अपने निर्माण के बाद से बिहार म्यूजियम,पटना ने अपनी कला विषयक गतिविधियों के माध्यम से स्पष्ट कर दिया है कि उसका लक्ष्य वैश्विक कला गतिविधियों से बिहार के कला प्रेमियों को रूबरू कराना भी है। अपनी स्थानीय गतिविधियों के साथ-साथ। वर्ष 2023 की बात करें तो द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय म्यूजियम बिनाले और उसके बाद इंटरनेशनल प्रिंट मेकिंग एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत आयोजित छापा कला की अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी का आयोजन इस दावे की पुष्टि करता है। वरिष्ठ कला समीक्षक अनीस अंकुर की कलम से यहाँ पेश है इस छापा कला प्रदर्शनी पर एक विस्तृत रिपोर्ट। वेबपेज की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए हम इसे धारावाहिक के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, हाज़िर है दूसरा भाग। अभी तक आपने पढ़ा वर्ष 2013 में आयोजित “शीर्षकहीन” प्रदर्शनी के बारे में, इस अंक में 2014 आयोजित प्रदर्शनी का विवरण …..
Anish Ankur
2014 : इनडाइजेशबल :अदिति पांडे की कृति की लीनोकट में बनाई गई कृति ‘प्लासस्टिक काउ’ हमें गाय द्वारा कूड़े के रूप में प्लास्टिक खाने की आदत के प्रति सचेत करती है। गायों द्वारा आस-पास कूड़े के ढ़ेर से खाने के सामान ढ़ूंढ़ना एक सामान्य दृश्य है। चित्र में ‘नो प्लास्टिक प्लीज’ का संदेश हमें बताता है कि गायों को इससे दूर रखना है। ऐसा माना जाता है कि एक गाय अपने जीवन काल में लगभग 70 किलो कूड़ा निगल डालते हैं। चारों ओर कूड़े के अंबार के मध्य गाय का खड़ा होना हमें इसी बात के प्रति जागृत करता है।
इटली की कलाकार बाबिसिया बारबारा फेलिनी हमें द्वारा लीथोग्राफ में अलंकृत की गयी कृति में कांटो वाली चम्मच में कंटीले तारों का लपेटी गई कृति को चित्रित किया गया है। सामान्य सी लगने वाली यह कृति इस बाते को इंगित करती है कि हमारे खाद्य पदार्थ किस कदर अखाद्य होते जा रहे हैं।
छेरिंग नेगी का काम इस प्रदर्शनी में विशष तौर पर ध्यान आकृष्ट करने वाला है। इन्होंने कुपोषण से ग्रस्त दो भारतीय बच्चों को चित्रित किया है। एक बच्चा गोद में है और दोनों की पसलियां साफ नजर आ रही हैं। भूख से पीड़ित बच्चे का चित्रित करने के लिए भूरे रंग का उपयोग किया है जो इस तकलीफदेह यथार्थ की अनुभूति को तीव्र बनाता है। आंकड़ों के हिसाब से हमारा देश दुनिया के सबसे भूखे देशों की सूची में शामिल है। इन दोनों बच्चों की पृष्ठभूमि में बनी आकृतियों से कुछ ऐसा अभिव्यक्त करने का प्रयास किया गया है जिसमें यदि हमारी सोच बेहतर हो तो इस कड़वे यथार्थ में थोड़ी तब्दीली लायी जा सकती है।
पुर्तगाल के कलाकार जार्ज बासेलार की कृति एक ऐसे फल बनाया गया है जो देखने में ही संदिग्ध लगता है और जो अभोज्य जैसा प्रतीत होता है।
ऑस्ट्रेलिया की कलाकार केय वातानाबे ने दुनिया में भोजन में असमानता की राजनीति को अपनी कृति का विषय बनाया है। दुनिया में तीसरी दुनिया के देशों या जिसे ग्लोबल साउथ कहा जाता है और जहां बड़ी आबादी रहा करती है उन्हें कितना कम भोजन उपलब्ध है जबकि विकसित देशों या ग्लोबल नाॅर्थ में भोजन बड़ी मात्रा में है। इन दोनों के अंर्तविरोध को सामने लाने की कोशिश की गई है। लीनोकट में बनी इस कृति का शीर्षक है ‘ऑनली ए फिउ’। चित्र के निचले हिस्से में कम खाद्य पदार्थ उपयोग में लाने वाले विकासशील देश है जबकि उपर में ताकतवर देशों की बात की गई है। स्याह व सफेद रंग की सहायता से कलाकार ने इस ‘कंट्रास्ट’ को सामने लाने की कोशिश की गई है। यह कलाकृति अपने सशक्त संदेश के कारण प्रभावी बन पड़ा है।
