अयोध्या में आयोजित होनेवाला दीपोत्सव देखते-देखते एक बड़े सांस्कृतिक आयोजन में तब्दील हो चूका है। इसकी भव्यता देश दुनिया के पर्यटकों को भी आकर्षित करने लगी है । इस विशाल आयोजन के विभिन्न पहलुओं को रेखांकित करता प्रो.कुमुद सिंह का विस्तृत आलेख। बताते चलें कि कुमुद सिंह जी का. सु. साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय में चित्रकला विषय की विभागाध्यक्ष हैं।
अयोध्या, उत्तर प्रदेश में दीपावली की पूर्व संध्या पर दिव्य दीपोत्सव 2020 की परिकल्पना का उद्देश्य जो भी रहा हो किंतु यह एक भव्य कला उत्सव का अनूठा प्रतिबिंब बन गया। राम के वनवास से लौटने की खुशी को लाखों मिट्टी के दीप जलाकर अपने अतीत को जीवंत करने के साथ ही साथ कलाओं के समृद्ध प्रदर्शन, संरक्षण एवं संवर्धन का साक्षी बना; उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आयोजित तथा डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के सहयोग से चौथा दीपोत्सव करोना वायरस के दिशा निर्देशों के साथ विविध कला रूपों नाटक, चित्र, नृत्य, वाद्य, संगीत सभी को एक सूत्र में पिरो कर प्रस्तुत करने का यह प्रयास अनूठा कला उत्सव के रूप में हस्ताक्षरित होकर अपने ही विश्व रिकार्ड को तोड़ कर गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड के रूप में दर्ज हो गया।
यह एक बहुत ही अच्छी बात है कि एक प्राचीन विश्वास को नई परंपरा में प्रदर्शित करने के लिए रचना धर्मिता और कला प्रेमियों, कला कर्मियों का सहयोग लिया गया। इसके कार्यक्रम पर दृष्टिपात करने से पता चलता है कि संपूर्ण उत्सव सैकड़ों प्रदर्शनकारी कलाकारों और चाक्षुष कलाओं के वैविध्यपूर्ण, बहुआयामी बुनियाद पर ही निर्मित है। सर्वप्रथम श्री राम की जीवनी पर आधारित 11 झांकियां कामता प्रसाद सुंदर लाल साकेत महाविद्यालय के प्रांगण से निकलकर राम कथा पार्क तक पहुंची जिसमें 100 से अधिक कलाकारों ने रंगारंग झांकियों के साथ परंपरागत नृत्य भी किया। इनमें बाहर से आए हुए कलाकारों के साथ स्थानीय कलाकारों ने भी भाग लिया और सभी कलाकारों ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। झांकियां बनाने का कार्य 1 सप्ताह पूर्व से ही प्रारंभ हो जाता है । पूरी साज-सज्जा, वस्त्र विन्यास तथा परिवेश के साथ नृत्य वादन सभी को देखने सुनने और गुनने की अनुभूति करा गया। दूसरी तरफ श्री राम- सीता और लक्ष्मण,पुष्पक विमान रूपी हेलीकॉप्टर से उतरते हैं उनके ऊपर पुष्पों की वर्षा के साथ तकनीकि, विज्ञान और कला की त्रिवेणी के इस सांकेतिक स्वरूप का मुख्यमंत्री जी तिलक लगाकर स्वागत भी करते हैं। तत्पश्चात मुख्यमंत्री तथा राज्यपाल महोदय द्वारा सरयू आरती करते समय पहली बार देवी मां की आरती तथा दीपोत्सव आधारित गीतों का गायन भी हुआ। सरयू आरती के पश्चात दीपोत्सव का शुभारंभ राम की पैड़ी के 24 घाटों पर किया गया। इन घाटों पर सर्वप्रथम 1 दिन पहले ही मार्किंग कर ली जाती है फिर उस पर छ:लाख दिए जलाने के लिए आठ हजार स्वयंसेवक तैनात किए जाते हैं। अयोध्या के बहुत सारे कॉलेज, स्कूल और स्वयंसेवी संस्थाएं के स्वयंसेवक इस कार्य में अपनी सेवा देते हैं।
समन्वय बनाये रखने के लिए पदाधिकारियों की बैठकें बहुत पहले से लगातार होती रहती हैं, इन बैठकों में उत्सव से संबंधित संपूर्ण चर्चा होती है । दीपो की सहायता से भी राम से संबंधित प्रसंगों का चित्रण किया जाता है । इन प्रसंगों में पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी “राम दरबार” प्रसंग का सृजन डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के कलाकार विद्यार्थियों द्वारा रंगों से चित्र बनाकर कर उन पर दीए रखकर पूर्ण किया गया किंतु इस बार कुछ नए प्रसंगों पर चित्र बने जिनमें “राम मंदिर मॉडल तथा श्री राम” का चित्र लगभग दो हजार पांच सौ बावन दीपक की सहायता से तथा श्री हनुमान जी का चित्र लगभग तीन हजार दो सौ दिए की सहायता से तथा ” पुष्पक विमान ” लगभग दो हजार दीए की सहायता से का. सु. साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय के विभागाध्यक्ष डॉ कुमुद सिंह एवं असिस्टेंट प्रोफेसर अम्बरीष कुमार श्रीवास्तव के दिशा निर्देशन में चित्रकला विभाग के कलाकारों ने किया। सर्वप्रथम घाटों पर स्थान का निर्धारण करके, उस स्थान का माप लेकर उसके हिसाब से रेखा चित्र बनाया गया फिर उस रेखाचित्र को धरातल पर सफेद रंग की सहायता से बनाया गया फिर मिट्टी के दिए सजाए गए। इन कृतियों ने उन चरित्रों के साथ सभी का एक संवाद कराया साथ ही नारी सशक्तिकरण विषय पर भी दो चित्रों का सृजन किया गया। यह सभी चित्र बहुत विशाल होने के कारण ड्रोन कैमरे की नजर से उचित रूप से देखा जा सका और यही कारण है इसको बहुत ही सराहना भी मिली इन चित्रों को बनाने के लिए लगभग एक सप्ताह का समय लगा ।
