अनीश अंकुर मूलतः संस्कृतिकर्मी हैं, किन्तु अपनी राजनैतिक व सामाजिक अभिव्यक्ति के लिए भी जाने-पहचाने जाते हैं। उनके नियमित लेखन में राजनीति से लेकर समाज, कला, नाटक और इतिहास के लिए भी भरपूर गुंजाइश रहती है। बिहार के मौजूदा कला लेखन की बात करें तो जो थोड़े से नाम इस विधा में सक्रिय हैं उनमें से एक महत्वपूर्ण नाम अनीश अंकुर हैं। उनकी सदैव कोशिश रहती है बिहार से बाहर के कला जगत को बिहार की कला गतिविधियों से रूबरू कराते रहा जाए। पिछले दिनों बिहार ललित कला शिक्षक संघ, पटना द्वारा 6 से 8 जनवरी तक बहुद्देशीय सांस्कृतिक परिसर, भारतीय नृत्य कला मंदिर में कला प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। आलेखन डॉट इन के अनुरोध पर प्रस्तुत है इस समूह प्रदर्शनी पर उनकी यह विस्तृत समीक्षात्मक रपट……
- बिहार ललित कला शिक्षक संघ द्वारा आयोजित पहली राज्य स्तरीय प्रदर्शनी
बिहार ललित कला शिक्षक संघ, पटना द्वारा 6- 8 जनवरी तक बहुद्देशीय सांस्कृतिक परिसर, भारतीय नृत्य कला मंदिर में चित्रकला प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। ललित कला शिक्षकों एवं समकालीन कलाकारों की सामूहिक कला प्रदर्शनी में बड़ी संख्या में चित्रकार व मूर्तिकार शामिल हुए। इस अवसर पर एक कैटलाग भी प्रकाशित किया गया है। तीन दिवसीय इस प्रदर्शनी का उदघाटन बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री माननीय चंद्रशेखर ने किया. बिहार में पहली बार ललित कला शिक्षकों की ऐसी प्रदर्शनी आयोजित की गयी थी।
ज्ञातव्य हो कि ललित कला शिक्षकों की बहाली जीतनराम मांझी के मुख्यमंत्रित्व काल में हुई थी। वैसे बिहार में अभी 300 के लगभग ललित कला शिक्षक हैं जो बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित विद्यालयों में काम करते हैं। बिहार में जितने ललित कला शिक्षकों की दरकार है उसके मुकाबले शिक्षकों की संख्या काफी कम है।. इस बात को उदघाटन समारोह के मौके पर ‘ ललित कला शिक्षक संघ’ के पदाधिकारियों ने शिक्षा मंत्री के समक्ष रखा। मंत्री महोदय ने इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने का आश्वासन भी दिया है।
ललित कला शिक्षक संघ बिहार के जिन जिलों में सक्रिय है उनमें प्रमुख हैं – पटना, सारण, कटिहार, सिवान, लखीसराय, औरंगाबाद, रोहतास, अरवल, मुंगेर, नालंदा, जमुई, मोतिहारी, खगड़िया, दरभंगा, बेगूसराय, नवादा, बांका, गोपालगंज, जहानाबाद, सीतामढ़ी, मुज़फफ़रपुर, सहरसा, बक्सर, और समस्तीपुर आदि।
इस राज्यस्तरीय कला प्रदर्शनी में चित्रकला, मूर्तिकला, ग्राफिक्स, टिकुली कला तथा मधुबनी पेंटिंग को प्रदर्शित किया गया था। लगभग 68 कलाकारों ने अपनी कृतियों को प्रदर्शित किया था। इस प्रदर्शनी को पटना के कला जगत में काफी उत्साह के साथ स्वागत किया गया। बड़ी संख्या में कला प्रेमी प्रदर्शनी को देखने इकट्ठा हुए। प्रदर्शनी में शामिल अधिकांश कलाकारों ने ‘पटना आर्ट कॉलेज’ से बी.एफ.ए की डिग्री हासिल की है। अलबत्ता एम. एफ. ए की पढ़ाई राज्य के बाहर जाकर पूरी की गई है।
