शैलेन्द्र : कदम दर कदम-1

कलाकार/ छायाकार शैलेन्द्र कुमार की पुनरावलोकन प्रदर्शनी इन दिनों  (10 जून से 30 जून) बिहार म्यूजियम में चल रही है I सौभाग्य से इसे क्यूरेट करने का अवसर मुझे मिला, कॉलेज के दिनों से लेकर आजतक का हमारे बीच का यह संबंध अब लगभग बयालीस साल पूरे कर चूका है I यह महज़ संयोग था या नियति का लिखा कि कला महाविद्यालय, पटना में मेरा नामांकन कराने मेरे बड़े भाई मेरे साथ आये थे I नामांकन हो जाने के बाद भाई साहब को ख्याल आया कि हॉस्टल में रह रहे सीनियर छात्रों से मिला जाए I ऐसे में जिस शख्स से मुलाकात होती है, वह थे शैलेन्द्र कुमार I जो उन दिनों द्वितीय वर्ष के छात्र थे, बातचीत के क्रम में भाई साहब ने मेरे देखरेख की ज़िम्मेदारी इन्हीं शैलेन्द्र को सौंप दी I तब से लेकर आजतक शैलेन्द्र मेरे लिए शैलेन्द्र भईया ही हैं, और आज भी हमारा वही रिश्ता बरकरार है I ऐसे में शैलेन्द्र कुमार की पुनरावलोकन प्रदर्शनी को क्यूरेट करने का सौभाग्य मुझे दोगुनी ख़ुशी देता है I बहरहाल इस प्रदर्शनी के कैटलॉग के लिए लिखे गए मेरे विस्तृत लेख का पहला भाग प्रस्तुत है आलेखन डॉट इन के पाठकों के लिए…..  सुमन कुमार सिंह 

 

देश के चर्चित और परिचित छायाकारों में से एक हैं शैलेन्द्र कुमार, जिनके पास विगत चालीस से अधिक वर्षों के छायांकन का विशद अनुभव है I इतना ही नहीं उनके संग्रह में बिहार के कला जगत के ऐतिहासिक लम्हों के चित्रों का नायाब संग्रह है I और तो और उनके निजी संग्रह में लगभग सौ से भी अधिक कैमरे हैं I अगर आप भी शैलेन्द्र कुमार के बारे में सिर्फ इतना ही जानते हैं, तो मेरी नज़र में आप भी उन्हीं लोगों में शामिल हैं जिनके पास इस बहुआयामी व्यक्तित्व की जानकारी आधी-अधूरी है I क्योंकि एक ही कला महाविद्यालय के छात्र होने के नाते अपने हिस्से उनके कलात्मक व्यक्तित्व के कई और पहलू भी हैं, जिनमें से कुछेक आज की पीढ़ी के अधिकांश कलाकारों के लिए नितांत अपरिचित ही हैंI बहरहाल ऐसे में उनके समग्र व्यक्तित्व के साथ-साथ उनकी मुकम्मल सृजन यात्रा को जानना- समझना यहाँ और भी आवश्यक हो जाता है I खासकर तब जब उनके इस सृजन यात्रा की पुनरावलोकन प्रदर्शनी आपके सामने हो I

बाएं से रणबीर सिंह राजपूत, अर्चना सिन्हा, सौरभ कुमार, शैलेन्द्र कुमार एवं बिहार म्यूजियम के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह.

वर्तमान पटना शहर में ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के निशानियों में एक महत्वपूर्ण निशानी है, गोलघर I यह ईमारत भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता के शुरुआती वर्षों की देन हैI तत्कालीन बंगाल आर्मी के वास्तुकार जॉन गारस्टिन ने इसका डिज़ाइन तैयार किया था और वर्ष 1786 में यह ईमारत बनकर तैयार हो गयीI किन्तु कहा जाता है कि इस ईमारत को बनाया तो गया था अनाज के भण्डारण के लिए I लेकिन तैयार होने के बाद पता चला कि अपनी कुछ खामियों की वजह से यह गोदाम अनाज भण्डारण के लिए सर्वथा अनुपयुक्त है I वैसे अब भी यह ईमारत पटना शहर के दर्शनीय स्थलों में से एक के तौर पर जाना जाता हैI इसी ऐतिहासिक विरासत से सटे हुए मोहल्ले में या गोद में कहिये, एक सामान्य परिवार में शैलेन्द्र कुमार का जन्म हुआ I सात भाई बहनों के इस कुनबे में शैलेन्द्र तीसरी संतान के तौर पर आये I सामान्य परिवार होने के बावजूद बालक की ज़िद पर पिता ने राजधानी के सर्वाधिक प्रतिष्ठित और महंगे लोयला हाई स्कूल के आठवीं कक्षा में नामांकन करा दिया I यह बरस था 1973 I हालाँकि तब इस स्कूल में नामांकन हो पाना किसी मुंहमांगी मुराद का पूरा हो जाना समझा जाता था I इतना ही नहीं यह स्कूल अपने कठोर अनुशासन के लिए भी जाना जाता था, ऐसे में स्थिति यह थी कि प्रिंसिपल के सामने पड़ते ही बच्चे कांपने लगते थे I वहीँ दूसरी तरफ पढ़ाई के अलावा यह विद्यालय अपने पाठ्येत्तर गतिविधियों के लिए भी जाना जाता था I तो स्कूल में इसके तहत साइंस क्लब, स्पोर्ट्स क्लब और फोटोग्राफी क्लब चलाया जाता था I जिनमें से किसी एक में भाग लेना प्रत्येक छात्र के लिए अनिवार्य था I खेलों में अपनी विशेष रूचि के बावजूद शैलेन्द्र ने चुना फोटोग्राफी क्लब I शायद यहीं से नियति ने भविष्य के संकेत की शुरुआत कर दी थी I या कहें कि मंज़िल की पहली सीढ़ी अब सामने थी, बावजूद इसके कि ऐसा कुछ उस समय तक तय नहीं था कि फोटोग्राफर या चित्रकार ही बनना है I

