पटना में छापा कला की अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी : 1

अपने निर्माण के बाद से बिहार म्यूजियम, पटना ने अपनी कला विषयक गतिविधियों के माध्यम से स्पष्ट कर दिया है कि उसका लक्ष्य वैश्विक कला गतिविधियों से बिहार के कला प्रेमियों को रूबरू कराना भी है। अपनी स्थानीय गतिविधियों के साथ-साथ। वर्ष 2023 की बात करें तो द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय म्यूजियम बिनाले और उसके बाद इंटरनेशनल प्रिंट मेकिंग एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत आयोजित छापा कला की अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी का आयोजन इस दावे की पुष्टि करता है। वरिष्ठ कला समीक्षक अनीस अंकुर की कलम से यहाँ पेश है इस छापा कला प्रदर्शनी पर एक विस्तृत रिपोर्ट। वेबपेज की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए हम इसे धारावाहिक के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, हाज़िर है पहला भाग …….

Anish Ankur
  • बिहार म्यूजियम, पटना में आयोजित हुयी 49 देशों के 340 छापा कलाकारों की प्रदर्शनी

बिहार म्युजियम में पिछले महीने प्रिंटमेकिंग की एक महत्वपूर्ण प्रदर्शनी आयोजित हुई थी। 19 अक्टुबर से 19 नवंबर तक चलने वाली इस अनूठी प्रदर्शनी में 49 देशों के 340 कलाकारों की कृतियां शामिल थी। इतने देशों की भागीदारी ने इस प्रदर्शनी को अंतर्राष्टीय आयाम प्रदान कर दिया। इस महत्वाकांक्षी परियोजना को अंजाम दिया गया इंटरनेशनल प्रिंट मेकिंग एक्सचेंज प्रोग्राम (आई.पी.ई.पी) द्वारा। आई.पी.ई.पी मुंबई स्थित एक संस्था है जो पिछले दस सालों से छापा कला के क्षेत्र में सक्रिय है। इस संस्था का मकसद दुनिया भर के छापा कलाकारों के बीच नेटवर्किंग स्थापित करने का प्रयास है ताकि उनके मध्य तकनीक और अवधारणाओं का आपसी आदान-प्रदान संभव हो सके साथ ही कलाप्रमियों के बीच छापाकला को एक कला माध्यम के रूप में मान्यता मिल सके।

विदित हो कि छापाकला एक श्रमसाध्य प्रक्रिया है और काफी समर्पण की मांग करता है। इसके ग्राहकों की संख्या भी अपेक्षाकृत काफी कम है। कलाबाजार में जो भगदड़ मची है उसकी बड़ा नुकसान छापाकला को झेलना पड़ा है जिसे कुछ साल पूर्व तक ग्राफिक कला के नाम से जाना जाता था। प्रिंटमेकिंग के क्षेत्र में स्वतंत्र होना बड़ी बात मानी जाती है। यानी चित्र और मूर्ति बनाए बगैर सिर्फ प्रिंट पर निर्भर रह जाना कोई सामान्य बात नहीं है। पटना में एक महीने तक चलने यह प्रदर्शनी ऐसी सौवीं प्रदर्शनी थी। इस लिहाज से इतने बड़े पैमाने पर पटना में छापा कला प्रदर्शनी का होना एक फिनोमिना की तरह हैं। इस पूरी परियोजना के मुख्य परिकल्पक हैं क्यूरेटर ( कला संयोजक ) राजेश पुल्लरवार जिन्होंने 2013 से ही इस प्रक्रिया को शुरू किया और आज इस प्रदर्शनी का विस्तार उनचास देशों के लगभग साढ़े तीन सौ छापा कलाकारों तक हो गया है। इस प्रदर्शनी में दुनिया के हर महादेश के कलाकारों की भागीदारी हुई है। मात्र एक दशक के प्रयास से दुनिया भर में छापा कलाकारों की इतनी बड़ी बिरादरी बना लेना कोई आसान बात नही है।

यह प्रदर्शनी अपनी कलात्मक विविधता व क्षमता के साथ-साथ कला प्रबंधन का भी दिलचस्प और नायाब उदाहरण है। राजेश पुल्लरवार बताते हैं ‘‘हमने इस प्रदर्शनी के माध्यम से कलाकारों को एक प्लेटफाॅर्म पर लाने के उद्देश्य के साथ-साथ एक ऐसा विकल्प देने की केाशिश की है जहां इन कलाकारों का शोषण न किया जा सके।’’

