र के कम्पोजीशन में एक शक्ति दिखाई देती है । परेश मैती अपनी दृश्य भाषा में वैश्विक एकत्व और एकता का शक्तिशाली संदेश देते नजर आते हैं।

सीमा कोहली के चित्र का शीर्षक है ‘ ब्रह्माड की धड़क, बलुआ मिट्टी की चमक ‘ । इस चित्र को बनाने की सामग्री दिलचस्प है। कैनवास पर चौबीस कैरेट सोने और चांदी की पत्ती के साथ- साथ एकरीलिक और इंक का उपयोग किया है। सोने और चांदी की पत्तियों ने चित्र में एक चमकीला प्रभाव पैदा किया है। स्त्री भंगिमाएं, कमल, डमरू, पेड़ और इसकी जड़ों से स्त्री की उर्वरा शक्ति और उसकी सुनहरी आभा का अहसास देखने वाले को होता है। यह चित्र नारी शक्ति को सृजन के स्रोत के रूप में प्रदर्शित करता है जो गर्भ के माध्यम से कालचक्र का रूपक है। चित्र मानों रेत, आकाश और जल के साथ हमारे विचारों के अंदर गहराई को भी दर्शाता है। चित्र में धार्मिक प्रतीकों का उपयोग भी किया गया है।

सउदी अरब के चित्रकार नासिर अल सलेम की 140/140 सेमी में बनी कृति का नाम सितारों की सजावट दिया गया है। यह चित्र कई धार्मिक संकेतों को अपने में समेटे हुए है। इस्लाम के पवित्र स्थल में जाने वाले काबा को सात दफे परिक्रमा करनी होती है। चित्रकार ने इस मजहबी रवायत को अपने चित्र का विषय बनाया है। इसके लिए एसिड पेपर पर प्रिंट कराया गया है। पृथ्वी, सूर्य , चंद्रमा का एक दूसरे की घूर्णन की अवधारणा को चित्र भाषा में ढालते हुए चित्रकार ने अपने देश की लिपि के विजुअल को रेखांकन में उभारा है। हर देश की परंपरा में ब्रह्माण्ड के बारे में अपना एक खास दृष्टिकोण रहा करता है यह चित्र इस अवधारणा से संवाद बनाता है तथा कई बार इसे प्रश्नांकित भी करता हुआ नजर आता है। एक विशेष समाज की स्मृतियां मानों इस चित्र के माध्यम से अभिव्यक्त हो रही हों। काली पृष्ठभूमि पर सफेद रेखांकन काफी उभरकर आता है। सात गोलाकार रेखांकन और बीच बीच में अरबी लिपि का पैबस्त होना इसे एक देशीय संदर्भ भी प्रदान करता है।

जयश्री बर्मन का ‘ प्रसव ‘ ल्यूकोबॉन्ड पर पेपर चिपकाकर वाटर कलर, इंक और कलम से बनाया गया है। चित्र मां और शिशु के दुनिया में आने की प्रक्रिया के साथ इस बेहद कोमल, नाजुक और आकर्षक रिश्ते को चित्रित करने का प्रयास किया गया है। सृजन और मातृत्व के स्वप्निल संसार को अपने चित्र का विषय बनाया गया है। स्त्री का अपने नवजात शिशु से नाभिनाल जुड़ाव, अंगूर के पेड़, सारस, तितली आदि के माध्यम से एक ऐसी दुनिया सृजित करने की कोशिश की गई है जो देखने वाले के अंदर वात्सल्य भाव पैदा करता है। हल्के भूरे रंग और उसकी अलग-अलग छायाएं इस चित्र में है।

दक्षिण अफ्रीका के थालतें खोमो का 2017 का शीर्षक रहित फोटोग्राफ अपने विषयवस्तु के कारण ध्यान खींचती है। फोटो में एक गरीब बच्चा नीली चादर ओढ़े हुए बैठा है। इसके ठेहुने पर के काले दाग इसके दुखमय जीवन को सामने लाते हैं। जिस रूखड़े तल पर वह बैठा है उसकआई बनावट त्रासदी की तीव्रता को और बढ़ाता है। इसके सामने एक दूसरा बच्चा खुद में तल्लीन सा है। तस्वीर बच्चे के सफर से जुड़ी पिछली सदमे भरी ज़िंदगी के आईने की तरह है । यह तस्वीर हमें कुछ पुरानी यादों की तरफ भी ले जाती है। तस्वीर का काला, रूखड़ा, उलझा सतह, नीली चादर ओढ़े तथा पैर मोड़ कर बैठे बच्चे की तकलीफ हमें इस व्यवस्था पर सवाल उठाने को मजबूर करती है जो बच्चों से उनका बचपन छीन लेती है।

