चरखा, लाठी, चश्मा, धोती और बंदर तक सिमटे गांधी

मौजूदा कला लेखन की बात करें तो जो थोड़े से नाम इस विधा में नियमित तौर पर सक्रिय हैं उनमें से एक महत्वपूर्ण नाम हैं अनीश अंकुर। उनकी सदैव कोशिश रहती है बिहार से बाहर के कला जगत को बिहार की कला गतिविधियों से रूबरू कराते रहा जाए। पुनश्च, पटना और रजा फाउंडेशन, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में पटना के नृत्य कला मंदिर के ‘बहुद्देशीय सांस्कृतिक परिसर’ में महात्मा गांधी पर केंद्रित प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था। 27 से 31 अक्तुबर तक चली इस प्रदर्शनी में, समकालीन वरिष्ठ व युवा कलाकारों की कृतियां, शामिल थीं। आलेखन डॉट इन के विशेष अनुरोध पर प्रस्तुत है इस वैचारिक प्रदर्शनी पर अनीश अंकुर की समीक्षात्मक रपट का दूसरा और अंतिम भाग ….

अनीश अंकुर

युवा कलाकारों की गांधी पर केंद्रित पांच दिवसीय प्रदर्शनी : दूसरा और अंतिम भाग

 

धनंजय कुमार के शीर्षक रहित कृति एक्रीलिक में एक नए आइडिया के साथ बनाई गई है। चित्र में धनंजय कुमार ने कैनवास के टेक्सचर को बहुत खूबसूरती से तैयार किया है। कैनवास से विभिन्न रंगों की सहायता से कपड़े के रेशे का अहसास होता है। कैनवास के निचले आधे हिस्से में एक चौकोर तालाबनुमा आकृति के चारों ओर टाई और सूट पहने विभिन्न देशों के राष्ट्रध्यक्ष सिर झुकाए खड़े हैं। बीच में एक दीया जल रहा है। यह दृश्य हाल में भारत में संपन्न हुए जी 20 देशों की बैठक की याद दिलाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रमुख विकसित देशों के सामने विकासशील देशों के प्रतिनिधि नतमस्तक से हैं। सामने की ओर के खड़े सदस्य के सिर ऊपर की ओर तने हैं जबकि बाकी लोगों के झुके हुए। अंतराष्ट्रीय राजनीति में आसमान संबंधों को दर्शाता यह चित्र अपनी अवधारणा के साथ-साथ रंग परियोजना के कारण अलग सा नजर आता है। वैसे जिस तरह का अलग टेक्सचर रंगों के माध्यम से तैयार किया है उसमें और जी -20 वाले दृश्य में थोड़ा और संतुलन बन जाता तो यह कृति और महत्वपूर्ण बन सकती थी। बहरहाल धनंजय कुमार ने कुछ अलग और कुछ नया रचने की दिशा में एक अच्छा प्रयास किया है।

‘हमारे गांधी ‘ कार्यक्रम के एक प्रमुख सूत्रधार उमेश शर्मा ने छोटा चित्र बनाया है। 16/12 इंच में बने इस चित्र को वाटर कलर माध्यम में बनाया गया है। चित्र में हरे पौधों के मध्य महिलाएं बैठी हैं। रंग-बिरंगी साड़ी पहने हाथों में चूड़ी और माथे पर बिंदी लगाए इन महिलाओं का समूह हरी पृष्ठभूमि वाले पौधों के बीच बैठी हैं। उनकी पीठ की ओर गांधी सफेद धोती पहने तथा हाथ में लाठी लिए दिख रहे हैं। उमेश शर्मा ने गांधी के शरीर के खुले भाग को नीले रंग से पेंट किया है। सामने की तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देख रहीं महिलाओं के पीछे महात्मा गांधी का बल है यह बात यह चित्र कहने के कोशिश कर रहा है। महिलाओं को घर से बाहर निकाल उन्हें सार्वजनिक जीवन में सक्रिय करने के लिए गांधी के योगदान से सभी परिचित हैं। आजादी के आंदोलन में बड़े पैमाने पर महिलाओं की भागीदारी इसका सबूत है। उमेश शर्मा इसी बात को आगे बढ़ाते हुए महिलाओं की मुक्ति में गांधी की भूमिका को सामने रखना चाहते हैं। संभवतः इन्हीं वजहों से इस कृति का नाम रखा गया है ‘ लिबरेशन ‘।

