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1962-67 में कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लखनऊ उत्तर प्रदेश से पेंटिंग में डिप्लोमा किया था।
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सुप्रसिद्ध लेखक स्व. यशपाल की भतीजी थीं चित्रकार गोगी सरोज पाल ।
लखनऊ, 28 जनवरी 2024, बचपन से एक चित्रकार बनने के सपने के साथ सफर की शुरुआत करते हुए कला संसार में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाली महिला चित्रकार गोगी सरोज पाल का आकस्मिक निधन हो गया। जीवन का एक लंबा सफर तय करते हुए अपनी शर्तों पर जीने वाली देश की महत्त्वपूर्ण महिला चित्रकार गोगी सरोज पाल 79 वर्ष की थीं। इस समाचार से कला जगत में शोक की लहर फैल गयी। सोशल मीडिया के जरिये लोगों ने उनसे जुडी हुयी स्मृतियों और अपने अपने भाव के साथ उन्हे श्रद्धांजलि दे रहे हैं। कला जगत में उनके निधन से अपूर्णनीय क्षति हुई है। किन्तु अपनी कृतियों के माध्यम से वे चिरकाल तक जीवित रहेंगी।
प्रख्यात भारतीय चित्रकार गोगी सरोज पाल का जन्म 3 अक्टूबर 1945 को नियोली, उत्तर प्रदेश में हुआ था । उन्होंने कला के कई माध्यम में काम किया। उनकी कृतियों में आम तौर पर महिलाएं ही विषयवस्तु रही हैं, और उनकी कलाकृतियों में एक काल्पनिक तत्व भी होता है जो महिलाओं की स्थिति पर टिप्पणी करता है। उनके शुरुआती काम अधिक यथार्थवादी प्रभाव लिए थे, लेकिन समय के साथ वह सरल और अधिक शैलीबद्ध चित्रों की ओर बढ़ गईं।

गोगी सरोज पाल ने 1961-1962 तक राजस्थान के वनस्थली में कला अध्ययन किया जिसके बाद उन्होंने 1962-67 में भारत के उत्तर प्रदेश के लखनऊ स्थित कॉलेज ऑफ आर्ट से चित्रकला में डिप्लोमा प्राप्त किया। उन्होंने 1968 में दिल्ली के कला महाविद्यालय से चित्रकला में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। इन वर्षों में उन्होंने लगभग 30 एकल शो किए और ललित कला अकादेमी से राष्ट्रीय पुरस्कार सहित कई पुरस्कार भी हासिल किये। उन्होंने भारत और विदेशों में बड़ी संख्या में ग्रुप शो में भी भाग लिया था : यूगोस्लाविया, जर्मनी, फ्रांस, क्यूबा और जापान सहित अन्य। उन्हें पहले ही एहसास हो गया था कि वह एक कलाकार बनना चाहती हैं। उनके चाचा एक प्रसिद्ध लेखक थे, जिनके कारण उनका साहित्य जगत और कला से परिचय हुआ। उनके परिवार को उनके कलाकार बनने पर संदेह था क्योंकि उस युग में बहुत कम कलाकार थे और महिलाओं के लिए यह क्षेत्र पसंदीदा तो नहीं ही था। वह जानती थी कि एक कलाकार बनने के लिए उन्हें किसी कला विद्यालय में दाखिला लेना होगा। अपनी कला शिक्षा के बाद गोगी सरोज पाल ने 1970 में नई दिल्ली में महिला पॉलिटेक्निक में व्याख्याता के रूप में पढ़ाना शुरू किया। अंततः वह अपने स्नातकोत्तर अल्मा मेटर, कॉलेज ऑफ आर्ट, नई दिल्ली लौट आईं जहां उन्होंने 1975-76 में एक वर्ष तक पढ़ाया। उन्होंने 1979-80 और 1982-83 में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के कला विभाग में भी व्याख्यान दिया। दिल्ली में, वह एक स्वतंत्र कलाकार के रूप में काम कर रही थीं और कला संस्थानों में पढ़ाती भी थीं।
