बिहार म्यूजियम, पटना में पिछले दिनों वरिष्ठ कलाकार अनिल बिहारी के चित्रों की रेट्रोस्पेक्टिव प्रदर्शनी आयोजित की गयी। 5 नवंबर से शुरू हुयी इस प्रदर्शनी का समापन 26 नवंबर को हुआ। यहाँ प्रस्तुत है वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी और कला-लेखक अनीश अंकुर की कलम से इस प्रदर्शनी पर एक समीक्षात्मक आलेख।
पटना स्थित बिहार म्यूजियम में पिछले दिनों वरिष्ठ चित्रकार अनिल बिहारी के चित्रों की पुनरावलोकन प्रदर्शनी आयोजित की गई। अनिल बिहारी पिछले पांच दशकों से भी अधिक समय से कला की दुनिया में सक्रिय हैं।
बेगूसराय जिले के रहने वाले अनिल बिहारी ने जी.डी कॉलेज से स्नातक करने के बाद बड़ोदा से पेंटिंग में डिप्लोमा तथा मयूरल आर्ट्स में पोस्ट डिप्लोमा किया है। बड़ौदा के एम. एस विश्वविद्यालय में के.जी सुब्रण्यम, गुलाम मोहम्मद शेख तथा ज्योति भट्ट सरीखे कला जगत के महारथियों से प्रशिक्षण प्राप्त किया। 1984-85 में फ्रांस सरकार के फेलोशिप के तहत अनिल बिहारी ने पूरी दुनिया में कला केंद्र के रूप में ख्यात पेरिस में ग्राफ़िक आर्ट्स में ट्रेनिंग ली। उन्हें प्रिंटमेकिंग की दुनिया के उस्ताद का दर्जा हासिल किये हुए अब्राहम हदाद के साथ भी काम करने का मौका मिला। पेरिस में रहने का उनके कला जीवन पर जो गहरा प्रभाव पड़ा उसने उनके सृजनात्मक व्यक्तित्व को आकार देने में सहायता की।
पेरिस के बाद वे कर्नाटक के गुलबर्ग में गयारह वर्षों तक कला अध्यापक के रूप में ख्यात रहे। वहां से फिर बिहार लौटे। बिहार लौटने के पीछे एक प्रमुख प्रेरणा, अनिल बिहारी के अनुसार, बेगूसराय के चर्चित कम्युनिस्ट चिकित्सक डॉ. पी गुप्ता का रहा था। बिहार लौटने पर अपनी बिहारी पहचान को रेखांकित करने के लिए ‘बिहारी’ टाइटल लगाना शुरू कर दिया।अब वे अनिल कुमार से अनिल बिहारी बन गए।
अनिल बिहारी के रिट्रोस्पेक्टिव का नाम दिया गया है “अंगारी “। इस पुनरावलोकन प्रदर्शनी में उनके 1984 से लेकर 2022 के दरम्यान बनाई गई कृतियों को शामिल किया गया है। वैसे अधिकाशंतः पिछले तीन चार वर्षों के काम ही अधिक दिखाई पड़ते हैं।
अनिल बिहारी ने अलग -अलग माध्यमों में कई प्रयोग किये हैं। ज्यादातर ऐक्रेलिक में किया गया काम इस पुनरावलोकन का हिस्सा बन सका है। एक दो तैल चित्र भी हैं, कुछ एचिंग का काम भी है। इसके साथ -साथ उन्होंने प्रिंट मेकिंग की मिजोटिंट जैसे दिलचस्प व अनोखे तकनीक में भी हाथ आजमाया है। लेकिन अनिल बिहारी का काम सबसे अधिक निखरता है, उनके सबसे सशक्त पक्ष लिथोग्राफी में।
