पद्मश्री गोदवारी दत्त को कलाकारों की श्रद्धांजलि

  • फोकार्टोपीडिया परिसर में जुटे लोककलाकारों  ने किया याद
  • मिथिला चित्रकला में गोदवारी दत्त के योगदान पर चर्चा
  • 3 सितंबर को एक दिवसीय लोककला कार्यशाला का आयोजन

मिथिला चित्रकला की ख्यातिलब्ध कलाकार पद्मश्री गोदावरी दत्त की याद में पटना के कुर्जी स्थित लोककलाकारों की संस्था फोकार्टोपीडिया फाउंडेशन ने पिछले दिनों ‘रीमेंब्रांस’ कला-संवाद का आयोजन किया। इस अवसर पर पद्मश्री अशोक कुमार विश्वास, अटल इंक्यूबेशन सेंटर के अध्यक्ष और सेवानिवृत प्रशासनिक अधिकारी विजय प्रकाश, बोधगया बिनाले के डायरेक्टर विनय कुमार और स्कूल ऑफ क्रिएटिव लर्निग की कार्यकारी अध्यक्ष और चरखा समिति की सचिव मृदुला प्रकाश ने पद्मश्री गोदावरी दत्त की कलायात्रा और उनके योगदान पर प्रकाश डाला। इस क्रम में फोकार्टोपीडिया फाउंडेशन अपने परिसर में तीन सितंबर को एक दिवसीय चित्रकला कार्यशाला का आयोजन भी कर रहा है। बिहार में यह संभवत: पहला मौका है जब किसी लोककलाकार की कलायात्रा और कला क्षेत्र में उनके योगदान को कला-संवाद या चित्रकला कार्यशाला के जरिये याद किया जा रहा हो।

इस मौके पर फोकार्टोपीडिया फाऊंडेशन के निदेशक सुनील कुमार ने कहा कि बिहार के लोक-कला क्षेत्र में हमें नयी और सकारात्मक परंपराओं की जरूरत है। यह कला-संवाद और चित्रकला कार्यशाला उसी परंपरा को गढ़ने की एक छोटी-सी कोशिश है। इस मौके पर उन्होंने लोककलाकारों के लिए समर्पित इमरजेंसी असिस्टेंस फंड की घोषणा की। सुनील कुमार ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पहले राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त उत्तम पासवान, जयशंकर और अब पद्मश्री गोदवारी दत्त को उनके अंतिम दिनों में इलाज के दौरान आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। ऐसे में इमरजेंसी असिस्टेंस फंड वर्तमान समय की आवश्यकता है। फोकार्टोपीडिया उसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर मुहिम चलाएगी और हर वर्ष उस फंड का सोशल ऑडिट करेगी।

गोदावरी दत्त को याद करते हुए पद्मश्री अशोक कुमार विश्वास ने कहा हमें गोदावरी दत्त से बहुत-कुछ सीखने की जरूरत है, खासकर युवा कलाकारों को। उन्होंने कहा कि गोदावरी दत्त की कला यात्रा यह बताती है कि विपरीत परिस्थिथियों में किस तरह से धैर्य और संयम से उन्होंने कला और कला समाज में एक मुकाम हासिल किया जा सकता है और कलाकार अपने जीवन काल में ‘लार्जर दैन लाइफ’ बन सकता है। गोदावरी दत्त का पूरा जीवन धर्य का प्रतीक था। निजी जीवन भी और कला जीवन भी।

मिथिला चित्रकला में स्वर्गीय गोदावरी दत्त के योगदान को याद करते हुए विजय प्रकाश ने कहा कि यह एक कलाकार की जीवटता और कला के प्रति उसका समर्पण ही है कि गोदावरी दत्त और उनके समकालीन कई महिला कलाकार उस दौर में जापान जाकर मिथिला म्यूजियम की स्थापना में मदद करती हैं, जब किसी व्यक्ति के विदेश जाने मात्र से ही जाति से बहिष्कृत कर दिया जाता था। आज इस बात को रेखांकित करने की जरूरत है क्योंकि तब यह कितनी बड़ी बात रही होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है।

मृदुला प्रकाश ने गोदावरी दत्त के साथ अपने निजी अनुभवों को फोकार्टोपीडिया परिसर में जुटे कलाकारों और कला-मर्मज्ञों के साथ साझा करते हुए कहा कि हम दुर्गा की पूजा करते हैं, सरस्वती की पूजा करते हैं, नतमस्तक होते हैं। हमें उनसे पहले गोदावरी दत्त सरीखी कलाकारों के सामने नतमस्तक होने की जरूरत है, उनकी पूजा करने की जरूरत है क्योंकि वह दुर्गा और सरस्वती बनकर लक्ष्मी भी को भी साथ ले आयीं।

विनय कुमार ने कहा कि जब कोई व्यक्ति संघर्ष में तपता है तब उसके व्यवहार में मृदुता आती है। जब एक कलाकार उसी संघर्ष में तपता है तब उसकी कला ज्यादा निखरकर सामने आती है। गोदावरी दत्त संघर्ष की मिसाल थीं। उन्होंने हमें संघर्ष का रास्ता दिखाया। कलाएं हमेशा संघर्ष से निकलती हैं। वह आराम से बैठकर और सुख-सुविधाओं में कभी फलती-फूलती नहीं है। संघर्ष सिर्फ सुविधाओं का नहीं होता है। विचारों का संघर्ष होता है। माहौल और परिवेश का संघर्ष होता है। उसे हमें गोदावरी दत्त से सीखने की जरूरत है।

फोकार्टोपीडिया परिसर में इस मौके पर पटना के जाने-माने कला लेखक अनीस अंकुर, फिल्म निर्माता रविराज पटेल, अनूप सिंह, नुपुर गुप्ता, मनीष कुमार, मधुबनी से पटना आये संतोष पासवान, श्रवण कुमार पासवान, सुजाता मिश्रा और उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान के शिक्षकों एव छात्र-छात्राओं समेत कई गणमान्य लोगों की उपस्थिति रही। सभी ने गोदावरी दत्त की याद में एक मिनट का मौन भी धारण किया।

गौतलरब है कि फोकार्टोपीडिया फाउंडेशन बिहार की लोककलाओं के संरक्षण और संवर्धन के दिशा में न केवल सक्रिय है, बल्कि फोकार्टोपीडिया; आर्काइव ऑफ फोक आर्टस के नाम से लोककला एवं संस्कृति पर एक ऑनलाइन डिजिटल रेपोजेस्ट्री बना रही है जिसका लाभ न केवल बिहार के कलाकार उठा रहे हैं बल्कि देश और विदेश के कलाकारों को भी उसका लाभ मिल रहा है।

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