मौजूदा कला लेखन की बात करें तो जो थोड़े से नाम इस विधा में नियमित तौर पर सक्रिय हैं उनमें से एक महत्वपूर्ण नाम हैं अनीश अंकुर। उनकी सदैव कोशिश रहती है बिहार से बाहर के कला जगत को बिहार की कला गतिविधियों से रूबरू कराते रहा जाए। बिहार म्युजियम में जी-20 देशों की भागीदारी वाली प्रदर्शनी पिछले दो महीनों से चल रही थी। जी-20 के ध्येय वाक्य ‘टुगेदर वी आर्ट’ को इस प्रदर्शनी का थीम बनाया गया था। विगत दो-तीन सालों से बिहार संग्रहालय में होने वाली गतिविधियों के प्रति पूरे देश भर के कलाकारों की निगाह बनी रहती है कि यहां क्या चल रहा है। जी-20 शिखर सम्मेलन की यह प्रदर्शनी बिहार संग्रहालय को अंतर्राष्ट्रीय फलक प्रदान करने वाली रही। आलेखन डॉट इन के विशेष अनुरोध पर प्रस्तुत है इस अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी पर अनीश अंकुर की यह विस्तृत समीक्षात्मक रपट का तीसरा और अंतिम भाग ……
- जी- 20 देशों के कलाकृतियों की प्रदर्शनी
कनाडा के चित्रकार जेसिका ह्यूस्टन की कृति का शीर्षक है ‘ भविष्य के लिए पत्र- अंटार्ट्टिका’ । स्क्रीन पर अंटार्ट्टिका की एक शांत खूबसूरत छवि उभरती है। सफेद पहाड़, काले पत्थर और नदी का ठहरा पानी एक सुकून प्रदान करने वाला दृश्य। जेसिका ह्यूस्टन ने अभिलेखीय डिजिटल प्रिंट पर इस छवि का पुरुत्पादन किया है। इस छवि में पुराने जमाने के गोलाकार लकड़ी पर भेजे जाने वाले पत्र के मानिंद एक बिल्कुल सफेद रंग का पत्र इस गहरी अनुभूति कराने वाली छवि में रख दिया है। ह्यूस्टन ने विभिन्न क्षेत्रों की विविध आवाजों का उपयोग किया है ताकि भविष्य को लेकर अपनी चिंता प्रकट कर सके।
ऐसी ही एक अन्य पेंटिंग रूस के अन्ना मैक्सिमोविच की है। चित्र में शांत पहाड़, ठहरी हुई नदी, सुदूर तैरते हुए पालों वाली नाव, आकाश में छाए बादल भीतर गहरे पैठती जाती है। इस ऑयल पेंटिंग का साइज 55/45 सेमी है और शीर्षक ‘प्रकाश का प्रतीक’ है। जैसा कि बताया गया है चित्रकार ने अपने देश के बैरेंट्स सागर के किनारे बसे गांव टेरीबेर्का के दृश्य अपने कैनवास पर उतारे हैं। यह कलाकृति एक प्रकाश स्तंभ को दिखाती है जो भूले भटके लोगों को राह दिखाने में मदद करती है। खतरनाक लहरों से मुश्किल वक्त में जीवनरक्षक भूमिका अदा करता है प्रकाश स्तंभ। चित्र देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है जैसे दर्शक को दुनिया के ऐसे छोर पर ले जाया गया है जहां मनुष्य और प्रकृति के मध्य आज भी रागात्मक संबंधअस्तित्व में है। और यह संबंध ही आधुनिक काल में प्रकाश स्तंभ का काम करता है।
जी – 20 की इस प्रदर्शनी में प्रख्यात छायाकार रघु राय की बिहार के सोनपुर मेले के हाथी बाजार की एक सम्मोहक तस्वीर है। सोनपुर मेले में बड़े पैमाने पर हाथियों का व्यापार होता है जहां दुनिया भर के पर्यटक आते हैं। हाथियों की कतारों के बीच हाथी की देहयष्टि को निहारते हाथीवान की तस्वीर आकर्षक बन पड़ी है। आदमी और जानवर के मध्य के प्राचीन और प्यार भरे रिश्ते को उदघाटित करती है 2008 में खींची गई यह तस्वीर।
