समकालीन कला में चल रहे नवीन प्रयोगों के मध्य विगत कुछ वर्षों में प्रदर्शन कला अभिव्यक्ति के सशक्त माध्यम के रूप में भारत में तेजी से उभरा है। सर्बिया की समकालीन कलाकार मरीना आब्रमोविक को प्रदर्शन कला की मातामही (नानी ) कहा जाता है और उनके अनेक प्रदर्शन चर्चित हुए। भारत में प्रदर्शन कला की एक चर्चित नाम लुधियाना की मनजोत कौर हैं। कुछ और नाम भी संभव हैं, लेकिन उनमे से ज्यादातर समकालीन कला धारा से संबंध रखते हैं। लोककला विधा से अभी तक प्रदर्शन कला में कोई नाम मेरे संज्ञान में नहीं है।
इन परिस्थितियों में मिथिला चित्रकला की चर्चित एवं सुपरिचित महिला चित्रकार शांति देवी का प्रदर्शन कला की जमीन पर कदम रखना कोई सामान्य घटना नहीं है। शांति देवी की प्रदर्शन कला ‘मेरा कैनवस कहां है’ दिल्ली की प्रतिष्ठित अकादमी ऑफ फाइन आर्ट एंड लिटरेचर में आयोजित की गयी। विमला आर्ट फोरम, गुरुग्राम के आमंत्रण पर फोकार्टोपीडिया फाउंडेशन, पटना ने शांति देवी की प्रदर्शन कला का आयोजन किया था और जिसे क्यूरेट किया था सुनील कुमार ने, जो फाउंडेशन के संस्थापक हैं और बिहार की लोककला के क्षेत्र में सक्रिय हैं।

शांति देवी की प्रदर्शन कला की शुरुआत होती है बिहार की चर्चित लोकगाथा राजा सलहेस से जुड़े नटिन गीत से जिसके बाद शांति देवी वहां मौजूद कलाकारों को अपने शरीर के खुले हिस्सों पर चित्र बनाने के लिए आमंत्रित करती हैं। चित्र बनाने के लिए जिन तत्वों का प्रयोग किया गया उनमें ज्यादातर हमारे धार्मिक रीति-रिवाजों से संबद्ध है। चंदन, कुमकुम रोली, गुलाल, अक्षत, जनेऊ, कलावा आदि। समापन में शेष बचे तत्वों से शांति देवी के शरीर पर अर्पित किया जाता है। इन सबके मध्य प्रदर्शन के अनेक तत्वों को व्याख्यायित किये जाने की जरूरत है या जिनकी अपनी व्याख्या हो सकती है और जिसका अपना महत्व है। लेकिन, शांति देवी ने पहली ही बार में जिस प्रकार प्रदर्शन कला को आत्मसात किया और कला दीर्घा में मौजूद कलाकारों के समक्ष उसे प्रस्तुत किया, वह किसी को भी विस्मय से भर सकता है।
महत्व इस बात का भी है मधुबनी के छोटे से गांव लहेरियागंज से देश-विदेश तक का सफर शांति देवी ने तय किया है, अपनी चित्रकला की बदौलत। उन्होंने अपने चित्रों में एक नहीं, अनेक प्रयोग किये और वे प्रयोग मुखर हैं। अब उन्होंने प्रदर्शन कला के जरिये कला की सीमाओं को लांघने की कोशिश की है और जहां वह पहली ही बार में मजबूती से नजर आयी और इस लिहाज से उनके समक्ष कोई दूसरा नाम नहीं दिखता है जिसने प्रदर्शन कला की दिशा में कोई कदम बढ़ाया हो, खासतौर पर बिहार में। शांति देवी को उनकी नयी कला यात्रा के लिए बहुत-बहुत बधाई। प्रदर्शन के बाद शांति देवी ने वहां मौजूद अन्य कलाकारों से अपनी कला यात्रा के अनुभव साझा किये और युवा कलाकारों को कला में नये प्रयोगों के लिए प्रेरित भी किया, तब वहां देश की ख्यातिलब्ध महिला चित्रकार अर्पणा कौर भी मौजूद थी। उन्होंने बिहार की लोककलाओं, खासतौर पर गोदना कला से संबंधित अपने अनुभवों को दीर्घा में उपस्थित कलाकारों और कलाप्रेमियों से साझा किया।