मिथकीय बोध की तीक्ष्णता को संप्रेषित करती रागिनी उपाध्याय

नेपाल के कला जगत में रागिनी उपाध्याय ग्रैला एक बेहद सम्मानित नाम हैं। अभी पिछले दिसंबर की तेरह तारीख को रागिनी जी से मुझे मिलने का सुअवसर प्राप्त हुआ। इस भेंट ने मुझे उनकी कला को और निकट से समझने का मौका दिया। रागिनी नेपाल की आधुनिक कला की विशिष्ट कलाकार हैं जो अपनी कलाकृतियों में नेपाली मिथकों, इतिहास और सामाजिक मूल्यों के ताने बाने को बड़े ही अर्थपूर्ण ढंग से उकेरती हैं।

अशोक कुमार सिन्हा
अपर निदेशक, बिहार म्यूजियम, पटना

कला से उनका लगाव बचपन से ही रहा है । लगभग पंद्रह साल की उम्र से इन्होंने विधिवत अपनी कला यात्रा शुरू की। आज सतत कला साधना ने उन्हें न केवल नेपाल वरन विश्व की एक महत्वपूर्ण कलाकार के रुप में मुकम्मल पहचान दिलवायी है। यूं तो रागिनी कैनवास पर तैल चित्र के माध्यम से अपने को अभिव्यक्त करती हैं। किन्तु प्रिंट मेकिंग यानी छापाकला में भी विशेषज्ञता हासिल कर रखी है। इतना ही नहीं ललित कला अकादेमी, नयी दिल्ली के गढ़ी कार्यशाला में भी उन्होंने अपना समय बिताया है। कतिपय इन्हीं वजहों से उनकी कलाकृतियों में विभिन्न कला माध्यमों की तकनिकी दक्षता भी परिलक्षित हैं। वैसे अपने सृजन क्रम में उन्होंने अन्य कला माध्यमों का भी प्रयोग किया है।

रागिनी के चित्र नेपाली समाज की संवेदनाओं को उकेरने के साथ उसके समाज में व्याप्त स्त्री की स्थिति और पर्यावरण की चिंता को बड़े ही प्रमुखता से प्रस्तुत करते हैं। इनकी कई चित्र श्रृंखला इसकी साक्षी हैं। “गईजत्रा” के नाम से 2009 की उनकी पेंटिंग सीरीज समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीति में गाय के उपयोग को बड़े ही प्रमुखता से रेखांकित करती है। हालांकि इस हेतु उन्हें अगर कट्टरपंथियों के आलोचना का शिकार होना पड़ा है तो पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं।

हिंदू देवी देवता को भी अपने चित्रों में रागिनी बड़े ही अर्थपूर्ण ढंग से चित्रित करती हैं। सरस्वती और काली से जुड़ी इनकी चित्रकृति में इस मिथकीय प्रयोग को देखा जा सकता है। रागिनी की सरस्वती आधुनिक काल से पूर्णतः तालमेल मिलाते दिखती हैं। इन चित्रों में सरस्वती के हाथ में मोबाइल फ़ोन है तो सिर पर कंप्यूटर। इसे रागिनी के आधुनिक महिला के अधुनातन ज्ञान की प्राप्ति हेतु नेपाली महिलाओं के रूपांतरण को प्रगट करने का एक बेहद कलात्मक प्रयास के रुप में देखा जा सकता है। रागिनी अपने चित्रों में काली के मिथकीय स्वरूपों का भी प्रयोग करती हैं। वे खुद को भी काली का प्रतिरूप मानती हैं। काली स्त्री दुख और प्रतिरोध के सर्वश्रेष्ठ प्रतीक के रुप में उनके चित्रों में उपस्थित हैं। रागिनी अपने चित्रों में स्त्री के विभिन्न रूपों में रंग भरती उनके मल्टी स्किल्ड प्रतिभा की भी एडवोकेसी करती हैं। दरअसल रागिनी एक टोटल फेमिनिस्ट आर्टिस्ट हैं।

रागिनी के चित्रों में हम मिथकीय प्रतीकों के साथ आधुनिक प्रतीकों की उपस्थिति के साथ मूर्त और अमूर्त चित्रण का भी संतुलित सवन्वय देखते हैं। इनके चित्र लोक और समकालीन कला के एक कलात्मक फ्यूजन के रुप में भी उभरते नज़र आते हैं। हम कह सकते हैं कि रागिनी परंपरा के साथ आधुनिकता का अच्छा सम्मिश्रण करती हैं। ये अपने जड़ों से उनके जुड़े रहने को दर्शाता है तो आधुनिकता को स्वीकारने के उनके आग्रह को भी प्रगट करता है।

रागिनी नेपाल में कला शिक्षण के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय स्थान रखती हैं। वे नेपाल के फाइन आर्ट एकेडमी की चांसलर रही हैं। अपने चार साल के कार्यकाल में रागिनी ने कला शिक्षण के क्षेत्र कई नवाचारी प्रयोग किए और उन्हें सफ़लता के सूत्र के रुप में स्थापित किया।

रागिनी ने अपनी कला शिक्षा कॉलेज ऑफ आर्ट्स, लखनऊ (भारत) से हासिल की। यहां से इन्होंने फाइन आर्ट्स में ग्रेजुएट की डिग्री लीं। तीस सालों से ज्यादा समय से वे समकालीन कला की दुनियां में सक्रिय हैं और नित नए कृतियों के साथ उपस्थित रही हैं। अपने चित्रों से युवाओं को सकारात्मक रुप से जोड़ने वाली रागिनी का मत है कि संस्कृति को नए रूप और रंग में उकेर वो युवाओं को संस्कृति के प्रति आकर्षित करती हैं और उनसे जोड़ती भी हैं। लोक कला, मिथकीय अवधारणा और कंटेंपरेरी आर्ट्स के फ्यूजन को अपनी कला में स्थान देने वाली रागिनी के कला का स्वर और तेवर विद्रोहिणी का रहा है। वे कहती भी हैं कि उनकी कला उनकी पीड़ा के घनीभूत रंगों का प्रगट रूप है। वे यह भी कहती हैं कला उनके लिए सम्पूर्ण मानवीय संवेदनाओं के प्रकटीकरण का एक सशक्त माध्यम है। कला उनकी पीड़ा, सुख और हास का इंद्रधनुष है।

अपने चित्रों में रागिनी विभिन्न प्रतीकों का प्रयोग करती हैं। विभिन्न हिंदू देवी-देवता, गाय, घड़ी, त्रिशूल आदि को वे अपनी कला से जोड़ सशक्त रूप से अभिव्यक्त करती हैं। उनकी कला का शिल्प विद्रोह का सौन्दर्य निर्मित करता है। उनकी एक और पेंटिंग सीरीज “द टाइम व्हील-2005 ” है। इसमें वे घड़ी को प्रतीक रूप में चित्रित करते समय के दार्शनिक तत्व को उभारती हैं। रागिनी ने न केवल घड़ी वरन सांप को भी अपनी कलाकृतियों में जगह दी हैं। वे कहती हैं कि सांप हमारी इच्छाओं, कामनाओं का प्रतीक है। वे भगवान शिव को सांप की माला पहने देखती हैं तो भगवान विष्णु को क्षीरसागर में नागों की शय्या पर सोते। सांप जो मानवीय इच्छाओं का प्रतीक है उनको कंट्रोल करने की जरुरत की महत्ता को चित्रित करती उनकी कई कलाकृतियां उल्लेखनीय हैं। वे मानव जीवन की सफ़लता में कामनाओं के संतुलन और नियंत्रण पर बल देती हुई कृतियों के माध्यम से युवाओं को सफल जीवन के राज से रूबरू कराती हैं।

सांप के अतिरिक्त अपनी कृतियों में त्रिशूल के भी महत्व को वे रेखांकित करती हैं। उनके कला पात्र त्रिशूल को सिर पर धारण करता है। बाद में यही पात्र जलते सुरज को कपाल पर धारण करते इनकी रचनाओं में दृष्टिगोचर होते हैं। ये सारे प्रतीक उनकी मिथकीय बोध की तीक्ष्णता को संप्रेषित करते हैं, एवं उनकी चित्र कृतियों को न केवल विशेष बनाते हैं बल्कि विद्रोह के स्वर को एक नया शिल्प प्रदान करते हैं। इस तरह रागिनी एक नई कला भाषा गढ़ती हैं और आम लोगों को उनसे जोड़ती हैं।

इस तरह समग्रता में जब हम रागिनी उपाध्याय ग्रैला के पेंटिंग्स को देखते हैं तो पाते हैं कि कला जगत में अपनी उपस्थिति से उन्होंने न केवल नेपाल वरन विश्व कला को समृद्ध किया है। कला के नए स्वर , तेवर और भाषा के साथ रागिनी एक नए व्याकरण को भी गढ़ती नज़र आती हैं। हम ऐसे चित्रकार से और रचनाओं की आशा के साथ कामना करते हैं कि सतत कलाकर्म में रत रागिनी उपाध्याय ग्रैला हमेशा स्वस्थ एवं सफल रहें।

-अशोक कुमार सिन्हा

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