फ्रांस की कलाकार वेरा मोलनार की तस्वीर का नाम है ‘ ‘ड्यूरर को श्रद्धांजलि ‘। वेरा मोलनार ने फ्लोरसेंट नारंगी रंग के चिपकाने वाले टेप से इस कलाकृति को सृजित किया है। नीले रंग की यह अमूर्त पेंटिंग एक ऐसी मानव आकृति निर्मित करती है मानो नए युग से कुछ कहना चाहती है। जी – 20 देशों की इस समूची प्रदर्शनी में सबसे उम्रदराज कलाकार हैं वेरा मोलनार। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि वेरा मोलनार अगले 5 जनवरी 1924 को 100 वर्ष की हो जाएंगी। इनका जन्म बीसवीं सदी के प्रारंभ में बुडापेस्ट में आवांगर्द आंदोलन के वक्त हुआ था। बाद में उन्होंने फ्रांस में बसने का निर्णय लिया जहां द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उनका कैरियर तेजी से आगे बढ़ा। उन्होंने अधिकांशतः अमूर्तन पर अधिक जोर दिया है।अमूर्तन के प्रति अपने आग्रह को कंप्यूटर तकनीक के आने से और सहूलियत हुई और वे इसमें भी अग्रणी बन गई। इस बात को समझने के लिए उनके अमूर्त चित्र को देखना चाहिए। यह चित्र उन्होंने जर्मन पुनर्जागरण के पुरोधा अलब्रेक्ट ड्यूरर (1471-1528) के श्रद्धांजलि स्वरूप बनाया है।
सुदर्शन शेट्टी ने एक जोड़ी फूलदान इंस्टॉल किया है जो चीनी मिट्टी और लकड़ी का सुंदर संयोजन करती है। चीनी मिट्टी को तोड़कर उसके टूटे हिस्से को इसी आकार की लकड़ी की बनी प्रतिकृति पर नक्श कर दिया गया है। इससे फूलदान और अधिक जीवंत हो उठा है और एक सुंदर कलाकृति में परिणत हो गया है। सुदर्शन शेट्टी ने इस काम के लिए सौगान की लकड़ी, चीनी मिट्टी का फूलदान और पहले से उपयोग में रहे कैबिनेट का उपयोग किया है। 2015 में बने इस फूलदान का साइज 109X 86X 35.5 है। भारतीय व पाश्चात्य प्रभावों वाले सुदर्शन के इस इंस्टॉलेशन में घर के अंदर की खूबसूरत दुनिया जीवंत हो उठी है।
संयुक्त अरब अमीरात के मोहम्मद अहमद अब्राहिम की कृति का शीर्षक है ‘ टावर -3’ । कार्डबोर्ड, कागज़ और पत्तियों की सहायता से बनाई गई कलाकृति का साइज 152X53X44 है। 2017 में बनी यह कृति टावरनुमा है। यह टावर ईंट के रंग का है। यह मूर्ति मोहम्मद अहमद अब्राहिम ने अपने ग्रामीण व शहरी लैंडस्केप के प्राकृतिक सौंदर्य को प्रकट करने के लिए प्रतीक स्वरूप बनाया है। मूर्तिकार ने पर्यावरण के दृष्टिकोण से लाभदायक स्थानीय सामग्रियों का इस्तेमाल कर इसके लिए किया है। इसके पीछे प्रकृति,पर्यावरण और उसके संरक्षण को लेकर अपनी चिंता सामने लाने के लिए इस अमूर्त आकृति को सृजित किया गया है।
जयश्री चक्रवर्ती की पेंटिंग कैनवास पर तेल, अक्रीलिक, जूट, पत्ती, कपास और कागज़ से बनाई गई है। इसका नाम है ‘कुदरत की फुसफुसाहट’। पेंटिंग का आकार 193X348 सेमी है। चित्र में लुप्त होती चली गई पक्षियों को कैनवास पर उकेरने का प्रयास किया गया है। पक्षी की धुंधली आकृति, पेड़ जो मात्र यादों में ही बची है इसे पकड़ने की कोशिश चित्रकार ने की है। चित्र पुरानी पक्षियों की स्मृति को रेखांकित करती है और प्रेक्षक के मन में एक उदास लालसा