क्ले टू ब्यूटी : ब्रह्मदेव पंडित के सेरामिक शिल्प-3

भारत के सुप्रसिद्ध सिरामिक कलाकार ब्रह्देव पंडित के कलाकृतियों की प्रदर्शनी ‘बिहार म्युजियम’ में एक दिसंबर से दस जनवरी तक आयोजित की गई। ‘क्ले टू ब्यूटी’ नाम से चली इस प्रदर्शनी ने पटना के कलाप्रेमियों को कुछ नया देखने का अहसास कराया। बिहार म्युजियम में चित्र, मूर्ति व छापाकला की कई प्रदर्शनियां देख चुके लोगों के लिए ‘क्ले टू ब्यूटी’ ने एक नये चाक्षुष अनुभव से गुजरने का अवसर प्रदान किया। इस प्रदर्शनी और ब्रह्मदेव पंडित की कला यात्रा पर प्रस्तुत है कला समीक्षक अनीश अंकुर का विस्तृत आलेख । पहले भाग में जहाँ ब्रह्मदेव पंडित की निजी जीवन गाथा से आप अवगत हुए। वहीँ दूसरे भाग में विस्तार से सिरामिक तकनीक की बारीकियों से परिचित कराया गया। इस पोस्ट में पढ़िए इस श्रृंखला का अंतिम भाग ……..

Anish Ankur

ब्रह्मदेव पंडित ने नवादा जिले के नदी किनारे से लेकर मुंबई के समुद्र किनारे तक एक लंबी दूरी तय की है। उनके भूगोल में आया यह परिवर्तन उनके रचनात्मक यात्रा में भी परिलक्षित है। समुद्र की लहरें, मछलियों की अठखेलियां, नदी की गांभीर्य यह सब कुछ उनकी कृतियों से झांकता है।

समय गुजरने के साथ-साथ ब्रह्मदेव पंडित मिट्टी के विभिन्न किस्मों के साथ काम करने के अभ्यस्त होते चले गए। जैसे टेराकोटा, स्टोनवेयर, चीनी मिट्टी के साथ-साथ अलग-अलग पद्धतियों से बनी कृतियां प्रदर्शनी का हिस्सा हैं। मिट्टी के साथ ब्रह्मदेव पंडित कुछ इस प्रकार का रागात्मक संबंध कायम हो गया है मिट्टी की प्रकृति को हाथों से महसूस करते हुए ही उन्हें इस बात का अहसास हो जाता है कि इसे किस प्रकार का आकार व रंग इसे प्रदान करना है। विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं से परिचित होने के कारण वे मनचाहा आकार, शक्ल, सांचा, रूप और डीलडौल देने के लिए किस पद्धति को अपनाना है इसका अंदाजा लगा लेते हैं।

‘क्ले टू ब्यूटी’ में ब्रह्मदेव पंडित के विभिन्न विधियों से किये गए कामों को प्रदर्शित किया गया है। फायरिंग की कई तकनीक वाली कृतियों को शामिल किया गया है। जैसे सोडा फायरिंग, साॅल्ट एंड सोडा फायरिंग, सैगर एंड स्मोक फायरिंग, गैस फायरिंग, रिडक्शन फायरिंग, अनाग्मा फायरिंग, वुड फायरिंग, इलेक्ट्रिकल फायरिंग, डीजल फायरिंग, राकू फायरिंग आदि।

सोडा फायरिंग पद्धति से काॅपर रेड में बर्तन बने हैं। गैस भट्ठी में रेगुलर कलर द्वारा कंटेंपररी लुक पैदा करने की कोशिश की गयी है। काॅपर रेड ग्लेज के लिए कई बर्तनों में रिडक्शन फायरिंग का प्रयोग मिलता है। सर्पीली और धारीदार प्रभाव वाली कलाकृति जापानी परंपरा से प्रेरित राकू फायरिंग तकनीक से बनी है। राकू स्मोक फायरिंग पद्धति से रेसिस्ट ग्लेज द्वारा बर्तन (पाॅट) पर सर्पीली धारी प्रेक्षक को नया चाक्षुष अनुभव कराती है।

कुछ बर्तनों में साल्ट सोडा फायरिंग, कोबाल्ड ऑक्साइड वाश कर भी ग्लेज पैदा किया गया है। स्टोनवेयर में ब्लैक के उपर काॅपर रिडक्शन या फिर पेपर स्मोक द्वारा किया गया काम हो, उनके काम में हमेशा एक परफेक्शन नजर आता है। स्टोनवेयर पाॅट्स,ऑक्सीडेशन फायरिंग में डबल ग्लेज पैदा किया गया है। फिरोजी और मिटैलिक गोल्ड ऑक्साइड के दुहरे ग्लेज वाले बर्तन बेहद खूबसूरत बन पड़े हैं। चीनी मिट्टी के बर्तनों पर फास्ट फायरिंग द्वारा सेलीडाॅल ग्लेज में यूरोपीय प्रभाव देखा जा सकता है।