बहरहाल अब इसी क्लब में मिलते हैं फोटोग्राफी के उनके पहले गुरु ब्रदर फ्रेडरिक और हाथ लगाने को मिलता है पहला कैमरा I जो था क्लिक III , जिसका नाम भी शायद आज की पीढ़ी में से बहुतों ने नहीं सुना हो I बालक की रूचि और लगन को देखते हुए गुरु ने जो अतिरिक्त कृपा बरसाई, उसके तहत जरुरत पड़ने पर स्कुल से बाहर कैमरा ले जाने की अनुमति मिल गयी I ख़ुशी और उत्साह से भरे शैलेन्द्र ने पहले तो सगर्व घर वालों से लेकर यार दोस्तों को कैमरे का दीदार कराया I साथ ही घरवालों से लेकर दोस्तों की तस्वीर भी दनादन उतारनी शुरू कर दी I तस्वीर उतारने या फोटो खींचने के अगले कदम के तौर पर ब्रदर फ्रेडरिक ने निगेटिव डेवलप करने से लेकर कांटेक्ट प्रिंट आउट तथा प्रिंट निकालना भी सिखाया I उधर चित्र बनाने की ललक ने हिंदी की पुस्तकों में छपे लेखकों और कवियों के रेखांकन की अनुकृतियां सीखा दीं I अब होने यह लगा कि हिंदी के शिक्षक जब गद्य या पद्य पढ़ा रहे होते थे, तब शैलेन्द्र अपनी कॉपी में किसी लेखक या कवि का चित्र बना रहे होते थे I या कहें कि पुस्तक में छपे रेखांकनों की नक़ल कर रहे होते थे I अब ऐसे में जैसा कि स्वाभाविक था, जब शिक्षक विषय से संबंधित कोई सवाल पूछ बैठते या कुछ याद किये को सुनाने को कहते तो इस छात्र को कक्षा में इधर-उधर देखने के सिवा कुछ और नहीं सूझ पाता था I जाहिर सी बात थी कि ऐसे में जब शिक्षक का गुस्सा आसमान पर होता तो चुपचाप अपने बनाये रेखांकन सामने कर देते I उन चित्रों को देखकर अक्सर शिक्षक खुश तो होते ही साथ में कभी-कभी बदले में इतनी तारीफ भी मिल जाती कि तुमने तो हूबहू बना डाला I

कॉलेज के दिनों का एक स्टिल लाइफ.

इन सब बातों का असर यह रहा कि शैलेन्द्र पूरे मन से चित्र तो रचते ही रहे, फोटोग्राफी क्लास कभी किसी भी हाल में छूटने नहीं देते I उधर गुरु ब्रदर फ्रेडरिक भी अपने इस शिष्य की लगन से बेहद प्रभावित हो चुके थे I अब तो उन्होंने अपना वह निजी कैमरा (लुबिटेल 2) जो सामान्य तौर पर किसी को छूने भी नहीं देते, बेहिचक शैलेन्द्र के हवाले करने लगे I घरवाले भी निश्चिन्त हो चले थे कि चलो सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है, ऐसे में स्कूली पढ़ाई तो पूरी हो ही जाएगी I लेकिन इस बीच संयोग या दुर्योग से कुछ ऐसा हुआ कि स्कुल के एक सहपाठी से खेल के मैदान में झगड़ा हो गया I इस झगडे की गाज कुछ ऐसी गिरी कि आठवीं के फाइनल एग्जाम से पहले शैलेन्द्र स्कुल से निकाल दिए गए I हालाँकि शैलेन्द्र आज भी मानते हैं कि इस झगड़े में उनकी कहीं कोई गलती नहीं थी, सिवाय इसके कि दूसरा पक्ष रसूखदार पिता की संतान था I और सदा की तरह ऐसे में स्कुल मैनेजमेंट की नज़र में दोषी हमेशा कमज़ोर पृष्ठभूमि के छात्र ही होते थे I सामान्य आर्थिक स्थिति वाले पिता ने मुश्किल से इस महंगे स्कूल की साल भर की फीस जमा की थी, साथ ही ड्रेस, स्कूल बैग से लेकर महंगे जूतों पर अच्छी खासी रकम खर्च की थी I इसके बावजूद दूसरे स्कुल में जाने के सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं थाI

जारी …..

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