चित्रों से चकित करती बिहार की महिला लोककलाकार

  • बिहार म्यूजियम में महिला चित्रकारों की प्रदर्शनी

पिछले दिनों मार्च महीने में महिला दिवस के अवसर पर बिहार की महिला कलाकारों की एक समूह प्रदर्शनी आयोजित की गयी।जिसमें समकालीन और लोक कलाकरों की कृतियों को एक साथ प्रदर्शित किया गया। हालाँकि यहाँ समकालीन और लोक कलाकारों की कृतियों को अलग-अलग दीर्घा कक्ष में प्रदर्शित किया गया था। इस प्रदर्शनी को क्यूरेट किया था बिहार म्यूजियम के अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने। लोक कलाओं के विकास में अशोक सिन्हा के योगदान से हम सभी परिचित हैं। बहरहाल इस प्रदर्शनी के लोककला खंड के कलाकारों एवं उनकी कलाकृतियों पर प्रस्तुत है अनीश अंकुर की यह समीक्षात्मक रिपोर्ट। अनीश अंकुर मूलतः संस्कृतिकर्मी हैं, किन्तु अपनी राजनैतिक व सामाजिक अभिव्यक्ति के लिए भी जाने-पहचाने जाते हैं। उनके नियमित लेखन में राजनीति से लेकर समाज, कला, नाटक और इतिहास के लिए भी भरपूर गुंजाइश रहती है। बिहार के मौजूदा कला लेखन की बात करें तो जो थोड़े से नाम इस विधा में सक्रिय हैं उनमें से एक महत्वपूर्ण नाम अनीश अंकुर हैं। उनकी सदैव कोशिश रहती है बिहार से बाहर के कला जगत को बिहार की कला गतिविधियों से रूबरू कराते रहा जाए। आलेखन डॉट इन के नियमित पाठक अनीश अंकुर के लेख और समीक्षा यहाँ पढ़ते रहे हैं, इतना ही नहीं कलाकार मित्रों द्वारा उनके लेखन की सराहना भी होती रही है। …

Anish Ankur

पटना स्थित बिहार संग्रहालय में पिछले 11 मार्च से 9 अप्रैल तक यानी एक महीने तक राज्य की महिला कलाकारों के क्लाकृतियों की प्रदर्शनी लगाई गई। कुल 42 महिला कलाकारों का एक साथ इतनी बड़ी प्रदर्शनी राज्य में पहली बार आयोजित हुयी। इन बयालीस कलाकारों में समकालीन महिला कलाक़ारों  के साथ-साथ लोक कलाकार भी शामिल थीं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोजित इस प्रदर्शनी के 42 प्रतिभागियों में 16 महिला लोक कलाकार थीं । लोककला को देखें  तो मधुबनी  पेंटिंग के अलावा  टिकुली, सिक्की कला, सुजनी, पेपरमैसी, मंजूषा, एप्लिक -कशीदाकारी आदि में बनी कृतियाँ  इसका हिस्सा रहीं । बिहार म्यूजियम की यह प्रदर्शनी पटनावासियों  के लिए एक दुर्लभ अवसर था। बिहार की प्रमुख लोककला माध्यमों का एक छतरी में आना एक परिघटना की तरह है।

पद्मश्री दुलारी देवी संग अनीश अंकुर

मधुबनी चित्रकला में पद्मश्री से सम्मानित सात महिला कलाकारों में से चार के सृजनात्मक जीवन से परिचित होने का अवसर एक साथ मिलना कोई सामान्य बात न थी। जगदम्बा देवी, बउआ देवी, दुलारी देवी तथा गोदावरी दत्ता की कलाकृतियों को एक साथ अवलोकन एवं उनका तुलनात्मक अध्ययन का लाभ कला समीक्षकों के साथ साथ आम कला प्रेमियों को भी मिला। यहाँ हम एक- एक कर उनकी चर्चा करने जा रहे हैं।

पद्मश्री जगदम्बा देवी :

जगदम्बा देवी मिथिला चित्रकला की पहली पद्मश्री से सम्मानित कलाकार रही हैं। उनके 1972 से 1975 के मध्य की प्रदर्शित कृतियों में चटख गुलाबी रंग का उपयोग विस्मित करने वाला रहा। जगदम्बा देवी ने मिथिला चित्रकला के पारंपरिक विषय वस्तु में प्राकृतिक रंगों के विशिष्ट संयोजन से दर्शक पर अद्भुत प्रभाव डाला है। मिथिला के कोहबर, विवाह आदि का वर्णन कैसे चित्रों के माध्यम से किया जाता है इसकी बानगी यहाँ देखने को मिली। छोटे या मध्यम कैनवास पर इतने सारे पारम्परिक कार्यव्यापारों को चित्रित करना स्पेस के सृजनशील संयोजन का कमाल है । मधुबनी  चित्रकला के ये चित्र अपने  सामाजिक अतीत की स्मृतियों से गुजरने जैसा भी रहा।

