चाक्षुष दुनिया का विस्तार करती कला प्रदर्शनी

अनीश अंकुर मूलतः संस्कृतिकर्मी हैं, किन्तु अपनी राजनैतिक व सामाजिक अभिव्यक्ति के लिए भी जाने-पहचाने जाते हैं। उनके नियमित लेखन में राजनीति से लेकर समाज, कला, नाटक और इतिहास के लिए भी भरपूर गुंजाइश रहती है। बिहार के मौजूदा कला लेखन की बात करें तो जो थोड़े से नाम इस विधा में सक्रिय हैं उनमें से एक महत्वपूर्ण नाम अनीश अंकुर हैं। उनकी सदैव कोशिश रहती है बिहार से बाहर के कला जगत को बिहार की कला गतिविधियों से रूबरू कराते रहा जाए। पिछले दिनों बिहार म्यूजियम, पटना में पद्मश्री श्याम शर्मा के कलाकृतियों की पुनरावलोकन प्रदर्शनी आयोजित हुयी। आलेखन डॉट इन के अनुरोध पर प्रस्तुत है कलागुरु श्याम शर्मा के सृजन संसार पर उनकी यह विस्तृत समीक्षात्मक रपट……

Anish Ankur
  • बिहार म्यूजियम,पटना में आयोजित हुई पदमश्री श्याम शर्मा की पुनरावलोकन प्रदर्शनी 
  • बिहार संग्रहालय में छापा कलाकार के रूप देश भर में ख्यात श्याम शर्मा के सृजनात्मक संसार की पुनरावलोकन प्रदर्शनी सम्पन्न हुई है। यह प्रदर्शनी पटनावासियों ने, 4 से 25 दिसंबर तक, देखा।इस पुनरावलोकन प्रदर्शनी के क्यूरेटर थे कला समीक्षक सुमन कुमार सिंह।

पटना शहर के सांस्कृतिक जगत में न सिर्फ श्याम शर्मा अपितु उनके पुरे परिवार, जिसमें उनकी पत्नी (नवनीत शर्मा), पुत्र ( अभिषेक शर्मा ) शामिल हैं, ने अपनी पहचान अपने -अपने क्षेत्रों में स्थापित की है।

वैसे तो श्याम शर्मा उत्तरप्रदेश के मथुरा के रहने वाले हैं, लेकिन लखनऊ आर्ट कॉलेज से 1966 में पढ़ाई पूरी करने के बाद पटना आर्ट कॉलेज में वे छापा कला के प्राध्यापक बन कर आये। तब से श्याम शर्मा छापा कला में निरंतर प्रयोग करते रहने के लिए जाने जाते हैं। प्रिंट मेकिंग को दृश्य कला की एक महत्वपूर्ण विधा के रूप में स्थापित के लिए श्याम शर्मा निरंतर संघर्षरत रहे हैं। विशेषकर इसे तकनीकी रूप से समृद्ध बनाने की दिशा में।1966 का साल उनके जीवन में महत्वपूर्ण रहा है। इस पुनरावलोकन प्रदर्शनी में इस वर्ष के कैलेन्डर को आधार बनाकर एक कृति भी शामिल है।

प्रदर्शनी के उद्घाटन अवसर पर अपने उद्गार व्यक्त करते पद्मश्री श्याम शर्मा

इस प्रदर्शनी में श्याम शर्मा के अधिकांशतः हाल के वर्षों में रची गयी कलाकृतियां शामिल हैं। पुराने काम बहुत कम हैं, इतने कम कि उन्हें गिना भी जा सकता है। इस कारण देखने वाले को उनकी विकास यात्रा को समझने में थोड़ी असहजता हो सकती है। किन्तु इसके बावजूद श्याम शर्मा पर केंद्रित यह पुनरावलोकन प्रदर्शनी हमें विविधताओं से भरे उनके रचना जगत से परिचित कराती है। छापा कला माध्यम में अलग -अलग टेक्सचर, टोन, कलर व कम्पोजीशन का कैसा असर होता है, इसे देखने वाला इससे वाकिफ हो जाता है। लकड़ी, पेड़ के तने, मिट्टी आदि के बुनावट का अहसास होता है साथ ही अपने आसपास की ऐसी अनदेखी छवियाँ सामने आती हैं जो आँखों से तो ओझल है, पर हमारे अस्तित्व का अविभाज्य हिस्सा रहा करती है।

