इन दिनों दिल्ली के ऐतिहासिक बीकानेर हाउस में देश के जाने माने चित्रकार, लेखक अशोक भौमिक जी का रेट्रोस्पेक्टिव प्रदर्शनी शीर्षक ‘लिमिनल लाइन्स’ चल रही है। यह प्रदर्शनी 4 अक्टूबर को प्रारंभ हुई है और 15 अक्टूबर तक जारी रहेगी ।
भूपेंद्र कुमार अस्थाना
‘अशोक भौमिक – सेलिब्रेटिंग 50 इयर्स ऑफ आर्टिस्टिक इन्क्वायरी एंड ह्यूमन रिफ्लेक्शन’ भारतीय कला जगत के लिए यह केवल एक प्रदर्शनी नहीं, बल्कि एक सजीव इतिहास-दर्शन है। यह प्रदर्शनी धूमिमल गैलरी द्वारा आयोजित की गई है। धूमिमल गैलरी —एक ऐसी संस्था जिसने स्वयं भारतीय आधुनिक कला के विकास को अपनी दीवारों पर दर्ज किया है। अशोक भौमिक के पाँच दशकों के सृजन को समेटे यह रेट्रोस्पेक्टिव, प्रोफेसर राजन श्रीपद फुलारी के क्यूरेशन में, भारतीय चित्रकला की एक गहन आत्मयात्रा प्रस्तुत करता है।
अशोक भौमिक जी का नाम भारतीय समकालीन कला में उस कलाकार के रूप में लिया जाता है जिसने क्रॉस-हैचिंग जैसी तकनीक को एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर कलाभाषा का रूप दिया। जहाँ यह तकनीक प्रायः छायांकन के सहायक उपकरण के रूप में प्रयोग होती रही, वहीं भौमिक ने इसे संवेदना, संरचना और मनोभाव के केंद्र में रखकर उसे एक जीवंत संवाद माध्यम बना दिया। उनकी रेखाएँ केवल आकृतियों को गढ़ती नहीं—वे विचार, समय और समाज के भीतर जमी परतों को उकेरती हैं।
प्रदर्शनी में उनके शुरुआती श्वेत-श्याम रेखाचित्रों से लेकर हाल के बड़े आकार के कैनवस और मूर्तिकृत रूपों तक की यात्रा दिखाई गई है। इन रचनाओं में ‘कोल माइन सीरीज़’, ‘वारली सीरीज़’, ‘जय हो’, ‘बुल सीरीज़’ और ‘अमीना एंड द बर्ड’ जैसी श्रंखलाएँ उनकी विषयगत विविधता और मानवीय सरोकारों की गहराई को दर्शाती हैं। कोल माइन सीरीज़ जहाँ श्रमिक वर्ग के संघर्ष और जीवन की काली कठोरता को रेखांकित करती है, वहीं अमीना एंड द बर्ड सीरीज़ में जीवन की नाजुक कोमलता और साहस का रूपक मिलता है।
भौमिक जी की रेखाएँ अत्यंत अनुशासित हैं—वे न तो भावनाओं के प्रवाह में बहती हैं, न ही उन्हें दबाती हैं। उनमें एक बौद्धिक अनुशासन और भावनात्मक गहराई का संतुलन है। यही संयम उनकी कला को विशिष्ट बनाता है। उनकी कृतियाँ यह याद दिलाती हैं कि चित्रकला केवल दृश्य अनुभव नहीं, बल्कि नैतिक और मानवीय चिंतन का विस्तार भी है। क्यूरेटर राजन श्रीपद फुलारी Rajan Shripad Fulari ने इस प्रदर्शनी को जिस तरह से संरचित किया है, वह कलाकार के समय-क्रम के साथ-साथ उसकी वैचारिक प्रगति को भी उजागर करता है। फुलारी का कहना है कि “भौमिक केवल कलाकार नहीं, वे अपने समय के इतिहासलेखक हैं”—यह कथन इस प्रदर्शनी में पूर्णतः साकार होता है। प्रत्येक रचना अपने भीतर समय की गवाही और आत्मदर्शन का दस्तावेज़ बन जाती है।
धूमिमल गैलरी, जिसने भारतीय कला इतिहास में हुसैन, सूज़ा, स्वामीनाथन और कृष्ण खन्ना जैसे दिग्गजों को मंच दिया, भौमिक के इस रेट्रोस्पेक्टिव के लिए सबसे उपयुक्त स्थल प्रतीत होती है। गैलरी की परंपरा और भौमिक की साधना—दोनों भारतीय कला के उस सतत संवाद का हिस्सा हैं जिसमें परंपरा और आधुनिकता, रेखा और विचार, शिल्प और आत्मा एक-दूसरे में घुलमिल जाते हैं।
यह प्रदर्शनी न केवल अशोक भौमिक जी की व्यक्तिगत उपलब्धि का उत्सव है, बल्कि भारतीय कला के उस गंभीर और संवेदनशील पक्ष का भी उत्सव है जो आज भी मानवीय अनुभूति की गहराई में विश्वास रखता है। ‘लिमिनल लाइन्स’ इस बात की याद दिलाती है कि कला अपने समय की गवाह भी होती है और भविष्य की दिशा भी।
मूर्तिशिल्प
यह प्रदर्शनी उनके जीवन-दृष्टिकोण, संवेदनाओं और मानवीय अनुभवों की गहन झलक देती है। भौमिक जी की स्त्री–पुरुष आकृतियाँ, चिड़ियाँ, कठपुतलियाँ और हाथों की सूक्ष्म मुद्राएँ पहले प्रतीकात्मक प्रतीत होती हैं, पर कुछ क्षणों में ये जीवंत हो उठती हैं और दर्शक की स्मृतियों व अनुभूतियों को जाग्रत करती हैं। उनकी कला में प्रेम, विरह, दैनंदिन चिंताएँ और लौकिक-अलौकिक का संतुलन सहज रूप से बुना गया है। रंग और रेखा की अनूठी भाषा, काले-सफेद के सौंदर्य–खेल, और चित्र-मूर्तिशिल्प का संवाद दर्शक को ठहरने और अनुभव साझा करने के लिए आमंत्रित करता है। प्रदर्शनी का डिस्प्ले कला और संवेदना के बीच संवाद को सशक्त बनाता है।
“Liminal lines” शब्द का अर्थ संदर्भ पर निर्भर करता है, पर सामान्यतः यह सीमारेखाओं या संक्रमण बिंदुओं को इंगित करता है — जहाँ एक स्थिति, अवस्था या पहचान दूसरी में परिवर्तित होती है। नीचे इसके मुख्य अर्थ दिए गए हैं:
सामान्य अर्थ में: “Liminal” का अर्थ होता है सीमांत या संक्रमणकालीन अवस्था। अतः “liminal lines” वे रेखाएँ हैं जो दो अवस्थाओं, संस्कृतियों या पहचानों के बीच की सीमा को दर्शाती हैं।
कला और संस्कृति में: यह उन दृश्यों या रेखाओं को दर्शा सकता है जो यथार्थ और कल्पना, भूत और वर्तमान, या देह और आत्मा के बीच के अस्पष्ट क्षेत्र को दिखाती हैं।
मानवशास्त्र/दर्शन में: विक्टर टर्नर जैसे विद्वानों ने “liminality” को सामाजिक या अनुष्ठानिक संक्रमण की स्थिति बताया है — “liminal lines” इस सीमा को चिह्नित करती हैं जहाँ व्यक्ति या समुदाय एक सामाजिक भूमिका से दूसरी में प्रवेश करता है। –सम्पादक