क्ले टू ब्यूटी : ब्रह्मदेव पंडित के सेरामिक शिल्प-2

भारत के सुप्रसिद्ध सिरामिक कलाकार ब्रह्देव पंडित के कलाकृतियों की प्रदर्शनी ‘बिहार म्युजियम’ में एक दिसंबर से दस जनवरी तक आयोजित की गई। ‘क्ले टू ब्यूटी’ नाम से चली इस प्रदर्शनी ने पटना के कलाप्रेमियों को कुछ नया देखने का अहसास कराया। बिहार म्युजियम में चित्र, मूर्ति व छापाकला की कई प्रदर्शनियां देख चुके लोगों के लिए ‘क्ले टू ब्यूटी’ ने एक नये चाक्षुष अनुभव से गुजरने का अवसर प्रदान किया। इस प्रदर्शनी और ब्रह्मदेव पंडित की कला यात्रा पर प्रस्तुत है कला समीक्षक अनीश अंकुर के विस्तृत आलेख का दूसरा भाग। पहले भाग में जहाँ ब्रह्मदेव पंडित की निजी जीवन गाथा से आप अवगत हुए। इस दूसरे भाग में विस्तार से सिरामिक तकनीक की बारीकियों से परिचित कराने की कोशिश कर रहे हैं अनीश अंकुर ….

Anish Ankur

 

ब्रह्मदेव पंडित की कला :

मिट्टी के बने बर्तनों की चमक तांबा, लोहा, स्टेनलेस स्टील आदि के बर्तनों के बाद भी कम नहीं हुई है। भारत में मिट्टी के बर्तन सिंधुघाटी सभ्यता के दौर से ही मिलने लगते हैं। प्रागैतिहासिक काल में भी पाॅलिश किये हुए और रंगीन बर्तन लोकप्रिय थे। ऐतिहासिक काल में चमकते हुए चीनी मिट्टी के बर्तनों को देखा जा सकता है। कालांतर में मिट्टी के बर्तनों को सजाने की विभिन्न पद्धतियों की खोज की गई। छोटी-छोटी लाल मूर्तियों को आज भी देखा जा सकता है।

चीन में मिट्टी की ऐसी कलाकृतियां बीस हजार ई.पू पहले तो चेक गणराज्य में उनतीस हजार से पच्चीस हजार ई.पू से मिलने लगता है। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सभ्यता के दौर से चाक के प्रमाण भी मिलने लगते हैं। ब्रह्मदेव पंडित की पुनरावलोकन प्रदर्शनी ‘क्ले टू ब्यूटी’ से गुजरते हुए प्रेक्षक पहली नजर में ही मोहाविष्ट सा हो जाता है। वह बर्तनों के आकार, चमक, टेक्सचर और रंगों के वैभव में खो सा जाता है। उनकी कृतियों में रंगों का स्वाभाविक उभार सबको आकर्षित करता है।

कला समीक्षक अनीश अंकुर एवं पद्मश्री ब्रह्मदेव पंडित

‘क्ले टू ब्यूटी’ प्रदर्शनी से ब्रह्मदेव पंडित के काम की शैली और डिजायन के अनूठेपन को महसूस किया जा सकता है। ब्रह्मदेव पंडित की खासियत यह है कि उनकी कृतियों में उनके मनोभाव, सोच, अवधारणा, सौंदर्यबोघ सब शामिल रहा करते हैं। उनके हाथ मिट्टी में जादुई प्रभाव पैदा कर देते हैं। इस प्रदर्शनी का नाम भी है ‘क्ले टू ब्यूटी’ ।

कई किस्म की देशी पद्धतियों की सहायता से ब्रह्मदेव पंडित रंगों से ऐसा प्रभाव कायम करते हैं कि देखने वाला दांतों तले उंगली दबा लेता है। मिट्टी जितने रूप धारण कर सकती है, उससे जितने किस्म की आकृति बन सकती है ब्रह्मदेव पंडित अपने हाथों से गढ़ते हैं। अमूमन उनकी कृतियों में लाल व फिरोजी रंग के कई शेड्स दिखाई पड़ते हैं। लाल कत्थई में और फिरोजी नीले में स्वाभाविक रूप से परिवर्तित होता दिखाई पड़ता है।

ब्रह्मदेव पंडित इन परिणामों को प्राप्त करने के लिए आग में एक निश्चित तापमान पर मिट्टी को पकाते हैं। मिट्टी के सतह पर किस किस्म की बनावट, टेक्सचर प्राप्त करना है इसे आग का तापमान निर्धारित करता है। इस समझ को एक लंबे अनुभव के बाद ब्रह्मदेव पंडित ने हासिल किया है। मिट्टी, आग, खनिज और रंग को इच्छित परिणाम देने वाला निर्णायक तत्व है ब्रह्मदेव पंडित का जादुई हाथ। हाथों का इतना अधिक इस्तेमाल हुआ कि बकौल ब्रह्मदेव पंडित ‘‘मिट्टी में मेरे हाथो ने इस कदर रगड़ खायी है कि मेरे नाखून तक पूरी तरह घिस चुके हैं।’’

उनकी कृतियों में बेहद मामूली चीजों का उपयोग दिखता है मसलन केश संवारने वाली कंघी। कंघी का उपयोग सतह के टेक्सचर को बदल देता है। ब्रह्मदेव पंडित कंघी से खुरदुरा प्रभाव पैदा करते है।

मिट्टी का आग के संपर्क में आना:

मिट्टी से कलाकृतियां बनाना जटिल और श्रमसाध्य काम है। इसके लिए काफी धैर्य की जरूरत होती है क्योंकि एक कलाकृति कई चरणों से गुजरने के बाद पूरी होती है। मिट्टी को मोड़ना, उसे सीधा करना, चिकना बनाना और फिर उसे आग पर पकाने की प्रक्रिया से गुजरना होता है। कास्टिंग, काॅयलिंग, स्लैब वर्क आदि।

आग के संपर्क में आकर मिट्टी अपना रंग बदलने लगती है। और तब तापमान के उतार-चढ़ाव से मिट्टी के चरित्र में काफी तब्दीली आती है और अपने मनोनुकूल रंग को भी पाने में भी सहूलियत होती है।

सबसे पहले थान फायर मिट्टी में फेल्शफार पाउडर/ सिलिका पाउडर को वजन के हिसाब से मिलाया जाता है। इसे स्टोन वेयर मिट्टी कहते हैं। इससे पॉट, थाली, कटोरी और स्कल्पचर बनाए जाते हैं। इनके सूखने के बाद इन्हें 900 डिग्री सेल्सियस पर पकाया जाता है। इसे बिस्क कहते हैं। इसके बाद ग्लेजिंग की जाती है। मिट्टी में चमक के विभिन्न प्रभाव पैदा करने के लिए काॅपर सल्फेट, लोहा, मैग्नेसियम, सोडा नमक, आदि का उपयोग किया जाता है।

फिर इसे 1280 डिग्री तापमान पर 12 घंटे तक पकाया जाता है। इसके बाद तैयार कलाकृति पत्थर की तरह सख्त होने के साथ-साथ कांच की तरह चमकने लगती है।अर्थनवेयर पाॅट (मिट्टी के बर्तन) को 1000 से 1100 सेंटीग्रेड के तापमान पर रखा जाता है। इस तापमान पर ग्लेज तो पिघल जाता है पर मिट्टी का अंदरूनी चरित्र नहीं बदलता, यथावत रहता है।

मिट्टी को अलग-अलग प्रभाव के लिए विभिन्न तापमानों पर रखा जाता है। जैसे स्टोनवेयर क्ले फायरिंग का तापमान 1250 -1285 डिग्री सेंटीग्रेड तक रखा जाता है। क्लेबाॅडी फायरिंग 1200-1230 डिग्री सेंटीग्रेड, पोर्सिलेन क्लेबाॅडी फायरिंग 1280-1300 डिग्री सेंटीग्रेड तथा स्लिप कास्टिंग क्लेबाॅडी फायरिंग को 1240-1260 डिग्री सेंटीग्रेड तक रखा जाता है।

जब मिट्टी के बर्तनों को भट्टी में डाला जाता है तब उसमें पानी की नमी रहा करती है। आग की गर्मी पाकर मिट्टी अपनी नरमी छोड़ सख्त होने लगती है। जैसे-जैसे मिट्टी में आग की गर्मी जाती है पानी गायब होने लगता है। जैसा कि हम जानते हैं कि समुद्री सतह पर पानी सौ डिग्री सेंटीग्रेड पर भाप बन जाता है, ठीक उसी प्रकार जब मिट्टी के बर्तन को इस तापमान पर गर्म किया जाता है तब उसके अंदर से पानी भाप बन उड़ जाता है। अब मिट्टी धीरे-धीरे सख्त होने लगता है।

मिट्टी को आग में धीरे-धीरे पकाया जाता है। विभिन्न प्रकार की मिट्टी अलग-अलग तापमान पर पका करती है। पके हुए बर्तन में दरार न पड़े इसका विशेष ख्याल रखना पड़ता है। पकने के पश्चात मिट्टी इस कदर सख्त हो जाती है कि अब उसपर हवा, पानी तो क्या ! समय का भी प्रभाव नहीं पड़ता।

ब्रह्मदेव पंडित ने कई किस्म के आकारों में बर्तन बनाए हैं वे आकार सिर्फ भारतीय नहीं बल्कि एशियाई आकार नजर आते हैं। जिसमें संकरा आधार, चौड़ा उदर और आधार के अनुकूल ही संकरा ढक्कन या मुॅंह को देखा जा सकता है। बर्तन के आकार, अनुपात और रंग के संयोजन के पीछे सौंदर्यात्मक दृष्टि को महसूसा जा सकता है। कई बार बर्तन का रंग उसके आकार के अनुकूल भी प्रतीत होता है। आकार के हिसाब से रंग का चुनाव न होने पर उसकी खूबसूरती समाप्त हो जा सकती है। ऐसा प्रतीत होता है कि ब्रह्मदेव पंडित को तीखे रंगों के बजाए साॅफ्ट किस्म के कलर अधिक पसंद आते हैं।

ब्रह्मदेव पंडित ने मामूली चीजों में सुंदरता को तलाशा है। उनके कलात्मक विकास में उनके द्वारा किए गए प्रयोगों की महत्वपूर्ण भूमिका है। पुनरावलोकन प्रदर्शनी में उनकी विकास यात्रा से गुजरते हुए ऐसा लगता है कि ज्यों-ज्यों उन्हें अपनी शिल्प पर महारत हासिल होती गयी वे रोजमर्रा के जीवन में निहित मोहक तत्वों की ओर खिंचते चले गए।

बाॅनसाई करते-करते अपनी अलग शैली विकसित की। बर्तन व गमले की कलाकृतियां और इंस्टाॅलेशन दैनिंदिन वस्तुओं और सामग्रियों से सृजित होती हैं। ये वस्तुएं ही भारत के विशिष्ट लैंडस्केप का निर्माण करते हैं। अपने आस-पास सामान्य सी दिखने वाली चीजों को ब्रह्मदेव पंडित अपनी हाथों से किस प्रकार कलात्मक स्वरूप प्रदान करते हैं ‘क्ले टू ब्यूटी’ प्रदर्शनी इस बात का गवाह है।

जारी ………

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