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मौर्यकालीन हंसता हुआ बालक और नृत्यरत कन्या का केश विन्यास हर किसी को आश्चर्यचकित कर देता है : अंजनी कुमार सिंह
पटना, 02 मई। वर्तमान युग या दौर को अक्सर हम फैशन का दौर कहते या मान लेते हैं। किन्तु सच तो यह है कि सजने-संवरने का चलन मानव सभ्यता के साथ-साथ चलता ही रहा है। केश विन्यास की बात करें तो हमारे आसपास आज भी ब्यूटी सैलून और पार्लर की भरमार दिख जाती है। ऐसी स्थिति में सिर्फ पहनावा ही नहीं हेयर स्टाइल या बालों के रख-रखाव का तरीका भी लोगों के व्यक्तित्व का हिस्सा बन चूका है । ऐसे में बिहार म्यूजियम, पटना में सदियों से प्रचलित विभिन्न शैलियों के केश-सज्जा पर आधारित प्रदर्शनी इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है कि यह हमें इतिहास के उस कालखंड में ले जाती है जो हमारे लिए लगभग अनजाना सा है। आज भी लोग विशेषकर महिलाएँ अपनी पर्सनालिटी के अनुसार अपनी हेयर स्टाइल अपना रही है, लेकिन प्राचीन मूर्तियों और कलाकृतियों के अध्ययन से पता चलता है कि, भारत में केशसज्जा का प्रचलन आदिकाल से चला आ रहा है। उस दौर में भी महिलाओं का केश विन्यास अद्भुत होता था। मौर्यकाल की दीदारगंज यक्षी की मूर्ति उत्कृष्ट केश सज्जा इसका ज्वलंत उदाहरण है यक्षिणी की इस मूर्ति के बालों को कलात्मक ढंग से बांधा गया है। सिर पर बंधे स्कार्फ से जो बाल निकल गये हैं, वो लटें चेहरों पर बिखरी हुई हैं। उस मूर्ति के गुथे और संवारे हुए सघन केश और बंधा हुआ जुड़ा विशिष्ट और चमत्कृत करने वाला है।
मौर्यकाल के दौरान टेराकोटा में निर्मित हंसता हुआ बालक और नृत्यरत कन्या का केश विन्यास हर किसी को आश्चर्यचकित कर देता है। बिहार संग्रहालय के बहुउद्देशीय दीर्घा में आयोजित केश कला प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए, बिहार संग्रहालय के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह ने ये बातें कही। अंजना कुमार सिंह ने यह भी जानकारी दी कि यह प्रदर्शनी इस वर्ष के नवम्बर में गेंट विश्वविद्यालय, बेल्जियम में लगाई जायेगी। समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित कला, संस्कृति एवं युवा विभाग की सचिव श्रीमती वंदना प्रेयषी ने कहा कि मुझे इस आयोजन में शामिल होकर काफी प्रसन्नता हो रही है। यह आयोजन अद्भुत है और इसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है। समारोह को संबोधित करते हुए निफ्ट, पटना के निदेशक कर्नल राहुल शर्मा ने कहा कि बिहार संग्रहालय के इस आयोजन में निफ्ट, पटना की भी भागीदारी है और हम चाहते हैं कि भविष्य में इस तरह के आयोजनों में निफ्ट की सहभागिता रहे। समारोह को जावेद हबीब के नेशनल हेड महेश गोरे और गेट विश्वविद्यालय, बेल्जियम की प्रो० डेनियला. डी. सिमोने ने भी संबोधित किया और आयोजन की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
अतिथियों के स्वागत के क्रम में आयोजन के औचित्य पर प्रकाश डालते हुए बिहार संग्रहालय के अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने कहा कि बिहार की धरा पर इस तरह का आयोजन पहली बार हो रहा है। इसलिए यह ऐतिहासिक है। श्री सिन्हा ने बताया कि यह प्रदर्शनी 30 मई, 2023 तक चलेगी और इसमें प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक की महिलाओं के केश विन्यास को प्रदर्शित किया गया है। श्रीमती विशि उपाध्याय ने कहा कि प्रदर्शनी 03 भागों में विभाजित है- यक्षी, रानी और देवी। इसके अलावा जनजाति वर्ग से जुड़ी महिलाओं, विधवाओं और जैन मनीषियों के केश अनुष्ठान को भी प्रदर्शित किया गया है। प्रदर्शनी में पटना संग्रहालय से 27 कलाकृतियों तथा बिहार संग्रहालय से 06
कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है। साथ ही उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान से प्राप्त 09 प्राचीन कंधियों को भी प्रदर्शित किया गया है। धन्यवाद ज्ञापन बिहार संग्रहालय की संग्रहालयाध्यक्ष सुश्री मौमिता घोष ने किया।
प्रदर्शनी आरंभ होने से पहले कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला हेतु बिहार संग्रहालय से 05 मूर्तियों का चयन किया गया, जो सर्वोतम केश विन्यासों का प्रतिनिधित्व करती हैं। वे इस प्रकार है- दीदारगंज यक्षी, गुप्तकालीन परिचारिका, पालकालीन तारा, गुप्तकालीन देवी ब्राह्मणी तथा मुगलकालीन मुमताज। मुंबई से आयी जावेद हबीब की टीम ने उन चयनित मूर्तियों के समक्ष पटना वीमेन्स कॉलेज की 05 मॉडलों (सुश्री वादिनी, सुश्री नैन्सी, सुश्री कोमल, सुश्री अंचल और सुश्री प्रेरणा) के केश विन्यास को संवारा तथा उन्हें प्रशिक्षण दिया। निफ्ट, पटना द्वारा निर्मित मॉडलों के आभूषण एवं परंपरागत वस्त्र भी दर्शकों को विस्मित कर रहे थे।
उद्घाटन समारोह के बाद जब मॉडल रैंप वॉक के लिए उतरी तो तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा परिसर गूंज उठा। पाँचो मॉडलों का केश विन्यास अद्भुत और असाधारण था। दर्शक विस्मय में थे और काफी देर तक उनकी तालियाँ बजती रही। तत्पाश्चात फेसेज, पटना के तत्वाधान में श्रीमती सुनीता भारती और उनकी टीम द्वारा अष्टनायिका शीर्षक पर इन्फो ड्रामा प्रस्तुत किया गया। उन अष्टनायिकाओं में द्रौपदी, कैकेयी, डांसिंग गर्ल, सीता, हांडा रानी, देवी काली तथा रूपकोशा के चरित्रों की जीवंत प्रस्तुति की गई। उसके माध्यम से यह संदेश दिया गया कि किस प्रकार इन अष्टनायिकाओं ने अपने समकालीन समाज को अपने व्यक्तित्व से प्रभावित किया है। फेसेज, पटना की इस शानदार प्रस्तुति का दर्शकों ने भरपूर आनंद लिया।
सभी फोटो :रंजीत कुमार