श्याम शर्मा ने छापाकला को, अपने नए – नए प्रयोगों से, समृद्ध किया है। रंगों का इस्तेमाल, एक ही रंग के अलग -अलग शेड्स, टोन उनकी कृतियों को इस कदर आकर्षक बनाता है जिससे देखने वाला एक नवीन चाक्षुष अनुभव से गुजरता है।

गांधारी:
सर्वप्रथम ‘गांधारी’ श्रृंखला में श्याम शर्मा ने क्षितिज आकार में महाभारत की जानी -पहचानी कथा को चाक्षुष रूप से अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है। यह काम श्याम शर्मा ने इसी साल यानी 2022 में ही पूरा किया है। अपनी रंग परियोजना में श्याम शर्मा काले रंग का प्रचुर मात्रा में उपयोग करते हैं। गांधारी, दुर्योधन, कृष्ण के आपसी अंतर्द्वंद व घात-प्रतिघात को काला रंग तथा बीच -बीच में सफ़ेद का इस्तेमाल इस कथा से जुड़े भावों की तीव्रता का अहसास कराता है। इस पुनरावलोकन प्रदर्शनी में काले रंग की एक निरंतरता बनी रहती है। विशेषकर उन कामों में जहाँ कलाकार चित्र के माध्यम से कोई कथा कहने का प्रयास करता है। भारतीय चित्रकला में चित्र के माध्यम से कथा कहने की प्रथा काफी पुरानी है। चित्रों के माध्यम से कथा प्रभावी हो उठती है और उसके संदेश लोगों के मन पर अंकित हो जाते हैं। इन्ही वजहों से राज्य सत्ता सदैव अपने नैरेटिव को आम लोगों के मध्य पहुंचाने के लिए चित्रकला का उपयोग बखूबी करती रही है।

सह-अस्तित्व:
श्याम शर्मा ने ‘सह-अस्तित्व’ शीर्षक से कई छापाचित्र बनाये हैं । ‘ सह-अस्तित्व’ दरअसल एक कोलाजनुमा कृति है जिसमें मानव, पशु -पक्षी, जीव जन्तु, कीट- पतंगों आदि के एक सामंजस्य में, एक ही अस्तित्व में रहने को रूपायित करती है । इन सबको एक दूसरे की आवश्यकता है। काले, सफ़ेद तथा कुछ -कुछ दूसरे रंगों की सहायता से एक वितान रचने की कोशिश श्याम शर्मा ने की है। छोटे -छोटे, अलग -अलग एक दूसरे से असंबद्ध था स्वायत्त से नजर आने वाले चित्रों का कोलाज एक साथ देखने पर एक तस्वीर उभरकर उसे एक भिन्न अर्थ प्रदान करते हैं।

अभी युक्रेन व रूस के बीच चल रहे युद्ध को चित्रित कर उसकी विभीषका एवं मानवजाति पर उसके घातक फलाफल को सामने लाने की कोशिश की गई गई। युद्ध किस प्रकार टूटन, ध्वन्स , बिखराव, अलगाव व हिंसा को जन्म देता है इसको विजुअली पकड़ने की कोशिश की गई है। यहां भी काले रंग को इस्तेमाल में लाया गया है। काली बिल्लियों, उसकी गतियों, पदचापों व भंगिमाओ के माध्यम से युद्ध को अभिव्यक्ति करने का प्रयास किया गया है। श्याम शर्मा के यहां काला रंग एक स्थाई उपस्थिति की तरह है। काले रंग के संबंध में वे खुद कहते हैं इस रंग में ‘ एक सस्पेंस है, संभावना है, साथ ही बोल्डेनेस भी। काले के बीच -बीच में दूसरे रंग इस तरह शामिल किये हैं जिससे उसकी तीव्रता और उभर कर सामने आती है।