स्पेन की कलाकार मार्था कास्तेलानोस की कृति का नाम ही है ‘इन्डाइजेसेबल’। इस डरावने लगने वाले ब्लैक एंड व्हाइट चित्र में एक विशाल मानवाकृति एक निस्सहाय बच्चे को निगल रहा है और बच्चा उसी भाव से एक समुद्री प्राणी छोटी मछली को मुंह में दबाए हुए है। इस प्रिंट में कलाकार ने यह दर्शाने का प्रयास किया है कि मनुष्य अपने लालच, लिप्सा में अखाद्य पदार्थों को भी नहीं छोड़ रहा है। यह कृति विषय के अपने ट्रीटमेंट के कारण प्रभावी बन पड़ा है और प्रदर्शनी के थीम के साथ न्याय करता है।
यूक्रेन की छापा कलाकार मारियाना माइरोशेन्चेन्को की कृति ‘ द बैटल ऑफ ट्रीमैलचिओ ’ में दो विपरीत ध्रुवों को दर्शाया गया है। ट्रीमैलचिओ रोम में पहली शताब्दी में रचे गए एक ऐसा साहित्यिक पात्र है जो पहले तो गुलाम रहता है पर बाद के दिनों में धनी और राजा हो जाता है। इसे राजा के अर्थ में समझा जाता है। जिसमें एक ओर भूख व अभाव है तो दूसरी ओर भोजन की अधिकता है। चित्र के निचले भाग में भूखा बच्चा रोटी के बचे टुकड़े को लिए हुए है। हडिडयों वाले बच्चे को गिद्ध व मृत्यु उसकी ओर निगाह डाले हैं। जबकि उपरी हिस्से में एश्वर्य और वैभव से भरा संसार हैं चित्रकार ने सफद, हल्के नीले व काले रंग से इसे चित्रित किया है।
इटली के कलाकार मिम्मा मासपोली द्वारा इचिंग तकनीक से बनाई गई कृति का नाम है ‘टू मच ’। लाल, सफेद और काले रंग से बनी इस कृति में एक बड़ा से मुंह में ढ़ेर सारा भोज्य पदार्थ है। यह इतना ज्यादा है यह जीवन के जरूरत से बहुत अधिक है। यह अराजकता और बर्बादी को अधिक जन्म देता है यह हमारे पेट तथा मनोमस्तिष्क के लिए भी बेकार है।
स्पेन के कलाकार माॅन्सेरात अन्सोतेग्यू ने ऐसा केक निर्मित किया है जो देखने से ही अखाद्य प्रतीत होता है। वहीं भारत के नयन कालिता ने खाली कैरेट को चित्रित किया है और एक तरफ एक व्यक्ति चिंतनशील मुद्रा में बैठा है। इचिंग पद्धति से बनाई गयी इस कृति में बगैर अंडों का खाली कैरेट उस अभाव को प्रदर्शित करता है जो पौष्टिक भोजन माने जाने वाले अंडे के बिना होता है। भोजन जो सबों का मौलिक अधिकार होना चाहिए उससे लोग महरूम हैं। इस बात को यह चित्र सामने लाता है। अमरीकी कलाकार पाॅल वालादेज उत्सवों व जन्मदिन समारोह में पाए जाने वाले केक को मनाया है। ब्लैक एंड व्हाइट में लीनोलियम पद्धति से बने केक का एक तिकोना निकला हुआ है।
प्राप्ति चावंके का ने एक्वाटिंट व इचिंग प्रक्रिया के माध्यम से ‘टुडेज फिस्ट’ ने दावत या प्रीतिभोज के दौरान बने भोजन का कई बार खासा हिस्सा बर्बाद हो जाता है और उसे कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है। यह कृति इस सवाल को उठाती है कि क्या हम उसे जरूरतमंदों के बीच नहीं बांट सकते ? सड़ चुके भोजन के लिए काले रंग का उपयोग किया गया है जिसकी ओर देखते हुए यह अहसास होता है कि वह अब खराब हो चुका है। क्या कुपोषण के शिकार लोगों के मध्य इस खाद्य पदार्थ को न पहुंचाकर हम भी तो इसके दोषी नहीं हैं?