को जन्म देती है। कैनवास पर सफेद, हल्के काले, हल्के भूरे और पीले रंगों की सहायता से उन पक्षियों को रेखांकित किया गया है जो अब अस्तित्व में नहीं हैं। पेंटिंग के टेक्सचर में एक उभार सा है जो उनकी अनुपस्थिति और सघन बनाती है। पूंजीवादी विकास के नाम पर मुनाफे की हवस और पर्यावरण के विनाश की तार्किक परिणति है पक्षियों का विलुप्त होते चले जाना। पेंटिंग इन सब हिंसक प्रक्रियाओं के विरुद्ध एक वक्तव्य की तरह है।
भारत के ही एक अन्य कलाकार जी.आर ईरन्ना की पेंटिंग ‘धूल से धूल ‘ में धूल का अत्यंत आध्यामिक और प्रतीकात्मक अर्थ है। तिरपाल पर ऐश, एक्रीलिक और ईंट के धूल से इसी वर्ष बना यह चित्र 167X213 सेमी का है। यह अमूर्त चित्र देखने वाले के अंदर कई किस्म के भावों को जन्म देता है। ईंट के रंग का धूल और तिरपाल की पृष्ठभूमि चित्र में धूल और राख दुनिया की नश्वरता के साथ- साथ परिवर्तनशील संसार को अभिव्यक्त करता प्रतीत होता है। यह जीवन एवं मृत्यु के अनंत चक्र की भी याद दिलाता है। जैसे जलते हुए पेड़ के अवशेष आने वाले पौधों के लिए उर्वर भूमि बन जाते हैं उसी प्रकार हमारा भौतिक शरीर भी जीवन चक्र को पूरा करते हुए अंततः पृथ्वी में ही लौट जाएगा। ‘धूल से धूल ‘ इस प्रदर्शनी का एक प्रमुख चित्र है ।
बोस कृष्णामाचारी का चित्र ‘ विश्व एक परिवार है ‘। मिक्सड मीडियम में बनी इस कृति का सृजन वर्ष 2023 है। इसका आकार 91X122 सेमी है। यह चित्र भारत की विविधता और सहजीवन की अवधारणा को सामने लाने की कोशिश करता है। ‘पृथ्वी ही कुटुंब है’ इस बात को कैनवास पर हिंदुस्तान की विभिन्न भाषाओं की लिपि में लिखा गया है। कैनवास को नीले रंग से रंगा गया है परिणामस्वरूप यह पोस्टर की तरह नजर आता है। नीले कैनवास पर सफेद रंग से चित्रकार ने सीधे-सीधे एक संदेश देने की कोशिश की है कि हमारी मातृभाषा भले जो हो यह ‘दुनिया एक परिवार है’ इसी समझ के साथ हमारा जीवन शांतिपूर्ण हो सकता है। चित्रकार ने इस संदेश को 38 भाषाओं में अनुदित किया है ताकि सार्वभौम विश्व और बंधुत्व की मानवीय आकांक्षा की भावना प्रकट हो सके। क्या संयोग है कि बोस कृष्णामाचारी ने जिन रंगों का उपयोग धर्मनिरपेक्षता, एकजुटता आदि के लिए उपयोग में लाया है वही रंग विश्व शांति आंदोलन द्वारा किया जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात अस्तित्व में आया ‘विश्व शांति परिषद ‘ के नीले-सफेद झंडे की याद दिलाती है यह कृति।
चंद्रा भट्टाचार्य की वेंस ऑफ द अर्थ सीरीज की बिना शीर्षक वाली पेंटिंग इस प्रदर्शनी का हिस्सा है। चित्रकार ने कैनवास पर एक्रीलिक से पेड़ के पत्ते, उजले फूल एवं बैंगनी रंग के फल को चित्रित किया है। चित्रकार ने मानो सुदूर अतीत के किसी विस्मृत क्षण को कैद किया है। देखते समय एक प्राचीन भूदृश्य की स्मृति सी कौंधती है। एक ऐसा भूदृश्य जो समकालीन दुनिया के हस्तक्षेप से मुक्त हो। चित्र देखते हुए मन में विषाद भर जाता है कि हमारी आंखों से परे भी पृथ्वी के सौंदर्य में बहुत कुछ ऐसा है जिससे हम अनजान