लिथोग्राफी में प्रवीण होना आसान नहीं होता। वैसे बंगाल और बड़ौदा में इस माध्यम में करने वाले कई प्रमुख कलाकाररहे हैं लेकिन अनिल बिहारी ने इस माध्यम पर जिस प्रतिबद्धता के साथ पकड़ बनाई है वैसा बिहार के बहुत कम कलाकार ही कर पाए हैं। उनके काम में एक सफाई दिखती है , छोटे -छोटे ब्योरे उभर कर आते हैं। देसी लीथो पत्थरों के सतह को पहले विभिन्न प्रकार के बालूई सामग्री से प्रोसेस करना होता है ताकि पत्थर इतना संवेदनशील हो जाये कि सूक्ष्म परिवर्तनों को भी पकड़ने में सक्षम हो सके। लिथोग्राफ में एक अच्छा प्रिंट लीथो पत्थर पर स्याही के सृजनात्मक इस्तेमाल पर निर्भर करता है । जाहिर है ऐसे में इसे साधना आसान नहीं होता।
लिथोग्राफी में एक चित्र के कितने प्रिंट लिए गए हैं उसे बताया गया है। कई बार लिथो के एक ही चित्र को देखने से रंगों का अलग-अलग शेड्स परिलक्षित होता है। लिथोग्राफी में विभिन्न रंगों का इफेक्ट लाना काफी दक्षता की मांग करता है जिसे अनिल बिहारी ने बेहद कुशलता से लाने का प्रयास किया है।
अनिल बिहारी के चित्रों में, स्त्री, परिवार,पति, बच्चे और घर, आकाश की लगातार उपस्थिति बनी रहती है। चित्रों के कार्य व्यापार मुख्यतः घर की चारदीवारी के अंदर घटित होते हैं। विशेषकर कोरोना काल के दौरान बने चित्रों में घर के अंदर की छवियाँ बहुतायत में पाई जाती हैं। विभिन्न जीवन स्थितियों में स्त्रियों की छवियाँ नजर आती हैं। स्त्री -पुरुष संबंध, स्त्री और बच्चे उनके चित्रों में निरंतर अपनी उपस्थिति बनाये रखते हैं। घर के अंदर का फर्श, ऐनक, घर के बाहर से दिखते पेड़ -पौधे, हरियाली, बादल, चिड़िया, बिल्ली, फूल, हरे पत्ते आदि लगातार अपनी जगह घेरे रहते हैं। दर्पण में अपनी तस्वीर निहारती स्त्री और गर्ल्स हॉस्टल में बेलॉस अंदाज में लड़कियों वाला चित्र अलग से ध्यान आकृष्ट करता है इस चित्र की सबसे खास बात है बंद हॉस्टल के बाहर दरवाजे से नजर आता सड़क, गाड़ी और हरियाली। अपने -अपने काम में लगी लड़कियाँ उसी दरवाजे से बाहर की दुनिया को निहारती प्रतीत होती हैं। बंदिशों में बंद लड़कियों में बाहर की आजाद दुनिया के प्रति ललक को इस चित्र में महसूस किया जा सकता है।
‘वीमेन और कैट ‘ श्रृंखला के कई चित्र पुनरावलोकन प्रदर्शनी में शामिल हैं। स्त्री और बिल्ली अलग -अलग मुद्राओं व भंगिमाओं में चित्रित किया गए हैं । इस श्रृंखला को अनिल बिहारी ने कई माध्यमों में पेंट किया है। लिथोग्राफी के साथ ऐक्रेलिक में भी। एक लिथोप्रिण्ट में नंगे बदन एक स्त्री लेटी है तथा बिस्तर के अंदर से उस स्त्री को देखती बिल्ली के दो प्रिंट देखने पर एक में हरापन का अहसास अधिक होता है। बिल्ली व स्त्री को एक साथ चित्रित करने की प्रेरणा बकौल अनिल बिहारी ‘ पेरिस प्रवास के दौरान मिली थी.’। ‘वीमेन विथ कैट ‘ श्रृंखला के अतिरिक्त लीथोग्राफी के उनके अन्य कार्यों में प्रमुख है ‘डिजायर’, ‘ड्रीम’, ‘मेकअप’, ‘बर्ड्स’, ‘प्ले विथ कैट’ आदि।