लाल मिर्च, स्त्री:

इसी प्रकार लाल मिर्च भी श्याम शर्मा की कलाकृतियों में किसी न किसी रूप में प्रकट होते रहते हैं। 2019 में बने एक प्रिंट का शीर्षक ही है ‘लाल मिर्च’ । इसमें वानरनुमा आकृति सामने रखे लाल मिर्च की ओर नजर डाले है और लाल मिर्च की लाली उसके होठों तथा कान को लाल कर चुकी है। होंठ व कान चेहरे के सबसे संवेदनशील अंग माने जाते हैं। मिर्च की लाली ने इन दोनों अंगों को अपने असर में लेकर उसपर लालिमा छोड़ दी है। चेहरे का शेष हिस्सा काले रंग में है। सफ़ेद पृष्ठभूमि के साथ हल्के मटमैले रंग की कुछ आकृतियाँ इस छापा चित्र में हैं।

इसी साल बने एक ‘काली’ नामक कृति में लाल मिर्च का लाल रंग और काली माँ के निकले जीभ का लाल रंग एक विचित्र प्रभाव सृजित करता है। काली माँ को स्वाभाविक रूप से काले रंग में तो रखा ही गया है साथ -साथ कुछ सफ़ेद रेखाएं भी हैं। यह सब मिलकर तस्वीर को बहुअर्थी बनाते हैं जिसे देखने वाला अपने -अपने ढंग से अर्थ निकाल सकता है।

ठीक इसी प्रकार ‘मेरी आशा’ और ‘शेष’ में लाल मिर्च के कई शेड्स लाने की कोशिश की गई है। श्याम शर्मा ने लाल मिर्च को क्षैतिज आकार में बनाया है तथा नीचे की ओर से चींटियों का समूह मिर्च को कुतर चुका है । अमूमन मिठाई में चींटी का लगना स्वाभाविक माना जाता है। लेकिन मिठाई के बदले मिर्चाई में चींटी देखने वाले के मन में उत्सुकता पैदा करते हैं। ‘मेरी आशा’ शीर्षक चित्र विशेष तौर पर ध्यान आकृष्ट करती है तथा देखने वाले को ठहरने पर विवश करती है। लाल मिर्च श्याम शर्मा की इस प्रदर्शनी में कई बार आता है।

जैसे ‘हम तुम ‘ शीर्षक प्रिंट जो पति -पत्नी के आपसी संबंधों वाली थीम पर बनाई गई है। इसमें दाम्पत्य जीवन के खट्टे -मीठे संबंधों को अभिव्यक्त करने के लिए लाल मिर्च के बिंब का सृजनात्मक इस्तेमाल किया गया है। ‘ मुखौटा’ में स्त्री और लाल -काले मिर्च आमने -सामने रखे गए हैं। साथ में कुछ ऐसे अमूर्त छवियाँ हैं जो प्रेक्षक के मन में कई सवाल खड़े करते प्रतीत होते हैं। ठीक ऐसे ही पेपरमैसी पर बने छापा चित्र ‘ नजर नहीं लगे’ में नींबू, मिर्च और धागे की दरवाजे के बाहर की प्रचलित छवि को पीले रंग में एक प्रभावी छापा चित्र बनाया है। पीले रंग तथा उसके विभिन्न टोन और स्त्री की मुखाकृति इस चित्र की विशेषता है।