प्रसून चंद्र पोद्दार ने मिक्स मीडिया में बनाए अपने चित्र का नाम दिया है ‘ काले कपड़े ‘। इस चित्र में एक घनी बस्ती वाले शहर का टॉप व्यू लिया गया है। दूर तक दिखती बस्ती है साथ में मंदिर का गुबंदनुमा उपरी भाग है जिसे पीले रंग से पेंट किया गया है। इसी पृष्ठभूमि में एक घर की रस्सी पर काले रंग के कपड़े खुले आकाश में सूखने के लिए रखे गए हैं। इस पूरे दृश्य के ठीक बगल में एक दस रुपए का नोट है जिसपर गांधी जी की छवि अंकित है। इस रुपए को क्लिप के माध्यम से दोनों छोरों को पकड़ा गया है। कपड़ा और दस रुपया द्वारा चित्र में त्रिआयामी प्रभाव पैदा किया गया है। इस चित्र का आकार 34/ 18 सेमी है। प्रसून चंद्र पोद्दार ने 8X8 सेमी का गांधी का एक पोट्रेट जैसा भी बनाया है । कत्थई रंग का उपयोग के साथ साथ इस चित्र में भी एक थ्री डायमेंशनल इफेक्ट पैदा किया गया है।

भोला पंडित की टेराकोटा में बनी कृति का नाम ‘साउंड ‘ है। एक व्यक्ति का माथे के बल उल्टा है जबकि उसकी देह का उपरी हिस्सा स्पीकरनुमा है। भोला पंडित ने कुछ व्यक्त करने की कोशिश की है जो भले अस्पष्ट हो पर एक अलग किस्म का चाक्षुष प्रभाव इसमें है।

अर्चना कुमारी के एक्रीलिक में बने 36X48 के बनी कृति का नाम रखा गया है ‘गुलिस्तां’। चित्र के ब्लू पृष्ठभूमि पर हल्के लाल रंग के फूलों को चित्रित किया गया है जबकि आधे हिस्से में गांधी की चलते हुए एक प्रचलित छवि को बनाया गया है। गांधी के हाथ में कागज़ है। गांधी वाला हिस्सा हल्के पीले रंग से बनाया गया है।

उत्पल अभिषेक ने कैनवास के लिए एक्रीलिक के साथ साथ इंक का उपयोग किया है। शीर्षक है ” फ्रैजाइल फैब्रिक ऑफ इंडिया ” । कैनवास की कत्थई पृष्ठभूमि पर उपरी भाग में पीले रंग से हिंदुस्तान का मानचित्र बनाया गया है। निचले हिस्से में गांधी के चर्खा का रेखांकन काले से किया गया है। इन दोनों को सफेद रंग के सूत के धागों से इस प्रकार जोड़ा गया है मानों एक दूसरे के अविभाज्य हिस्सा हों। गांधी के भारत में चर्खे और सूत का क्या महत्व है यह सभी जानते हैं। उत्पल ने गांधी, भारत, चरखा और सूत को एक दूसरे का समानार्थी बनाकर देखने की कोशिश की है। ऐसा प्रतीत होता है की चरखे से काटे गए सूत ने हिंदुस्तान को बांध सा दिया है। गांधी के ग्राम स्वराज के विचार को उत्पल अभिषेक ने इस चित्र में बखूबी पकड़ने का प्रयास किया है।

तन्मय आनंद के मिक्स मीडिया में बनाए गए काम का शीर्षक है ‘सर्वधर्म समभाव’। तन्मय आनंद ने हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई धर्मों के प्रतीकों को लेते हुए गांधी के मुख से निकले अंतिम शब्द ‘हे राम’ से जोड़ा गया है। लकड़ी की अंडाकार आकृति के चारों ओर ओम, क्रॉस , अर्द्ध चांद आदि को था ‘ हे राम ‘ बीच में रखा है। भूरे रंग की अंडाकार आकृति को तांबई रंग के पतले तारों से जगह – जगह बांधा गया। कृति में तारों का हल्का उलझा-उलझा सा दिखना सर्व धर्म सद्भाव के रास्ते की बाधाओं की ओर जैसे इशारा कर रहा हो।

अक्षय कुमार की कृति का नाम है ‘पाथ ऑफ ट्रुथ’। 36/48 में एक्रीलिक से बनाई गई इस कृति में सच के रास्ते पर चलने की दुश्वारियों को चित्रित किया है। चित्र में गांधी काले बैकग्राउंड में पीले रंग में बैठे दिखाए गए हैं। काला बैकग्राउंड पृथ्वी के ग्लोब का एक हिस्सा है। इस काले हिस्से से गांधी उस तरफ देख रहे हैं जिधर भारत नजर आता है। उधर देखते हुए एक छोर से दूसरे छोर तक काली कील गाड़ी हुई दिखती है। सच के सफर के कठिनाई भरे रास्तों का अहसास चित्रकार को है। इन नुकीले कीलों को देखते हुए किसान विरोधी तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चलाए गए अहिंसक संघर्ष में मोदी सरकार द्वारा लोहे के कीलों की याद आती है।

