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7 अगस्त से 7 अक्तुबर तक चले इस प्रदर्शनी में 29 देशों के अलावा भारतीय कलाकारों ने भी हिस्सा लिया
बिहार के मौजूदा कला लेखन की बात करें तो जो थोड़े से नाम इस विधा में नियमित तौर पर सक्रिय हैं उनमें से एक महत्वपूर्ण नाम अनीश अंकुर हैं। उनकी सदैव कोशिश रहती है बिहार से बाहर के कला जगत को बिहार की कला गतिविधियों से रूबरू कराते रहा जाए। बिहार म्युजियम में जी-20 देशों की भागीदारी वाली प्रदर्शनी पिछले दो महीनों से चल रही थी। जी-20 के ध्येय वाक्य ‘टुगेदर वी आर्ट’ को इस प्रदर्शनी का थीम बनाया गया था। जी-20 शिखर सम्मेलन में 20 सदस्य देशों और 9 अतिथि देशों के नामचीन समकालीन कलाकारों के साथ-साथ 20 भारतीय कलाकारों की कृतियां भी ‘टुगेदर वी आर्ट’ का हिस्सा रहीं। जी-20 समिट भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के संस्कृति कार्य समूह की परिकल्पना है जिसे बिहार संग्रहालय के सहयोग से मूर्त स्वरूप प्रदान किया गया। इस प्रकार दुनिया भर के 29 देशों और 20 भारतीय कलाकारों ने दो महीने चलने वाली इस प्रदर्शनी ने पटना सहित राज्य भर के कलाप्रेमियों का खूब ध्यान खींचा।
वैसे भी पिछले दो-तीन सालों से बिहार संग्रहालय में होने वाली गतिविधियों के प्रति पूरे देश भर के कलाकारों की निगाह बनी रहती है कि यहां क्या चल रहा है। जी-20 शिखर सम्मेलन की यह प्रदर्शनी बिहार संग्रहालय को अंतर्राष्ट्रीय फलक प्रदान करने वाली रही। आलेखन डॉट इन के विशेष अनुरोध पर प्रस्तुत है इस अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी पर अनीश अंकुर की यह विस्तृत समीक्षात्मक रपट का पहला भाग ……
मिस्र के कलाकार अला अबू-अल-हमद अब्दुल सत्तार की कृति ‘प्राचीन मिश्र में यारों का स्वर्ग’ 2023 की बनी कलाकृति हैं। कैनवास पर तेल से बने इस चित्र में प्राचीन मिश्र के प्रेम संबंधी मिथकों को चित्रित किया है। एक प्रेमी जोड़ा लगभग एक दूसरे में खोया हुआ और तल्लीन सा है। 160/200 सेमी में बना यह चित्र दो प्रेमियों के मध्य एक दूसरे प्रति अंर्तनिहित उत्कट भावना को प्रकट करता है। चित्रकार ने प्रेमी जोडे़ के हाथों की उंगलियों की मुद्राओं का उपयोग उस इंटेंस फीलिंग के लिए किया है। संभव है इस चित्र का कोई संदर्भ प्राचीन मिश्र की किसी कथा से भी हो। स्त्री सफेद वस्त्रों में है, जबकि पुरूष रंगीन व चकमक पकड़ों में। चित्र के बाईं ओर एक गदहेनुमा आकृति इस चित्र को पौराणिक संदर्भ प्रदान करता नजर आता है। वहीं रंगों का उपयोग व प्रेमी जोड़े की भंगिमायें इस चित्र को आधुनिक कलात्मक लेंस से देखने का प्रयास करती है। चित्र देखने वाले के अंदर भी प्रेम और लालसा को उत्पन्न करने की भावना को प्रेषित करती प्रतीत होती है।
भारत की आयशा सेठ सेन की कलाकृति ‘वसुधैव कुटम्बकम’ बीस वर्ष पुरानी कृति है। एक्रीलिक बेस पर मिक्स मीडिया में बनी यह कृति गोलाकार व त्रिआयामी इंस्टॉलेशन (इमर्सिव इंस्टॉलेशन) है, जिसके पारदर्शी शीशे के अंदर के उपरी हिस्से में विश्व का मानचित्र है, जबकि निचले भाग में विभिन्न तबकों से आने वाले समूहों को दर्शाया गया है। विविघता में एकता के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर संरक्षण व पोषण की हमारी जवाबदेही की ओर इंगित करती यह कलाकृति अपने नीले रंग के प्रभावों के कारण आकर्षक बन पड़ी है।
ठीक इसी प्रकार मॉरीशस के कलाकार धर्मदेव निर्मल हरि के ‘जीवन उर्जा के मूल नियम’ शीर्षक से बना इंस्टॉलेशन का यह माध्यम कंक्रीट, एकत्रित रंगीन प्लास्टिक की पट्टी और हवादार पौधा है। 240/50/50 सेमी की इस त्रिअयामी कृति को कलाकार ने इसी वर्ष सृजित किया है। प्रकृति प्रदत्त और मनुष्य द्वारा निर्मित वस्तुओं के आपसी संबंधों को प्रकट करने की कोशिश हमारी पृथ्वी के जोखिम भरी स्थिति में पहुंच जाने चिंता को अभिव्यक्त करता है। ग्लोब को काले-हरे व अन्य रंगों की सहायता से उसके अस्तित्व पर मंडराते खतरे को तो सामने लाता ही है उस पर उग आए पौघे उनके आने वाले भविष्य के खतरनाक संकेत की ओर इशारा करते हैं। यह इंस्टॉलेशन इस बात का सूचक है कि हमारी धरती के अस्तित्व संबंधी सरोकार अब वैश्विक चिंता का विषय बन चुके हैं तथा इसे बचाने व अक्षुण्ण बनाये रखने को लेकर सब जगह सोचा जा रहा है।
नीदरलैंड के कलाकार सारा सेचिन चांग का इंस्टॉलेशन एक डाटा सर्वर का प्रतिनिधित्व करता है। इस कृति में फ्रेम के अंदर रौशनी का उपयोग किया गया है। इंस्टॉलेशन का शीर्षक है ‘ए सिमेट्रिकल इंपीरियलिस्टक डाटा सर्वर’। काले धातु के फ्रेम में बनी हाथ से चित्रित रेशमी पेन्टिंग विशेष रूप से ध्यान खींचती है। पूरी प्रदर्शनी में यह एकमात्र कलाकृति है, जो साम्राज्यवाद के दुष्प्रभावों को चाक्षुष ढ़ंग से देखने का प्रयास करता है। काले धातु के फ्रेम से जगमगाती रौशनी वाली मुंह तथा लालच, भोग और वर्चस्व की बढ़ती लपलपाती जीभ को प्रकट करने के लिए लंबे कपड़े का सृजनात्मक उपयोग किया है। दूरदराज के भौगौलिक क्षेत्रों को जो अमूमन पिछड़े और गरीब हुआ करते हैं परन्तु विकास के मेट्रोपॉलिटन केंद्रों को जरूरी प्राकृतिक संसाधन भी मुहैया कराते हैं। इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के मध्यमवर्गीय जीवन का सहज बनाने के लिए किस प्रकार अविकसित कहे जाने वाल केंद्रों का शोषण होता है इसे बेहद प्रभावी तरीके से सारा सेचिन चांग ने अभिव्यक्त किया है। हमारा डिजिटल संसार समुचित तरीके से काम कर सके इसके लिए कैसे तीसरी दुनिया के विकसशील देश उजाड़े व तबाह किये जाते हैं इसको विजुअली पकड़ने की कोशिश सारा सेचिन चांग द्वारा की गयी है। यह कलाकृति पूरे प्रदर्शनी में अपने वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ एक सामाजिक-राजनीतिक वक्तव्य की तरह नजर आती है। इस किस्म की कृति देखने वालों को चाक्षुष दृष्टि से तो समृद्ध करती ही हैं उन्हें वैचारिक रूप से भी समुन्नत बनाती है। आस-पास की बेहद सामान्य सी लगने वाली वस्तुओं-लोहे का फ्रेम, और कपड़े के टुकड़े की सहायता का रचनात्मक इस्तेमाल कर कैसे एक बड़ा दृश्य प्रभाव डाला जा सकता है इसे सामने लेकर आती है ‘ए सिमेट्रिकल इंपीरियलिस्टक डाटा सर्वर’। ग्लोबल नार्थ द्वारा ग्लोबल साउथ का किये जा रहे शोषण के साम्राज्यवादी चरित्र को यह इंस्टॉलेशन बखूबी सामने लाता है।