सबसे ख़ास बात कि कैनवास पर मौजूद सभी वस्तुओं, पशु-पक्षियों तथा गतिविधियों में सामंजस्य व संतुलन देखने को मिलता है। जगदम्बा देवी के यहां गुलाबी रंग प्रमुखता से उभर कर आता है।

‘अर्द्धनारीश्वर’,  ‘ राम, सीता लक्ष्मण’, ‘डोली’, श्रवण कुमार, ‘नागकन्या’, ‘ग़ज़लक्ष्मी’, ‘सरस्वती’ आदि  प्रमुख चित्र हैं। इन चित्रों में हाथी, पक्षी, सांप, मछली, पेड़, पत्ते आदि लगभग सब चित्रों में रहा करते हैं। जिस कथा या आख्यान का वर्णन चित्र के माध्यम से किया जाता है, उसके पात्र या उससे जुड़ी जानी-पहचानी छवि जगदम्बा देवी के चित्र के हिस्सा हैं। रंगों के लिहाज से देखें तो गुलाबी के अलावा काला, लाल या लोककथा से जुड़े पात्र के अनुकूल रंग को शामिल किया गया है। जगदम्बा देवी काले रंग का बेहद खूबसूरती से इस्तेमाल करती हैं। गुलाबी रंग के मध्य काला रंग संयोजन में उभर कर आता है। चित्र किस आख्यान को सामने ला रही है उसे देखने के लिए चित्र को गौर से देखना पड़ता है उसके सभी ब्योरों को मिलाकर चित्र अपनी परिणति को प्राप्त करता है।

पद्मश्री बउआ देवी :

मधुबनी चित्रकला में दूसरे महत्वपूर्ण नाम है बउआ देवी। बउआ देवी के चार-पांच काम इस प्रदर्शनी का हिस्सा थे। बउआ देवी के प्रमुख कामों में ‘एलीफैंट’, ‘काली’, ‘शेर’, ‘मत्स्य अवतार’, ‘कालिया  दमन’ यहाँ प्रदर्शित थे। बउआ देवी के चित्र ज्यादातर किसी विषय को केंद्रित किये रहता है, उनकी खास शैली में।(जैसे ‘हाथी’ व ‘शेर’ शीर्षक चित्र) जगदम्बा देवी के मुकाबले बड़े आकार के हुआ करते हैं। हाथी व शेर  का आकार अपेक्षाकृत बड़ा हुआ करता है।

यहाँ गुलाबी के बदले लाल रंग अधिक प्रमुख है। लाल और काले रंग के समन्वय से बउआ  देवी ने जिस विषय को लेकर चित्र बनाया है उसके इम्प्रेशन पर अधिक ध्यान दिया गया है। जैसे ‘हाथी’ चित्र में हाथी  पेड़ पौधों के मध्य हिलता -डुलता मस्तमौला सा टहल रहा हो। ठीक ऐसे ही ‘मत्स्य अवतार’  में  निचले  आधे भाग में मछली जबकि ऊपर के आधे हिस्से में स्त्री की आकृति है। रंगों का संयोजन व संरचना  इस कदर खूबसूरत है कि देखने वाले की आँख ठिठक सी जाती है। बउआ देवी सभी रंग चटख  इस्तेमाल करती हैं। बउआ देवी के चित्रों में सबसे अलग से ध्यान खींचने वाला चित्र है ‘ कालिया  दमन’ इस मिथकीय चित्र में सर्प की घुमावदार आकृति का इतना सृजनात्मक संयोजन किया है जो बाकी चित्रों से इसे अलग बनाता है।

बउआ देवी के चित्रों की विशेषता है मानो उनके चित्र गति में होना, चित्रकार ने मानो चित्र को कुछ  करने के दरम्यान बनाया हो। जैसे शेर दहाड़ते हुए, हाथी पेड़ की टहनी से खेलते हुए, काली अपना रौद्र  रूप दिखाते हुए, कालिया सर्प का दमन किये जाते हुए।

पद्मश्री गोदावरी दत्ता :

