“इथाका” – सपनों और संघर्षों की यात्रा

 

देश की प्रतिष्ठित ललित कला अकादेमी, नई दिल्ली की रबीन्द्र भवन दीर्घा लगभग एक साल तक बंद रहने के बाद इस वर्ष कला प्रदर्शनियों के आयोजन के लिए उपलब्ध हो पाया I हालाँकि इस सवाल का जवाब आज तक नहीं मिल पाया है कि आखिर किन कारणों से दीर्घाओं को इतने लम्बे समय तक बंद रखना पड़ा I बहरहाल  7 से 13 जनवरी 2025 तक के लिए इस दीर्घा में जिन प्रदर्शनियों का आयोजन हुआ, उनमें से एक चर्चित प्रदर्शनी का शीर्षक था “इथाका” I प्रदर्शनी के शीर्षक को व्याख्यायित करते हुए वरिष्ठ कवि/ कला समीक्षक की महत्वपूर्ण टिप्पणी, जो उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट में साझा किया था I वह कुछ यूं है-

“इसका शीर्षक यूनानी कवि कवाफी की Ithaka नाम की कविता से लिया गया है । कविता कहती है कि इथाका तक पहुंचने के रास्ते में यात्री बहुत कुछ देखेगा। संभव है कि जब वह इथाका पहुंचे तो पाये कि इथाका नामक स्थान के पास उसे देने के लिए कुछ नहीं है , तो भी वह अपनी यात्रा मात्र से बहुत संपन्न हो चुका होगा। कुल मिलाकर यह कि किसी भी क्षेत्र ,विषय,और किसी भी प्रसंग से की गयी कोई भी ‘यात्रा ‘ अपने आप में एक प्राप्ति है। यह कविता मेरी प्रिय कविताओं में है।”

यहाँ प्रस्तुत है इस समूह कला प्रदर्शनी पर केन्द्रित रिपोर्ट, आयोजक एवं प्रतिभागी कलाकार कौशलेश कुमार की कलम से – “इथाका” ने भारतीय कला प्रेमियों और रचनाकारों को एक नई दिशा दी। विदित हो कि इस नववर्ष में अकादेमी की दीर्घा में प्रदर्शनियों के आयोजन की शुरुआत का यह पहला आयोजन था I यह प्रदर्शनी रचनात्मकता, संघर्ष, और सपनों का ऐसा उत्सव बनी, जिसने न केवल भारतीय समकालीन कला को नई पहचान दी, बल्कि छोटे शहरों के कलाकारों के लिए राष्ट्रीय मंच पर अपनी जगह बनाने की प्रेरणा भी प्रदान की।

उद्घाटन समारोह: कला के महायज्ञ का आरंभ 

7 जनवरी 2025 को प्रदर्शनी का उद्घाटन कला और साहित्य की प्रतिष्ठित हस्तियों ने संयुक्त रूप से किया। इस अवसर पर प्रसिद्ध कला समीक्षक प्रयाग शुक्ल, विनोद भारद्वाज, ज्योतिष जोशी, सुमन कुमार सिंह, जोनी एमएल, वेद प्रकाश भारद्वाज, चित्रकार अशोक भौमिक, प्रख्यात कलाकार जतिन दास, मनीष पुष्कले के साथ सैकड़ो कला प्रेमियों ने अपनी उपस्थिति से इसे गरिमा प्रदान की। इन सभी ने भारतीय कला की समृद्धि और “इथाका” की महत्ता पर अपने विचार साझा किए।

इसके साथ ही, प्रतिभागी कलाकारों के उत्साहवर्द्धन के लिए कला जगत के जिन शीर्ष हस्तियों ने अपना शुभकामना सन्देश जारी किया, वे हैं -पद्मश्री श्याम शर्मा, सुप्रसिद्ध चित्रकार थोटा वैकुंठम, राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय के महानिदेशक डॉ. संजीव किशोर गौतम, शास्त्रीय संगीतज्ञ पद्मश्री राजेश्वर आचार्य, वाराणसी के डॉ. सुनील विश्वकर्मा, अनिल शर्मा, मनीष खत्री डॉ विजय मिश्रा, श्री प्रकाश शुक्ला, लखनऊ के अखिलेश निगम व भूपेंद्र अस्थाना, और बिहार म्यूजियम के महानिदेशक  अंजनी कुमार सिंह व अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा। इन वरिष्ठों के आशीर्वाद ने इस आयोजन को ऐतिहासिक बना दिया।

कलाकारों की विविधता में एकता का संगम

“इथाका” ने भारत के विभिन्न हिस्सों से आए सात उत्कृष्ट कलाकारों की रचनाओं को प्रदर्शित किया, जो देश की विविधता और सांस्कृतिक गहराई को प्रतिबिंबित करते हैं:

अर्चना सिन्हा (बिहार)
आशीष बोस (नई दिल्ली)
कौशलेश कुमार (असम)
मरेडु रामु (तेलंगाना)
पूर्वी शुक्ला (मध्य प्रदेश)
संदीप किंडो (छत्तीसगढ़)
संदेश खुले (महाराष्ट्र)

इन कलाकारों ने अपनी कला के माध्यम से न केवल दर्शकों को सम्मोहित किया, बल्कि भारतीय समकालीन कला के विभिन्न पहलुओं को गहराई से उजागर भी किया।

वैश्विक पहचान और भविष्य की राह

इस प्रदर्शनी के लिए तैयार विशेष कैटलॉग, जिसमें प्रसिद्ध कला समीक्षक जोनी एमएल का आलेख शामिल है, ने “इथाका” को वैश्विक पहचान दी। इसने भारतीय समकालीन कला को अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करते हुए इसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।

Johny ML and Kaushlesh Kumar

समापन समारोह: कलाकारों के लिए प्रेरणा का दिन

13 जनवरी 2025 को समापन समारोह में डॉ. संजीव किशोर गौतम, महानिदेशक, राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय ने कलाकारों का उत्साहवर्धन किया। उन्होंने कहा, “‘इथाका’ जैसी प्रदर्शनियां भारतीय कला को नई पहचान देती हैं। यह कलाकारों की रचनात्मकता और संघर्ष की एक प्रेरणादायक गाथा है, जो भारतीय समकालीन कला के भविष्य को उज्जवल बनाएगी।”

“इथाका” – सपनों और संघर्षों की कहानी

“इथाका” केवल एक प्रदर्शनी नहीं थी, यह उन सपनों की कहानी थी जो सीमाओं को तोड़ते हुए नई ऊंचाइयों तक पहुंचे। यह उन संघर्षों की यात्रा थी जो कलाकारों की रचनात्मकता को एक नई ऊर्जा देते हैं। “इथाका” ने यह साबित किया कि छोटे शहरों के कलाकार भी अपनी कला के दम पर वैश्विक पहचान बना सकते हैं।

कला प्रेमियों के लिए संदेश

“इथाका” ने कला प्रेमियों और रचनाकारों को यह सिखाया कि भारतीय समकालीन कला में कितनी गहराई और संभावनाएं हैं। यह प्रदर्शनी आने वाले वर्षों में भारतीय कला के क्षेत्र में प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी।

“आइए, कला के इस उत्सव को सलाम करें और भारतीय कला के उज्जवल भविष्य के निर्माण में अपनी भूमिका निभाएं।”

-कौशलेश कुमार 

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