‘क्रिसटलाइन ग्लेज’ को पाने के लिए बाकी चीजों के अतिरिक्त खनिज- लोहा, तांबा, मैंगनीज, कोबाल्ट आदि की सही मिलावट भी आवश्यक होता है। इन खनिजों और ऑक्साइड की मात्रा विभिन्न तापमान पर अलग-अलग रंग हासिल करती है। लंबे अनुभव के बाद ब्रह्मदेव पंडित ने खनिज व रंग के आपसी संबंध को समझ लिया है।

‘क्रिसटलाइन ग्लेज’ के अतिरिक्त कई प्रकार के ग्लेज होते हैं जिसे ब्रह्मदेव पंडित दक्षता के साथ सेरामिक्स पर उतारने में सक्षम है। उदाहरणस्वरूप टरक्वाइज ग्लेज (फिरोजी), ब्लू एंड येलो, काॅपर रेड मिटैलिक मैट ग्लेज, सोडा फायरिंग ब्लू स्लिप, सेलाडोन ग्लेज, टेनमाकू ग्लेज, मैट पिंक एंड ग्रे ग्लेज, ब्लैक ग्लेज, पर्पल ग्लेज, चून ब्लू ग्लेज, ऐश ग्रे ग्रीन ग्लेज, शाइनी व्हाइट ग्लेज, शाइनी ट्रांसपेरेंट क्लियर ग्लेज, डार्क ग्रीन ग्लेज, पैट क्रीम ग्लेज, मैट व्हाइट ग्लेज, ब्लू ग्रीन ग्लेज आदि। इन सब ग्लेज के लिए विभिन्न मात्राओं में खनिज की मिलावट की जाती है। इतने विविध रंगों का प्रयोग ब्रह्मदेव पंडित द्वारा अपने कामों में किया गया है।

उनके बनाए बर्तनों में हरा, फिरोजी, गहरा पीला, भूरा आदि रंग बार-बार आता है। एक ही रंग के इतने प्रकार हो सकते हैं इसे हम उनके बनाए बर्तनों को देख सकते हैं। लाल रंग के इतने शेड्स नजर आते हैं कि देखने वाला मोहित हो जाता है। उनकी कृतियां आंखों को न सिर्फ सुकून पैदा करते हैं बल्कि जीवन के प्रति मोह भी पैदा करती हैं।

रंगों को उभारने के दौरान एक ही रंग के कई-कई आयाम प्रकट होने लगते हैं। सूक्ष्म किस्म के मनोभावों को पकड़ने का नवाचार उनके काम दर्शाते हैं। बर्तन की सतह की बनावट व संरचना के साथ-साथ उनके चमक देेखने से मानों जिंदगी ठहरी हुई प्रतीत होती है। पानी का बूंद मानो कहीं अटका हुआ हो। सतह पर तरह-तरह की रेखाओं के साथ-साथ, मुंबई शहर की विशेषताओं का प्रभाव उनके बना कामों पर देखा जा सकता है।

रंगोें की चमक के लिए के लिए मिट्टी,आग,फायरिंग पद्धति के साथ-साथ खनिज का चयन भी निर्णायक महत्व रखता है। ब्रह्देव पंडित द्वारा उपयोग में लाए गए ऐेसे खनिजों में प्रमुख है लाइमस्टोन, बोरियम कार्बोनेट, लिथियम कार्बोनेट, पोटैशियम कार्बोनेट, कैलिशयम फास्फेट, जिरकोलियम सिलिकेट, फील्डस्पार, काओलिन, सिलिका, डोलोमाइट, टाल्क, बोरक्स, फ्रिट, सोडा ऐश, वुड ऐश, सोडा ऐश, मैंग्निज डाआईटी ऑक्साइड, टिटैनियम डाई ऑक्साइड, क्राॅम ऑक्साइड, काॅपर ऑक्साइड, कोबाल्ट ऑक्साइड, आयरन ऑक्साइड, निकेल ऑक्साइड, टिन ऑक्साइड, जिंक ऑक्साइड आदि।

