अनीश अंकुर मूलतः संस्कृतिकर्मी हैं, किन्तु अपनी राजनैतिक व सामाजिक अभिव्यक्ति के लिए भी जाने-पहचाने जाते हैं। उनके नियमित लेखन में राजनीति से लेकर समाज, कला, नाटक और इतिहास के लिए भी भरपूर गुंजाइश रहती है। बिहार के मौजूदा कला लेखन की बात करें तो जो थोड़े से नाम इस विधा में सक्रिय हैं उनमें से एक महत्वपूर्ण नाम अनीश अंकुर हैं। उनकी सदैव कोशिश रहती है बिहार से बाहर के कला जगत को बिहार की कला गतिविधियों से रूबरू कराते रहा जाए। पिछले दिनों बिहार म्यूजियम, पटना में पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ चित्रकार जतीन दास के कलाकृतियों की पुनरावलोकन प्रदर्शनी आयोजित हुयी। आलेखन डॉट इन के अनुरोध पर प्रस्तुत है जतीन दास के सृजन संसार पर अनीश अंकुर की यह विस्तृत समीक्षात्मक रपट……
Anish Ankur
बिहार म्युजियम में जतीन दास के रेट्रोस्पेक्टिव का आयोजन
पटना स्थित बिहार म्युजियम में इस बार देश के प्रख्यात चित्रकार जतीन दास के चित्रों की पुनरावलोकन प्रदर्शनी आयोजित की गई। 12 फरवरी से 5 मार्च तक चलने वाली इस प्रदर्शनी को देखना पटना के कला पारखियों के अलावा आम लोगों के लिए दुर्लभ अवसर रहा। वैसे पटना में जतीन दास पहले भी आते रहे हैं, ज्ञान भवन में उनके द्वारा बनाया गया म्युरल इसका गवाह है ।
जतीन दास उड़ीसा के मयूरभंज जिले के रहने वाले हैं। मयूरभंज से 16 साल की उम्र में कला की पढ़ाई के लिए वे मुंबई के जे.जे स्कूल ऑफ आर्ट्स गए। इस स्कूल के एस.बी पालसीकर का उनपर गहरा प्रभाव पड़ा । पेंटिंग की पढ़ाई उन्होंने 1957-62 बैच में पूरा किया था। अपने पढ़ाई के दौरान जतीन दास बड़ी संख्या में स्केच बनाया करते थे। उन्हें स्कूल से प्रतिदिन दस स्केच बनाने की जिम्मेवारी थी परन्तु जतीन दास 24 घंटे में तीन सौ स्केच तैयार कर लिया करते। स्केच करने के लिए चिड़ियाघर से लेकर विभिन्न स्थानों पर घूमते रहा करते थे।
मुंबई में दस वर्ष व्यतीत करने के बाद वे दिल्ली चले आए। जहाँ पिछले लगभग छह दशकों से जतीन दास रह रहे हैं। जतीन दास भले दिल्ली-मुंबई सरीखे महानगरों में रहे हों लेकिन उनकी जड़ें जैसा कि वे खुद बताते हैं ‘‘ भारत के पूर्वी हिस्से में रही हैं। उड़ीसा, बिहार, झारखंड, बंगाल, आसाम- ये सभी अपनी कला, संस्कृति, भाषा, भोजन और लोगों के जरिए गहरे रूप से जुड़ी रही हैं।”
जतीन दास पंखों के अपने संग्रह के लिए भी विख्यात हैं। दुनिया भर में हाथ से बने पंखों का वैविध्यपूर्व संग्रह उनके पास मौजूद है। पंखों के लगभग छह हजार नमूने उन्होंने इकट्ठा किये हैं। इसके अतिरिक्त वे अपने सामाजिक कार्यों के लिए भी जाने जाते हैं। 1999 में अपने गृहनगर में आये ध्वंसकारी सुनामी से तबाह व बर्बाद एक गांव को गोद लेकर अब तक उसका निर्वहन करते रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने कई चैरिटी शो भी आयोजित किए।