हैं। चंद्रा भट्टाचार्य ने रंगों का ऐसा उपयोग किया है मानों डूबते सूर्य की लालिमा के प्रभाव से पत्ते का रंग भी वैसा ही हो गया है। रंगों और रेखाओं के दक्ष चित्रण ने एक ठहरे हुए लम्हे ऐसे चित्रित किया गया है कि एक रहस्यात्मक आवरण में सब कुछ लिपटा दिखता है। पृथ्वी में छुपी गुप्त शक्ति की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करती है। यह चित्र किसी पुरानी याद को भी कुरेदती है।
दक्षिण कोरिया के किम सुन गई ने वीडियो चैनल तैयार किया है। वीडियो चैनल में रंग और ध्वनि भी है। 5 मिनट 19 सेकेंड के इस वीडियो का शीर्षक है ‘मेर मेरे’। ‘ मेर मेरे ‘ में नीला समुद्र है जिसका पानी हल्का -हल्का हिलता रहता है। किम सुन गई ने अपनी मां के गुजरने के बाद ‘ मेर मेरे ‘ पर काम करना शुरू किया। कुछ दशक वे पूर्व यूरोपीय देश फ्रांस में आए। उनकी मां ने उन्हें हमेशा इस बात के लिए प्रोत्साहित किया कि वह विविधाताओं से भरे बहुभाषा भाषी समाज के अनुकूल ढालकर खुद का विकास करे। फ्रांस आने के बाद पूरब और पश्चिम दोनों से परे कुछ निर्मित करने की कोशिश की। समुद्र का नीला हिलता पानी और इसकी मीठी ध्वनि देखने वाले के अंदर अतीत और भविष्य का अतिक्रमण करने वाला भाव पैदा करता है।
लैटिन अमेरिकी महादेश के सबसे बड़े मुल्क ब्राजील के कलाकार जेडर एस्बेल ने डिजिटल पुनरुत्पादन में अपने ‘ द कनाईमेस वार ‘ श्रृंखला का पेंटिंग संख्या पांच को इस प्रदर्शनी के लिए प्रेषित किया है। कैनवास पर एक्रीलिक और पॉस्को पेन के माध्यम से 110/145 सेमी आकार की इस कृति में डिजिटल चमक है। जेडर एस्बेल ने इस शृंखला में कनाईमेस की आकृति को प्रस्तुत किया है जो ब्राजील के माउंट रोराइमा इलाके के मूल निवासियों द्वारा जाना जाता है। ‘कनाईमेस’ विदेशी आक्रांताओं को कहा जाता है जो स्थानीय निवासियों को लुटते हैं, हमला करते हैं और उनका शोषण करते हैं। इसके लिए ये कनाइमेस जानवरों और पौधों की खाल पहनकर अपना रूप भी बदलते हैं। चित्र में वनों और वनस्पतियों से आच्छादित इलाके में बड़े आकार के जानवरनुमा आकृति नीचे धरती की ओर लालची निगाहों से घूर रहा है। चित्रकार ने रंगों का इस प्रकार अलगाया है कि कनाईमेस को आसानी से पकड़ा जा सकता है। इस चित्र में लैटिन अमेरिका के मूल निवासियों पर अतीत में किए गए औपनिवेशिक वर्चस्व को तो सामने लाती ही है, समकालीन दुनिया में भी नवउदारवादी मॉडल थोपे जाने के परिणामस्वरूप फिर से शोषण की प्रक्रिया जारी है इसे भी यह पेंटिंग इंगित करती है।
स्पेन के कलाकार बीत्रिज रूइबल ने वीडियो तैयार किया है जिसकी अवधि 25 मिनट 28 सेकेंड है। कलाकार ने बिंबों के समूह का कुछ इस प्रकार संयोजन किया है जो प्रकृति के बारे में हमें सोचने को विवश करती है। वीडियो में रात्रि वेला में पेड़ो के हवा से हिलते रहने का दृश्य चलता रहता है। पेड़ों के एक हिस्से पर रौशनी रहती है। अंधकार व प्रकाश तथा हवा का आपसी खेल चलता रहता है। विकास की अंधी दौड़ में पेड़ो की कितनी ही प्रजातियां विलुप्त हो गईं हैं या उसके कगार पर है। पेड़ों की कई किस्मों के धरती से खत्म होते चले जाने की चिंता को प्रकट करने की कोशिश इस वीडियो द्वारा की गई है। शहरों के बोटेनिकल गार्डन में हम भले दुर्लभ पेड़ों की नुमाइश कर लें लेकिन हमारे आसपास के गलियों से लेकर पृथ्वी तक पर उसे बचाने का सरोकार रहना चाहिए। यह वीडियो इस तरह सोचने को प्रेरित करता प्रतीत होता है।
