सामान्य जीवन के सौंदर्य को उदघाटित करते शैलेंद्र-1

अनीश अंकुर मूलतः संस्कृतिकर्मी हैं, किन्तु अपनी राजनैतिक व सामाजिक अभिव्यक्ति के लिए भी जाने-पहचाने जाते हैं। उनके नियमित लेखन में राजनीति से लेकर समाज, कला, नाटक और इतिहास के लिए भी भरपूर गुंजाइश रहती है। बिहार के मौजूदा कला लेखन की बात करें तो जो थोड़े से नाम इस विधा में सक्रिय हैं उनमें से एक महत्वपूर्ण नाम अनीश अंकुर हैं। उनकी सदैव कोशिश रहती है बिहार से बाहर के कला जगत को बिहार की कला गतिविधियों से रूबरू कराना। पिछले दिनों बिहार म्यूजियम, पटना में बिहार के तीन वरिष्ठ कलाकारों की पुनरावलोकन प्रदर्शनी आयोजित हुयी। आलेखन डॉट इन के अनुरोध पर प्रस्तुत है शैलेन्द्र कुमार के सृजन संसार पर उनकी यह विस्तृत समीक्षात्मक रपट का पहला भाग..……

Anish Ankur
  • पटना में शैलेन्द्र कुमार की कलाकृतियों व छायाचित्रों की रिट्रोस्पेक्टिव 

बिहार म्युजियम में, 10 से 30 जून तक आयोजित तीन वरिष्ठ कलाकारों के रिट्रोस्पेक्टिव के तीसरे कलाकार थे छायाकार व चित्रकार शैलेंद्र कुमार। पटना में पिछले डेढ़ महीने के दौरान 6 वरिष्ठ कलाकारों की पुनरावलोकन प्रदर्शनी का होना एक परिघटना की तरह है। हाल के वर्षों में शायद ही कभी एक साथ इन प्रमुख कलाकारों के काम से रूबरू होने का मौका पटना वासियों को मिला था। अतः स्वाभाविक ही था कि बड़ी संख्या में कला के छात्र, मर्मज्ञ, समाज के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों के अतिरिक्त आमलोग भी बड़ी संख्या में प्रतिदिन प्रदर्शनी देखने आते रहे।

शैलेन्द्र कुमार बिहार के कला जगत में एक सुपरिचित नाम हैं। बतौर छायाकार उनके काम को सराहा जाता रहा है। लेकिन इस पुनरावलोकन प्रदर्शनी में उनके चित्र भी लगाए गए थे। वे पटना आर्ट कॉलेज में 1980-85 बैच के बी.एफ.ए (बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स ) के छात्र रहे हैं। इस तरह पटना आर्ट कॉलेज में बी.एफ.ए करने वाले पहले बैच के छात्र हैं शैलेन्द्र कुमार। विदित हो कि इससे पूर्व पटना आर्ट कॉलेज के छात्रों को महज डिप्लोमा की डिग्री दी जाती थी। प्रशिक्षित होने के बाद शैलेन्द्र कुमार पटना में ही रहे। पटना स्थित “इंदिरा गाँधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज “(IGIMS) में मेडिकल फोटोग्राफर के बतौर नौकरी की। आई. जी.आई.एम.एस से मेडिकल इलस्ट्रेशन यूनिट के सीनियर फोटोग्राफर के रूप में 2020 में अवकाशप्राप्त हुए। उनका काम था अस्पताल के चिकित्सकों को शोध के लिए मेडिकल सामग्री की तस्वीरें उपलब्ध कराना। ऑपरेशन के दौरान चिकित्सकों द्वारा जब हृदय या शरीर के अन्य अंगों को खोला जाता है उस वक्त की तस्वीरें उतारने का काम शैलेन्द्र कुमार करते रहे हैं। जाहिर है यह कार्य बेहद सावधानी व संवेदनशीलता की मांग करता है। तस्वीरों में छोटे-छोटे ब्यौरे व तफसील की आदत, जो शैलेन्द्र कुमार के तस्वीरों की विशेषता रही है, सम्भवतः यहीं से लगी।

शैलेन्द्र कुमार फोटोग्राफी के साथ-साथ चित्रकला के लिए भी जाने जाने जाते हैं परंतु बाद के दिनों में फोटोग्राफी वाला पहलू अधिक प्राथमिक होता चला गया जबकि चित्रकार थोड़ा गौण । इस पुनरावलोकन प्रदर्शनी में शैलेन्द्र कुमार के दूसरे पहलू से भी परिचित होने का मौका पटना के सुधि दर्शकों को मिला है।

शैलेन्द्र कुमार की प्रदर्शनी का जो हिस्सा दर्शकों को खास तौर पर आकर्षित कर रहा है वह है उनके द्वारा अब तक व्यक्तितगत उपयोग में लाये गए फोटोग्राफी के उपकरणों की प्रदर्शनी। यह हिस्सा सिर्फ शैलेन्द्र कुमार के निजी संग्रह का नहीं अपितु पिछले पांच दशकों के फोटोग्राफी के उपकरणों में आये बदलावों की भी प्रदर्शनी है । कैमरे के ढांचें व आवरण में आये परिवर्तनों को देख एकबारगी दर्शक चकित सा रह जाता है। शैलेन्द्र कुमार के पास लगभग ऐसे डेढ़ सौ ऐसे कैमरे हैं जिसमें 90-95 कैमरे इस प्रदर्शनी में शामिल थे। इस प्रदर्शनी को देख दर्शक तकनीकी क्रांति के युग कहे जाने वाले पिछले चार दशक में फोटोग्राफिक उपकरणों में आये परिवर्तनों को देख सकते हैं। इस हिस्से को बेहद करीने व तरीके से क्यूरेट किया गया है।

शैलेन्द्र कुमार के चित्र:

शैलेन्द्र कुमार की प्रांरम्भिक तस्वीरों में फूल, पत्ती तथा दयानन्द सरस्वती जैसे लोगों के व्यक्तिचित्र प्रमुख है। वे खुद दयानन्द सरस्वती के विचारों पर चलने वाले विद्यालय डी.ए. व्ही के छात्र रहे हैं लिहाजा यह उनकी बचपन की स्मृति में रहा है। ठीक ऐसे ही एक व्यक्तिचित्र सियाराम शरण गुप्त का है। ये व्यक्ति चित्र उन्होंने अपने स्कूली दिनों में पेंसिल से उकेरे हैं।

शैलेन्द्र कुमार ने वाटर कलर में कुछ तस्वीरें बनाई हैं जिसमें गंगा के किनारे ट्रैक्टर से बालू ढोने का दृश्य बनाया है जिस पर आगे चलकर उन्होंने एक श्रृंखला के तहत कुछ महत्वपूर्ण तस्वीरें खींची। इसके लिए गंगा की पृष्ठभूमि की हल्के सफेद व हरे रंग का उपयोग किया है। ठीक उसी तरह ग्रामीण घरों के लैंडस्केप बनाये गए हैं जिसमें घरों के बीच से रास्ते, फुस व मिट्टी के घर का लाल खपरैल छत उसे एक खूबसूरत दृश्य में तब्दील कर देता है।

शैलेन्द्र कुमार ने अपने कई खींचे गए फोटो पर कूची चलाकर भी कलाकृतियां बनाई हैं। फोटोग्राफ के ब्रोमाइड प्रिंट के ऊपर पेन से रेखांकन करके भी कई चित्र शैलेन्द्र कुमार ने बनाये हैं। पेपर पर इंक से कई चित्र बनाये गए हैं। शैलेन्द्र कुमार ने कई प्रयोग किये जैसे पेपर पर स्टेंसिल या पेपर को हाथ से फाड़ या ब्लेड से काटकर फिर उसमें स्याही भरने तथा लीनोकट प्रिंट का प्रयोग किया गया। इस प्रकार कई माध्यमों में प्रयोग के द्वारा भविष्य की तैयारी की जा रही थी। उनके बनाये जलरंग या पेपर पर इंक में या फोटो पर कूची चलाने के कामों में उनकी दक्षता को महसूसा जा सकता है।

शैलेन्द्र की फोटोग्राफी :

शैलेन्द्र लगभग चार दशकों से फोटोग्राफी कर रहे हैं। इन चार दशकों के दरम्यान उन्होंने अलग-अलग विषयों पर कई फोटो श्रृंखलाओं पर काम किया है। शैलेन्द्र कुमार शुरू में तस्वीरें खींचते और उन्हें रखते जाते थे। धीरे-धीरे एक अंतराल में उन्होंने पाया कि एक ही विषय पर लगातार कई सालों में कई विषयों पर चित्र इकट्ठा होते चले गए। ऐसे चित्रों की उन्होंने विषयबद्ध किया और एक श्रृंखला के तहत सचेत होकर असपर काम शुरू किया। इस तरह विभिन्न सीरीज उभर कर आये जैसे डार्क ड्रीम सीरीज, मिट्टी सीरीज, जातक कथा सीरीज, नाव सीरीज, गंगा सीरीज, बनारस सीरीज, पिंडदान सीरीज, छठ सीरीज, सोनपुर मेला सीरीज, मन्नत सीरीज आदि।

तस्वीरों की विभिन्न श्रृंखला पर वे लंबे समय तक अलग-अलग इलाकों में काम करते रहे हैं जैसे बिहार की जनजाति श्रृंखला के दौरान उन्होंने भभुआ, कैमूर, बांका, भागलपुर, कहलगांव, फारबिसगंज, अररिया, किशनगंज मलूटी, बौंसी थारू, वालीमिकि नगर के क्षेत्र का भ्रमण कर फोटो खींचे। इस प्रकार जनजाति श्रृंखला पर उनके काम से समाजशास्त्रीय अध्ययन में सहायता मिल सकती है। अलग-अलग श्रृंखला पर काम उन्होंने पहले से कोई सोच कर नहीं किया परन्तु लगातार फोटो खींचने के दौरान उन्होंने यह पाया कि अब खुद ब खुद दिलचस्पी के कई विषय उभरने लगे हैं। इसके बाद उन्होंने सब्जेक्ट और सीरीज निर्धारित कर काम करना शुरू किया।

मिट्टी श्रृंखला:

 

इस पुनरावलोकन श्रृंखला में उनके 2015 का काम है मिट्टी श्रृंखला। इस श्रृंखला में वैसे तस्वीरें तो कई खींची गई होंगी लेकिन प्रदर्शनी में उसकी कुछ ही तस्वीर शामिल थी। मिट्टी के बने घरों की आकर्षक तस्वीरें शैलेंद्र कुमार ने खींची हैं । मिट्टी , फुस व बांस के बने घर जिसमें मिट्टी के लेप के भीतर झांकते बांस की कमानी दिखाई पड़ रही हो। गोबर, मिट्टी के दीवाल आदि से संबंधित चित्र बखूबी खींचे गए हैं। मिट्टी श्रृंखला में मिट्टी, गोबर व बांस की फट्टियों से बने घरों की ग्रामीण सुंदरता को शैलेन्द्र कुमार ने कुछ इस कलात्मक ढ़ंग से खींचा है कि वह फोटो के बजाए एक कलाकृति नजर आने लगती है। इस तस्वीर का प्रभाव मन पर लंबे समय तक बना रहता है। इस श्रृंखला की कुछ चुनिंदा तस्वीर ही शैलेन्द्र कुमार प्रदर्शित कर पाए हैं पर ये तस्वीरें हमारे समाज के बड़े व वंचित हिस्से के रहन-सहन के दस्तावेज की तरह नजर आती हैं।

मिट्टी सीरीज में लगभग 35 के लगभग फोटो हैं जिसमें से कुछ प्रतिनिधि तस्वीरों को पुनरावलोकन में शामिल किया गया था। एक तस्वीर में मिट्टी के घर में रंगीन गुदड़ी दरवाजे पर बांस की कमानियों में लगाये गए हैं। शैलेन्द्र कुमार ने गुदड़ी के किनारे के हल्के लाल रंगों तथा पैबंद को विशेष तौर से उभारा है। गरीबी, अभाव के मध्य भी रहने वाले का सौंदर्यबोध बना रहता है। यह इन तस्वीरों से पता चलता है। मिट्टी श्रृंखला देखते समय दर्शकों को उनकी सभ्यतागत स्मृति के उभरने का अहसास होता है।