गोदावरी दत्ता अपने चित्रों में चटख रंगों का उपयोग नहीं करती हैं। उनके चित्रों के रंग हल्के व सुनहरे हुआ करते हैं। जो आँखों को सुकुन पहुंचाते हैं ‘नवगुंजन’, ‘केवट उद्धार’, ‘ बोधी ट्री’, ‘कोहबर’ आदि  उनके चित्र प्रमुख हैं । गोदावरी दत्ता के चित्र ठहरी हुई अवस्था को पकड़ने का प्रयास करती है।

इनके चित्रों में एक नैरेटिव को भी सामने लाने की कोशिश रहा करती है। इस कारण कैनवास पर ढेर  सारी गतिविधियां, कई कार्य व्यापार एक साथ देखे जा सकते हैं । इनके यहां बॉर्डर खींचा जाता है यानी  चित्र के किनारे-किनारे,  मुख्य चित्र से मिलते-जुलते, किसी मुख्य किरदार को बनाया जाता है। कभी हाथी, कभी पत्ता या पक्षी  बनाये जाते हैं । किनारे – किनारे उस ऑब्जेक्ट को बनाकर फिर मुख्य बात पर आया जाता है ‘केवट उद्धार’ जैसे वनवास के दौरान में राम, लक्ष्मण, सीता तीनों को खड़ा दिखाया गया है। नदी किनारे केवट राम के पैर धोता दिखता है। इस चित्र में बॉर्डर पत्तों का बना हुआ है। वहीं  ‘कोहबर’ में पक्षी का बॉर्डर है जबकि ‘नवजीवन’ में बॉर्डर बतख का है।

गोदावरी दत्ता के चित्रों में ‘नवजीवन’, व ‘बोधी ट्री ‘ विशेष रूप से आकर्षक हैं । इन चित्रों का संयोजन थोड़ा जटिल प्रतीत होता है । गोदावरी दत्ता हल्के गुलाबी, हल्का काला व सफ़ेद रंग का अधिक उपयोग करती  हैं।

पद्मश्री दुलारी देवी :

पद्मश्री से सम्मानित दुलारी देवी मधुबनी पेंटिंग के प्रमुख नामों में से एक हैं । उनके चित्रों में ‘कमला पूजा’, ‘ मछली रास’,  ठहरने को मज़बूर करते हैं। दुलारी देवी के चित्रों में रंगों में एक गहराई दिखती  है।  चटख व गहरे रंगों के परिणामस्वरूप कैनवास पर हल्का डार्कनेस सा रहता है। दुलारी की शैली बाकी मिथिला चित्रकारों से थोड़ा भिन्न है। वे गाढ़े रंगों का उपयोग करती हैं। अमूमन उनके बार्डर भी गहरे  रंगों से बनाये गए हुए होते हैं। दुलारी गहरे ब्लू रंग का भी इस्तेमाल करती हैं। जैसे कमला पूजा में  सरोवर का ब्लू पानी या ‘ मछली रास’ में ब्लू पृष्ठभूमि बेहद आकर्षित करती है। ‘मछली रास’  एकदम अलग सा चित्र है जिसमे मछलियां चारों ओर से एक दूसरे के साथ अठखेलियाँ करती प्रतीत होती हैं । मछलियों का रंग ब्लू कैनवास पर बेहद सावधानी से चुना गया है।

‘रामसीता  विवाह ‘ पेंटिंग में दुलारी ने कैनवास को मानो विवाह के उत्सव व श्रृंगार में तब्दील कर दिया है। रंगों के माध्यम से मानो जीवन में मौजूद उमंग को अभिव्यक्त करती प्रतीत होती है। दुलारी की चित्रकला में एक अनूठापन है जो उन्हें बाकी मिथिला चित्रकारों से अलग व भिन्न बनाता है।

मोती कर्ण :

मिथिला चित्रकला में मोती कर्ण प्रमुख नाम हैं। वे और उनके पति सत्यनारायण कर्ण मधुबनी पेंटिंग के सुपरिचित नाम हैं। विदित हो कि मोतीकर्ण मिथिला चित्रकला की महत्वपूर्ण हस्ताक्षर मानी जाने वाली कर्पूरी देवी की पुत्री हैं।

