पत्थर पिरोती अनिता

“मुझे लगता है कि फूलों, पत्तियों और पंखुड़ियों के साथ काम करना अविश्वसनीय रूप से चुनौतीपूर्ण है। लेकिन मुझे यह करना होगा : मैं उन सामग्रियों में कोई फेरबदल नहीं कर सकता जिनके साथ मैं काम करता हूं। मेरा काम पूरी तरह प्रकृति के साथ काम करना है।”

यह कहना है ब्रिटिश कलाकार एंडी गोल्ड्सवर्दी का। ज्ञात हो कि एंडी गोल्ड्सवर्दी (जन्म 26 जुलाई 1956) एक ब्रिटिश मूर्तिकार, फोटोग्राफर और पर्यावरणविद् हैं। एंडी प्राकृतिक और शहरी दोनों परिवेश में साइट स्पेसिफिक कलाकृतियां रचते हैं। इस कलाकार के बचपन की बात करें तो 13 साल की उम्र में , उन्होंने एक खेतिहर मजदूर के रूप में खेतों पर काम किया। उन्होंने कृषि कार्यों की तुलना मूर्तिकला की दिनचर्या से कुछ इस तरह से की है: “मेरा बहुत सारा काम आलू चुनने जैसा है; क्योंकि यहाँ भी आपको इसकी लय बरकरार रखनी होगी।” एंडी ने ब्रैडफोर्ड कॉलेज ऑफ आर्ट में ललित कला का अध्ययन किया।

Andy Goldsworthy

बतौर कलाकार अपनी कलाकृतियों के निर्माण के क्रम में एंडी प्राकृतिक प्रक्रियाओं में दखल देने के बजाय, न्यूनतम हस्तक्षेप के पक्षधर हैं। बकौल गोल्ड्सवर्दी- “मैं ठोस जीवित चट्टान को तराशने या तोड़ने के लिए अनिच्छुक हूं … मुझे बड़े, गहरे जड़ वाले पत्थरों और चट्टान के तल पर पड़े मलबे, समुद्र तट पर कंकड़ के बीच अंतर महसूस होता है … ये बिखरे और अस्थिर हैं, कुछ इस तरह कि ये प्रवाहित हो रहे हों, इसलिए मैं उनको लेकर प्रयोग कर सकता हूँ। लेकिन यही काम मैं उन बड़े आकार के पत्थरों के साथ नहीं करना चाहता जो लम्बे समय से कहीं आराम करने की मुद्रा में स्थिर हों।” बहरहाल उपलब्ध प्राकृतिक सामग्रियों के साथ काम करने की अपनी इस प्रतिबद्धता की बदौलत गोल्ड्सवर्दी आज दुनिया भर में जाने जाते हैं। गोल्ड्सवर्दी के अधिकांश काम छोटे आकार या पैमाने पर सामने आते हैं और अपनी स्थापना में वे अस्थायी होते हैं। यानी किसी कलाकृति या संरचना का निर्माण करने के बाद गोल्ड्सवर्दी उनका दस्तावेजीकरण करते हैं, और उसके बाद प्रकृति से ली गयी वह सामग्री वापस प्रकृति में जा मिलती है।

अनिता दुबे की एक कलाकृति

अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए भोपाल की कलाकार अनिता दुबे बड़ी कुशलता से कंकड़-पत्थर, फल-सब्जी, फूल-पत्तियों और काग़ज़-कपड़े को माध्यम बना लेती हैं। सामान्य तौर पर इस तरह की कला को पेबल आर्ट यानी कंकड़ कला कहा जाता है, किन्तु अनिता इसे प्रस्तर कला सम्बोधित करती हैं। इन दिनों राजघाट स्थित गाँधी संग्रहालय में गांधी जी पर केंद्रित कला प्रदर्शनी में अनिता ने राष्ट्रपिता की समूची गाथा समेटने की कोशिश की है। मसलन कस्तूरबा से शादी, दांडी मार्च, चंपारण सत्याग्रह, टैगोर-गांधी मुलाक़ात, ट्रेन से फेंके जाने की घटना… गोलमेज़ सम्मेलन… और भी बहुत कुछ यहाँ है। छोटे-छोटे पत्थरों के संयोजन से गांधी की गाथा को उकेरना, उसके छोटे से छोटे विवरण को इन कलाकृतियों में समाहित करना; सब कुछ अद्भुत व अकल्पनीय सा है।

जहाँ एंडी अपने कलाकृतियों के निर्माण को आलू चुनने से जोड़कर देखते हैं। वहीँ अनिता का भी इन पत्थरों से लगाव बचपन से रहा है। नर्मदा के तट पर पत्थर चुनना उन्हें बचपन से भाता था, परिणाम यह हुआ कि घर में इन पत्थरों का ढेर जमा होता चला गया। ऐसे में किसी दिन अकस्मात मन में ख्याल आया कि इन पत्थरों को एक सूत्र में पिरोकर कलाकृतियां रची जाएँ, और फिर इस अनूठी कला यात्रा की शुरुआत हो गयी। साहित्य के प्रति अनिता के रुझान का परिणाम इस रूप में सामने आया कि उन्होंने कविताओं पर केंद्रित कलाकृतियां रचीं, या कहें कि इलस्ट्रेशन बनाये। एक बार जब यह सिलसिला शुरू हुआ तो कैलेंडर से लेकर बुक कवर तक बनाती चली गयीं। यहाँ तक कि फलों और सब्जियों को भी किसी कलात्मक स्वरुप में ढालती रहीं। गाँधी पर अपनी इस प्रदर्शनी की सफलता से अनिता बेहद उत्साहित हैं, क्योंकि विगत एक सप्ताह में जिस तरह से इस प्रदर्शनी को देखने प्रबुद्ध जनों का आना जाना लगा रहा; वह वाकई उत्साहजनक रहा। अनिता अब कविगुरु और कलाकार रबीन्द्र नाथ टैगोर की जीवन गाथा को रूपायित करने को संकल्पित हैं। एंडी जहाँ बड़े आकार के संयोजन या संस्थापन रचते हैं, वहीँ अनिता अपेक्षाकृत छोटे आकार की सतह पर गाथाओं या दृश्य चित्रों को आकार देती है।

रामकृष्ण परमहंस एवं रामधारी सिंह दिनकर

अनिता की इस कला यात्रा को समकालीन कला जगत किस रूप में दर्ज़ करता है, यह तो देखना है। किन्तु इतना तो तय है कि अपनी कलाकृतियों के माध्यम से साहित्यिक कृतियों को रूपायित करने के साथ-साथ अनिता सामाजिक चेतना और पर्यावरण विमर्श को जिस रूप में सामने ला रहीं है, वह उल्लेखनीय है। जिस तरह से एंडी अपनी साइट स्पेसिफिक कलाकृतियों को रचने के बाद उसका दस्तावेजीकरण करने के बाद, उन सामग्रियों को उसी स्थान विशेष पर छोड़ देते हैं। कुछ उसी तरह अनिता ने भी ऐसी अनेक कलाकृतियों को रचा है, जिसकी फोटोग्राफी करने के बाद, उन पत्थरों को उनकी पुरानी प्राकृतिक अवस्था में छोड़ दिया या उनसे दूसरी कोई कलाकृति रच डाली। और तो और फूल पत्तियों से लेकर सब्जियों को भी संयोजित कर अनिता किसी कथ्य या दृश्य की रचना कर डालती हैं।

-सुमन कुमार सिंह

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