राजेश पुल्लरवार

राजेश पुल्लरवार आगे बताते हैं ‘‘हमने दुनिया भर के छापाकालाकारों से संपर्क किया। उसके बाद उन कलाकारों के अपने काम के एक निश्चित संख्या में प्रिंट्स मंगवाए। जितने देशों के कलाकारों के प्रिंट्स हमें उपलब्ध हुए उसका हमने एक ‘पोर्टफोलियो’ मुंबई में तैयार किया। जैसे मान लें हमें सौ देशों के कलाकारों के प्रिंट्स मिले। हमने उन सौ प्रिंट्स में से एक-एक निकाल कर रख दिया। उस तरह एक ऐसा पोर्टफालियो तैयार किया जिसमें सौ देशों के अलग-अलग छापाकलाकारों का काम शामिल था। इस पोर्टफोलियो में सौ कलाकारों की एक-एक प्रिंट्स को मिलाकर सौ पौर्टफालियो बनाया जिसमें उक्त कलाकार के अलावा दूसरों के काम भी शामिल रहा करते हैं। और इसे सभी सौ कलाकारों को भेज दिया। इस तरह दुनिया के अलग-अलग देशों के कलाकारों के पास अपनी कृति के अलावा दूसरे कलाकारों के प्रिंट्स उपलब्ध हो गए। फिर इन कलाकारों से यह आग्रह किया जाता है कि वे अपनी सुविधा, सहूलियत और संसाधन के अनुकूल अपने देश में प्रदर्शनी आयोजित करें। ”

ऐसी पहली प्रदर्शनी मुंबई में राजेश पुल्लरवार के घर और इटली में एक साथ हुआ। बाद में कई देशों व शहरों में यह प्रदर्शनी आयाजित की गयी। इस प्रकार पटना में आयोजित यह प्रदर्शनी सौवीं प्रदर्शनी थी।

इस तरह इस प्रदर्शनी को पिछले दस सालों का लेखा-जोखा भी कहा जा सकता है। प्रत्येक वर्ष क्यूरेटर द्वारा कोई एक विषय दे दिया जाता है जिसके आधार पर अलग-अलग देशों में रहने वाले कलाकारों द्वारा उस विषय को केंद्र में रखकर प्रिंट बनाया जाता है। राजेश पुल्लरवार बताते हैं ” 2013 वाली पहली प्रदर्शनी का कोई विषय निर्धारित नहीं था। लेकिन उसके बाद हमने हर वर्ष एक निर्धारित सबजेक्ट छापा कलाकारों को दिया जो उनकी रचना पक्रिया के लिए एक संदर्भबिंदु का काम कर सके।”

वर्ष 2014 का विषय था ‘इनडाइजेशबल’ यानी ‘जो अपाच्य हो’। 2015 की प्रदर्शनी पटना में आयोजित की गयी थी। पहले तीन वर्षों की प्रदर्शनी पटना के ललित कला अकादमी में कला -संस्कृति युवा विभाग के सहयोग से आयोजित की गयी थी। 2015 में आयोजित इस प्रदर्शनी का विषय था ‘‘फीयर: हाॅरर/टेरर’। आठ वर्ष पूर्व हुए पटना की प्रदर्शनी में जहां 21 देशों के 55 कलाकार शामिल थे वहीं इस दफे 49 देशों के 340 कलाकार। प्रिंट एक्सचेंज कार्यक्रम ने कितनी तेज प्रगति की है इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है।

प्रदर्शनी में लगभग सौ साल पुरानी बिहार के देव के सूर्य मंदिर और सासाराम के प्रिंट्स को भी शामिल किया गया। यह दोनों प्रिंट पटना म्युजियम की ओर से इस प्रदर्शनी में रखा गया था। साथ में बिहार के चर्चित छापा कलाकार पद्मश्री श्याम शर्मा के कुछ प्रिंट्स भी इस प्रदर्शनी का हिस्सा थे।

पेंटिंग में तो एक साथ एक समय पर जितने चाहे रंगों का प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन छापा कला में पहली ही बार में कलाकृति का रंग तय हो जाता है। उसकी प्रतिलिपि भले कई निकाली जाती है। अतः कलाकार एक बार में परिश्रमपूर्वक पहली कृति तैयार करता है और बाद में उसके हूबहू प्रिंट्स तैयार करता है। सभी प्रिंट्स पर उसकी संख्या दर्ज रहा करती है ताकि देखने वाला जान सके कि वह कौन प्रिंट देख रहा है। ऐसे में छापा कृतियों में मौजूद रंगों की विविधता छापा कलाकारों से धैर्य, कुशलता और समर्पण की मांग करती है। छापाकला को दूसरे कला माध्यमों के बरक्स उतनी पहचान नहीं मिली है विशेषकर पिछले तीन दशकों में इसकी इसकी पहचान और संरक्षण के लिहाज से ढलान का काल ही अधिक रहा है। इस माध्यम के प्रति जागरूकता और समझ के अभाव के कारण यह अच्छी स्थिति में नहीं रहा है। लेकिन छापाकला में एक दूसरे से संवाद और साझा करने की भावना प्रारंभ से ही बलवती रही है यही इसकी ताकत रही है जो वर्तमान वक्त में इसे प्रासंगिक बनाता है। राजेश पुल्लरवार ने एक प्लटेफाॅर्म मुहैया कराया है जो छापाकला को आगे ले जाने में प्रेरक की भूमिका अदा करेगी।

प्रदर्शनी में शामिल एक छापा चित्र

छापाकला की कई पद्धतियां हैं जिसमें कलाकार काम करता है। प्रमुख पद्धतियों में है वुडकट, लीनोकट, इचिंग, सेरीग्राफ, मिजोटिंट, एकवाटिंट आदि ।

2013 : शीर्षकहीन:

इंटरनेशनल प्रिंट एक्सचेंज कार्यक्रम ( आई.पी.ई.पी ) का यह पहला वर्ष था। पहले वर्ष में उन्नीस ऐसे कलाकारों के छापा चित्रों की समूह प्रदर्शनी आयोजित की गई जो अलग-अलग राष्ट्रीयता, धर्म, संस्कृति व भाषा के थे। लेकिन इन सबों को जोड़ने वाली चीज थी छापाकला के प्रति उनका लगाव व जज्बा। इन सभी कलाकारों की रूचियां व सरोकार भिन्न-भिन्न थे। उनका विषय और कल्पना एक दूसरे से बिल्कुल अलग से थे। व्यक्तिगत अनुभव, सामूहिक स्मृति, नागरीय जीवन, पर्यावरण का विनाश, सांस्कृतिक बदलाव जैसे मुद्दों को समझने की केाशिश की ये ऐसे मसले हैं जो दुनिया भर के लोगों को प्रभावित करते रहे हैं। इस लिहाज से देखें तो उनके एक समानता सी नजर आती है परन्तु अपनी चिंताओं को प्रकट करने के लिए जिस किस्म की कलात्मक सरोकार थे, सौदर्यात्मक चुनाव किए गए था। जिन सामग्रियों का इस्तेमाल किया गया वे सब एक दूसरे से बिल्कुल जुदा है। इन्हीं वजहों से प्रेक्षक के लिए यह एक नये चाक्षुष संसार में ले जाने जैसा लगता है। इचिंग, सर्फेस प्रिंटिंग, सेरीग्राफ, फोटो इचिंग, सिलिकोग्राफी, इंटाग्लियो, फोटोपाॅलिमर पद्धितियों से प्रिंट बनाए गए हैं।

इस प्रदर्शनी में अविनाश मोतघारे इचिंग में ‘रेस्ट’ शीर्षक से बना प्रिंट आकर्षित करता है। दीवार के सहारे खड़ी की गई साईकिल का यह दृश्य देखने वाले को अपने बचपन की सैर कराता है, एक उदासी का भाव प्रेक्षक को सृजित करता है।

ठीक इसी प्रकार भूषण वघल का फ्लाइंग आर्क, जिसमें पुराने ढ़ंग का जहाज समुद्र की सतह से उपर उड़ता है जबकि स्काॅटलैंड के कलाकार इवान मैक्निकोल की इंटग्लियो में बनी ‘सीशोलाइन’ समुद्र पर पड़ती रौशनी के आयाम को पकड़ता है। नीला समुद्र कैसे रौशनी के असर से हरापन का प्रभाव ग्रहण कर लेता है इसे बेहद खूबसूरती से चित्रित किया गया है। इस कृति को देखने से एक ठहराव, स्थिरता व शांति का भाव मन में आता है। राजेश पुल्ल्रवार के सेरीग्राफ में लाल व नीले रंग में बना अपने रंगविन्यास के कारण आकर्षित करता है। अमूर्त से लगने वाले इन चित्रों में मन के अंदर के यौन कुंठा को पकड़ने की केाशिश करता है। इस कृति का नाम भी दिया गया है ‘व्यूरिस्ट ’।

अमरीकी छापाकलाकार पाॅल वालादेज की सर्फेस प्रिंटिंग में की गई बिना शीर्षक वाली कृति जिसमें एक हंसते हुए दांत के आसपास के माहौल पर पड़ने वाले प्रभाव को प्रिंट किया है। ब्लू रंग का उपयोग इस कृति को दर्शनीय बनाती है।भारत के प्रसाद निकुंभ द्वारा अम्लांकन ( इचिंग ) में बनी ‘मूड’, तनुजा राने हमबारदिकर की ‘ए कैट एंड फिश’ , इटली के सिल्विया साला का रिलीफ प्रिंट में किया गया अल्साइड उल्लेखनीय है। कई छापाकलाकारों ने सादगी और सहजता से प्रभावी प्रिंट तैयार किया है।

जारी ……..

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