रंजीता कुमारी जलरंग में 5X5 आकार के छोटे चित्र बनाए हैं। चित्र में ग्राम्य जीवन के दैनिंदिन उपयोग में लाने वाली वैसी वस्तुओं को चित्रित किया है जिन पर सामान्यतः हमारी नजर में जाती। जैसे मिट्टी का चूल्हा, लोहे की कड़ाही आदि। हमारे आसपास मौजूद रहने वाली इन सामग्रियों के भरोसे से उस तबके का जीवन चलता है जो हमारे नजरों से ओझल रहता है। इन चीजों का इस्तेमाल भी समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों द्वारा, गांधी के भाषा में अंतिम आदमी, किया जाता है। ऐसे लोग जिनके प्रति माध्यम वर्ग में उपेक्षा और उदासीनता का भाव रहा करता है। रंजीता कुमारी ने वाटर कलर में इन सामग्रियों के बहाने उस समाजिक समूह की ओर इशारा करने की कोशिश की है। इन चित्रों को देखने से एक किस्म की उदासी का भाव देखने वाले के मन में आता है। रंजीता कुमारी ने अपनी कृति का शीर्षक ठीक ही रखा है “सोल ऑफ द इग्नोर्ड”। जिन लोगों को उपेक्षित किया जाता है उनकी आत्मास्वरूप जो चीजें हैं उसपर नजर डाली गई है।

वसंत कुमार ने भी अधिकांश चित्रकारों की तरह कैनवास पर एक्रीलिक का ही इस्तेमाल किया है। 18X24 आकार की इस कृति का नाम है फूट प्रिंट( पैशन एंड पेन) । इस चित्र में वसंत कुमार ने कैनवास को सबसे पहले नीले रंग से पेंट किया है उसके बाद लाल रंग से दो पैरों की छाप कैनवास के बीचोबीच अंकित किया है। पैर की छाप देखने से यह अहसास होता है कि यह किसी बुजुर्ग व्यक्ति की है, महात्मा गांधी के पैरों से मिलती -जुलती। पैरों के तलवों में वसंत ने एक रंगों के सृजनात्मक प्रयोग से एक खुरदुरा आभास भरा है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि गांधी के इन पैरों में जज्बा तो है पर इसने काफी दुख झेला है, झंझावात सहे हैं मानो एक पुरा युग जुड़ा हो। तलवों को बनाने में चित्रकार ने धैर्य व बारीकी से काम किया है। यह चित्र सादा और साफ है। अपने संदेश को स्पष्टता से प्रेषित करती है। इस चित्र का रंग संयोजन आकर्षित करता है और अपने विजुअल प्रभाव के कारण भी अलग से पहचाना जाने वाला है।

रूपा रानी ने मिक्स मीडिया में काम किया है। 18X24 में एक्रीलिक में किए गए काम का उनका शीर्षक है “पार्टीशन”। रूपा रानी ने भारत के तकलीफदेह विभाजन को दर्शाने के लिए 1947 के आसपास के अखबारों की कतरनों का उपयोग किया है। इंडियन एक्सप्रेस, पाकिस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया, मंगल प्रभात और उर्दू अखबारों में भारत की स्वतंत्रता संबंधी हेडिंग वाली कतरनों को कैनवास पर अंकित किया है। साथ में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा गांधी के तस्वीर वाले पांच सौ रुपए के नोट को भी रखा गया है। ये सारी चीजें रूपा रानी ने हिंदुस्तान के नक्शे के साथ साथ रखा है। लेकिन इस चित्र का सबसे प्रभावी हिस्सा बन पड़ा है खून के तीन बड़े -बड़े धब्बों का होना। ये धब्बे देश के बंटवारे में हुई हिंसा और खूंरेजी की याद दिलाती है जिसने भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे बड़े विस्थापन को जन्म दिया। स्वाधीनता की खुशी तो है पर देश के बंटवारे का दर्द भी है। और यह सब क्यों हुआ क्योंकि हमने गांधी के रास्ते पर चलने के बजाए उसे महज रुपए के निर्जीव छवि में तब्दील कर दिया है। रूपा रानी ने रंगों का चुनाव सावधानी से किया है। कई रंग की पृष्ठभूमि पर लाल रंग थक्कों के मौजूदगी विभाजन की त्रासदी की तीव्रता को बढ़ा देता है।