मोतीकर्ण की कलाकृतियों में रंगों का बरताव, उनका संयोजन, स्पेस व संरचना सबकुछ उन्हें बाकी मिथिला चित्रकारों से एकदम से अलग करता है। ‘ट्री ऑफ लाइफ’, ‘अर्धनारीश्वर’, ‘लायन फैमिली’,  ‘कामधेनु’, शिव पार्वती (मत्स्य रूप),’कृष्णा ऑन कदम्ब ट्री’  उन प्रमुख चित्रों में हैं, जिन्हें इस प्रदर्शनी का हिस्सा बनाया गया है। मोतीकर्ण मिथिला के बाकी चित्रकारों की तरह किनारों का निर्माण नहीं करती हैं, जो बाकी मिथिला चित्रकारों की पहचान रही हैं। वे ज्यादातर गाढ़े रंगों का उपयोग करती हैं। हल्के रंग उनके यहां कम प्रयुक्त हुए हैं। चित्र काफी घने व डेन्स से नजर आते हैं। मोतीकर्ण अपने चित्रों में बहुत सारे कार्य व्यापार दर्शाने से बचती हैं।अधिकाँशतः उनके चित्र मुख्य थीम के इर्द-गिर्द चककर काटते हैं।

इन महिला कलाक़ारों के अलावा मधुबनी पेंटिंग में अन्य कलाकर में लीला देवी प्रमुख हैं। लीला देवी ने भी बाकी चित्रकारों की तरह ग्रामीण जीवन की पुरानी छवियों को लाने का प्रयास किया है। पेड़, पौधे और पत्तों से अच्छादित पर्यावरण जिसमें महिलाएं, ओखली, सहेलियाँ और उसके कूटे जाने की प्रक्रिया आदि मौजूद हैं। उनका कैनवास इतनी अधिक गतिविधियों को समेटे हुए है कि उसमें खाली जगह  मुश्किल से नजर आती है। यदि लीला देवी के रंगों को देखें तो वे अपेक्षाकृत हल्के रंग उपयोग में लाती हैं।

मधुबनी पेंटिंग की दुनिया में शहर नदारद है, यहाँ  ग्रामीण परिवेश की खुशबु बिखरी रहतीं है। मनुष्य  और प्रकृति के मध्य सामंजस्य यहाँ दिखता है। पेड़, पौधे, पशु -पक्षी सभी घरेलू से दिखते हैं। हाथी अपनी विशालता से डराता नहीं अपितु मित्रवत दिखता है। सब कुछ संतुलन में, सामंजस्य में एक दूसरे के प्रति मित्रता भाव रखते हुए नजर आते हैं । इन महिला कलाकारों ने एक आदर्शीकृत दुनिया को चित्रित किया होता है।

यदि मधुबनी पेंटिंग में इस्तेमाल में लाये रंगों को देखें तो ऐसा प्रतीत होता है कि ये रंग हमारे पुराने समय के रंग हैं, बीते हुए वक़्त को अभिव्यक्त करने वाले रंग। चटख रंग हो या हल्का सबसे ऐसा अहसास देखने वाले को होता है कि हम अपने पुरखों के समय के रंग से, बीते हुए वक़्त की स्मृतियों जैसे रंग से गुजर रहे हों।

लोककला वाली गैलरी  में मधुबनी चित्रों के अलावा बिहार की अन्य कला विधाओं जैसे सिक्की आर्ट, पेपरमेसी, टिकुली, सुजनी तथा मंजूषा कला, कशीदाकारी आदि माध्यमों में बनाई गई कृतियां भी प्रदर्शित थीं।

पेपर मैसी :

पेपरमैसी में कुछ महिला कलाक़ारों ने पारम्परिक विषयों से थोड़ा हटकर भी अपनी कृतियों का विषय बनाया। जैसे कामिनी कौशल ने साक्षरता अभियान, महिला सशक्तीकरण, पर्यावरण सरीखे विषयों पर  अपनी कृतियाँ बनाई। ‘ग्राम पंचायत’, ‘पर्यावरण  सुरक्षा’, ‘ साक्षरता अभियान’ तथा  ‘मिथिला विवाह’ आदि कलाकृतियों में मधुबनी की तरह ढेर सारे कार्य व्यापारों को समेटा गया है । यहां भी रंगों का इस्तेमाल गाढ़ा तथा चटख रहा करता है। कामनी कौशल पेपरमैसी माध्यम में विषय के स्तर पर प्रयोगशील हैं, किन्तु अभिव्यक्ति में वही पारम्परिक मिथिला शैली अपनाती हैं।