जतीन दा सके प्रसिद्ध म्युरल ‘मोहन जोदड़ो से महात्मा गॉंधी’ भारतीय संसद में अंकित है। 7/68 फीट के इस म्युरल का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। इस म्युरल में हिन्दुस्तान का वृहत इतिहास अंकित करने का प्रयास किया गया है । 2012 में जतीन दास को सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था।
जतीन दास के बिहार म्युजियम के रिट्रोस्पेक्टिव में उनके 60 सालों का काम संलग्न है। पुनरावलोकन प्रदशर्नी में उनका सबसे पुराना काम 1964 का है। वैसे इस पुनरावलोकन प्रदर्शनी में जतीन दास की पुराणी कृतियाँ बहुत कम हैं लगभग न के बराबर। अधिकांशतः उनके हालिया कामों को प्रदर्शित किया गया है।
पेंटिंग, ड्राइंग, ग्राफिक्स, स्कल्पचर में किये गए कार्यों को इस पुनरावलोकन प्रदर्शनी में शामिल किया गया है। पोट्रेट से लेकर पेंटिंग तक उनके सृजनात्मक जीवन के बहुआयामी संसार से परिचित कराने वाली है यह पुनरावलोकन प्रदर्शनी।
जतीन दास की प्रदर्शनी से गुजरते हुए सबसे अच्छी बात यह लगती है कि उनके चित्रों में मानवीय छवियों का व्यापक व विविध संसार मौजूद है। एक ऐसे वक्त में जब चित्रकला से मनुष्य की छवि गायब करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है जतीन अपने कैनवास में मानव आकृतियों व बिंबों की छटा बिखेरते हैं। मनुष्य की मौजूदगी उनके कैनवास पर इस कदर छाई है कि बाकी चीजें लगभग अनुपस्थित हैं पेड़-पौधे, पशु-पक्षी नदारद हैं। समाज, आसपास का माहौल आदि को जतीन दास के यहाँ ढूढ़ना अप्रासंगिक है । अपने चित्रों के माध्यम से वे कोई आख्यान भी नहीं सामने लाना चाहते। जतीन दास की बुनियादी चिंता जीवन के पलों, क्षणों, मनःस्थितियों व मनोदशाओं को पकड़ना है । वे हमें एक मनुष्य के निरंतर परिवर्तित होते मनोलोक में ले जाने का प्रयास करते हैं ।
इस पुनरावलोकन में जतीन दास के पोट्रेट, वाटर कलर में किये गए काम, पेपर पर कोंटे, इंक के अलावा ऑयल, एक्रीलिक में बनाए गए चित्र बड़ी संख्या में प्रदर्शित किये गए हैं। उन्होंने बड़ी संख्या में सार्वजनिक जगत के लोगों के पोट्रेट बनाए हैं। चित्रकारों, मूर्तिकारों, कलाकारों, कला समीक्षकों के रेखांकन इन्होंने बहुतायत में किये हैं। जतीन दास अपने रेखांकन के लिए विशेष तौर पर जाने जाते हैं। हमारा रेखांकनों की जादुई ताकत से परिचय होता है । रेखाओं पर उनकी सिद्धहस्त पकड़ देखने वाले को हैरत में डालती है। बहुत कम रेखाओं की सहायता से वे चित्रों में इच्छित प्रभाव हासिल कर लेते हैं। किसी साधु, किसी स्त्री, किसी प्रेमी युगल, बोझ ढ़ोते मजदूर या कोरोना के दौर में अपने घर को लौटते मजदूरों की त्रासदी अपने जादुई रेखांकनों के माध्यम से उकेर देते हैं। जतीन दास सीधी रेखाओं का बहुत कम इस्तेमाल करते प्रतीत होते हैं। उनकी रेखायें अधिकांशतः टेंढ़ी-मेढ़ी, तिर्यक या वक्र लेकिन सबसे बढ़कर लयात्मक हुआ करती है। इन्हीं वजहों से उनके काम में ज्यादातर छवियां किसी गतिविधि के मध्य में बनाई गई प्रतीत होती हैं। उनकी रेखायें गतिमान हुआ करती हैं फलतः प्रेक्षक को ऐसा अहसास होता है कि जतीन दास ने किसी बदलते क्षण को पकड़ा है। चाहे वह नृत्य की कोई भंगिमा हो, मन की कोई अवस्था हो या किसी काम को करने के दौरान का कोई कार्य व्यापार जतीन दास के चित्रों स्वाभाविक ढंग से चलीं आती प्रतीत होती है। इस प्रकार देखें तो पल-पल बदलते क्षणों को कैद करने वाले चित्रकार की तरह नजर आते हैं जतीन दास। इस प्रकार उनकी कृतियाँ जीवन के बेहद करीब नजर आती हैं।
पुनरावलोकन प्रदर्शनी में अधिकांश चित्र में साधू, शिव, स्त्री-पुरूष की आपसी जुगलबंदी नजर आती है। जतीन दास इन छवियों को अपने हर माध्यम ( पेंटिंग, ग्राफिक्स, स्कल्पचर आदि ) में दुहराते प्रतीत होते हैं। शिव पर उनके ढेर सारे रेखांकन हैं। भारत के उद्योपति गौतम अडानी के अहमदाबाद स्थित घर और दफ्तर में उन्होंने शिव श्रृखंला पर काम किया है।
वैसे तो जतीन दास अमूमन कैनवास पर एक्रीलिक में काम करते रहे हैं पर इंडोनशिया के बाली में प्रवास के दौरान उन्होंने वाटर कलर पर काम करना शुरू किया। तबसे प्रतिदिन वे एक न एक वाटर कलर जरूर पेंट करते हैं। कभी -कभी लिथोग्राफ एवं सीरोग्राफ पर भी काम किया है।
एक कमी जो इस रिट्रोस्पेक्टिव में दिखती है कि उनकी कृतियों का प्रदर्शन कालक्रमानुसार नहीं है जिससे उनकी विकास यात्रा को समझने में सहूलियत हो सके। जैसे साठ के दशक में वे कैसे रेखायें खींचते थे या चित्र बनाते थे और बाद के दिनों में उसमें कैसा परिवर्तन होता चला गया। वैसे भी उनके पूर्ववर्ती काल के कम ही चित्र पुनरावलोकन प्रदर्शनी का हिस्सा हैं। इसी क्षतिपूर्ति के लिए कई कैटलॉग अवश्य रखे गए हैं जिससे उनके काम का कुछ और अंदाजा हो पाता हैं।
व्यक्तिचित्र :
इस पुनरावलोकन प्रदर्शनी से पता चलता है कि उन्होंने अपने मित्रों, परिचितों तथा नजदीक आने वाले लोगों के पोट्रेट बड़ी संख्या में बनाए हैं। प्रख्यात फोटोग्राफर रघु राय के चालीस साल पहले बने पोट्रेट खासतौर पर ध्यान आकृष्ट करते हैं। चार-पांच दशकों पहले बने कलाकारों व कला समीक्षकों के पोट्रेट में प्रमुख हैं प्रयाग शुक्ल, विनोद भारद्वाज, जयराम पटेल, बलान नाम्बियार, कृष्ण खन्ना, गीता कपूर, के.के. हेब्बार, सुनील दास, डॉम मोराएस, ए रामचंद्रन, विकास भट्टाचार्या, रेखा रूदवित्या आदि।
Prayag Shukla
लेकिन 1961 में बने बड़े गुलाम अली खां के रंखांकन को देख सुखद आश्चर्य होता है। ऐसे ही 1994 में एफ.एन सुजा का रेखांकन, 2014 में बना बंगाल के चित्रकार धीरज चौधरी, 2015 में लक्ष्मा गौड़ के रेखांकन को देखा जा सकता है। उनकी रेखायें बेचैन हुआ करती हैं। कई समीक्षक मानते हैं कि जतीन दास के रेखांकनों की बेचैनी का साम्य सुजा के रेखांकनों से मिलता जुलता है। इसी प्रकार सुप्रसिद्ध बांग्ला कवि शक्ति चटटोपाध्याय का पोट्रेट भी जतीन दास के प्रमुख रेखांकनों में से है।
जतीन ने पोट्रेट पेपर पर पेन और इंक तथा कोंटे क्रेयॉन की सहायता से बनाया है। पेपर पर कोंटे क्रेयॉन में बने रेखांकन चेहरे को अधिक स्पष्टता से सामने लाते हैं। उनके रेखांकनों में उस व्यक्ति की भंगिमाओं, मुद्राओं व उनकी भृकुटि को कुछ इस ढ़ंग से पकड़ा गया है कि उस शख्सियत की चरित्रगत विशेषता सामने आ जाती है। व्यक्तिचित्र हमेशा किसी मूड को प्रकट करते हैं । इन वजहों से उनके अधिकांश पोट्रेट अविस्मरणीय से लगते हैं मन प्र उसकी छाप लम्बे समय तक बनी रहती है ।
पेपर पर इंक :
उनके कामों में सबसे अलग से नजर आता है 2020 में कोराना काल के दौरान ‘एक्सोडस’ सीरिज की पेंटिंग्स । उन्होंने अपने घर लौटते मजदूरों की तकलीफ, उनके संघर्ष, उनकी जद्दोजहद को रेखांकन के माध्यम से पकड़ने का प्रयास किया है। एम्प्टी बाउल्स, विद द बेबीज,लास्ट रिजॉर्ट,पुश एंड पुल,कैरिइंग द बर्डेन, बैलेंसिंग द वेट और नीलिंग डाउन इस श्रृंखला की महत्वूपर्ण कृतियां हैं। इस श्रृंखला को जतीन दास ने इंक से बनाया है। अधिकांश कृतियां 16/12 इंच की हैं। इस श्रृंखला में भी हर रेखांकन किसी कार्य व्यापार का हिस्सा प्रतीत होता है। पेपर पर इंक माध्यम में एक चित्र है ‘डॉयलॉग’ जो एक युवा स्त्री व पुरूष के मध्य संवाद की स्थिति को रेखांकित किया गया है। दोनों एक दूसरे से रूबरू कुछ इस ढ़ंग से खड़े हैं कि देखने वाले को दोनों के अंदर एक दूसरे के प्रति तीव्र व भावनाओं का अहसास होता है।
जतीन दास के रेखांकन, चित्रों में स्पेस व संरचना का संतुलित इस्तेमाल देखने को मिलता है। इस माध्यम में भी हर चित्र बीच से कहीं बना तथा गतिमान नजर आता है।
पेपर पर कोंटे क्रेयॉन :
पेपर पर कोंटे क्रेयॉन में भी जतीन दास के कई प्रमुख चित्र हैं। इस माध्यम में 2001 का बनाया हुुआ ‘ हैंड रेज्ड टू स्काई ’ एक बेहद विचलित करने वाला रेखांकन है। ब्लैक एंड व्हाइट में इस रेखांकन में जतीन दास ने गुजरात में 2001 में आए भूकंप की त्रासदी को दर्शाया है। एक व्यक्ति जमीन पर दबा हुआ सा है और हाथ और उनकी ऊंगलियां पीड़ा में उपर की ओर उठे से हैं। जो प्रेक्षक को एक मानवीय त्रासदी से रूबरू कराती है। गिरे व दबे हुए व्यक्ति के चेहरे के इर्द-गिर्द काले रंगों का इस्तेमाल उसे इंटेंस बना देती है । 34/22 इंच की बनी यह कृति पेपर पर कोंटे के सबसे प्रमुख चित्रों में से एक है।
साथ ही लाइफ जगलर, टेक ऑफ , क्राइस्ट ऑन लैप, तांडव तथा ज्ञानी शीर्षक सरीखे चित्र प्रभावी बन पड़े हैं। यहां भी जतीन दास ने चित्र को गति में, पल-पल बदलने की प्रक्रिया को पकड़ने की कोशिश की है। जतीन दास के चित्रों में हाथ की उंगलियां अलग से ध्यान खींचती है। भावावेश में रहे व्यक्ति की उंगलियां का विशेष तौर पर जतीन दास ध्यान देते हैं। जतीन दास के यहां उंगलियां को मनःस्थिति के अनुकूल बनाया गया है। हर चित्र में उंगलियां अलग से ध्यान आकृष्ट करती है। जतीन दास के काम की यह प्रमुख विशेषता हैं हाथ की उंगलियों को गौर से देखने पर चित्र में अभिव्यक्त मनोदशा को पकड़ा जा सकता है। यह जतीन दास के चित्रों को समझने में मदद करता है। बल्कि कहें कि जतीन दास की चित्र भाषा का यह एक अनिवार्य अंग प्रतीत होता है ।
कैनवास और बोर्ड पर एक्रीलिक कलर :