शृंखला की कृति का टाइटल है ‘सत्य की राह ‘। एक्रीलिक में 39/22 के इस काम में काले रंग के कैनवास पर पैर के तलवों के निशान हैं। कदमों के निशान को हल्का तिरछा सा रखा है। गति का प्रभाव पैदा करने का यह प्रचलित तरीका है। इसके साथ कदमों के छाप नीचे से ऊपर की ओर बढ़ते चले गए हैं। साथ ही कैनवास के दाईं ओर लाल रंग से ‘हे राम’ लिखा गया है। उसके बगल में ब्लू रंग के दो फूल हैं। यह कृति गांधी के रास्ते पर चलने में जिन अंधेरी ताकतों से संघर्ष करना पड़ता है। उसकी ओर इंगित करता है। इस आइडिया, पर प्रदर्शनी में, और भी कई कलाकारों ने काम किया है। पैरों और तलवों के निशान को कई कलाकारों ने अपना विषय बनाया है। वैसे सब का ढंग थोड़ा भिन्न भिन्न सा है।

जयश्री चौरसिया ने यह काम प्लास्टर में किया है और गांधी के एक प्रमुख विचार ‘ अहिंसा परमो धर्मः ‘ को अपनी कृति का नाम दिया है। चौरसिया के 31X28 आकार के इस कृति में एक ऊबड़-खाबड़ रास्ते में ढेर सारे पैरों के निशान को अंकित किया है। सबसे आगे दो तलवों के निशान है जो जाहिर है गांधी के हैं जबकि उनके पीछे कई दूसरे पैरों के छाप हैं लेकिन आकार में थोड़े छोटे हैं। गांधी के साथ चलने वाले जनसमूह को इंगित करती इस कृति में एक ऊर्जा है। इस कृति को गौर से देखने पर यह अनुभव होता है की यदि गांधी की राह पर चलें तो मुश्किल राह को भी सामूहिक होकर पर पाया जा सकता है।

गौरव ने अपनी कृति का नाम ‘ हिंसा’ दिया है। 48X14 में बनी यह कृति आकार में लंबी है। एक्रीलिक में बने इस चित्र में गौरव ने कैनवास के उपरी भाग में गांधी के प्रसिद्ध चश्मे को चित्रित किया है। एक चश्मे पर सत्य जबकि दूसरे पर अहिंसा लिखा हुआ है। चश्मे के अहिंसा वाले हिस्से कुछ ऐसे फूटा हुआ छेद है मानो गोली मारी गई हो। निचले हिस्से में गांधी से जुड़ी कुछ चर्चित सूक्तियों को लिखा गया है जैसे ‘ आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगा ‘, ‘ स्वतंत्रता, पवित्रता और आत्म-सम्मान से जीने के लिए धन की आवश्यकता नहीं ‘,’ जहां प्यार है वहां जीवन है ‘, ‘ व्यक्ति जैसा सोचता है वैसा बन जाता है ‘। गौरव ने अपने संदेश को पहुंचाने के लिए छवियों के साथ-साथ शब्दों का सहारा लिया है। सूक्तियां, फूटा चश्मा और पृष्ठभूमि का काल रंग इस समकालीन हस्तक्षेप करता प्रतीत होता है। गांधी के अहिंसा के सिद्धांतों के साथ कैसे हमारा समाज हिंसक व्यवहार कर रहा है हालांकि उनकी कही बातें दुहराई भले जाती रही है। जबकि गौरव ने अपनी बातों को अभिव्यक्त करने के लिए दो रंगों काले और पीलापन लिए हुए सुनहरे रंग का इस्तेमाल कर चित्र को वर्टिकल रखा है।