यूरोपीय संघ के अलेकजेंडर पीटरहंसेल के बनाए चित्र का शीर्षक है ‘रेजोनेंस स्पेस पोट्रेट-1 (वैश्विक तापमान डाटा 2018)’। इस चित्र को अल्युमिनयम के कंपोजिट शिट पर प्रिंट किया गया है। चित्र को रेजोनेंस स्पेस में कैप्चर किया गया। 2022 में बने इस चित्र का आकार 80X80X3 सेमी है। अलेकजेंडर पीटरहंसेल ने विभिन्न अनुशासनों को समेटते हुए वैज्ञानिक व कलात्मक दृष्टिकोण से मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन के सवाल को पकड़ने की कोशिश करी है। इस प्रक्रिया में कई कलात्मक व वैज्ञानिक कालकृतियां सामने आती हैं। यह कलाकृति वैश्विक तापमान से संबंधित इकट्ठा किए गए आंकड़ों को सौंदर्यात्मक स्वरूप प्रदान करती है। यह जानते हुए की बिना ढेर सारे आंकड़ों के पर्यावरण परिवर्तन को उसकी सम्पूर्णता में समझना मुश्किल होगा। यह कलाकृति आंकड़ों के विशाल भंडार से निकली समझ को कलात्मक आकार देने की कोशिश करता है। हमारे अराजक व्यवहार से उपजे जलवायु संकट के जटिल मसले को यह कलाकृति समझने की कोशिश करती है। सफेद कैनवास पर काले भंवर को चित्रित किया गया है। यह भंवर दूर तक जाता दिखाई पड़ता है। जो हमें एक अंतहीन दुष्चक्र की ओर ले जाता मालूम पड़ता है। जिस शोध परियोजना से यह कलाकृति निकली है वह यूरोपियन कमीशन तथा बर्लिन के यूनिवर्सटी ऑफ आर्ट्स द्वारा संयुक्त रूप से 2018 से 2022 के दरम्यान चलाया गया था।
सिंगापुर के चित्रकार रॉबर्ट झाओ रेनहुल की रचना का शीर्षक है ‘एक शहर का परिदृश्य ‘- इसे अभिलेखीय डिजिटल फोटोग्राफिक पर प्रिंट किया गया है।आकार है 240×58 सेमी। 2023 में बनी यह कलाकृति ब्लैक एंड व्हाइट में बनाई गई है। यह चित्र एक काल्पनिक परिदृश्य को प्रदर्शित करता है, जहां छोटे भवनों, गगनचुंबी इमारतों के साथ जंगल, पेड़, पौधे, पशु और आसमान में उड़ते पक्षी कैनवास पर एक साथ चित्रित किए गए हैं। चित्र सिंगापुर के वनस्पति और जीव जगत को तो चित्रित करती है साथ ही साथ-साथ भविष्य की इमारतों और वास्तुकला को भी दर्शाती है। भविष्य के शहर मानवों और मानवेतर प्रजातियों के लिए एक साझा आवास भी हो सकता है इस संभावना को यह चित्र सामने रखता है। रिहाइश की जगहों को तरह-तरह के पेड़ों से आच्छादित दिखाया गया है। भवन सरंचनाओं को प्राकृतिक वातावरण के अनुकूल बनाने की चेष्टा की गई है। चित्र बताता है आने वाला समय प्रकृति और वनस्पतियों के साथ सहकार का जीवन होगा। काश आने वाला समय इसी दिशा में आगे बढ़े।