प्रदर्शनी से गुजरते हुए सबसे पहले रंगो, रेखाओं की विविध व व्यापक दुनिया से परिचय होता है। कई किस्म के प्रयोगों से देखने वाला वाकिफ होता है। एक साथ इतनी बड़ी संख्या में कलाकारों के काम से गुजरना एक सुखद अहसास देता है। प्रदर्शनी में शामिल कलाकारों द्वारा कई माध्यमों जैसे जलरंग, तैलरंग, एकरेलिक, लकड़ी, मिट्टी, पत्थर, इनामल पेंट, फाइबरग्लास, पेन्सिल कलर, इचिंग , प्रिंटमेकिंग तथा मिक्स मीडिया में किये गए कामों से प्रेक्षक को परिचित होने का मौका मिलता है।
कई दर्जन कृतियों के बीच के कुछ प्रमुख कामों को देखें तो अरवल जिले के अमरनाथ कुमार की पेंटिंग ‘ राइड ऑफ हैप्पीनेस’ एकदम अलग से ध्यान खींचती है। कैनवास पर ऐक्रेलिक में 24/24 इंच की बनी यह पेंटिंग गरीब तबके से आने वाले बच्चोँ की अपनी सृजनात्मकता से बनाई गई गाड़ी से खेलती तस्वीर है। ये अधनंगे बच्चे अपने अभावग्रस्त ज़िन्दगी से बेपरवाह जिस मस्ती के साथ खेल रहे हैं वह बेहद आकर्षित करती है। तस्वीर में खेल की गति, गाड़ी पर बैठे बच्चे की मुस्कान और ठेल कर कामचलाउ गाड़ी चलाते बच्चों की यह तस्वीर लम्बे समय तक मन पर अंकित रहने वाली है। गाड़ी पर बैठे बच्चे की हँसी के पीछे गाड़ी को मुश्किल से ठेलते बाकी बच्चों का सम्मिलित प्रयास है। अमरनाथ कुमार ने धूसर रंग का इस्तेमाल कर इन बच्चों की पृष्ठभूमि को इंगित किया है। इस चित्र में एक संयोजनात्मक संतुलन दिखता है।
पटना की अर्चना कुमारी की दो पेंटिंग ‘ फीलिंग फर्स्ट ‘ और ‘फीलिंग सेकेण्ड’ भी ऐक्रेलिक में बनी है।इसमें दो लड़कियों के मनोभावों को पकड़ने की कोशिश अर्चना ने की है। पहली लड़की के बालों को एक पक्षी अपनी चोंच से पकड़े है जबकि स्कार्फ बांधे दूसरी लड़की अपना हाथ एक ओर रख रखी है जो सोचने वाली मुद्रा में है। इन दोनों तस्वीर का ट्रीटमेंट ठहरने को विवश करता है। पटना के प्रेमशंकर का मिक्स मीडिया में बनाया ‘घाट’ जिसमें बनारस के नदी किनारे घाट को चित्रित किया गया है। वैसे तो बनारस के घाटों पर काफी चित्र बनाये गए हैं, पर ‘घाट’ शीर्षक इस कृति में प्रेमशंकर ने नदी, नावों , सीढ़ियों तथा मंदिरों को संतुलन के साथ इस प्रकार प्रस्तुत किया है कि बनारस के घाट यथार्थ में उपस्थित नजर आते हैं।
समस्तीपुर के सुधीर कुमार साहनी का बांस से बनाया गया 18/24 इंच का काम अनूठा है। बांस के टुकड़े को अपने कलात्मक हस्तक्षेप से ने उसे एक आकृति का रूप दे डाला है जो अपने आसपास विचरने वाले किसी पशु की आकृति सा प्रतीत होता है। इस आकृति को सुधीर ने बगैर शीर्षक का रखा है इससे देखने वाला उसमें अपने मनोनुकूल भाव देख सकता है। बांस के टुकड़े पर उससे मिलते-जुलते रंग का लेपन उसकी तीव्रता को बढ़ाता है।