रणवीर के ‘ बापू के धागे ‘ शीर्षक चित्र में ‘ गांधी भारत के नक्शे के अंदर अपनी आंखें बंद किए हुए हैं। नक्शे के निचले हिस्से में धागा काटता हुआ चर्खा है जबकि दाईं ओर सफेद कबूतर उड़ता हुआ चित्रित है। नक्शे की बाहरी लाइनें और चरखे के धागे में एक साम्य दिखता है यानी चर्खे के धागे से ही हिंदुस्तान के नक्शे का बाहरी किनारे बनाए गए हैं। कबूतर, चरखा और गांधी की छवि इस प्रदर्शनी में कई कलाकारों का विषय बने हैं। लेकिन विषय समान होते हुए भी सबका नजरिया और ट्रीटमेंट भिन – भिन्न सा है। रणवीर ने कबूतर के सफेद रंग को छोड़ दें तो कैनवास को चर्खे के कत्थई रंग के अनुकूल संयोजित करने के कोशिश की है। चित्र में हर कुछ गति में है चाहे वह चर्खा हो या कबूतर बस गांधी स्थिर हैं उनकी एक आंख बंद है और दूसरी अधखुली सी है। गांधी के चेहरे और चर्खे के मध्य भाग में रंगों की समानता रखी गई है। चित्र में नीचे तो गतिशीलता है पर उपरी भाग में एक ठहराव सा है। ‘बापू के धागे’ को भी एक्रीलिक में बनाया गया है जबकि आकार है 24X30।

मनीष कुमार के ‘गांधी’ चित्र में महात्मा गांधी का क्लोजअप बनाया गया है। इसमें गांधी आंखें बंद किए हुए प्रार्थना में लीन से दिखाई पड़ते हैं। इस तस्वीर में मनीष कुमार ने काफी काम किया है। गांधी के चेहरे की भंगिमा और उसकी मुद्राओं को पकड़ने की कोशिश इस चित्र में दिखती है। कत्थई, ब्लू, पीला और सफेद रंग का उपयोग मनीष कुमार द्वारा किया गया है। एकदम नजदीक से ली गई तस्वीर की तरह यह चित्र नजर आती है। गांधी आंखे बंद किए हुए चिंतनशील मुद्रा में खोए हुए पर अपने में थोड़ा मगन भी नजर आते हैं। गांधी के धड़ से ऊपर के इस चित्र में शरीर रचना और उनके अनुपात पर चित्रकार द्वारा ध्यान दिया गया है। बारीकियों पर भी थोड़ा काम किया गया है। इस चित्र का आकार 36X48 है जबकि कैनवास के लिए एक्रीलिक का चयन किया गया हैं।

सुरुचि कुमारी का ‘गांधी ’ एक्रीलिक में बनाया गया है। 36X48 की इस कृति में एक टूटी दीवार से गाँधी को चलते हुए चित्रित किया गया है। गाॅंधी बायें हाथ में लाठी और दायें हाथ में एक चादरनुमा कोई कपड़ा है। क्षितिज पर बादलों से भरा आकाश है। इस पृष्ठभूमि में गाॅंधी अपनी परिचित मुद्रा में चले आ रहे हैं। इस पूरे दृश्य को चित्र में जर्जर दीवार के पीछे से लिया गया है। सुरुचि ने दीवार के इंटों के रंग, जमीन की मिट्टी और गाॅंधी के देह के रंग का एक तरह का रखा है। गाॅंधी के चेहरे पर पीड़ा का भाव है। चित्र में ऐसा प्रतीत होता है कि गाॅंधी किसी दंगा पीड़ित के ध्वस्त घर की ओर चले जा रहे हैं।

नेहा की मिक्स्ड मीडिया में बनी शीर्षकहीन कृति प्रदर्शनी में शामिल चित्रों में थोड़ी अलग ढ़ंग की है। गाॅंधी जी के तीनों बंदर इस तस्वीर में हैं। हर बंदर के लिए जो कार्य निर्धारित है वह करता प्रतीत नहीं हो रहा है। जैसे आँख दोनों हाथो से बंद करने के बदले एक आँख आंख खुली हुई है, दूसरे बंदर वैसे तो कान बंद करते हुए दिखता है लेकिन आँखों से लगता है कि वह सारी बातें सुन रहा है वहीं मुंह बंद किये हुए बंदर ने मुंह को थोड़ा खाले हुए है। इन बंदरों को एक सीध के बजाए त्रिभुजाकार आकार में बनाया गया है। वहीं बगल में एक छोटी बच्ची का रक्तरंजित फ्राॅक है। इस फ्राॅक से खून रिसता रहता है। पूरे कैनवास को नेहा ने खून के लाल रंग से रंगा है। साथ ही उस पर पंजों के निशान है। लाल कैनवास पर हिंसा, क्रूरता, बलात्कार, सत्य, अहिंसा जैसे शब्द लिखे गए हैं। यह तस्वीर इन पवित्र विचारों के साथ जो हिंसक दुव्र्यवहार किया है भारत में उसकी बानगी पेश करती है। फ्राॅक और बंदरों की मौजूदगी से एक थ्री डायमेंशनल इफेक्ट दिखता है। बंदर की आंख इस चित्र का ध्यान आकृष्ट करने वाला हिस्सा है। बंदर की बोलती आंखें हैरत और दर्द से भरी हुई है। मानो सवालिया निगाह से पूछ रही है कि नन्हीं बच्चियों के साथ यह क्या हो रहा है ? यह चित्र प्रेक्षक को ठहरने पर विवश करती है और देखने वाले को एक भिन्न चाक्षुष अनुभव से गुजारती है।

