अब तक आपने पढ़ा कि बिना किसी गलती के भी शैलेन्द्र को स्कूल से निष्कासित होना पड़ा I लोयला के अंग्रेज़ीदां माहौल से निकलकर दयानन्द आर्य वैदिक स्कूल की कहानी इस किश्त में …. I
-सुमन कुमार सिंह
अब जो दूसरा स्कूल मिला वह था डी. ए. वी. हायर सेकेंडरी स्कूल, दानापुर कैंट I इन दोनों स्कूलों के स्तर में बड़ा भारी अंतर था I पहले दिन जब अपनी कक्षा में घुसने से पहले शिक्षक से यह कहते हुए अनुमति मांगी कि – “मे आई कम इन I ” इतना कहते ही जो प्रतिक्रिया दिखी उससे एकबारगी लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं हो गया I दरअसल जहाँ लोयला अंग्रेजी माध्यम का स्कूल था वहीँ डी. ए. वी. ठहरा हिंदी माध्यम वाला, जहाँ अंग्रेजी बोलने की न तो कोशिश रहती थी और न ही अपेक्षा I तब तक टीचर महोदय समझ चुके थे कि यह छात्र कक्षा क्या, स्कूल में ही नया-नया आया है I उन्होंने जानना चाहा कि इससे पहले कहाँ पढ़ रहे थे, लोयला सुनने के बाद उनका दूसरा सवाल था कि फिर यहाँ कहाँ चले आये I खैर जैसे- तैसे शैलेन्द्र लग गए अपने को इस नयी स्थिति के अनुकूल ढालने मेंI लेकिन होने यह लगा कि जितनी कोशिश अपने को अनुकूल बनाने की होती, उतना ही ज्यादा मन उचाट होता चला गया I
ऐसे में अब समय कक्षा से ज्यादा कक्षा के बाहर बीतने लगा I बमुश्किल पहली पाली किसी तरह क्लास के अंदर बीतती, लेकिन दूसरी पाली तो हर हाल में बाहर ही बितना थाI तो ज्यादातर समय पास के सैनिक छावनी (कैंटोनमेंट) में बीतने लगा, कंपनी बाग़ में बैठकर आकाश से उतरते साइबेरियन पक्षियों को देखना भाता तो कंपनी बाग़ नाम से आज़ादी की लड़ाई की गाथाएं जीवंत हो उठती I सामने ही अंग्रेज़ों के समय का कब्रिस्तान था, जहाँ की कब्रों पर बड़ी ही खूबसूरती से क्रॉस तो बना ही रहता था I तरह-तरह की फूल- पत्तियों से लेकर पत्थर की मूर्तियां भी दिखतीं I पत्थरों पर तराशे उन मूर्तिशिल्पों को देखकर, अनदेखे और अनजाने मूर्तिकारों की प्रतिभा से प्रेरित होता चला गया I
उधर स्कूल में एनसीसी के शिक्षक सूरी सर ने उनकी कद-काठी को देखकर एनसीसी से जुड़ने की सलाह दे डाली I यह सलाह इतनी भायी कि शैलेन्द्र एनसीसी से जुड़ गएI सामान्य तौर पर होता यह था कि जब कोई एनसीसी कैंप जल्दी ही आयोजित होनेवाला होता था, तब किसी नए छात्र को ज्वाइन नहीं कराया जाता था I किन्तु यहाँ इस मामले में कुछ अतिरिक्त उदारता बरती गयी, जब एनसीसी शिविर में बारी आई बन्दूक चलाने की तो ज्यादातर छात्र डर से पीछे हट गए I इंस्ट्रक्टर को न जाने क्या सूझा कि उसने यह कहते हुए शैलेन्द्र के हाथ में बन्दूक पकड़ा दी कि तुम इसे चला लोगे I संयोग से हुआ भी कुछ ऐसा ही, शैलेन्द्र ने बन्दूक चला ही ली I बीस राउंड फायर करना था जिसमें अट्ठारह निशाने पर सटीक लगा, आर्मी से आये इंस्ट्रक्टर बड़े खुश हुए I साथ ही इस परफॉर्मेंस को देखते हुए उन्होंने इन्हें टीम लीडर भी बना दिया I इसके बाद बारी आई राष्ट्रीय स्तर पर होनेवाले शिविर में भागीदारी की, पता चला कि यह दक्षिण भारत के किसी हिस्से में आयोजित