पुनरावलोकन प्रदर्शनी में जतीन दास का सबसे प्रभावी व आकर्षक काम एक्रीलिक का नजर आता है। एक्रीलिक मे वे रंगों की आभा व उसका वैभव खुलकर सामने आती है। गहरे, चटख रंगों का भरपुर उपयोग किया जाता है। वे जिस आकृति को उभारना चाहते हैं उसे और उसकी पृष्ठभूमि के रंगों का तालमेल में इस कदर संतुलन होता है कि देखने वाला एकदम से ठहरने को विवश हो जाता है। जतीन दास अमूमन पृष्ठभूमि में हल्के पीले रंग का, कुछ -कुछ क्रीम कलर का आभास देता हुआ उपयोग बहुतायत से करते हैं फिर उसपर मरून या कोई दूसरा कंट्रास्ट कलर का सृजनात्मक उपयोग किया जाता है ताकि तस्वीर पूरी तरह उभर कर आ जाए। फिर एक ही कलर के अलग-अलग टोन का विविध प्रयोग करते हैं। उनके रंगों की टोनल क्वालिटी आकर्षित करती है।
संथाल वुमेन, रीचिंग टू द कॉस्मोस, कॉस्मिक डांस शीर्षक कृतियां अपने स्पेस डिवीजन ,संरचना, गतिमयता तथा गाढ़े रंगों और उनकी कई परतों के कारण विशिष्ट बनपड़ी है। उनकी शिव श्रृंखला के चित्रों ‘ शिवशक्ति , यूनिवर्सल शिवा, शिव तांडव ,जटाधारी, शिवा इन प्रेयर ’ अपनी बेचैन और हलचलों से भरी रेखाओं के कारण बरबस ध्यान खींचती है।
एक्रीलिक में जतीन दास अनगिनत छायाओं और परतों को सामने लाते हैं। हमेशा की तरह उनके चित्र किसी मूविंग स्थिति या मनोदशा को पकड़ते हैं।
ऑयल ऑन कैनवास :
जतीन दास की कलात्मक उत्कृष्टता तैलचित्र में उंचाई पर पहुंचती प्रतीत होती है। तैलचित्रों को ध्यान से देखने पर यह अहसास होता है कि जो गतिशीलता उनकी खास पहचान है यहां थोड़ा अपेक्षाकृत ठहराव सा नजर आता है। उनके ज्यादातर तैलचित्रों में अपेक्षाकृत गाढ़े रंगों का उपयोग किया गया है। तेलचित्र में सन् 2000 में बनी ‘ बर्डेन्ड ’ अपनी रंग परियोजना के कारण अलग सी नजर आती है। बोझ लिए हुए मजदूर की पीड़ा को अभिव्यक्त करने के लिए उसकी केहुनी और दायीं उंगलियों का सृजनात्मक उपयोग किया है। बोझ के वजन से थक कर मानो वह बैठ गया है और उसके पेट व पीठ दोनों मानों मिलकर एक से हो गए हैं। चित्र की संरचना और उसमें कत्थई व धूसर रंग का इस्तेमाल उसी आंतरिक तकलीफ को प्रकट करता है। ये रंग मिट्टी के रंग से मिलते-जुलते दिखने के कारण मजदूर व मिट्टी के संबंध को बखूबी सामने लाता है। यह चित्र जतीन दास के प्रदर्शित चित्रों में आपनी दृश्य भाषा के कारण काफी महत्वपूर्ण बन पड़ी है ।
इन सभी तैलचित्रों में भाव अधिक तीव्रता से सामने आते हैं। ‘ ‘वागाश्री , द लर्नेड, हम्बली, बैकटिल्ट, ‘ब्लू शक्ति, सैंटली, क्लासिक स्टांस, इंटीमेसी, स्पिरिटेड, वेटिंग,इनलाइटेंड’ आदि शीर्षक कलाकृतियां इसी श्रेणी में आती है।
तैलचित्र में जो चित्र विशेषकर ध्यान आकृष्ट करते हैं उनमें हैं-‘ होल्डिंग बैक, त्रिभंगी , ब्लू ब्लड , ऑन माई शोल्डर, स्ट्रीच्ड हैंड्स। ‘ त्रिभंगी ’ भारतीय मूर्तिकला में नृत्य की विशिष्ट मुद्रा है जिसमें शरीर के तीन अंगों गर्दन, कमर और घुटने पर घुमावदार मोड़ रहा करता है। नृत्य की इस गतिशील भंगिमा को पकड़ने में जतीन दास के सिद्धहस्त उंगलियों ने कमाल पैदा किया है। नाचती स्त्री को गाढ़े कत्थई रंग में उभारा है जबकि पृष्ठभूमि के लिए दूसरे रंगों पर निर्भर किया गया है। स्त्री की देहयष्टि पूरी तरह उभर कर सामन आती है।