मुस्कान ने भी मिक्सड मीडिया में ही काम किया है। मुस्कान ने कत्थई पृष्ठभूमि पर सफेद धागों की सहायता से हल को चित्रित किया है। 24/30 इंच के इस कलाकृति में हल को थोड़े तिरछे आकार में वर्टिकल रखा है। धागे से ही गांधी के अंतिम शब्द ‘ हे राम ‘, ‘ हे राम ‘ अंकित किया हुआ है। गांधी के ग्रामीण जीवन से जुड़ाव के लिए हल को प्रतीक बनाया गया है। बिना शीर्षक के यह धागों के काम के आराम विशिष्ट है। कैनवास पर धागों का काम एक श्रमसाध्य है।

मिक्सड मीडिया में एक और काम अर्चना कुमारी का है जिसका शीर्षक ‘ इंडियन डी. एन.ए’ रखा गया है। इस त्रिआयामी कृति का माप 16X13X22 इंच है। लकड़ी और तार की सहायता से एक अमूर्त सी लगने वाले कृति बनाई गई है।

अनिता कुमारी ने पेपर पर मिक्सड मीडिया में ‘ स्त्राइव फॉर द रिवाइवल ऑफ खादी ‘ में दो चित्र बनाए हैं। जैसा कि शीर्षक से जाहिर है चित्र में खादी के लिए चर्खा रखा गया है। एक चित्र में चर्खा स्त्री के आगे है जबकि दूसरे में उसके पीछे और हल्का ऊपर की स्थित है। यदि रंग के लिहाज से दो रंगों सफेद और हल्का काला उपयोग में लाया गया है। कैनवास के बजाए पेपर पर मिक्सड मीडिया के इस काम प्रभाव दूसरों से थोड़ा भिन्न है। कागज़ का टेक्सचर कैनवास से अलग रहने के कारण प्रेक्षक को थोड़ा अलग आस्वाद मिलता है । चित्र का आइडिया प्रचलित है पर मीडियम में अनिता कुमारी ने हल्का प्रयोग किया है। पेपर पर काम के वजह से अनिता के काम कैनवास पर करने वालों से थोड़ा भिन्न है।

हेमंत नायक के एक्रीलिक में किए गए काम का विषय है ” प्राइमरी ऑफ जर्नी” । चित्र में गांधी से जुड़ी जानी पहचानी छवियां चित्रित की गई हैं। गांधी की चश्मे वाली तस्वीर है, घड़ी है, पत्थरों के नीचे जाकर जड़ पकड़े एक पेड़ है। साथ ही गांधी जी के बंदर हैं। लेकिन बंदरों ने अपने एक ही आंख, नाक और कान को बंद किया हुए है। दूसरा खुला हुआ है। एक तरह से यह व्यंग्य करता प्रतीत होता है। 36/48 इंच के इस काम में के रंगों के कई प्रयोग हैं। इस चित्र के हर हिस्से में कोई भावना प्रकट करने की कोशिश की गई है। रंगों से ये पक्ष उभर कर आते हैं।

जितेंद्र मोहन की गांधी पर केंद्रित चित्र में तीनों बंदर आते हैं। जितेंद्र मोहन के दो चित्र हैं। दोनों चित्र एक्रीलिक में बनाए गए हैं ‘ गांधी इन बिहार ‘ और ‘ पीस ‘ । तीनों बंदर ‘ गांधी इन बिहार ‘ में आते हैं। इस चित्र में बापू के तीनों बंदर आंख, कान और मुंह बंद किए हुए हैं। गांधी बंदरों के विपरीत दिशा में जाते हुए चित्रित किए गए हैं। गांधी लाठी लिए हुए चले जा रहे हैं और उनकी चादर हवा में झूल रही है। इस चित्र में गांधी का नीचे में बाईं ओर चर्खा भी है । बिहार की पहचान के लिए गोलघर और ट्रेन के पायदान से बाहर दिखते गांधी की जानी -पहचानी छवि का इंप्रेशन चित्र में है। साथ ही दूसरे धर्मो के प्रतीक चिन्हों का उपयोग सर्व धर्म समभाव किया गया है।