बर्तन की चमक को, रोगन को, मिट्टी की बनावट व मौलिकता को बरकरार रखते हुए चमक पैदा की गई है। अन्यथा कई बार चमक बढ़ाने से मिट्टी अपनी खासियत या टेक्सचर को खो देती है। कई किस्म के आकार वाले बर्तन, उन बर्तनों पर रेखाएं व धब्बे, सतह की चिकनाई देखते रहने पर मानो नजर फिसलती प्रतीत होती है।

प्रदर्शनी में ब्रह्मदेव पंडित द्वारा अपनाये गए तरीकों से पता चलता है कि उन्होंने मिट्टी के बर्तन बनाने के आधुनिक, उन्नत और अर्द्ध औद्योगिक नजरिया सीखा। कैसे मिट्टी के बर्तनों का बड़े पैमाने उत्पादन हो। पर साथ ही उन बर्तनों में हाथ का स्पर्श भी कायम रहे और उसकी उष्मा को महसूस किया जा सके।

ब्रह्मदेव पंडित ने पाॅटरी के यूरोप के बड़े कलाकारों से भी काफी कुछ सीखा है। उनके कामों पर इंग्लैंड के विश्वप्रसिद्ध सिरामिक कलाकार के इमानएल कूपर और बर्नाड लीच के कामों का असर देखा जा सकता है।

भारत में ब्रह्मदेव पंडित ने भट्टी में भी अनेक प्रयोग किये। बिजली से लेकर गैस तक की भट्ठी का उपयोग किया है। वैसी भट्टियां जापान में भी पाई जाती हैं। जापान के कलाकार विश्व में सबसे बेहतरीन पाटरीमेकरों में शुमार किये जाते हैं। जापान में मिट्टी के बर्तन बनाने की संस्कृति की पुरानी और उच्च स्तर की है।अपने प्रयोग के दौरान जिस किस्म की भट्टियां उन्होंने बनाई थीं वैसी भट्ठी जापान में भी देखकर वे आश्वस्त हुए कि वे सही रास्ते पर जा रहे हैं।

जापान में जिस ढ़ंग की उन्नत किस्म की चमक नयी तकनीकों के माध्यम से हासिल की गई। ब्रह्मदेव पंडित ने स्थानीय सामग्रियों के प्रयोग से ही मनचाहा परिणाम पाया। जापान की शास्त्रीय चमक टेनमोकू या खाकी कहा जाता है वैसा उन्होंने तापमान के उतार-चढ़ाव द्वारा भारत में ही हासिल कर लिया। ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाला ब्रह्देव पंडित कैसे आधुनिक सौंदर्यबोध के साथ उपस्थित होता है उसे ‘क्ले टू ब्यूटी’ प्रदर्शनी बताती है।

तमाम विडंबनाओ, त्रासदियों और हादसों का बंधन न रहे तो जीवन कितना खूबसूरत हो सकता है इस बात को ब्रह्मदेव पंडित के रिट्रोस्पेटिव देखते हुए महसूसा जा सकता है। इस उब पैदा करने वाली मशीनी दुनिया में बेहद मामूली लगने वाली चीजों में कितनी खूबसूरती है ‘क्ले टू ब्यूटी’ दर्शकों को इसका संजीदगी से अहसास कराती है।

अपने प्रारंभिक जीवन में ब्रह्मदेव पंडित के कलात्मक जीवन की शुरूआत अकाल के मारे लोगों की सिंचाई के लिए पाइप बनाने से हुई थी। पर मुम्बई जाने के बाद निरंतर प्रशिक्षण से अपने हुनर और कौशल को मांजते चले गए। अपनी कला में उनकी प्रवीणता की मांग अब संपन्न घरों में अधिक होने लगी। दैनिंदिन जीवन में काम आने वाले बर्तनों से लेकर बोनसाई, इकेबाना एंव अन्य कृतियों की सजावट की वस्तु के रूप में अधिक इस्तेमाल होने लगे। ब्रह्मदेव पंडित की कला यात्रा दिलचस्प है। गांव में मिट्टी के मामूली बर्तन बनाने से लेकर अंतराष्ट्रीय स्तर के सिरामिक आर्टिस्ट तक का उनका सफर उनके परिश्रम, प्रतिबद्धता का परिणाम है साथ ही उनके राज्य के लोगों के लिए कौतूहल का भी विषय है।

बहरहाल ब्रह्मदेव पंडित की मोहक कलाकृतियों वाली इस इस पुनरावलोकन प्रदर्शनी, ‘क्ले टू ब्यूटी’, देखते हुए ऐसा लगता है कि दर्शक मिट्टी और जीवन के अंदर छिपे सौंदर्य का साक्षात्कार कर रहा हो।

. अनीश अंकुर

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