लखनऊ से चित्रकार व क्यूरेटर भूपेन्द्र अस्थाना ने बताया कि चित्रकार पाल से मुलाक़ात 2015 में जयपुर आर्ट समिट के दौरान हुई थी। उस दौरान उनसे काफी बातचीत भी हुई थी। नई दिल्ली से ललित कला अकादमी के समकालीन पत्रिका के संपादक (हिन्दी) सुमन कुमार सिंह ने कहा कि समकालीन कला में स्त्री की भावनाओं और आकाँक्षाओं को सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान करने वाले कलाकारों में अग्रणी कही जाने वाली गोगी सरोज पाल का निधन एक अपूरणीय क्षति है। लखनऊ से वरिष्ठ मूर्तिकार पाण्डेय राजीवनयन ने कहा कि गोगी सरोज पाल देश की एक महत्वपूर्ण कलाकार थी। उनकी कृतियों में विशेष रूप से नारी रूपाकारों के माध्यम से विशेष संवेदना का विस्तार देखने को मिलता है। गोगी देश की प्रमुख महिला चित्रकार के साथ -साथ भारतीय समकालीन कला के क्षेत्र अपनी विशिष्ट शैली एवं अभिव्यक्ति के स्तर अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती थी। लखनऊ में शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत उन्होंने दिल्ली को अपना कर्म क्षेत्र बनाया। समकालीन कला आंदोलन में उनकी कृतियां युवा कलाकारों के लिए सदैव प्रेरणा स्रोत रहेंगी।
लखनऊ से ही वरिष्ठ चित्रकार,कला समीक्षक/ इतिहासकार, कला शिक्षाविद् अखिलेश निगम ने अपने शब्दों में कहा कि सरोज पाल को उनके अध्ययन काल से देखा है। वे एक बेबाक क़िस्म की छात्रा रहीं हैं। अपने सहपाठियों और गुरुओं दोनों के सम्मुख अपनी बात रखने और उस पर तर्क करने की उनकी आदत की शुरुआत लखनऊ आर्ट्स कालेज से ही हुयी। गोगी की शुरुआत ग्राफिक्स से ही हुई थी। वे एक प्रयोगधर्मी कलाकार रहीं। बाद में वे दिल्ली चलीं गयीं, और कला के प्रति समर्पित हो गयीं। यहीं वे वेद नायर जी के संपर्क में आयीं,और फिर उनकी परिणीता बन बैठीं। ग्राफिक्स,चित्र, इंस्टालेशन आदि विभिन्न माध्यमों में उन्होंने काम किया और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की। एक महिला होकर भी जिस संघर्ष से उन्होंने समकालीन भारतीय कला में अपना स्थान बनाया वह काबिले तारीफ है। उनका जाना कला जगत के लिए एक अपूर्णीय क्षति है परंतु उनका कला – कर्म सदैव उन्हें जीवित रखेगा।
नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट नई दिल्ली के महानिदेशक संजीव किशोर गौतम ने कहा कि गोगी सरोज पाल के आकस्मिक देहावसान की सूचना स्तंभित करने के साथ साथ अंतःकरण को गहन शोकाकुल करने वाली है। आपकी गणना आधुनिक नारीवादी महिला चित्रकारों में सर्वोपरि स्थान पर की जाती रही है। आधुनिक कला के क्षेत्र में गोगी का योगदान अतुलनीय एवं अविस्मरणीय है। उनके जीवन का प्रारंभिक काल उत्तर प्रदेश एवं लखनऊ से संबंधित रहा है आप न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि देश की महिला कलाकारों में प्रतिष्ठित स्थान रखती थी।
जयपुर आर्ट समिट के संस्थापक शैलेंद्र भट्ट ने कहा कि मैंने अपनी माँ के बाद यदि किसी स्त्री को, विचारों से अधिक मजबूत देखा है, तो वो और कोई नहीं गोगी सरोज पाल जी हैं। इनके सृजन का मुख्य अलंकरण इनके चुनिंदा रंगों में रंगा बोलता हुआ कैनवास है। मैंने, गोगी जी को कभी अपने सृजन के बारे स्पष्टीकरण देते हुए नहीं देखा क्योंकि इनका बोलता हुआ सृजन ही अपने आप में एक स्टेटमेंट है। मानव के मन में दबी इच्छाओं के मिथकों से अंतर्मन में सृजित इनके भित्ति-चित्र दर्शक के कानों में हकीकत बोलते से प्रतीत होते हैं।