लिथो प्रिंट्स में एक अलग से ध्यान आकृष्ट करने वाला चित्र है ‘अवलोकन’। 20X24 इंच की इस तस्वीर में एक अर्द्धनग्न स्त्री आईने में निहारते हुए कंघी से बाल सवारने की प्रक्रिया में है, कि तभी एक आक्रामक पुरुष हस्तक्षेप इसके निजी स्पेस में अतिक्रमण करता प्रतीत होता है। स्त्री की देह भाषा से उसके सहमे होने का अहसास होता है। इस चित्र में देह गतियों की सहायता से चित्रकार ने एक उन्मुक्त स्त्री की निजता का उल्लंघन करने वाले पुरुष सत्तामक मिजाज़ को सामने लाने का प्रयास किया है।
बिल्ली और स्त्री’ श्रृंखला में बिल्ली कई दफे मित्र, राजदार और कई बार उसे चुपके -चुपके निहारते तो कहीं -कहीं उसके प्राइवेट स्पेस में जबरन दाखिल होने की कोशिश करती नजर आती है। इस कार्य के लिए रंगों का चयन और उसका ट्रीटमेंट देखने वाले के मन में कई किस्म के भावों को जन्म देता है।
अनिल बिहारी की अधिकांश महिलाएं नए दौर की इम्पावर्ड महिलाएं हैं। उनमें पुरानी व पारम्परिक छवियां नहीं हैं। आम जीवन में बढ़ती महिला दावेदारी को कैसे एक टेंढ़ी पुरुष निगाह का सामना करना पड़ता है इसे भी इनके चित्र सामने लाते हैं। बदलते दौर में स्त्री की बदलती देहभाषा को पकड़ने का अनूठा प्रयास अनिल बिहारी द्वारा किया गया है। ‘बाग़ में स्त्री’, ‘वेटिंग फॉर हस्बेंड’, ‘डोंट टच मी’, वीमेन इम्पावरमेंट’, वीमेन ऑन टेरेस’, ‘वीमेन विद मिरर’, ‘मैसेज’, वीमेन विद फ्लैइंग एंजेल ‘, ‘फीयर’, ‘ न्यूली मैरिड कपल’ , साधना’, ‘अफेकशन’, हेयर ड्रेसिंग, ‘लव विद बर्ड’, ‘मेकअप’, ‘आगँतुक’ ‘कपल’, ‘उड़ान’, ‘आलिंगन इन गार्डेन’, ‘थिंकिंग इन गार्डेन’, ‘एक्सीप्लाईट’, फ्लैइंग मैन’ ,’चेस प्लेयर’ , ‘अंगड़ाई’ , ‘स्वयंवर’, ‘उल्लास’, ‘ निहारना’, ‘बर्ड्स’ , ‘मैन विद बर्ड’ सहित अन्य चित्रों में स्त्री के जीवन की चुनौतियों तथा खतरों को भी पकड़ने की कोशिश की गई है।
एचिंग माध्यम में उनका एक महत्वपूर्ण काम ‘ बाथ’ शीर्षक से है। एक चित्र है ‘अनटच्ड मेमोरी ‘ जिसमें परिवार ( स्त्री -पुरुष -बच्चा ) गौर से प्राकृतिक दृश्यों पर आधारित पेंटिंग को गौर से देख रहा है। परिवार खुद पेड़ -पौधों के बीच में बने इस पेंटिंग को देख रहा है। एक चित्र में पहाड़ों के पास चांदनी रात में एक महिला अपने शिशु के साथ खेल रही है। रंगों का भेद खूबसूरती से इस्तेमाल किया गया है।
ऐसे ही ‘ हंटिंग’, उड़ती हुई स्त्री, तोता, हिरण, खरगोश आदि है। पुरुष छवि के दिमाग में जो हिंसक व शिकार की छवि है जिसे महिला विक्टीम की तरह झेलने के लिए अभिशप्त है। इस चित्र को अनिल बिहारी ने कल्पनाशील ढंग से बनाया है। ‘ विनर’ शीर्षक कलाकृति में हाथी का कटा हुआ गला, तितली, उड़ती चिड़िया, एक आदिवाँसी पुरुष और महिला सब मिलकर इस चित्र को विशेष अर्थ प्रदान करते हैं।
