राजघाट स्थित गाँधी संग्रहालय में इन दिनों अनीता दुबे की कलाकृतियों की प्रदर्शनी चल रही है। इन कलाकृतियों के माध्यम से अनीता ने गांधीजी के जीवन से जुड़े उन विशेष प्रसंगों को दर्शाया है, जिसके जरिये दर्शक गांधीजी की जीवन यात्रा को आसानी से समझ सकता है। उक्त प्रदर्शनी पर रवींद्र त्रिपाठी ने यह टिप्पणी उनके फेसबुक पर पोस्ट की है। विदित हो की रवींद्र त्रिपाठी विगत तीन दशकों से भी अधिक समय से कला, साहित्य, नाट्य एवं फिल्म समीक्षा से जुड़े हैं, वे गांधीजी के जीवन पर केंद्रित नाटक “पहला सत्याग्रही” के लेखक भी हैं।
कल मित्र सुमन सिंह के साथ गांधी संग्रहालय गया था जहां अनीता दुबे की कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगी है। ये प्रदर्शनी 14 सितंबर 2023 तक चलेगी। दिल्ली में लगातार कला प्रदर्शनियाँ चलती रहती है। पर ये प्रदर्शनी कुछ अलग किस्म की है। इसमें छोटे-छोटे पत्थरों से महात्मा गांधी के जीवन प्रसंगों को उकेरा गया है। संक्षेप में कहें तो ये पत्थरों से अंकित गाँधी कथा है।
अनीता दुबे बचपन से ही नर्मदा नदी के किनारे पत्थरों को चुनती रही हैं। छोटे-छोटे और रंग-बिरंगे पत्थर। और इसी प्रक्रिया में उन्हें लगा कि इन पत्थरों से कलाकृतियों की रचना हो सकती है। महात्मा गांधी से वैचारिक लगाव भी बचपन से ही हो गया था और धीरे-धीरे उन्होंने गांधी जी के जीवन प्रसंगों को चित्रित और अंकित करना शुरू किया। उनकी एक बड़ी खूबी ये भी है कि वो पत्थरों से व्यक्ति चित्र यानी पोट्रेट बहुत अच्छा बनाती है। अच्छे पोट्रेट की एक बड़ी पहचान यह है कि जिसका पोट्रेट बनाया जा रहा है उसका व्यक्तित्व उसमें आ जाए। जब आप इस संग्रहालय में लगी प्रदर्शनी को देखते हैं और गांधीजी और उनसे जुड़े दूसरे व्यक्तित्वों, जैसे रवींद्रनाथ ठाकुर और कस्तूरबा गांधी के भी पत्थरों से अंकित पोट्रेट को देखते हैं तो दर्शक दंग रह जाता है। अनिता दुबे ने पत्थरों को जीवंत कर दिया है।
धीरे-धीरे विश्व समाज में भी और भारतीय समाज में भी कला के प्रति नए दृष्टिकोण उत्पन्न हो रहे हैं। इनमें एक यह भी है कि सिर्फ रंगो या कैनवस के माध्यम से ही चित्र न बनाया जाए बल्कि दूसरे माध्यमों का भी प्रयोग किया जाए। यह भी कई स्तरों पर हो रहा है और यह समकालीन कला के लिए एक बहुत अच्छी बात है। यह पर्यावरण के प्रति सचेतता भी है कि आप बिना किसी रासायनिक प्रक्रिया के कलाकृति को रच रहे हैं।
मुझे इस बात की भी खुशी हुई कि इस दौर में भी महात्मा गांधी के जीवन और दर्शन के प्रति लोगों की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। महात्मा गांधी के शरीर की हत्या की जा सकती है लेकिन उनके विचार और जीवन दर्शन की नहीं। यह प्रदर्शनी भी यही कहती है । जिनको गांधी जीवन और दर्शन में दिलचस्पी है उन्हें येअवश्य देखनी चाहिए। और जिनको सिर्फ कला में है उन्हें तो इसे कई बार देखना चाहिए।