छठ श्रृंखला:

शैलेन्द्र ने बिहार के प्रमुख पर्व छठ पर काफी काम किया है। लगभग दो दशक पहले से वे छठ की तस्वीरें उतार रहे हैं। छठ की सबसे पुरानी तस्वीर छठ पर्व के लिए चर्चित बड़गांव की है जहां औरतें हल्की पीली साड़ी पहने अर्ध्य दे रही हैं। पानी में भीगने पर पीली साड़ी का हल्का पारदर्शी रूप दिखता है। अमूमन अधेड़ औरतों वाली यह तस्वीर सन 2000 के आसपास की है। सभी सूर्य को अर्घ्य की मुद्रा में खड़ी हैं । इसके बाद ठीक उसी बड़गांव की छठ की दूसरी फ़ोटो शैलेन्द्र ने लगभग दो दशक बाद उतारी है। इन दोनों को तुलनात्मक ढ़ंग से देखने पर तस्वीर की गुणवत्ता के साथ-साथ छठ पर्व मनाने के ढ़ंग में आये बदलावों को रेखांकित किया जा सकता है। जैसे पहले की तस्वीर में महिलायें एकवर्णी वस्त्र पहन कर सूर्य को अर्ध्य दे रही हैं। जबकि बाद में महिलाएं कई रंगों वाली रंगीन वस्त्र पहनकर अधिक आती हैं। टोकरी व सुप में रखे फलों की मात्रा के आधार पर उनकी सामाजिक-आर्थिक हैसियत में आये बदलावों को लक्षित किया जा सकता है।

छठ के लिए प्रसिद्ध औरंगाबाद के देव में तालाब के चारों किनारे पर खड़ी भीड़ की तस्वीर टॉप व्यू से ली गई है। रंग-बिरंगे वस्त्रों तथा फलों के साथ की जा रही यह फोटो आंखों को लुभाती है। छठ पर्व में आम लोगों की अभूतपूर्व भागीदारी के साथ-साथ उनकी जीवन शैली में तब्दीली को भी देखा जा सकता है। शैलेन्द्र कुमार के छठ के पहले की तस्वीरें जहां सादगी को दर्शाती हैं वहीं बाद की तस्वीरें चमकीली होने के साथ-साथ छोटे-छोटे ब्यौरों तक को सामने लाती है। इनके द्वारा कैद छवियों में प्रकाश व छाया को ऐसा संतुलन साधा है की कैमरे में कैद वस्तुएं पूरे तफसील के साथ उपस्थित होती हैं।

छठ जैसे धार्मिक पर्व में सूर्य को अर्घ्य देते वक्त सामूहिक श्रद्धा भाव के लम्हों को कैमरे में कैद किया है। इस क्षण को ऐसे कोण से पकड़ा है तालाब, उसके चारों ओर सूर्य की ओर मुख किये जनसमूह में निहित पूजा की पवित्र भंगिमा को अभिव्यक्त करती है। शैलेन्द्र की फोटो प्रदर्शनी में कैमरे कहाँ रखा गया है यह देखना दिलचस्प है। जहां कहीं भी धार्मिक कार्य में सामूहिक रूप से लोग शामिल रहते हैं वहां टॉप व्यू से पकड़ने की तस्वीर ली गई है। शैलेंद्र कुमार धार्मिक क्रियाओं को उस क्षण कैद करते हैं जब श्रद्धालु का मन जैसे उसी में डूबा हुआ है। एक तस्वीर में एक अधेड़ स्त्री पानी में खड़ी नारियल लेकर खड़ी है। नारियल पर एक दिया टिमटिमा रहा है। सूर्य सम्भवतः अस्ताचलगामी है महिला पानी में हल्के लाल रंग की साड़ी कमर तक डूबी है और वह श्रद्धाभाव से सूर्य को निहारती खड़ी है। यह तस्वीर छठ श्रृंखला में खास तौर से ध्यान खींचती है।

जारी …

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