डीलन मूनी की कृति ‘ सोलनाम ग्रौनीटिकम – ग्रेनाइट नाइटशेड ‘

ऑस्ट्रेलिया की चित्रकार डीलन मूनी की कृति का नाम है ‘ सोलनाम ग्रौनीटिकम – ग्रेनाइट नाइटशेड ‘ । डीलन मूनी का काम मुख्यतः स्थिर जीवन क्षणों के लिए जाना जाता है। प्रकृति की एक ठहरी हुई छवि को चित्रित करने के लिए चित्रकार डिजिटल इलस्ट्रेशन और हाथ से युवी गेरू कही जाने वाली पद्धति से बनाया है। बैंगनी रंग वाले पत्ते, पीले रंग वाली फूल और हरी पत्तियां धूसर पृष्ठभूमि पर उभरती है। एक शांत व शोर से दूर प्रकृति के एक लम्हे को मानो कैद कर दिया गया है। यह चित्र हममें एक ऐसी दुनिया की ललक पैदा करते है जहाँ कोलाहल से मुक्ति मिले और देर तक प्रकृति के सौंदर्य को उद्विग्नमुक्त होकर निहारा जा सके।

ओमान के चित्रकार अब्दुल मजीद कारूह ने कैनवास पर मिक्सड मीडिया में 150/120 सेमी में चित्र बनाया है। चित्र का शीर्षक दिया गया है ‘द्वार ‘। अब्दुल मजीद कारुह अपने देश के दरवाजों को लेकर चित्र बनाने के लिए जाने जाते हैं। उनके अनुसार ये दरवाजे उन्हें अतीत की ओर ले जाते हैं। इस मध्यम से वे अपने क्षेत्र की स्थापत्य कला, शिल्प कौशल और सांस्कृतिक विरासत से परिचित होते हैं। चित्रकार ने लकड़ी के विशाल दरवाजे के ऊपर बनाई गई प्रचलित आकृतियां तथा उसे सुरक्षित और सशक्त बनाने के लिए ठोके गए लोहे के कील और पत्तियों को बेहद दक्षता के साथ चित्रित किया है। काला, सफेद, हल्के पीले रंग का उपयोग चित्रकार द्वारा अपनी भावनाओं के लिए किया गया है। चित्रकार ने घर के अंदर ले जानी जगह को भगवा रंग से इस कदर उकेरा है कि कि दरवाजे न सिर्फ आने जाने की सुविधा प्रदान करते हैं अपितु हमें अपनी परंपरा और इतिहास की ओर भी ले जाते प्रतीत होते हैं।

बिहार के रहने वाले पर अब मुंबई वासी संजय कुमार की एक कलाकृति इस प्रदर्शनी में शामिल की गई है। संजय कुमार के यह चर्चित मूर्ति कुछ महीनों पूर्व हुए उनके पुनरावलोकन प्रदर्शनी में पटना के दर्शकों ने देखा था। संजय कुमार ने एक मूर्ति हल्के हरे रंग से बनाया है। चेहरे को सिल्वर कलर से सपाट कर दिया गया है। मूर्ति के चारों ओर विभिन्न धर्मों से जुड़े कथन, कथाएं आदि चित्रित की गयी है। मूर्ति का हल्का हरा रंग तथा सिल्वर कलर का चेहरा और मूर्ति को थोड़े डायग्नल अंदाज में बनाया जाना इससे मूर्ति में एक गति का प्रभाव पैदा होता है।

संजय कुमार का मूर्तिशिल्प

संजय कुमार ने बुद्ध के संपूर्ण व्यक्तित्व को भारत में बेहद लोकप्रिय रामायण व महाभारत के साथ जोड़कर देखने का प्रयास किया है। एक चित्र में चित्रकार ने गोलाकार आकृति में पहले रामायण, दूसरे महाभारत व बुद्ध की कहानी को पेंट किया है। रामायण व महाभारत जहां मिथक हैं वहीं बुद्ध ऐतिहासिक शख्सियत हैं। संजय कुमार ने बुद्ध को रामायण, महाभारत की अगली कड़ी में रूप में समझने का प्रयास किया है। रामायण, महाभारत सरीखे महाकाव्य और बुद्ध के महाकाव्यात्मक जीवन को उतारने के लिए बड़े कैनवास का इस्तेमाल किया गया है। आजकल भारत में जिस प्रकार मिथक को इतिहास के साथ मिलाकर घालमेल किया जा रहा है उससे सभी वाकिफ हैं। वैसे कला में यह छूट हमेशा रहा करती है बशर्ते उसका चाक्षुष प्रभाव कैसा पड़ता है। संजय कुमार का काम आकर्षक है और प्रदर्शनी में अपना विशिष्ट स्थान रखती है।

आगामी : ( टुगेदर वी आर्ट’ : मनुष्य और पर्यावरण के बीच रागातमक संबंध की तलाश का नाम, भाग-3 )

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