इसी के ठीक बगल में तांबे से बनी महात्मा गॉंधी की प्रतिमा भी ध्यान खींचती है। 2019 में 120/52/50 सेमी में बनी इस मूर्ति के चित्रकार के देश का नाम देख कौतुहल बढ़ जाता है। मूर्तिकार का नाम वू वेशान है, जो चीन के रहने वाले हैं। चीन के किसी कलाकार की यह एकमात्र कृति हैं। माओत्से तुंग के चीन के रहने वाले वू वेशान ने शांति व अहिंसा के प्रतीक पुरूष को गढ़ने के लिए चीनी मूर्तिकला के शीई तकनीक का उपयोग किया है। महात्मा गाँधी की लाठी लिए हुए चिर-परिचित छवि को चीनी मूर्तिकार ने गढ़ने की कोशिश की है। रबर की चपल पहले, घुटनों तक चढ़ी धोती, पीठ पर चादर लपेटे गाँधी की डग बढ़ाते समय के क्षण को मूर्तिकार ने पकड़ा है। शरीर के सभी अंगों का अनुपात बेहतर है बस गर्दन और आगे निकले हुए चेहरे की माप का अनुपात थोड़ा कम रहने के कारण मूर्ति में हल्की असंगति नजर आती है। गाँधी की उंगलियां अभय की मुद्रा में है कुछ-कुछ बुद्ध जैसा प्रभाव लिये हुए। देखने वाले को गाँधी के प्रति अनुराग पैदा करने वाली यह मूर्ति एक ऐसे देश के कलाकार ने बनाई है जहां माओ को पूजा जाता है। हिंदुस्तान के दर्जनों जिले माओ की विचारधारा पर चलते हुए चीन की तरह हथियारबद्ध क्रांति करने का सपना मन में पाले हुए हैं वहीं चीन का एक कलाकार भारत के गाँधी से प्रेरणा पा रहा है। एशिया के इन दो बड़े देशों के मध्य सरहदी तनाव रिश्तों को भले सामान्य नहीं होने देते पर कला इन क्षेत्रीय तनावों व विभाजनों से परे जाकर अपना काम कर रही है।
बिहार के चर्चित मूर्तिकार रजत घोष की बाउल गायक पर बनाई गयी मूर्ति प्रदर्शनी में अलग से ध्यान खींचती है। इस मूर्ति का शीर्षक भी ‘बाउल’ है। इस गतिमान मूर्ति को रजत घोष ने कांस्य में बनाया है। 2004 में बनी इस मूर्ति का साइज 115ग48ग31 सेमी है। रजत घोष की इस नायाब मूर्ति में एक दाढ़ी वाला वृद्ध बाउल गायक अपना एकतारा लिए गायन में मशगूल है। उसके पैरौं में हल्की थिरकन है, देह की भंगिमा में संगीत की लय के अनुकूल गति है। गायक के कंधे पर वाद्ययंत्र, हाथ से उसे बजाने की मुद्रा, सर गहरे भाव में डूबे हुए उपर की ओर उठे तथा आँखें संगीत की धुन में मग्न। दायें पैर का अगला हिस्सा हल्का उठा हुआ। कांस्य का हल्का पीला रंग इस प्रतिमा का अनूठा बना डालता है। देखने वाला एकदम ठिठक सा जाता है। यह मूर्ति बंगाल के बाउल संगीत की रूहानी ताकत से हमारा परिचय कराती है। मूर्ति देखते हुए प्रेक्षक खुद बाउल के अमर संगीत के प्रभाव में चला जाता प्रतीत होता है। रजत घोष ने इस मूर्ति को इस लगन व प्यार से बनाया है कि देखने वाला देखता रह जाता है। मूर्ति में छोटे-छोटे ब्यारों पर निगाह रखी गयी है। इसका रंग और टेक्सचर गौर करने लायक है। वृद्ध की देहयष्टि में संगति व संतुलन इस प्रदर्शनी की सबसे अच्छी कलाकृतियों में बनाती है।