लकड़ी में सीवान के रूदल कुमार सिंह का 60/24 में अंटाइटल्ड काम बढ़िया है। रूदल ने लकड़ी के टेक्सचर को बदल डाला है। इस कलाकृति को छिपकली की देह और मनुष्य की मुखाकृति प्रदान किया गया है। लकड़ी को बीच बीच में जलाकर काले रंग का प्रभाव पैदा किया है। ‘लैण्डेस्केप’ में नवादा की शिखा शेखर ने जो तैलचित्र बनाया है उसमें वृक्षों के बीच ठहरे पानी और उसमें वृक्षों की छाया को बखूबी पकड़ा है।यह चित्र मन में गहन भावों कोउत्प्रेरित करता है। ठीक उसी प्रकार परशुराम मंडल का पहाड़, पेड़, झरना, बादल को समेटता लैण्डेस्केप भागदौड़ से भरी दुनिया में सुकून की खोज को जगाती नजर आती है।
स्टोन में सीवान के ही आदित्य कुमार सिंह का 36/36 इंच का ‘ पेन’ तथा मिट्टी में संतोष पासवान का 14/24 इंच में दो मूर्ति उल्लेखनीय है। संतोष पासवान ने जानवर की आकृति गढ़ने का प्रयास किया है। इनका काम तराशा हुआ प्रतीत होता है। जलरंग में नालंदा के अविनाश चंद्र ने 16/12 इंच के चित्र का शीर्षक है पूंजी। इसमें बाढ़ में फंसा एक वृद्ध व्यक्ति अपनी सिलाई मशीन को बचाकर लिए चल रहा है। उसके चेहरे पर मुस्कान है। चेहरे से उसके निम्न सामजिक -आर्थिक स्थिति का अहसास होता है। प्रदर्शनी में इस चित्र पर प्रेक्षकों की बरबस नजर चली आती है। यथार्थवादी शैली में बने इस चित्र में रंगों, रेखाओं का चयन सब कुछ अच्छा है। वृद्ध व्यक्ति की त्रासदी का अहसास होता है बस एक कमी रह गई है। जिस किस्म के संकट में वृद्ध फंसा है वैसे में उसके चेहरे पर हँसी चित्रित करना चित्र को हल्का बेमेल बना डालता है।
प्रियंका कुमारी के दो चित्र ‘ मेमोरीज’ और ‘स्ट्रगल’ प्रदर्शनी का हिस्सा है। ऐक्रेलिक में बनी दो चित्रों में स्त्री को पेंट किया गया है। जीविका के लिए छोटी बच्ची का रस्सी पर करतब दिखाने के दृश्य को पकड़ने की कोशिश ‘ स्ट्रगल’ में है जबकि ‘मेमोरीज’ में एक युवा स्त्री मानो उस वक़्त की याद कर रही है जब उसे भी तनी रस्सी पर करतब दिखाना पड़ता था।अपने उस दौर को मानो वह याद कर रही हो। 36/48 इंच में बनी यह दोनों चित्र देखने वाले के अंदर मिश्रित किस्म के भाव को जन्म देते हैं।
सुनील कुमार चौधरी के दो दिलचस्प चित्र ‘ फ़टे पुराने नोट बदलते जाते’ (बापू )शीर्षक से बनाये हैं। ऐक्रेलिक में बने इन दोनों चित्रों में गांधी, नोट और सेब अंकित हैं। एक गांधी तस्वीर में तो दूसरे गांधी पांच सौ और दो हजार के नोट पर हैं।सुनील चौधरी के इन चित्रों में एक व्यंग्य उभरता नजर आता है, कई गांधी जैसी महान शख्सियत को हमने महज नोटों में वह भी ऐसे फ़टे नोटों में तब्दील कर दिया है जिन्हें हम पुराने होने के कारण बदल ड़ालते हैं। कैनवास पर सुनील चौधरी ने ‘फ़टे पुराने नोट बदलते जाते’ छोटे-छोटे अक्षरों में लिख दिया है। इससे चित्र का व्यंग्य और अधिक उभर कर आता है। गांधी की प्रचलित छवि कानपुर के कलाकार सुमीत कुमार की ‘ गांधी’ शीर्षक पेंटिंग में भी आई है।
