पद्मश्री ब्रह्मदेव राम पंडित : भोरमबाग से भयंदर

दिनांक 21 दिसंबर, 2024 को बिहार संग्रहालय के सभागार में “पद्मश्री ब्रह्मदेव राम पंडित : भोरमबाग से भयंदर“ नामक पुस्तक का लोकार्पण हुआ। पुस्तक का प्रकाशन बिहार संग्रहालय ने किया है और इसके लेखक हैं बिहार संग्रहालय के अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा । ज्ञातव्य है कि लेखक अशोक कुमार सिन्हा की हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं में तीन दर्जन से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पुस्तक का लोकार्पण कला मर्मज्ञ, डिजाइनर, आर्ट क्यूरेटर और भारत के पहले सिनोग्राफर पद्मभूषण राजीव सेठी, बिहार विधान परिषद् के उप सभापति माननीय प्रो. (डॉ.) रामवचन राय, पद्मश्री ब्रह्मदेव राम पंडित, पद्मश्री प्रो. श्याम शर्मा और बिहार संग्रहालय के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह ने संयुक्त रूप से किया।

अशोक कुमार सिन्हा ने सभा में उपस्थित लोगों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि पंडितजी बिहार को गौरव दिलाने के लिए प्रयासरत हैं और 76 वर्ष में भी सक्रिय हैं। अंजनी बाबू के निर्देश पर यह पुस्तक आई है। इस मुकाम पर आने में उन्हें क्या मशक्कत करना पड़ा, इस पुस्तक में समेटने का प्रयास किया है। पचास वर्षों तक पंडित जी बिहार से दूर रहे लेकिन अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला, प्रगति मैदान, नई दिल्ली में मेरा उनसे संपर्क हुआ। वह महाराष्ट्र मंडप में आए थे लेकिन चूंकि बिहार के थे तो बिहार मंडप में घुमने आए थे। मुलाकात के बाद फोन नंबर का आदान प्रदान हुआ। उसके बाद जब निमंत्रण दिया तब इन्होंने उसे स्वीकार किया और बिहार दिवस पर पटना आए। उस दौरान लाइव डेमो दिया था और यहीं से पद्मश्री प्राप्त करने दिल्ली गए थे। पंडितजी इस उम्र में भी सीखते हैं। बहू और बेटे से भी सीखते हैं। सीखने की ललक 76 साल की उम्र में भी है। पुस्तक का परिचय देते हुए लेखक अशोक कुमार सिन्हा ने बताया कि किसी भी कामयाब व्यक्ति की कामयाबी एक दिन की उपलब्धि नहीं होती। उसकी लम्बी तपस्या का प्रतिफल होता है। सफलता किन पथरीली और दुर्गम राहों पर से गुजरते हुए हासिल होती है, यह जानना किसी के लिए भी प्रेरक तो होता ही है, रोचक भी होता है। इस पुस्तक के माध्यम से जब आप ब्रह्मदेव राम पंडित जी के जीवन के विभिन्न पड़ावों से गुजरेंगे तो सहज ही आपको अनुभूति होगी कि कामयाबी हासिल करने के लिए जीवन में संयम, संघर्ष के साथ निरंतरता और अनुशासन भी जरूरी है।

अपने लोकार्पण वक्तव्य में बिहार विधान परिषद् के उप सभापति प्रो. (डॉ.) रामवचन राय ने कहा कि पंडित जी ने यह साबित कर दिया कि जो मिट्टी से जुड़ा होता है वह शिखर को चूमता है। मैं लोकनायक जेपी जी को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने इस हीरा को तब परख लिया था जब वह बारह साल के थे। जैसे जेपी ने ब्रह्मदेव जी की काबिलियत को परखा उसी तरह लोहिया जी ने एम. एफ. हुसैन की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें लेकर हैदराबाद गए और फिर पेरिस भेजा। आपको आश्चर्य होगा कि वह किसी मोटर गैरेज में साधारण पेंटर थे लेकिन उनकी उंगली की हरकत से उन्होंने पकड़ लिया कि यह व्यक्ति खास है। तो जेपी और लोहिया वैसे नेता थे जो प्रतिभा की परख रखते थे। पंडितजी धरोहर हैं। ऐसे धरोहरों को संरक्षित करने की जरूरत है।

बिहार संग्रहालय के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि लेखक अशोक कुमार सिन्हा जी को इस अनूठी पुस्तक के लिए धन्यवाद। पंडित जी से मेरा पुराना संबंध रहा है। मैं दो व्यक्ति से बेहद प्रभावित हूं। एक हिम्मत शाह और दूसरे ब्रह्मदेव राम पंडित जी। पंडित जी इस उम्र में जितनी ऊर्जा रखते हैं वह अद्भुत है। पंडित जी तीन ही काम करते हैं। भोजन, नींद और सिर्फ काम। गप्पबाज लोग इन्हें पसंद नहीं है। इस उम्र में भी नई चीजें तलाशते हैं और प्रयोग करते हैं। सोखोदेवरा के जिस आश्रम से जुड़े उसे इन्होंने न सिर्फ अपनी कलाकृति दी बल्कि अपनी तरफ से दस लाख रुपए भी दिए। ऐसा कौन होगा? तो ऐसे हैं हमारे पंडित जी।

