छवियों का असर तो अवचेतन में रहता ही है : ईवा मलहोत्रा

जयन्त सिंह तोमर उन चंद लोगों में से आते हैं, जो कला, साहित्य, रंगमंच से लेकर सांस्कृतिक और सामाजिक दुनिया में रमे रहते हैं I स्वभाव से शालीन जयंत जी निरंतर भ्रमणशील रहते हुए ग्वालियर, भोपाल और दिल्ली से लेकर देश के सुदूर हिस्सों की यात्राएँ भी करते रहते हैं I इतना ही नहीं राजनीति के क्षेत्र में भी उतनी ही सक्रियता से जुटे रहते हैं , जैसा आमतौर पर  देखने को कम ही मिलता है  I अपनी दिल्ली यात्रा के क्रम में पिछले दिनों चित्रकार ईवा मल्होत्रा की एकल प्रदर्शनी पर उनका यह आलेख, उनके फेसबुक पोस्ट से लिया गया है -संपादक
जयन्त सिंह तोमर
” गगन में थाल रवि चंद दीपक बने तारका मंडल जनक मोती।
धूपु मलआनलि पवणु चवरो करे सगल बनराई फुलंत जोती।।’
मेक्सिको की चित्रकार ईवा मल्होत्रा के चित्रों को निहारते हुए गुरु नानकदेव की रची हुई यह पंक्तियां किसी को भी अनायास याद आ सकती हैं। ईवा की चित्र प्रदर्शनी का शुभारंभ 17 मार्च की शाम दिल्ली की त्रिवेणी आर्ट गैलरी में हुआ। प्रदर्शनी महीने के अंत तक लगी रहेगी। ईवा वय की दृष्टि से प्रवीण हैं लेकिन उनका उत्साह देखते ही बनता है। अपनी कला यात्रा व चित्रों के विषय में बताते हुए वे अत्यंत प्रसन्न होती हैं।
अमूमन चित्रकार कैनवास पर तैल रंग या एक्रिलिक रंगों से चित्र बनाते हैं, लेकिन इस प्रदर्शनी में ईवा के चित्रों का माध्यम बिलकुल अलग है। उनके चित्रों में खुरची हुई ज्यामितीय आकृतियां हैं जिन्हें वे तांबे या रुपहले – सुनहले तारों से घेरती हैं। कभी उनके चित्र मिस्र की चित्रात्मक लिपि से प्रेरित दिखाई देंगे तो कभी समरकंद के किसी पुराने गुम्बद की घिसी हुई नीली मीनाकारी से। कुछ भी हो इस प्रक्रिया में समय, श्रम और कल्पनाशीलता की जरूरत होती है।
प्रदर्शनी के क्यूरेटर अर्मांडो गार्सिया ओर्सो और ईवा
ईवा की प्रदर्शनी के क्यूरेटर अर्मांडो गार्सिया ओर्सो अपने नोट में लिखते हैं – ‘ अमूमन हम दिक् – काल यानी टाइम और स्पेस को ही हर जगह देखते हैं। लेकिन ईवा की कलाकृतियों में एक और आयाम है ‘ जीवन।’
हम सब को मालूम है कि मेक्सिको माया सभ्यता के लिए प्रसिद्ध है। अनंत के किसी छोर से उसी की प्रतिध्वनि ईवा के चित्रों में गूंजती है। चित्रों के नामकरण से भी यह स्पष्ट होता है। जैसे – ‘ जिस दिन सूरज जनमा ‘, ‘ समुद्री वन में चांद ‘ , ‘ ब्रह्मांड का वृक्ष ‘ , ‘ धरती माता की रोशनी ‘, ‘ रहस्य की पुकार ‘।
जिस वक्त मैं त्रिवेणी पहुंचा प्रदर्शनी का शुभारंभ होने में देर थी। कांच के दरवाजे के बाहर से ही अंदर मोटे अक्षरों में लगा क्यूरेटर का नोट ध्यान से पढ़ रहा था तभी ईवा ने बड़ी आत्मीयता से प्रदर्शनी को देखने के लिए बुलाया। मेक्सिको की दो- तीन छवियां ही दिमाग में कौंधीं। चित्रकार फ्रीडा काह्लो याद आयीं, सतीश गुजराल के चित्रों में मेक्सिकन प्रभाव याद आया, और याद आये मेक्सिको के भारतप्रेमी कवि – लेखक ओक्टावियो पाज़।
फ्रीडा काह्लो का जिक्र छेड़ने पर ईवा भावुक होती हैं। कुछ इस तरह जैसे निराला की पंक्ति पढ़ रही हों -‘दु:ख ही जीवन की कथा रही’। वे कहती हैं- फ्रीडा के जीवन में कष्ट न होते तो वे अपने चित्रों से दुनिया को और कितना सुंदर बना सकती थीं !
‘आपके कुछ चित्रों में जैक्सन पोलक का प्रभाव दिखता है।’ मेरे यह कहने पर ईवा हंसते हुए कहती हैं – ‘मैं क्या कहूं! कुछ लोगों को गुस्ताव क्लिम्त का भी असर दिखता है। छवियों का असर तो अवचेतन में रहता ही है। उसी में हम सब कुछ नया जोड़ते जाते हैं।’
-जयंत सिंह तोमर 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *