तीसरी आँख से दुनिया !

राम छाटपार शिल्प न्यास, वाराणसी में इन दिनों छायाकार/ कलाकार शैलेन्द्र कुमार के छायाचित्रों की एकल प्रदर्शनी चल रही है। प्रदर्शनी का उद्घाटन 10 सितम्बर को कलाकारों एवं स्थानीय गणमान्य अतिथियों में किया गया, यह प्रदर्शनी 20 सितम्बर तक जारी रहेगी। 14 सितम्बर को बीएचयू स्थित केंद्रीय विद्यालय, वाराणसी के छात्र-छात्राओं के दल द्वारा कला अध्यापक कौशलेश कुमार के नेतृत्व में अवलोकन किया गया।

भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं में, तीसरी आंख आज्ञा चक्र को संदर्भित करती है। यहाँ तीसरा नेत्र उस द्वार को संदर्भित करता है जो आंतरिक क्षेत्रों और उच्च चेतना के स्थानों की ओर जाता है। अध्यात्म में, तीसरी आंख अक्सर आत्मज्ञान की स्थिति का प्रतीक है। धार्मिक दृष्टि से यह दूरदर्शिता, चक्रों और आभाओं को देखने की क्षमता, पूर्वज्ञान और शरीर के बाहर के अनुभवों से जुड़ी होती है। जिन लोगों के बारे में कहा जाता है कि वे अपनी तीसरी आंखों का उपयोग करने की क्षमता रखते हैं, उन्हें हमारे यहाँ द्रष्टा की संज्ञा दी जाती रही है। हिंदू और बौद्ध धर्म में, तीसरी आंख को माथे के बीच के आसपास, भौहों के संधि स्थल से थोड़ा ऊपर स्थित माना जाता है, जो ध्यान के माध्यम से प्राप्त होने वाले ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है। हिंदू मान्यताओं में इस तीसरे नेत्र को शिव से जोड़कर ही देखा जाता है। वहीँ बौद्ध मान्यताओं में इस तीसरी आंख को “चेतना की आंख” कहा गया है।

केंद्रीय विद्यालय, वाराणसी के छात्रों के साथ शैलेन्द्र कुमार

ताओवाद और कई पारंपरिक चीनी धार्मिक संप्रदायों जैसे चान जिसे जापानी में ज़ेन कहा जाता है, में इस तीसरी आँख से जुड़े प्रशिक्षण में बंद आँखों के साथ भौंहों के बीच के बिंदु पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है। ताओवाद में इस तीसरी आंख को मन की आंख भी कहा जाता है। यूं तो ताओवाद का दावा है कि तीसरी आंख छठे चक्र पर स्थित शरीर के मुख्य ऊर्जा केंद्रों में से एक है। बहरहाल इतना तो स्पष्ट है कि इस तीसरे नेत्र या तीसरी आँख से युक्त व्यक्ति को हमारे यहाँ विशेष दर्ज़ा दिया जाता रहा है। वर्तमान समय की बात करें तो आज तकनीक के विकास ने हमें फोटोग्राफी के माध्यम से आसानी से यह तीसरा नेत्र उपलब्ध करा रखा है। इस फोटोग्राफी ने हमें अपने आसपास के परिदृश्यों को देखने-समझने और यहाँ तक कि कुछ खास लम्हों को हमेशा-हमेशा के लिए संजो लेने की क्षमता भी दी है। जबकि इससे पहले यह सब किसी सिद्धहस्त चित्रकार के अलावा किसी और के लिए असंभव ही था।

केंद्रीय विद्यालय, वाराणसी के छात्रों के साथ शैलेन्द्र कुमार

आज हम इस बात से भलीभांति वाकिफ हैं कि दृश्य संचार यानि विजुअल कम्युनिकेशन और अभिव्यक्ति के साधन के रूप में, फोटोग्राफी में विशिष्ट सौंदर्य क्षमताएं हैं। इतना ही नहीं फ़ोटोग्राफ़ी माध्यम से जुटाई गयी तस्वीरों को किसी अन्य माध्यम, यथा चित्र रचना की तुलना में ज्यादा प्रामाणिक माना जाता है। क्योंकि किसी चित्र को बनाने के क्रम में चित्रकार उस दृश्य में अपनी तरफ से कुछ जोड़ भी सकता है; साथ ही चित्र या कलाकृति के विषय के प्रतिकूल आकृतियों को हटा भी सकता है। वहीँ फोटोग्राफी में आपको उन चीज़ों को रखना ही पड़ेगा, जो उस फ्रेम में आ रहा हो; आप चाहकर भी उसे हटा नहीं सकते हैं। कतिपय इन्हीं वजहों से यह कहावत भी चल पड़ी कि  “इंसान झूठा हो सकता है लेकिन कैमरा कभी झूठ नहीं बोलता”।

बनारस या वाराणसी की बात करें तो हम जानते हैं कि यह शहर या नगर दुनिया के सबसे पुराने बसावट वाले चंद शहरों में से एक है। हालिया पुरातात्विक प्रमाणों की मानें तो ईसा पूर्व 1800 से यह शहर कायम-दायम है। सनातन मान्यताओं में इसे भगवान शिव की नगरी का दर्जा प्राप्त है। वैसे बनारस अपने व्यापार से लेकर धर्म, अध्यात्म, कला-संगीत और  शिक्षा के लिए भी दुनिया भर में जाना जाता है। किन्तु इन सबके बावजूद उसकी एक विशेष पहचान अपने मंदिरों व घाटों को लेकर भी है। गंगा के किनारे बने इन घाटों की संख्या 88 है। इन घाटों में से अधिकांश का निर्माण या पुनर्निमाण अठ्ठारहवीं सदी में मराठा शासकों द्वारा कराया गया है। यानी हम कह सकते हैं कि इनमें से अधिकांश घाट कम से कम दो सौ साल पुराने हैं। बहरहाल शैलेन्द्र ने इन घाटों को जिस तकनीकी दक्षता से अपने कैमरे मेंं समेटा है। वह इन घाटों की सुंदरता और ऐतिहासिकता को एक नया आयाम देता है।

प्रदर्शनी का अवलोकन करते बीएचयू स्थित केंद्रीय विद्यालय, वाराणसी के छात्र

विगत लगभग चालीस साल से शैलेन्द्र उन तमाम जगहों पर जाकर उसकी फोटोग्राफी कर उसे कंप्यूटर की मदद से संयोजित करते रहे हैं जो हमारी भारतीयता वाली पहचान को मुक्कमल करती है। अपने कंप्यूटर पर फोटोशॉप जैसी आधुनिक तकनीक की मदद से शैलेन्द्र अपने छायाचित्रों को और प्रभावी बनाते हैं। कतिपय इन्हीं कारणों से उनके छायाचित्रों को देखना अपने इतिहास के गौरवशाली परंपरा से रूबरू होने जैसा अनुभव प्रदान करता है। मेरी समझ से उनकी यह एकल प्रदर्शनी जिसमें बनारस के घाटों के छायाचित्र शामिल हैं, सुधि दर्शकों को बनारस के घाटों के नैसर्गिक सौंदर्य के उन तमाम पहलुओं से अवगत कराएगा, जो सामान्य तौर पर बहुधा हमारी आँखों से अनदेखे रह जाते हैं। इस प्रदर्शनी में बनारस के अलावा भी विभिन्न विषयों एवं घटनाओं पर केंद्रित छायाचित्र भी प्रदर्शित हैं। जो छायाकार शैलेन्द्र के लगभग चार दशकों से अधिक की कला यात्रा का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस आयोजन के लिए राम छाटपार शिल्प न्यास इंडिया और मूर्धन्य मूर्तिकार मदनलाल जी का विशेष आभार तो बनता ही है। साथ ही कलाकार/ छायाकार शैलेन्द्र कुमार को हार्दिक बधाईयां।

-सुमन कुमार सिंह
कलाकार/ कला लेखक

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