स्त्री -पुरुष संबंध को चित्रित करना अनिल बिहारी की विशेषता रही है। पुरुष -स्त्री संबंध अनिल बिहारी का पसंदीदा विषय रहा है। अंगड़ाई लेती स्त्री दर्पण में देखते स्त्री के पीछे सावधान पुरुष की छवि के साथ -साथ अनिल बिहारी ने पुरुष को पक्षी बनाकर, पँख प्रदान कर स्त्री के नजदीक उसे निहारते, उससे शिकायती मुद्रा तो कई बार प्रेम निवेदन करते चित्रित किया है। ‘ कन्वरसेशन’ चित्र में एक पुरुष मुखाकृति वाला पक्षी कुर्सी पर बैठी स्त्री को देख रहा है। जिससेएक अपरिभाषित रिश्ता प्रकट होता है।
‘कोरोना काल के दौर में अनिल बिहारी ने कई चित्र बनाये। उन्होंने घर की स्त्रियों के एकाकीपन, ऊब और उदासी को चित्रित किया है। घर के छत से बाहर आसमान की ओर निहारती स्त्री, स्वप्न में खोई स्त्री, गर्भवती महिला के आने वाले बच्चे की मन में छवि ये सब ऐसी छवियां हैं जो मोहक लगती हैं। वैसे स्त्री के स्वप्न में नर शिशु की ही छवि आती है। इन चित्रों में कई किस्म की रंग परियोजना पर काम किया गया है। अनिल बिहारी के 1985 के दौर से लेकर बाद के दशक तक महिलाओं को कैनवास पर उतारने में काफी सफाई आई है। इसे बाद के चित्रों के उनके स्ट्रोक्स से भी पहचाना जा सकता है।
यदि रंगों के उपयोग को देखें तो चटख रंगों की भरमार दिखती है। लेकिन ग्रामीण या लोक पृष्ठभूमि के चित्रों में पेंट करने में वातावरण से मेल खाती रंगों के चुनाव की सतर्कता बरती गई है। फोक पृष्ठभूमि के लिए थोड़ी अलग कलर स्कीम अपनाई गई है । ग्रामीण व शहरी महिलाओं को चित्रित करने में पृष्ठभूमि के अनुसार रंगों का इस्तेमाल किया गया है। वैसे, यदि सभी प्रदर्शित चित्रों , उसके बनने के वर्ष को ठीक से रखा जाता तो देखने वाले को चित्रकार की विकास यात्रा को समझने में सहूलियत होती। आखिर रिट्रोस्पेक्टिव से एक कलाकार का पूरा विकासक्रम दिखना चाहिए। इस मामले में प्रबंधकों द्वारा गैर-पेशवर रवैया अपनाया गया है। खुद चित्रकार को भी इस मामले में सतर्क रहना चाहिए। अनिल बिहारी के यहां घर और उसकी चारदीवारी के अंदर की दुनिया इस कदर छाई है कि कई बार विषय के स्तर पर दुहराव का अहसास होता है । परंतु लिथो माध्यम में उनके बनाये गए चित्र इतने चित्ताकर्षक हैं कि उसे देखने का अपना सुख है।
फिर भी देखने वाले के मन में यह सहज सवाल उठ सकता है कि चित्रकार के लिए घर के बाहर का समाज लगभग अनुपस्थित क्यों है ? एक दो चित्र हैं भी तो वह घर के ही एक्सटेंशन की तरह नजर आता है । विषयों के स्तर पर विविधता का अभाव है। अपने लम्बे कला जीवन में अनिल बिहारी ने ज्यादातर अपनी दृष्टि अमूमन घर के अंदर केंद्रित किया है। घर के बाहर क्या कुछ घट रहा है वह उनकी चिंता के दायरे में कम है।