भारत के पहले सिनोग्राफर, आर्ट क्यूरेटर और सुप्रसिद्ध डिजाइनर राजीव सेठी ने लोकार्पण भाषण में कहा कि पंडित जी के कलाकृतियाँ की प्रदर्शनी देश की चर्चित आर्ट गैलरियों, जैसे सिमरोजा आर्ट गैलरी, जहांगीर आर्ट गैलरी, त्रिवेणी कला संगम आदि में लग चुकी है और देश के तमाम विख्यात कला संग्राहकों जैसे इब्राहिम अल्काजी, अमाल अल्लाना, फिरोजा गोदरेज, जल आर्या, एन सुले, ओपी जैन, अनुराधा रविंद्रनाथ, संगीता जिंदल, डॉ. कुब्बा आदि के संग्रह में इनकी कृतियाँ सुसज्जित हैं। इस बिहार संग्रहालय को नया रंग रूप देने वाले और पंडित जी को जन्मभूमि को फिर से कर्मभूमि बनाने के लिए प्रेरित करने वाले अंजनी जी को धन्यवाद देता हूं। आज जहां लोग अपनी पारंपरिक कला से जुदा हो रहे हैं वहीं पंडित जी ने पारंपरिक कला को स्टूडियो कला में तब्दील करने का जो हौसला दिखाया उसे सलाम करता हूं। सोच तो कोई भी सकता है लेकिन परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए हुनर चाहिए। वह हुनर मैंने पंडित जी में पाया और उनसे सीखा भी। मुंबई एयरपोर्ट के टर्मिनल टू पर एक जीवित संग्रहालय बनाने की चुनौती थी। करीब पंद्रह सौ कलाकारों से मैंने संपर्क किया और पंडित जी को पंचमहाभूत में से जल तत्व पर काम करने का आग्रह किया और पंडित जी ने क्या अद्भुत काम किया। ये कहते हैं मैं आपसे सीखता हूं और मैं कहता हूं कि मैं आपसे सीखता हूं।

अपने विषेष वक्तव्य में पद्मश्री प्रो. श्याम शर्मा ने कहा कि इस पुस्तक में कलाकार के मुंबई में स्थान बनाने की संघर्ष गाथा है। पुस्तक की विशेषता है कि यह एक कलाकार की संघर्ष गाथा है वह भी सहज, सरल शब्दों में। ब्रह्मदेव जी का चाक से लेकर फर्निश तक मजबूत पकड़ है, उस ब्रह्मदेव जी को नमन। उन्होंने रंगों और बनावट का जो प्रयोग किया है वह अद्वितीय है। उन्होंने स्वयं को समकालीन कलाकार के समकक्ष खड़ा किया है। उनका कलापक्ष अन्यत्र दुर्लभ है। उनका सौंदर्य बोध और चिंतन अद्वितीय है। इनके शिल्प कलात्मक है। मिट्टी से अद्भुत जुड़ाव है। भगवान बुद्ध की स्पर्श मुद्रा कहती है कि अपनी मिट्टी से जुड़ो। पंडित जी ने इस संदेश को आत्मसात किया। परम से परे ही परंपरा है। उन्होंने कुछ नया जोड़ कर परंपरा को समृद्ध किया है। इनके शिल्पों में नवीनता भी है और परंपरा भी है। यह पुस्तक न सिर्फ पठनीय है बल्कि संग्रहणीय भी है।

पद्मश्री ब्रह्मदेव राम पंडित ने पुस्तक लेखन के लिए लेखक अशोक कुमार सिन्हा को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि लोकार्पित पुस्तक ‘‘पद्मश्री ब्रह्मदेव राम पंडित : भोरमबाग से भयंदर‘‘ में लेखक अशोक कुमार सिन्हा ने मेरे जीवन के तमाम महत्वपूर्ण पहलुओं को रेखांकित करने का प्रयास किया है। मैं खुद के बारे में नहीं बोलूंगा। लेखक ने मेरे बारे में सब बता दिया है। मैं अपनी कला के बारे में बोलूंगा। मैंने अजगांवकर सर के पास बोलना, बैठना और मेहनत करना सीखा। मैंने गद्दारी भी किया। गद्दारी यह कि बहुत कुछ दूसरी जगह भी सीखा। नौकरी की तलाश की। और उनसे सीखकर सोफिया पॉलीटेक्निक में सिखाना शुरू किया। पहले लाल मिट्टी से काम करता था अब सेरामिक में काम शुरू कर दिया। एक्सपेरिमेंट करने लगा। आधी रात को भी काम करना शुरू कर दिया। राजीव सेठी जी से भी सीखा। अंजनी सिंह जी भी प्रेरणा देते रहते हैं। उकसाते रहते हैं। और बाजार की नब्ज पकड़ने को कहते हैं। आज यह हाल है कि जो भी बनाते हैं सब बिक जाता है।

कार्यक्रम में मंच संचालन सुप्रसिद्ध रंगकर्मी अनीश अंकुर ने किया। इस अवसर पर सभागार में सुप्रसिद्ध कवि आलोक धन्वा, वयोवृद्ध कलाकार आनंदी प्रसाद बादल समेत बड़ी संख्या में लेखक, बुद्धिजीवी और कलाकार उपस्थित थे।

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