होने जा रहा है I जहाँ ऊंचे पहाड़ पर चढ़ने और हेलीकॉप्टर से जम्प करने का अवसर मिलने वाला था I इस रोमांचक यात्रा के लिए शैलेन्द्र तो बेहद लालायित थे, किन्तु प्रधानाध्यापक राधे बाबू का फरमान आया कि जिन छात्रों का फाइनल एग्जाम होना है I वे इसमें भाग नहीं ले सकते, क्योंकि इससे परीक्षा की उनकी तैयारी प्रभावित होगी I साथ ही इनके बारे में तो उनकी राय पहले से ही थी कि पढ़ने-लिखने में तो मन लगता नहीं, और खाली-पीली एडवैंचर से कुछ ज्यादा भला होना नहीं है I हालाँकि इन सबके बीच शैलेन्द्र ने एनसीसी के तीन सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिए I
स्कूल के दिनों की एक और घटना, जिसने इस बालक को कला की तरफ मुखातिब किया वह बेहद दिलचस्प है I डीएवी स्कूल जैसा कि हम जानते हैं इसका पूरा नाम बनता है दयानन्द आर्य वैदिक स्कूल I तो इस स्कूल के प्राचार्य कक्ष से लेकर पुस्तकालय और क्लासरूम तक में एक तस्वीर टंगी होती थी I इस तस्वीर को देखकर इतना तो जरूर समझ में आया कि यह कोई देवता ही होंगे I तभी तो हर जगह इनकी तस्वीर लगी रहती है, तो क्यों नहीं अपनी कलाकारी आजमाई जाये I इस तरह से इनके हाथों दयानन्द सरस्वती कि पहली तस्वीर बनी I संगी -साथियों ने अचरज और कुतूहल भरी निगाहों से उनके इस कारनामे को देखा और सराहा I छात्रों के बीच चर्चा आम होती चली गयी कि देखो इसने तो एकदम से हूबहू बना दिया I तो अब इस कारनामे की चर्चा शिक्षकों से होते हुए प्राचार्य तक जा पहुंची I प्राचार्य ने भी चित्र को देखा, और पहली बार उनकी इस प्रतिभा को सराहा भी I अन्यथा वे तो मान ही बैठे थे कि इस छात्र से पढ़ाई वगैरह तो होना नहीं I लेकिन इस घटना के बाद उन्होंने न केवल शाबाशी दी, इस छात्र की बहुमुखी प्रतिभा के कायल भी हुए I बालक शैलेन्द्र के लिए यह एक तरह से बड़ी उपलब्धि थी I
इसी बीच मैट्रिक की बोर्ड परीक्षा का समय भी आ गया, एग्जाम का सेंटर पड़ा पटना-सिटी का गुरु गोविन्द हाई स्कूल I अब इधर डीएवी के छात्रों की ख्याति या कुख्याति कहिये, वह इस बात की थी कि बिना नक़ल के परीक्षा देने का सोचा ही नहीं जाता था I उधर गुरुगोविंद हाईस्कूल परीक्षा में सख्ती से नक़ल रोकने के लिए जाना जाता था I किसी तरह परीक्षा शुरू हो गयी, पेपर सही से निबट भी गए I किन्तु जब अंतिम दिन बारी आयी गणित के पेपर की तो दोनों पक्ष अड़ गए, स्कूल को नक़ल बर्दाश्त नहीं था तो छात्र बिना नक़ल के एग्जाम लिए राज़ी नहीं थे I जब सख्ती से जांच की गयी तो छात्रों ने हंगामा खड़ा कर दिया, तोड़फोड़ भी हुयी और एग्जाम कैंसिल हो गया I दुबारा एग्जाम के लिए सेंटर बनाया गया आरा टाउन हाई स्कूल को, इस बार भी पूरी सख्ती बरती गयी I परिणाम हुआ कि शैलेन्द्र गणित की वजह से मैट्रिक में फेल हो गएI घरवालों ने मान लिया कि अब तो आगे पढ़ाई होने से रहीI
जारी……..
आवरण चित्र: कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना के छात्रों व प्राचार्य अजय पांडेय के साथ शैलेन्द्र एवं अन्य बिहार म्यूजियम की कला दीर्घा के सामनेI