प्रख्यात भारतीय मूर्तिकार हिम्मत शाह की एक हरे रंग वाली छोटी मूर्ति भी इस प्रदर्शनी का हिस्सा है। शीर्षकरहित इस कांस्य प्रतिमा का आकार 37/10/9 है। तीन-चार वर्ष पूर्व बनी इस यह मूर्ति एक अर्मूत प्रभाव छोड़ती है। एक प्राचीन कृति को देखने को बोध प्रेक्षक को होता है। खुदाई से प्राप्त किसी स्त्री आकृति का आभास कराती यह मूर्ति एक आदिम अहसास कराता है। सभ्यता के विकास के प्रारंभिक अस्तित्व का बोध देखने वाले को होता है। मूर्ति में एक गति, एक संतुलन है जो देर तक देखे जाने को विवश कराती है। मूर्ति का अयतन और आकार, अनुभूति व उपस्थिति प्रभावित करती है। वैसे भी हिम्मत शाह की दूसरी कृतियों को देखते वक्त भी कुछ-कुछ ऐसा ही भाव आता है। कुछ नया देखने का सुख प्राप्त होता है।
भारत के एक अन्य कलाकार सनातन डिंडा की बर्ना कृति ‘बोधिवृक्ष,‘ ने भी दर्शकों को अपनी ओर आकृष्ट किया है। ‘ई-कचरा’ माध्यम में कलाकार ने इसे तैयार किया है। 2073 की बनी इस कृति का माप 226ग167.6ग81.2 सेमी है। टेलीविजन के रिमोट, ईयरफोन, पेन ड्राइव सरीखे इलेक्ट्रॉनिक कचरे को वृक्ष का आकार देकर बोधिवृक्ष को निर्मित किया गया है। यह इंस्टॉलेशन हमारे विकास के वर्तमान मॉडल को आधार बनाती है जो उपभोक्तावाद के प्रभाव में अपने आस-पास के जीवनरक्षक पर्यावरण को लगातार नष्ट करती जा रही है। इलेक्ट्रॉनिक कचरे की सर्व व्याप्ति हमारे जीवन को कितना नुकसान पहुंचा सकती है इसे भी यह कृति अभिव्यक्त करने का प्रयास करती प्रतीत होती है। यह हमें इस बात के प्रति जागरूक और जिम्मेवार बनाती है ताकि हम आपने आसपास के पर्यावरण के प्रति अधिक संजीदा हो सकें। यही रास्ता है कि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए भविष्य की रक्षा कर सकते हैं। सनातन हिदा अपनी कृति के माध्यम से हमे आने वाले वक्त के प्रति सचेत बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
बिहार के सुबोध गुप्ता, जिन्हें अब अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हो चुकी है, का काम ’आध्यात्मिक उपकरण’ भी प्रदर्शनी का हिस्सा है। सुबोध गुप्ता बर्तनों के अपने काम के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। यहां उन्होंने पूजा के समय इस्तेमाल आने वाले बर्तन लोटा की माला बनाई है। 108 मालों की यह गोलाकार लड़ी 2022 की कृति है। 203.2ग35.5ग25.4 सेमी के आकार वाला यह इंस्टॉलेशन पीतल, तांबा, पत्थर और स्टेनलेस स्टील से निर्मित किया गया है। सुबोध गुप्ता लंबे समय से इन सामग्रियों का उपयोग अपने इंस्टॉलेशन के लिए करते रहे हैं। आम जीवन की इन चिर परिचित सामग्रियों का कैसे सृजनात्मक इस्तेमाल किया जाता है उसका अच्छा उदाहरण है ‘आध्यात्मिक उपकरण’। लोटा का यह लघु रूप जयादातर पूजा के वक्त जल या अन्य वस्तुओं को रखने के काम आता है। 108 लोटे को जपने वाले माला की तरह पिरोकर सुबोध गुप्ता ने इसे धार्मिक भाव से संपृक्त किया है। जिस प्रकार बैठकर माला जपा जाता है उसी क्रिया को अभिव्यक्त करने के लिए कलाकार ने इसकी परिकल्पना की है। यह कलाकृति देखने वाले के मन में एक पवित्र व आध्यात्मिक अहसास कराता है।