राज्य ललित कला अकादमी लखनऊ द्वारा जन-जन में राम विषय पर आयोजित कार्यशाला में सृजित कृतियों की “मूर्तिशिल्प प्रदर्शनी” भी राम कथा पार्क में लगाई गई जिसमें उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ कलाकारों के साथ युवा कलाकारों की कृतियां और उनकी कलात्मक प्रतिभा से सभी को परिचित होने का मौका मिला। यह मूर्तियां विषय के साथ साथ कलात्मकता में भी श्रेष्ठ थी। प्रत्येक कलाकार ने राम प्रसंग को अपने-अपने नजर से देखने का प्रयास किया। राम कथा पार्क में ही रात में रामलीला का मंचन परंपरागत कलाकारों द्वारा किया गया जिसे मुख्यमंत्री जी ने अवलोकन भी किया । छ:लाख मिट्टी के दीयों की व्यवस्था टेंडर डालने की प्रक्रिया से होता है किंतु दीए बनाने के लिए एक बड़ा स्पेस इस दीपोत्सव के बहाने मिल जाता है जो कुंभकारों को भविष्य के लिए आश्वस्त करता है। इन लाखों प्रज्वलित दीपों के साथ ही साथ लेजर लाइट से रामकथा का प्रदर्शन चाक्षुष परमानंद की अनुभूति से सराबोर कर देता है। ऐसा लगता है मानो अयोध्या एक रंगमंच है और उस रंगमंच पर सभी कलाएं -झांकियां, दीपो से निर्मित चित्र, रंगोली नृत्य, वाद्य, संगीत, नाटक सभी अभिव्यक्ति के जीवंत रूप में एक साथ दिखाई पड़ रहे हैं। अयोध्या के विशाल परिदृश्य में कलाओं का अद्भुत प्रयोग विहंगम दृश्य बन आयोजन धर्मिता से संवाद करने लगते हैं।
अगर हम चुनौतियों की बात करें तो रामलीला तथा झांकियों नृत्य और वादन के क्रियान्वयन में कोई खास असुविधा का सामना नहीं करना पड़ता है क्योंकि सभी व्यवसायिक एवं परंपरागत कलाकार रहते हैं जो देश के विभिन्न हिस्सों में समय-समय पर कलात्मक अभिव्यक्ति करते रहते हैं। रामलीला, अयोध्या शोध संस्थान संस्कृति विभाग अयोध्या में अनवरत चलती रहती है इस क्रम में किसी प्रकार की विशेष चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ता केवल रामलीला मंचन के स्थान को लेकर थोड़ी बहुत असुविधा का सामना इसलिए होता है कि राम कथा पार्क से अच्छा कोई भी स्थान अयोध्या में अभी मौजूद नहीं है। सबसे बड़ी चुनौती दीप प्रज्वलन में है क्योंकि एक बड़े भूभाग पर असंख्य दीपों को संयोजित करना, प्रसंग का रेखांकन एवं चित्रांकन करना तथा समयबद्ध सीमा में उन दीपो को जलाना एक मुश्किल काम होता है। राम की पैड़ी के 24 घाटों पर एक एक घाट पर दो-तीन समन्वयक तथा हजारों स्वयंसेवक सप्ताह भर पहले से अपने स्थान का निर्धारण करने में व्यस्त हो जाते हैं। हर दिन कुलपति महोदय तथा शासन के अधिकारियों का आवागमन होता रहता है। लाखों दीपों की व्यवस्था भी एक बड़ी चुनौती होती है जिसमें अयोध्या के आसपास के क्षेत्र के साथ ही बाराबंकी, लखनऊ तक से कुंभकारों से दीए खरीदे जाते हैं। दीए को घाटों पर व्यवस्थित करने में सैकड़ों स्थानीय युवा कलाकार, वरिष्ठ कलाकारों के निर्देशन में संपन्न करने का भव्य कलात्मक दृश्य अद्भुत संगम होता है।
इतने बड़े प्रोजेक्ट में रामलीला प्रस्तुति के लिए एक सुविधा संपन्न ऑडिटोरियम या स्थान को सुनिश्चित किया जाना चाहिए दीए की व्यवस्था पांच -छ: दिन पहले हो जानी चाहिए। कलाकारों के नाम भी मौखिक ( माइक से) तथा लिखित रूप में अंकित होने चाहिए जिससे कि दस्तावेजीकरण में कलाकारों का नाम आने वाले समय में उनके अवदान को स्पष्ट कर सके। कुछ एक बातों को छोड़कर यह बहुत ही सफलता से संपन्न हुआ।
अंतत: हम इस उत्सव से सहमत या असहमत हो सकते हैं किंतु कला संसार में इसके अवदान को नकार नहीं सकते। इसका अनूठा स्वरूप समाज में कलात्मक अभिव्यक्ति विकसित करने और कलाओं के अन्तर्सम्बन्ध तथा जड़ होते परिदृश्य में रचनात्मकता को जीवंत करने के लिए याद किया जाएगा ।