बादल के रंग : सौम्य अनुभूति वाली चित्र प्रदर्शनी

अनीश अंकुर मूलतः संस्कृतिकर्मी हैं, किन्तु अपनी राजनैतिक व सामाजिक अभिव्यक्ति के लिए भी जाने-पहचाने जाते हैं। उनके नियमित लेखन में राजनीति से लेकर समाज, कला, नाटक और इतिहास के लिए भी भरपूर गुंजाइश रहती है । बिहार के मौजूदा कला लेखन की बात करें तो जो थोड़े से नाम इस विधा में सक्रिय हैं उनमें से एक महत्वपूर्ण नाम अनीश अंकुर हैं। उनकी सदैव कोशिश रहती है बिहार से बाहर के कला जगत को बिहार की कला गतिविधियों से रूबरू कराना। पिछले दिनों बिहार म्यूजियम, पटना में बिहार के तीन वरिष्ठ कलाकारों की पुनरावलोकन प्रदर्शनी आयोजित हुयी। आलेखन डॉट इन के अनुरोध पर प्रस्तुत है बिहार के वयोवृद्ध कलाकार आनंदी प्रसाद बादल के सृजन संसार पर उनकी यह विस्तृत समीक्षात्मक रपट……

अनीश अंकुर
  • बिहार म्युजियम में लगा वयोवृद्ध चित्रकार आनन्दी प्रसाद बादल के चित्रों का रिट्रोस्पेक्टिव

12 मई से चलने वाला बिहार के वयोवृद्ध चित्रकार आनन्दी प्रसाद बादल के चित्रों का रिट्रोस्पेक्टिव 1 जून को पटना स्थित ‘बिहार म्युजियम’ में संपन्न हुआ । बिहार म्युजियम ने इस मौके पर बादल जी के लगभग छह दशकों के दौरान बनाये चित्रों की प्रदर्शनी लगाई गई और उसका एक कैटलॉग भी प्रकाशित किया। इस रिट्रोस्पेक्टिव में कला, संस्कृति से जुड़े लोगों के साथ -साथ आमलोगों ने भी बड़ी संख्या में भागीदारी निभाई।

95 वर्षीय आनन्दी प्रसाद बादल ने 1959 में पटना आर्ट कॉलेज से डिप्लोमा किया था। वे बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न रहे हैं। उन्होंने चित्रों के साथ साथ नाटकों में भी अभिनय किया है, कविताएं लिखी हैं, कई पुस्तकों के रचयिता रहे हैं। इसके अलावा पत्र-पत्रिकाओं में कला पर लेख लिखे हैं, राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर की कई प्रदर्शनियों में भाग लिया है। स्वतन्त्रता के बाद के प्रमुख साहित्यकारों व राजनेताओं से उनकी घनिष्ठता रही है। कला की कम से कम तीन पीढ़ियों के साथ उन्होंने काम किया है।

एक आत्मीय क्षण: प्रदर्शनी के दौरान बादल जी और अनीश अंकुर

उन्होंने बड़ी संख्या में पोट्रेट बनाये हैं विशेषकर महत्वपूर्ण शख्सियतों के। आनन्दी प्रसाद बादल ने जलरंग, टेम्परा, वाश, तैल रंग सहित अपने समय में प्रचलित लगभग सभी माध्यमों में काम किया है। कई पद्धतियों पर यह पकड़ विरले चित्रकारों को ही हो पाता है।

प्रारम्भिक तस्वीरें :

प्रदर्शनी में छह दशक पूर्व के उनके पुराने चित्रों से लेकर हालिया सृजित पेंटिंग तक शामिल हैं। उनके शुरुआती कामों में गरीब व आदिवासी महिलाओं के विभिन्न मुद्राओं व भंगिमाओं वाले चित्र देखने में आते हैं।

‘मछुआरिन’

1960 में चित्रित ‘तीन रूप चार आँखें’, ‘पनघट’ तथा ‘मछुआरिन’ तथा 1961 में रचित ‘आम्रपाली’ और ‘ मदर एन्ड चाइल्ड’ और 1962 में ‘दहीवाली’ अलग से ध्यान आकर्षित करती हैं। इन तस्वीरों में मुख्यतः स्त्रियों की छवियां हैं। ‘तीन रूप चार आंखें’ में ग्रामीण पृष्ठभूमि वाली तीन महिलाएं हैं। ये सभी महिलाएं सजी-धजी हैं। गले में हार, मांगटीका, कान में झुमके नाक में बड़े गोल वाली नथुनी, फूलों का जुड़ा आदि। पेपर पर टेम्परा में बनाई गई इस तस्वीर की खास बात यह है, जैसा की शीर्षक भी इशारा करता है, कि औरतें तो तीन हैं लेकिन आंखें मात्र चार हैं। यानी दो स्त्रियों को तीन आंखों से ही इस दक्षता से चित्रित किया गया है कि देखने वाले को अहसास तक नहीं होता। भूरे रंग का इस्तेमाल स्त्रियों की सामाजिक पृष्ठभूमि की ओर इंगित करता है।