अर्जेंटीना के चित्रकार अद्रियाना बुस्तोस का 187X187 आकार का चित्र अपने अनूठे विषय के कारण एकदम अलग से पहचाना जा सकता है। 2020 में बनी इस चित्र का नाम है ‘बेस्टियारियो डी इंडियाज’। कैनवास पर एक्रेलिक, गौचे और चंदी की पत्तियों की सहायता से बनाया गया है। इस चित्र में एक ऐसे लैंडस्केप को चित्रित किया गया है, जो ऐसे काल्पनिक प्राणियों से भरा हुआ है, जिनकी प्रकृति हाईब्रिड है यानी जिनमें मनुष्य व पशु दोनों की विशेषताओं को देखा जा सकता है। एक धड़विहीन प्राणी है, जिसकी छाती पर आँखें व नाक बनी है, दो पैरों व दो हाथों का वाला ऐसा घोड़ा जिसका चेहरा मानवनुमा है, शेर की आकृति वाले प्राणी का चेहरा बंदर की मानिंद है तो आधी मछली व आधी जानवर वाली आकृतियों वाली विचित्र चित्रों से भरा है कैनवास। चित्र में कोई भी प्राणी एक दूसरे से मुखातिब नहीं हैं, आपस में संवाद नहीं कर रहे हैं बल्कि वे अपने आप में स्वतंत्र नजर आते हैं। यह चित्र एक स्वप्न सरीखी प्रभाव लिए हुए है। चित्रकार ने लैटिन अमेरिका की प्राचीन स्मृति को जैसे सहेजने की केशिश इस पेंटिंग के माध्यम से की है। ऐसो प्रतीत होता है कि मान सभ्यता के विकास क्रम के किसी पुराने ऐसे कालखंड को यह चित्र दर्शाता है, जब विकास के विभिन्न चरणों में अस्तित्व में रहे प्राणी भले एक दूसरे से संवाद की अवस्था में नहीं हैं पर नुकसान भी एक दूसरे का नहीं कर रहे हैं। एक दूसरे से उदासीन सा पर एक दूसरे को चोट या तकलीफ पहुंचाने का अनुपस्थित चित्र प्रकट करता है।
इस प्रदर्शनी में कलाकारों ने विभिन्न माध्यमों में अपनी भावनाओं को प्रकट किया है। जर्मनी के आइजक चोंग वाई ने दो वीडियो चैनल बनाया था। 14 मिनट 1 सेकेंड के इस वीडियो का शीर्षक था ’डाई मटर्स’ (द मदर्स )। आइजक चोंग वाई ने इस वीडियो की प्रेरणा सौ वर्ष पूर्व कैथ कोलविट्ज द्वारा वुडकट में बनाई गई कृति ’दी मदर’ से संदर्भ लेकर बनाया था। बर्लिन के आइफा गैलरी के सहयोग से इस दो वीडियो चैनल को आइजक चोंग वाई ने निर्मित किया था। इस वीडियो में कुछ किशोर और युवा गोल-गोल घूमते हुए विभिन्न भाषाओं के शोकभरे उन गीतों और लोरियों की पंक्तियों को गाते चलते हैं, जिसे म्यूनिख के संगीतकार डागमर आइमर ने लगभग 10 साल तक रूदाली गाने वालों के साथ रहकर तैयार किया था। सौ वर्ष पुराने वुडकट की तस्वीर देखने पर प्रेक्षक एक गहरी भावना से भर जाता है, जबकि इसके प्रभाव से बने एक दूसरे को बाहों में थामें घूमते हुए शोकगीत गाने वाले वीडियो में वह बात नहीं आ पाती है। वीडियो और संगीत मिलकर भी वह प्रभाव पैदा नहीं कर पाते जो वुडकट का चित्र करता प्रतीत होता है। वुडकट में दुख से भरे वृताकार बैठे आलिंगनबद्ध समूह देखने वाले के अंदर जिस किस्म की गहरी संपृक्ति से भर देता है वीडियो उसमें असफल सा रहता है। लेकिन सबसे खास बात यह है इस कृति की परिकल्पना। आइजक चोंग वाई ने एक शताब्दी पूर्व के कैथ कोलविट्ज की कृति में अंतर्निहित भाव को समकालीन दृश्य-श्रव्य माध्यम के माध्यम से अभिव्यक्त करने का प्रयास किया। यह प्रयास ही इस काम को अलहदा बना देता है।
(’टुगेदर वी आर्ट’ : विभिन्न संस्कृतियों और कला परंपराओं से परिचित कराती प्रदर्शनी, भाग-2)