भारत की अर्पणा कौर की ऑयल पेंटिंग है ‘प्रेम की ऊँचाई’। 84X244 सेमी के इस चित्र में दो रिवाल्वर एक दूसरे की ओर तनी है और बीच में कमल के फूल की आकृति अंकित हैं।आधा हिस्सा पीले तो शेष भाग काले रंग से चित्रित है। बीच में ‘लव हर्ट्स’, ‘लव हर्ट्स’ रोमन लिपि में लिखा है। कमल के शांत फूलों का रिवाल्वर की भयभीत करने वाली आकृति के भीतर होना कई संकेत छुपाए हुए है। अर्पणा कौर ने कमल की आकृति को सफेद, गेरुआ, घूसर और नीले रंग से पेंट किया है। यह चित्र दुनिया में हिंसा की घटनाओं का खतरनाक स्तर तक बढ़ते चले जाने को अभिव्यक्त किया है। बंदूक, कमल और ‘लव हर्ट्स’ जैसे लफ्ज़ प्रेम की तलाश और उसकी स्वाभाविक चाहत के राह में मौजूद हिंसा की चुनौतियों और उसकी जटिलताओं की सच्चाई से हमें रूबरू कराती है।
जी-20 देशों की यह प्रदर्शनी लंबी चली। बिहार के कलाप्रेमियों के लिए यह दुर्लभ मौका था जब एक साथ इतने मुल्कों की कलाकृतियां उन्हें देखने का मौका मिला। ‘टुगेदर वी आर्ट’ इस बात का द्योतक है कि भले हमारी भाषा, भूगोल, संस्कृति और पृष्ठभूमि भिन्न-भिन्न है परंतु हमारी बुनियादी चिंताएं और सरोकार एक से है। पर्यावरण और मनुष्य का बिगड़ता आपसी संतुलन, पक्षियों और पेड़ों को बचाने की चिंता, संस्कृति और स्मृति को बचाने की जद्दोजहद, औपनिवेशिक लूट, शोषण और मुनाफे के हवस, विज्ञान और तकनीक का शासक वर्गों के लिए इस्तेमाल सरीखे मुद्दों को कलाकारों ने अपनी कृतियों का विषय बनाया है। तीसरी दुनिया के विकासशील देशों के कलाकारों ने नए और पुराने औपनिवेशिक शोषण को आधार बनाया है वहीं मेट्रोपॉलिटन केंद्रों से आने वाले कलाकारों में पर्यावरण का विनाश, असंगत जीवन शैली, भागदौड़ से इतर शांत प्रकृति की चाहत जैसे मसले अधिक प्रमुखता से उभर कर आए ।
नौजवान से लेकर शताब्दी वर्ष पूरा करने वाले कलाकार इस प्रदर्शनी का हिस्सा बने। दर्शकों के लिए सबसे खास बात यह रही कि कला में जितने भी किस्म के विविध व व्यापक प्रयोग हो रहे हैं वे सब इसका हिस्सा थे। चित्रकला, मूर्ति कला, प्रिंट, इंस्टॉलेशन, वीडियो चैनल सरीखे कला के माध्यमों का उपयोग अपनी चिंता प्रकट करने के लिए उपयोग में लाए गए थे।कलाकृतियां हाल के वर्षों में बनी नजर आ रही थीं। अधिकांश कृतियों का सृजन का वर्ष 2022-23 था। यानी कलाकारों ने विशेष तौर से इस प्रदर्शनी के लिए अपनी कृति को बनाया था।
कला मर्मज्ञों के लिए यह प्रदर्शनी रंगों, रेखाओं की जादुई दुनिया से तो वाकिफ कराती ही है साथ ही हमें कला सामग्रियों के विस्तृत संसार से भी परिचित कराती है। विज्ञान और तकनीक में हो रहे नए – नए प्रयोगों का इस्तेमाल भी कलाकृतियों के निर्माण में देखने को मिला। कला- तकनीक के नवीन प्रयोग कला के क्षैतिज का निरंतर विस्तार कर रहे हैं। कलाकृतियों की बनावट, संरचना, रंगों के विभिन्न आयाम इन सबको कलाप्रेमियों को जानने का मौका मिला।
चित्रों और मूर्तियों की सार्वभौम भाषा दूसरे सभी बंधनों व बाधाओं से परे जाकर एक दूसरे से संवाद कायम करती है। इसलिए कला की दुनिया देश व राष्ट्र की भागौलिक सीमाएं बेमानी हो जाती हैं। जी-20 देशों की यह प्रदर्शनी इस बात को प्रमाणित करती नजर आई।
-अनीश अंकुर
कला समीक्षक, पटना