जितेंद्र मोहन की दूसरी कृति में बुद्ध दाईं करवट लेटे हुए निद्रा में है । इस अवस्था में भी उनकी अभय मुद्रा कायम है। जबकि गांधी उनके पास से अपने लाठी लिए गुजर रहे हैं। गांधी का रास्ता उबड़ – खाबड़, आग और कठिनाईयों से भरा है। दुश्वारियों भरे रास्ते के लिए जितेंद्र मोहन ने काले रंग का उपयोग किया है। इस चित्र में भी गांधी के तीनों बंदर मौजूद हैं। बुद्ध के इर्द-गिर्द एक रौशनी से आभा मंडल है जबकि गांधी जिन रास्तों पर चल रहे हैं वहां अंधेरा है, मुश्किलात है परंतु गांधी अविचल पर दृढ़ भाव से चले जा रहे हैं। एक चिड़िया उपर से मानों आकाश से दोनों को देखती नजर आ रही है। यह चित्र बताती है की बुद्ध का युग समाप्त हो गया हो पर लेकिन अहिंसा के रास्ते के पथ-प्रदर्शन हेतु वे गांधी के लिए मौजूद हैं। इन दोनों तस्वीरों में रंगों का लगभग एक जैसा इस्तेमाल है। बुद्ध वाली तस्वीर में कालापन थोड़ा अधिक है।

राहुल पासवान की कृति ‘ गोरा और काला ‘ लोहे और जाली से बनाई गई है। यह कृति प्रदर्शनी में अपनी नई सामग्री के कारण दिलचस्पी का सबब रहा है। 18X34 इंच के गांधी की इस छवि में गांधी के शरीर के धड़ तथा गोलाकार चश्मे के लिए लोहे और तार का जबकि बाकी हिस्सों के लिए जाली का सृजनात्मक उपयोग किया है। लोहे की पतली जाली से राहुल पासवान ने गांधी के जबड़ों, उनके कंधे पर हमेशा रहने वाले चादर को बखूबी गढ़ा है। दर्शकों के लिए यह कौतूहल का विषय रहा कि कैसे हमारे आस-पास रहने वाली इन परिचित सामग्रियों से एक इच्छित छवि गढ़ी जा सकती है । ‘गोरा और काला ‘ में यदि रंगों के हिसाब से देखें तो जाली का रंग पैडेस्ट्रल के गहरे काले रंग के साथ के साथ मिलकर एक नया विजुअल इफेक्ट पैदा करता है।

मुकेश कुमार द्वारा एक्रीलीक में बनाई गई कृति का शीर्षक है ” गांधी मूवमेंट ” । 36X48 में बनी गांधी की चलती हुई भंगिमा को पकड़ा गया है। इसमें गांधी अपने एक डग हल्का आगे बढ़ाए हुए हैं बाएं हाथ में चादर है। बिना लाठी वाली गांधी की इस मुद्रा के चारों ओर मुकेश ने सफेद आभामंडल बनाया है। पूरा कैनवास सफेद रंग से, गांधी जी की धोती, चादर सब सफेद रंग से चित्रित है। सिर्फ उनके बदन के नंगे हिस्से के लिए काले रंग का उपयोग किया गया है। गांधी की यह चलती हुई मुद्रा सजीव बन पड़ी है। प्रसन्न दिख रहे गांधी के इर्द-गिर्द का आध्यामिक प्रभाव सृजित करने की कोशिश की गई है मानों वे कोई दैवीय शक्ति से लैस हों।

मिताली कुमारी के ‘काल चक्र’ को मिक्सड मीडिया में बनाया गया है। 18/32 की कृति चर्खे की अनुकृति है। चर्खे के एक छोर पर काटने वाला सफेद धागा है जबकि दूसरे छोर पर गोलाकार आकृति है। दूसरी ओर गांधी जी के तीन बंदर अपने आंख, कान और मुंह बंद किए अवस्था में अंकित हैं वहीं दूसरी तरफ सामान्य जीवन के कुछ क्रियाकलापों खेलते, मारपीट और रोते बच्चे, स्त्री पुरुष का आपसी खींचतान आदि को चित्रित किया गया है। कत्थई रंग के चर्खे में उजला रेखांकन किया गया है। इसी और गोलाकर आकृति में चक्र बने हुए हैं। मिताली ने इन कार्य व्यापारों के माध्यम से कल के घूमते चक्र को दर्शाना चाहती हैं। गांधी की उपस्थिति को उनके बंदरों, चर्खे और धागे से इंगित किया गया है।