पेपरमैसी में बनी कृतियों में ऑब्जेक्ट उभरा हुआ रहता है। मूर्तिकला में जिसे लौ रिलीफ कहा जाता है । जैसे स्त्री, जानवर, पेड़, पक्षी, झोपडी इन सबकी एक फिजिकल क्वालिटी यहाँ हुआ करती है। अतः विषय में समानता रहते हुए भी पेपरमेसी में बनी कृतियों को देखने का चाक्षुष अनुभव भिन्न रहा करता है।

पद्मश्री सुभद्रा देवी का पेपरमेसी शिल्प

पेपरमैसी में पद्मश्री सुभद्रादेवी का काम काफी अच्छे ढंग से डिस्प्ले भी किया गया है। सुभद्रा देवी के पेपरमेसी की कृतियों  में ‘ हट’, ‘ वीमेन विद जांता’, ‘डोली’, ‘मदर एंड बेबी ऑइलिंग ‘, ‘ काऊ विद काफ’, ‘एल्फेंट’ ठहरने को विवश करता है। सुभद्रा देवी अपने आसपास की जानी पहचानी छवियों को अपनी कृतियों का आधार बनाती हैं। सुभद्रा देवी पेपरमेसी शिल्पों में सफ़ेद रंग का खूब इस्तेमाल करती हैं जो पेपरमेसी के दुसरे कलाकारों में थोड़ा काम दिखाई पड़ता है।

प्रभा देवी व संजू देवी के सुजनी के काम, सिक्की कला में मुन्नी देवी का ‘ गांधी जी’ पर केंद्रित काम आकर्षित करता है तथा ठहर कर देखने को विवश करता है। सिक्की कला में मुन्नी देवी के छोटे -छोटे अन्य काम जैसे ‘बुद्धा’, ‘पॉट ‘, ‘हाथी’ महत्वपूर्ण हैं। सिक्की कला में सुधीरा देवी का काम भी प्रदर्शनी का हिस्सा है।

अंजना कुमारी के पीतल के बर्तन पर की गई चित्रकारी हो या टिकुली कला में किये गए काम सभी बिहार की समृद्ध लोककला से हमारा परिचय कराती है।

टिकुली  कला के विषय अमूमन वही पुराने व पारम्परिक ही हुआ करते हैं परन्तु काली पृष्ठभूमि में सुनहरे रंग से बनी चमकदार कलाकृति देखने लायक हुआ करती हैं। ‘कृष्ण रासलीला विद राधा एंड गोपी ऑन द बैंक ऑफ यमुना’, ‘ विजय यात्रा ऑफ कृष्ण एंड बलराम इन मथुरा’, ‘ द किंग वेंट आउट टू सी हिसाब स्टेट’, ‘लाइफ जर्नी और लॉर्ड राम’  देखने लायक हैं।

भागलपुर क्षेत्र में प्रसिद्ध मंजूषा कला का लोक नाट्य ‘सती बिहूला’ या बिहूला विषहरी से गहरा रिश्ता है। अन्य महिला लोक कलाक़ारों  में अंजना देवी, सुधीरा देवी भी प्रमुख हैं।

सोलह महिला लोक कलाक़ारों की बिहार म्यूजियम की यह प्रदर्शनी इस बात को स्पष्ट कर देती है कि बिहार के चित्रकला के मानचित्र में महिला लोक चित्रकारों ने मज़बूती से अपना स्थान बनाया है।अब तो प्रदेश के लोक कला की यह खुशबू देश के बाहर भी फैल रही है।

लोक कला के अलग -अलग माध्यमों  में महिलाओं ने  मुख्यतः ग्रामीण जनजीवन को ही चित्रित किया है।  जिस तरह से उनका बाहर की दुनिया से सम्पर्क बढ़ रहा है, नए लोग व नई दुनिया उनके अनुभवों  में शामिल हो रहे है वह उनकी कला के विषय वस्तु के साथ-साथ उनकी शैली पर भी प्रभाव डालेगा।

लगभग एक महीने तक चली प्रदर्शनी और उसे देखने वालों की बड़ी संख्या इस बात का सूचक है कि बिहार के कला जगत के साथ-साथ आम नागरिकों का अपने राज्य में मौजूद इस विशाल  खजाने  में दिलचस्पी तेज़ी से बढ़ती जा रही है। उम्मीद है आगे आने वाले दिनों में हम इसका और अधिक विस्तार देखेंगे। बिहार म्यूजियम द्वारा आयोजित अब तक की कला प्रदर्शनियों में यह प्रदर्शनी सबसे अनूठा रहा है, इतना तो निःसंदेह कहा जा सकता है।

-अनीश अंकुर

-आवरण चित्र कामिनी कौशल की कलाकृति 

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