लखनऊ से कला समीक्षक शहँशाह हुसैन ने कहा कि गोगी सरोज पाल का विमर्श स्त्रियोचित था। अपने चित्रण में स्त्री मन की अंतर्वेदना का उनका अभिव्यक्तिकरण जहाँ एक ओर यथार्थवादी था तो वहीं दूसरी ओर दार्शनिकता के समावेशी भावों से भी ओतप्रोत था। यथार्थवादी और दार्शनिक पृष्ठभूमि के बावजूद उनकी भावाभिव्यक्ति सरल और सहज थी जो दर्शक की चेतना पर सीधा और सटीक प्रहार करती थी। गोगी सरोज पाल की कला शिक्षा चूंकि लखनऊ कालेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट में हुई थी इसलिए वे हम सबके मनोभावों और हृदय के नैसर्गिक रूप से निकट थी। हमने एक विदुषी महिला कलाकार को खोया है जिसका हम सभी को हार्दिक दुख है।
ग्वालियर से जयंत सिंह तोमर ने कहा कि गोगी सरोज पाल स्वतंत्रता के बाद उभरीं और स्थापित हुईं कलाकारों में प्रमुख थीं। रिचर्ड बार्थोलोम्यू ने उनकी कला के विषय में लिखा था कि गोगी सरोज पाल की कला एकाकी स्त्री के नितांत निजी पल का अनुभव कराती है। स्त्री उनकी कला में कभी कामधेनु बनकर आती है, कभी पक्षी का रूप धरकर, तो कभी नायिका के रूप में। गोगी सरोज पाल स्वयं को नारीवादी तो नहीं मानती थीं लेकिन नारी विविध रूपों व विविध माध्यमों से उदास अंत:करण से उनकी कलाकृतियों में दिखाई देती है। गोगी सरोज पाल क्रांतिकारी रहे लेखक यशपाल की भतीजी थीं। कलाकार वेद नायर को सखा का स्थान दिया। उनकी कलाकृतियों ने जापान, पोलैंड व नेदरलैंड आदि देशों के कला – संग्रहों में स्थान पाया है। कला-अध्येताओं से सदैव उन्होंने तैयारी के साथ आने के लिए प्रेरित किया। वनस्थली, लखनऊ आर्ट कालेज व दिल्ली पौलीटेक्निक से कला की शिक्षा हासिल कर उन्होंने भारतीय कला को एक नया आयाम दिया। गोगी सरोज पाल का निधन भारतीय कला के एक महत्वपूर्ण नक्षत्र का अस्त होने जैसा है।
बनारस से मूर्तिकार राजेश कुमार के शब्दों में “यत् गच्छति तत् न काल: जीवनम्।“ गोगी सरोज पाल को आधुनिक भारतीय कला की एक प्रबुद्ध एवं नारीवादी महिला कलाकारों में अग्रणी कलाकार के रूप में देखा जाता है। आजादी से पूर्व जन्मी लखनऊ कला एवं शिल्प महाविद्यालय की कला विद्यार्थी के रूप में और एक सिद्धहस्त महिला चित्रकार के रूप में उन्होंने खुद को कुछ इस प्रकार कला को समर्पित किया, जिसमें भारतीय चित्रकला का अंश जैसे पहाड़ी चित्रकला आदि से अभिप्रेरित एवं महिला के जीवन, किंवदंतियों पर आधारित चित्रों का सशक्त अभिव्यक्ति करना आसान नहीं रहा होगा। सचमुच उन्होंने अपने जीवन की सुगंधि को समाहित करते हुए उन मनोभावों को दृढ़ता के साथ अभिव्यक्त किया। माध्यम की भी बाधाओं को तोड़ते हुए धार्मिक एवं साहित्यिक परंपराओं को रुचिकर, लालित्यपूर्ण व महिला सशक्तिकरण को अपनी कला की अभिव्यक्ति के लिए चुना। जो समकालीन महिला सशक्तिकरण योजनाओं से विरत उन्होंने अपने चित्रों के माध्यम से समाज में एक व्यंग्यपूर्ण और सकारात्मकता का प्रकाश भरने में सफल महिलाओं को आत्मबल प्रदान करती हुई दिखती है। उनकी कूची थम जाने से कला जगत में जो रिक्तता आई है भौतिकता का चादर ओढे एवं आत्मावलोकन से वंचित आज के कलाकार उसे नहीं भर सकते। उनका जीवन कला में संपूर्ण रुप से आत्माभिव्यक्ति का माध्यम रहा है।