पांच दिनों तक चलने वाले ‘ हमारे गांधी ‘ प्रदर्शनी में अधिकांशतः युवा चित्रकारों व मूर्तिकारों ने भाग लिया। इन कलाकारों ने गांधी को अपने ढंग से चित्रित किया है। पिछले कुछ वर्षों में गांधी भारतीय जन-जीवन के चलने वाले हर विमर्श का हिस्सा बने रहे हैं बल्कि कहा जाए कि गांधी केंद्र में रहे हैं। इन युवा कलाकारों में से ज्यादातर ने गांधी को उनके प्रचलित प्रतीकों के माध्यम से समझने या अभिव्यक्त करने की कोशिश की है। चर्खा, धोती, लाठी, चश्मा खादी उनके तीन बंदर जैसे जाने पहचाने मार्कर अधिकांश चित्रों के हिस्सा रहे। लगभग इन प्रतीकों का बहुत सारे चित्र में दुहराव सा होता रहा। एक ही किस्म के बिंबों और छवियों से प्रेक्षक प्रदर्शनी में साक्षात्कार करता रहता है। सत्य, अहिंसा, असहयोग, सविनय अवज्ञा जैसे अवधारणाओं को नारे के रूप में ग्रहण किया गया प्रतीत होता है। गहरे अर्थ लिए इन बातों के समकालीन समय में क्या मायने हैं या किस किस्म के चुनौतियां झेल रहे हैं, कौन सी अंधेरी शक्तियां गांधी के इन मूल्यों को पृष्ठभूमि में धकेल रही हैं उसकी पहचान कर उसे अपनी चाक्षुष दुनिया में शामिल करने का काम अभी दूर दिखाई पड़ता है। वैसे नए किस्म के कुछ अच्छे प्रयासों को निस्संदेह चिन्हित किया जा सकता है पर उनकी संख्या बहुत कम है।

परंतु गांधी के विचार के विभिन्न आयामों को समझना और फिर इसे अपने कलात्मक स्वरूप में ढालने की राह में अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। गांधी के खिलाफ खड़ी वर्तमान फासिस्ट सत्ता के लिए भी गांधी को पीछे धकेलने आसान नहीं है फलतःं गांधी को एक नखदंतविहीन नायक में तब्दील करने की कोशिश लंबे समय से जारी है। इतिहास में ऐसा हमेशा होता आया है क्रांतिकारी नायकों को उनकी आत्मा से महरूम कर उसे महज एक निर्जीव प्रतीक में बदल दिया जाए। वैचारिक स्तर पर यदि कलाकार भी इन्हीं भ्रमों का शिकार हो जाए तो फिर उसका रचनात्मक रूपांतरण पहले से जाने पहचाने तरीकों में होता रहेगा। कोई नयापन नहीं दिखेगा। गांधी को पेंट करने वाले कलाकार के समक्ष ये चुनौतियां दरपेश होंगी ।

युवा कलाकारों ने इस प्रदर्शनी में कई किस्म के तकनीकी प्रयोग किए, सामग्री के स्तर पर नवाचार किया, माध्यम में बदलाव लाए। यह सब अच्छा रहा पर बुनियादी बात यह थी कि गांधी को हम जिन विजुअल्स में लाना चाहते हैं वे कहीं समाज के वर्चस्वशाली तबकों द्वारा खींचे गए लक्ष्मण रेखा के दायरे के अंदर ही तो नहीं है ? एक चित्रकार, मूर्तिकार को इसे लेकर बेहद सतर्क होना होगा कि क्या हम मुख्यधारा की मीडिया द्वारा प्रचारित इमेजेज में तो नहीं कैद हो जा रहे ? रंगों और रेखाओं की जादुई दुनिया में इस कैद को तोड़ने की असीमित संभावना है। कला महज तकनीकी कौशल ही नहीं बल्कि विचार भी है जो हमारे द्वारा चयनित छवियों से प्रकट होता है। युवा कलाकारों को इस मोर्चे पर अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है। इन्हीं वजहों से गांधी को कैनवास पर लाना कोई आसान काम नहीं। वह और अधिक गंभीरता की मांग करता है।

बहरहाल इन तमाम सीमाओं के बावजूद ‘रजा फाउंडेशन ‘ द्वारा मुहैया कराए गए इस प्लेटफार्म से कला की दुनिया में महात्मा गांधी पर एक सार्थक विमर्श चला। इस विमर्श में युवा कलाकारों ने उत्प्रेरक की भूमिका निभाई।

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