‘ होल्डिंग बैक ’ युवा पुरूष आकृति अपने दोनों हाथों से कुछ रोकने का प्रयास करता प्रतीत होता है। पुरूष की मांसपेशियां उभरती दिखती हैं। जतीन ने इस चित्र को गतिशील रेखाओं व रंगों की कई परतों की सहायता से बेहद प्रभावी बना डाला है। कत्थई रंग का कहीं हल्का ता कहीं गाढ़ा उपयोग तो नजर आता है ही है उसकी कई छायाओं से भी देखने वाला परिचित होता है। एक ही रंग के अनगिनत आयाम उभर कर आते हैं।
जतीन दास का सबसे आकर्षक पक्ष है उनका रंगबोध। वैसे तो उनकी खासियत उनके रेखांकनों को बताया जाता रहा है लेकिन उनके रंगबोध के पीछे एक दृष्टि काम करती है। रंग के उपर परत दर परत रंग चढ़ाना और इस प्रक्रिया उसके अंदर एक गहनता का अहसास बनता चला जाता है। इस प्रकार ऐसा प्रतीत होता है कि जतीन दास की के पास एक गहरी रंगस्मृति है जिसका एक छोर हमारी परंपरा के साथ जुड़ता है तो दूसरा वर्तमान समय में धंसने को विवश करता है।
जतीन दास के संपूर्ण रचना संसार में मानवीय आकृतियों की अनिवार्य उपस्थिति बनी रहती है। मनुष्य उनकी ऑंखों से कभी ओझल नहीं होता है। जतीन दा के तैलचित्र देखते हुए हमें इसका अहसास बराबर बना रहता है । इस पुनरावलोकन प्रदर्शनी में जतीन दास की कई कलाकृतियां वाटरकलर, सेरीग्राफ, एम.डी.एफ बोर्ड, पेपर पर इचिंग तथा वुड पर नेचुरल पिगमैंट में भी कुछ काम शामिल है। दर्शक उनके काम में माध्यम की विविधता से चकित हुए बिना नहीं रह सकता ।
जतीन दास के चित्रों व रेखांकनों में स्त्रियों की छवियाँ खासी संख्या में है। उनके चित्रों की स्त्रियां ज्यादातर अनावृत और निर्वस्त्र रहती हैं। उन स्त्रियों में गहरी ऐंद्रिकता व मासंलता है। साथ- साथ आध्यामिकता की भी हल्की छाया स्त्री छवियों में दिखती है ।
जतीन दास अपनी बचैन रेखाओं के लिए जाने जाते हैं। उनकी पूरी शख्सियत में भी एक बेचैनी, एक रेस्टलेसनेस हैं। वे कभी स्थिर नहीं बैठते, हमेशा किसी न किसी गतिविधि में संलग्न नजर आते हैं। कभी किसी छात्र का स्केच बना रहे हैं तो कभी अपने ड्राइवर को उसका स्केच गिफ्ट करते हैं, कभी वे अपनी सहयोगी से बिहार के व्यंजनों के बारे में जानकारी जुटाने की बात कहते हैं कभी कला के युवा छात्रों को कोई काम देते हैं छात्रों को अधिक से अधिक रेखांकन करने की सलाह देते हैं। छात्रों में जल्दबाजी, खुद में खोये होने की प्रवृत्ति तथा किसी कही जा रही बात को ध्यान से न सुनने की उनकी आदत से उन्हें कोफ्त होती है। कभी बड़बड़ाते से हैं कि ‘देश के हालात अच्छे नहीं हैं’ तो कभी भारत में कला व संस्कृति की महान विरासत को गहरे तक कमजोर कर देने के लिए अंग्रेज़ों को भी जिम्मेवार ठहराते हैं। उन्हें इस बात का अहसास है कि अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है लेकिन समय कम है उनके पास ।
जतीन दास को देखना एक कलाकार के अंदरूनी हलचल और छटपटाहट से साक्षात्कार करना है । जीवन की मानिन्द क्षण-क्षण उनका मूड बदलता है । उनके मूड की तरह उनकी रंगों व रेखाओं की दुनिया भी बदलती रहती है ।
इन्हीं वजहों से उनकी पुनरावलोकन प्रदर्शनी से गुजरना अपने दृश्य संसार को समृद्ध करना है ।