अमेरिका के रोनाल्डो सेंटियागो ने सेरीग्राफ में हल्के नीले, सफेद व काले रंग का उपयोग कर एक ऐसी मछली को बनाया है जिसके पेट में कालापन चित्रित है। इस चित्र को देखने से ऐसा प्रतीत होता है मानो मछली जैसा खाद्य पदार्थ अब अखाद्य बन चुका है।
प्रदर्शनी के क्यूरेटर राजेश पुल्लरवार ने भी सेरीग्राफ में ही काम किया है। आदम हव्वा, सेब और डी.एन.ए की छवि इस कृति में चित्रित की गयी है। हरे लाल, नीले , पीले व काले रंग का उपयोग किया है। राजेश पुल्लरवार के काम में रंगों के चयन, इम्प्रेशन आदि में एक समझ दिखती है। स्वर्ग की कल्पना कई दफे हमारी जन्मजात इच्छाओं द्वारा नष्ट कर दी जाती है। राजेश के काम में एक अवधारणा आकार लेती दिखाई पड़ती है।
स्पेन के कलाकार सर्गियो अरागाॅन का काम इस प्रदर्शनी में अलग से आकर्षित करता है। लीनोकट में बनाई गयी इस कृति में चम्मच में रखा भोज्य पदार्थ चींटियों की भेंट चढ़ जाता है। कुछ चम्मच के अंदर और कुछ बाहर गिरे खाद्य पदार्थ में चींटी लग जाती है। इस कृति को बर्बाद हो रहे भोजन के दृष्टिकोण से बनाया गया है। आमलोगों की बुनियादी जरूरत, भोजन, आज बाजार की शक्तियों द्वारा, मांग, पूर्ति और सट्टे के नियमों निर्धारित होता है। कलाकार ने इस प्रश्न का उठाने की कोशिश की है कि भोजन का बर्बाद होना दुनिया भर में कुख्यात है। यह न सिर्फ मानवीय दृष्टिकोण से अपितु पर्यावरणीय नजरिये से भी अच्छा नहीं माना जाता। इस कृति में रंगसंयोजन भी ध्यान खींचता है। खाने की वस्तु का पीला हिस्सा, उसमें काली चींटी इस चित्र के संदेश को प्रभावी ढ़ंग से अभिव्यक्त करता है।
इटली की सिविया साला की इचिंग में एक मनुष्य दूसरे को खाने की कोशिश कर रहा है, यह आदमी किसी अन्य को चबाने का प्रयास कर रहा है। जिसे चबाया जा रहा है वह भी किसी और के साथ वहीं करने का प्रयास कर रहा है जो उसके साथ दूसरे कर रहे हैं। इस कृति का शीर्षक है ‘ इनअडिबल’। यानी जिसे खाया नहीं जा सकता है उसे ही सब निगलने में लगे हैं। मनुष्य के अंदर की हिंसक गलाकाट प्रतिस्पर्धा को यह कृति सामने लाने की कोशिश कर रही है। ब्लैक एंड व्हाइट में बनी इस कृति की पृष्ठभूमि में पुराने किस्म का लाल वाल पेपर है। क्या हम एक दूसरे को , एक दूसरे के इतिहास, संस्कृति, पंरपरा सबको निगल जाने में तो नहीं लगे हैं ? प्रदर्शनी के दिये गए विषय को व्यापक अर्थों में इसे पकड़ने का प्रयास किया गया है।
भारत के योगेश आदिकेने ने कोरेक्स कट मे कृति बनाई है। इस कृति का टाइटल शीर्षक से लिया गया है ‘इनडायजेसेबेल’। चित्र में तरबुज के लाल रंग के बाहर आती किसान की गंवई आकृति है जिसने अपनी आंखें बंद की हुई हैं। माथे में पगड़ी, पगड़ी से गेहूं की बाली लगी है। आखों पर पट्टी बंधी है। पृष्ठभूमि में पके हुए भोजन, मछली और शुभ विवाह का बोर्ड लगा है। इस कृति में दो ही रंग प्रमुख हैं। लाल और हल्का पीलापन लिये गेंहुआ रंग। तरबूज में एक कटार सी है। जो किसानों की जिंदगी पर छाई हिंसक छाया का प्रतीक है। यह चित्र महंगे विवाह समारोहों में एक ओर जहां बड़े पैमाने पर बर्बाद होने वाले खाने के सामान हैं वहीं दूसरी तरफ उस अन्न को उपजाने वाले किसानों को आत्महत्या पर मजबूर होना पड़ता है। यह कृति इस विचलित करने वाले नंगे यथार्थ को पकड़ने का प्रयास करती है।
यह पूरी प्रदर्शनी अपने शीर्षक के अनुरूप कई किस्म के दृष्टिकोण व संवेदना को सामने लाती है। विभिन्न देशों व भाषाओं के कलाकारों में दुनिया के पैमाने पर बर्बाद हो रहे अन्न, भूखमरी, अभाव को सामने लाता है वहीं एक छोटे समूह द्वारा उत्सवों के दौरान नष्ट होने वाले खाद्य पदार्थों पर भी चिंता व्यक्त करता है। यदि दूसरे शब्दों में कहें तो भोजन के बहाने अमीर गरीब के मध्य फैली चैड़ी खाई के वर्गीय विभाजन की ओर भी संकेतित करती यह प्रदर्शनी नजर आती है।