पेपर पर टेम्परा में ही बनाई गई ‘पनघट’ में चार सजी-धजी स्त्रियों ने माथे पर पानी भरने वाला मटका रखा हुआ है। सभी स्त्रियां एक दूसरे से मुखातिब व अनौपचारिक लगती हैं। बादल जी ने दो गौरवर्णी स्त्रियों को चित्र के अग्रभाग तो सांवली स्त्रियों को थोड़ा पार्श्व में डाला है। गौरवर्णी स्त्रियां जहां एक दूसरे से रूबरू हैं। वहीं सांवली स्त्रियां उन्हें निहार रही हैं। इस सामान्य से नजर आने वाली तस्वीर में स्त्रियों के बीच की हायरार्की को सामने लाने की कोशिश बादल जी ने की है।

यही हायरार्की आम्रपाली में भी नजर आती है। आम्रपाली के चित्र के चारों ओर दूधिया प्रकाश उसके सौंदर्यात्मक आभा को प्रकट करती है जबकि उसकी परिचारिकाएँ भूरे, सांवले रंग से पेंट की गई हैं। सभी महिलाएं अनौपचारिक भंगिमा में बैठी हैं। चित्र में छोटे-छोटे ब्यौरे उसे खास बनाते हैं। आम्रपाली से जुड़े लोकाख्यान को चित्र बखूबी प्रकट करती है।

‘मदर एन्ड चाइल्ड’ में अपने शिशु को स्तनपान कराने जा रही महिला हो या ‘दहीवाली’ चित्र में दही बेचने वाली स्त्री इन दोनों को बादल जी ने ग्रामीण महिलाओं के सौंदर्य को सामने लाने की कोशिश की है। ये तस्वीरें हमें इस बाद की याद दिलाती हैं कि आजादी के पश्चात ग्रामीण महिलाओं की वेशभूषा व उनकी सौंदर्य चेतना को सामने लाती हैं। गांव सिर्फ अभाव व वंचना का ही नाम नहीं अपितु उसमें एक सौंदर्य, आभा है। प्रांरम्भिक चित्रों में लोकछवियां अधिक हैं।

गहरे भूरे रंग के प्रति आग्रह:

इन प्रारम्भिक चित्रों के वक्त से बादल जी में भूरे रंग के उपयोग के प्रति जो आग्रह दिखता है वह हालिया वर्षो तक बने चित्रों तक में जारी है। एक निरन्तरता का अहसास विशेषकर रंगों के चयन में अवश्य दिखता है भले तकनीक व तरीका बाद के वर्षों में काफी बदलता चला गया। शुरुआत के मूर्त चित्रों से वर्तमान के अमूर्त रेखांकनों में देखने वाले को एक अंदरूनी रेखा जोड़ती नजर आती है। भूरा रंग हमेशा बना रहता है। भूरे रंग का प्रयोग उन्हें लोक व आधुनिक दोनों संवेदनाओं से जोड़े रखता है।

बादल जी की इस प्रदर्शनी में उनके पुराने बनाये गए व्यक्तिचित्र ( पोट्रेट) भी लगाए थे। प्रमुख लोग जिनके पोट्रेट प्रदर्शनी में शामिल थे उनमें जयप्रकाश नारायण, फणीश्वरनाथ रेणु, जामिनी राय, बिस्मिल्ला खान, रवींद्रनाथ ठाकुर और लता मंगेशकर आदि। इन व्यक्तिचित्रों में यह प्रयास किया गया है कि उस व्यक्ति की चरित्र की कुछ मुद्राओं के माध्यम उसके व्यक्तित्व को प्रकट किया जाए।

प्रारम्भिक दौर में बादल जी ने जैसा कि उस दौर का चलन था वाश और टेम्परा तकनीक से चित्र बनाये। इस मीडियम में औरतों की मुखाकृति उभर कर आती थी। लेकिन ज्यों-ज्यों आनंदी प्रसाद बादल ने चित्र बनाने की तकनीक बदली उनके चित्रों में भी परिवर्तन आता चला गया। बाद के दिनों में उन्होंने पेपर पर एक्रिलिक का उपयोग किया। एक्रिलिक के उपयोग के साथ धीरे-धीरे बादल जी ने गहन भावों को भी चित्र के रूप में उकेरना शुरू किया और इसके लिए अमूर्तन का सहारा लिया।

आनन्दी प्रसाद बादल के अमूर्त चित्र विशेषकर बाद वाले चित्रों में गहनता और अमूर्तता दोनों मानों साथ चल रहे हों। अमूर्त से लगने वाले चित्र अपनी रंग परियोजना के लिए विशेष रूप से आकर्षित करते हैं। रंगों के मध्य आपसी संबन्ध देखने में आंखों को प्रीतिकर लगते हैं।