पटना के संतोष कुमार की ‘डेली लाइफ’ जिसमें सड़क पर साईकिल के दोनों ओर हरे व कच्चे नारियल के गुच्छो को लादे ग्रामीण व्यक्ति के चित्र को 24/36 के कैनवास पर उतारा गया है। इस तैलचित्र में संतुलन, परिवेश के अनुकूल रंगों का चयन और संयोजन सब कुछ आँखों को ठहरने पर विवश करता है। चित्र में साईकिल की गति को सवार की देह भाषा में पकड़ने की कलात्मक कोशिश की गई है। आसमान, बादल, साईकिल व नारियल की छाया सबकुछ तस्वीर को नायाब बना ड़ालते हैं। संतोष का दूसरा चित्र जिसमें तम्बाकू दम खींचते बंद आखों वाले वृद्ध का क्लोजअप चित्र है। तम्बाकू का धुँआ उसके चेहरे के पास तैर रहा है।
पटना की प्रतिमा कुमारी ने ‘आस्था’ और ‘बुद्धा’ शीर्षक से दो तस्वीर बनाये हैं। ‘आस्था’ में मंदिर की घंटी बजाते किशोर टीकाधारी श्रद्धालु की तस्वीर ध्यान खींचती है। लेकिन प्रतिमा का ज्यादा बेहतर काम 24/36 का ‘बुद्धा’ तस्वीर है। बुद्ध को प्रतिमा ने देह को काले-सफ़ेद से जबकि वस्त्र के लिए सुतरी वाली रस्सी का सृजनात्मक उपयोग किया गया है। पीपल के हरे पत्ते उनके आत्मज्ञान की कहानी को सामने लाते प्रतीत होते हैं। बिहार ललित कला शिक्षक संघ के अध्यक्ष तथा बक्सर के रहने वाले नरेंद्र कुमार ‘नेचर’ का ऐक्रेलिक में बनाया गए चित्र ‘जीवन’ व ‘अंकुरण’ प्रकृति व मनुष्य के मध्य के रागात्मक संबंध को पकड़ने की कोशिश है। पीले रंग का चुनाव नरेंद्र कुमार ने इस काम के लिए किया है। यह चित्र देखने वाले को विचार करने पर विवश करता है।
पटना के सुमित सिन्हा 28/38 कैनवास पर ऐक्रेलिक से बनाया गया ‘सिम्बौलिक आर्ट’ दर्शकों में कौतुहल का विषय बन गया था। सर्प आकार का ‘ऊँ’ बनाकर उसमें त्रिशूल व डमरू बनाया गया था। इस कृति में चित्रकार ने एक मैग्नीफ़ाइंग ग्लास तान रखा था ताकि कैनवास पर लिखें सूक्ष्म अक्षरों को पढ़ा जा सके। दर्शक बार बार उस मैगनीफाइंग ग्लास को हाथ में पकड़ कर कैनवास पर लिखें अक्षरों को पढ़ते नजर आये।
कोन आर्ट में बेगूसराय के सिन्नी कुमारी की बड़ी साइज ( 72/48 इंच) की तस्वीर प्रभावी बन पड़ी है। ‘लाइफ ऑफ वीमेन’ शीर्षक से बनी यह तस्वीर माध्यम व विषय दोनों के लिहाज से प्रदर्शनी में अलग आकृष्ट करती है। लयात्मक व वक्राकार रेखाओं के सहारे इस चित्र में भाव प्रकट किये गए हैं। गहरे नीले, बीच -बीच में हल्की हरी पट्टी के मध्य स्त्री के नंगी सफ़ेद देह और उसके दोनों हाथों का उठा आगे की ओर उठा होना तस्वीर को विशिष्ट अर्थ प्रदान करता है तथा देखने वाला एक गहरी अनुभूति से गुजरता है। यह तस्वीर अपने रंग संयोजन तथा कमपोजीशन के कारण भी खींचती है।