बादल जी के परवर्ती काल के चित्र शीर्षकविहीन हैं। शीर्षकविहीन चित्र बड़ी संख्या है। फलतः पाठक उसमें कई अर्थ खोजने के लिए स्वतंत्र रहता है। चित्रकार ने शीर्षक का दारोमदार मानो दर्शकों पर छोड़ दिया है। कई चित्रों में रंग जैसे एक साथ जम जाते हैं और भावों की तीव्रता को, अनुभूति को और सघन बना देते हैं।

एक छुपी आंख आपको निहारती रहती है:

अधिकांश अमूर्त चित्रों के बीच एक आंख की आकृति देखने वाले को देखती प्रतीत होती है। ये आंख विभिन्न भावों व मनोदशा को प्रकट करते हैं। रंगों, रेखाओं की विभिन्न परतों के मध्य छुपे नेत्र आपकी ओर निहार रहे प्रतीत होते हैं।

बादल जी के चित्रों में मानवाकृति कई दफे विरूपित कर दी जाती है। इससे चेहरे के अंदर छिपे दूसरे चेहरे को पहचाना जा सकता है। कई बार ऐसा महसूस होता है मानो कोई प्राचीन चेहरा चुपचाप आपको झांक कर देख रहा हो। इस झांकने, निहारने में जैसे एक उम्मीद के साथ-साथ निस्पृह भाव भी छिपी है। ये सभी भाव बादल जी अपनी रेखाओं व स्ट्रोक्स के माध्यम से उजागर करते हैं। उनके चित्र चाहे वे अमूर्त हों या मूर्त वे शांत, स्थिर दुनिया की कामना करते लगते हैं। बादल जी के लगभग सभी चित्रों में एक सौम्यता हमेशा बनी रहती है।

कई बार चित्र के चारों ओर गहरे अँधेरेपन का अहसास होता है पर बीच में प्रकाश, एक ब्राइटनेस को देखा जा सकता है। अमूर्त चित्रों में भी मनुष्य गायब नहीं होता है बल्कि उसकी उपस्थिति निरन्तर बनी रहती है। कई बार अमूर्त चित्रों में पृथ्वी की अटल गहराई, पेड़ो के तनों की भीतरी बनावट, मुखौटे आदि की अनुभूति कराते हैं।

कई चित्र ज्यामितीय आकारों वाले हुआ करते हैं यहां पश्चिम के कला स्कूलों का प्रभाव पेंटिंग पर पहचाना जा सकता है। पश्चिम के कला स्कूलों व बाजार के प्रभाव में अमूर्तन के नाम पर मनुष्य के चेहरे को कैनवास से बाहर कर देने की परिपाटी के विपरीत बादल जी खड़े होते हैं। आदमी, औरत या किसी पशु या उसकी आंख आपको घूरती, निहारती रहती है। बादल जी के चित्रों को देखते हुए भूले-बिसरे लोगों की छाया, उनकी स्मृति या मानो स्वप्न देखेने सरीखा अहसास होता है। चित्र देखने वाले के अंदर गहरी अनुभूति कराते हैं। मन के अंदरूनी तहों, परतों को, पुरानी तकलीफदेह याद को जैसे रूपाकार प्रदान कर रंग दिया गया हो।

महात्मा गांधी पर बनाई पेंटिंग एक तरह से गांधी को लेकर एक समकालीन पाठ की सामने लाता है। भूरे रंग से बनाई गई गांधी थोड़े उदास, अचंभित और अपने में ही सिमटे से दिखते हैं। यह चित्र वर्तमान दौर में जुड़ी उसकी त्रासदी को ओर भी हल्का इशारा करता लगता है। ऐसे ही दुर्गा और काली शीर्षक तस्वीर देखने से किसी पुरानी देखी गई मूर्ति की स्मृति जेहन में आती है।

कत्थई , उसके कई शेड्स तथा पीला रंग बादल जी धड़ल्ले से इस्तेमाल करते है । उनकी रंग योजना में एक रंग दूसरे में समाहित होते हुए प्रतीत होते हैं जिससे हर रंग एक दूसरे का पूरक लगता है तथा कैसे एक भाव, एक मनःस्थिति दूसरे में शिफ़्ट होती जाती है।

ग्रामीण छवियों से लेकर मन के अंदर के जटिल भावों को अभिव्यक्त करने तक की यात्रा उन्हें एक आधुनिक चित्रकार बनाती है खासकर संवेदना के स्तर पर।

हमारे अंदर का जो कुछ अव्यक्त रह जाता है बादल जी उसे कैनवास पर ब्रश के स्पर्श से व्यक्त करते हैं। इन्हीं वजहों से बादल जी के चित्र को पसन्द करने के लिए आपको चित्र देखना आना चाहिए।

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