इसके अलावा मुजफ्फरपुर की निधि कुमारी की बगैर शीर्षक वाली तस्वीर, बेगूसराय के मंजीत बिहारी का ‘क्लासिकल’, शिवांगी वर्मा के ‘बुद्ध’ मुजफ्फरपुर की कशिश प्रिया की तस्वीर, गया के आसिफ अहमद का ‘बर्ड’ और ‘द लैंड ऑफ नॉलेज’, गया की ही कुमारी इंद्रावती पाठक, गोपालगंज के गोपीन्द्र कुमार आनंद की ‘ बुद्ध’, बेगूसराय के अंकुर कुमार , दरभंगा के अजीत पंडित की ‘इल्यूजन 06’, पटना के नेहा कुमारी की ‘नेचर विद मैन’, गया के कुमारी इंद्रावती पाठक, पटना के रणवीर कुमार की ‘सैनिक’, तारकेश्वर पटेल का गोधन, अरवल के संजीव कुमार ‘हमराज’ की दो औरतों वाली तस्वीर, भागलपुर के अश्विनी आनंद की गांधी, औरंगाबाद के मनीष कुमार की लकड़ी में बनी ‘रीयूनियन ऑफ नेचर विद लाइफ’ प्रो विनोद कुमार की फाइबरग्लास में ‘ट्रांसफायरमेशनल-3’ सहित कला प्रदर्शनी में कई अन्य कलाकारों के चित्र उल्लेखनीय हैं।
प्रदर्शनी में बुद्ध सबसे अधिक चित्रकारों के यहाँ आते हैं, साथ ही गांधी भी। हमारे समय में मौजूद अराजकता, अफरा-तफरी, अनिश्चितता तथा हिंसा व बर्बरता के मध्य बुद्ध व गांधी की याद एक स्वाभाविक इच्छा है जो युवा कलाकारों के यहां अभिव्यक्त होता है। बुद्ध व गांधी वैसे भी चित्रकारों मूर्तिकारों के हमेशा से प्रिय विषय रहे हैं परन्तु पिछले आठ-नौ वर्षों के दौरान जिस प्रकार इन दोनों विशेषकर गांधी को साम्प्रदायिक शक्तियों द्वारा केंद्रीय सत्ता की सरपरस्ती में निशाना बनाया जा रहा है वैसे में गांधी व बुद्ध को कैनवास पर लाना उनकी चिंता व सरोकार को दर्शाती है।
बहुत सारे कलाकार धार्मिक बिंबों यथा मंदिर, भगवान, साधु, महात्मा आदि को चित्रित करते रहे हैं। ऐसे कई काम तकनीकी तौर पर दक्ष हाथों द्वारा बनाये गए हैं पर प्रचलित धार्मिक छवियों से बाहर नहीं निकल पाते। पिछले एक दशक में भारत में विभिन्न प्रचार माध्यमों द्वारा धार्मिक छवियों व बिंबों को प्रसारित किया जा रहा है, इसकी पृष्ठभूमि में एक सियासी एजेंडा भी काम कर रहा होता है। युवा कलाकार जितना अधिक खुद को हिन्दू देवी देवताओं की पौराणिक इमेज़ से मुक्त करेंगे उनकी कला को विस्तार मिलेगा। जीवन के नए-नए अनछुए पहलू, चाक्षुष अनुभव देखने वाले के जीवन का हिस्सा बनेंगे।
विभिन्न इलाकों तथा अलग- अलग सामजिक पृष्ठभूमि से आने वाले कलाक़ारों के काम में काफी विविधता है, जीवन के कई रंग हैं, अपनी कला को बरतने का सलीका अलग अलग है। इस कारण देखने वाला खुद को कलात्मक तौर पर समृद्ध पाता है। ललित कला शिक्षक संघ ने इस सामूहिक प्रदर्शनी के माध्यम से एक अच्छी शुरुआत की है। इसे आगे भी जारी रखना चाहिए।