इस पुनरावलोकन प्रदर्शनी में हिंदी कवि बाबा नागार्जुन की कविता ‘ बहुत दिनों के बाद .. पर आधारित एक वर्टिकल साइज का प्रभावी प्रिंट श्याम शर्मा जी ने बनाया है। जिन लोगों ने कविता पढ़ी है और उसके केंद्रीय भाव को समझा है उसे यह प्रिंट आकर्षित करेगा। श्याम शर्मा ने कविता के मूल तत्व का विजुअल रिप्रेजेंटेशन प्रस्तुत किया है।

‘खोज’ श्रृंखला और नाटक पर बने चित्र :
श्याम शर्मा की खोज श्रृंखला के कुछ प्रिंट बाक़ी चित्रों से अपने ट्रीटमेंट, बर्ताव तथा कुछ अलग किस्म के रंग संयोजन के कारण ध्यान खींचते हैं। काला रंग पर ग्लौसी प्रभाव वाला यह प्रिंट अपनी चमक के साथ -साथ विभिन्न रंगों के आपसी संबंधो के कारण भी आकृष्ट करता है। खोज A, B, C, D आदि में बुद्ध लगातार अपनी मौजूदगी बनाये रखते हैं। कई बार स्पष्ट रूप से तो कई दफे उसका इम्प्रेशन सा नजर आता है। बुद्ध, जैसे सत्य की खोज के लिए निरंतर बेचैन रहे, इसे पकड़ने की कोशिश श्याम शर्मा ने ‘ खोज’ श्रृंखला में करने की कोशिश की है। पी.ओ.पी और वुड ब्लॉक में बने ‘कथा बुद्ध की’ तथा मिट्टी के ब्लॉक में बने ‘ निर्वाण की ओर’ मटमैले प्रभाव वाले दरार का इम्प्रेशन उसे आकर्षक बना देता है।

इसी से मिलती -जुलती नाटक पर केंद्रित उनके प्रिंट भी हैं। श्याम शर्मा का पटना के रंगजगत से जुड़ाव रहा है। नाटक पर इस प्रदर्शनी में तीन चार प्रिंट हैं। ये सभी चित्र बाकी चित्रों से बिल्कुल अलग से हैं। जो नाटक की दुनिया से परिचित होंगे वे मंच पर अंधेरा, प्रकाश के जादुई खेल से परिचित होंगे। स्याह व सफ़ेद रंग, विशेष तौर से, ऐसा इस्तेमाल किया गया है की नाटक के दृश्य, दर्शक, मंच पर घटित होने वाले कार्य व्यापार मिलकर जैसे समय को ट्रांसेंड कर रहे हों। नाटक को लेकर बनी कृतियों की रंग परियोजना शेष छापा चित्रों से एकदम जुदा प्रतीत होता है।

बुद्ध और गांधी :
बुद्ध और उससे जुड़े बिंब श्याम शर्मा की कलाकृतियों में बार -बार आते हैं। ऐसे ही महात्मा गांधी भी। महात्मा गांधी की पी.ओ.पी ब्लॉक 2014 में बनाया गया है। इस ब्लॉक में गांधी की चिंतनशील मुद्रा वाली छवि है.। 2014 के बाद जिस प्रकार हमारे देश में गांधी खास तौर से बहस के केंद्र में रहे हैं उस संदर्भ में यह चित्र अपनी खास अर्थवत्ता लिए हुए है। श्याम शर्मा के पुराने चित्रों में देखे तो 1981 में वुडब्लॉक में बनी अनुभव-A, और प्रकृति में पेड़ के तने और उसकी भीतरी बनावट को पकड़ने की कोशिश की गई है। पेड़, तने, पत्ते तथा उससे जुड़े रंगों को बखूबी पकड़ा गया है। ठीक ऐसे ही 1982 में बनी मिट्टी के ब्लॉक और स्टेन्सिल से ‘दिव्यदृष्टि’ में उल्लूनुमा आकृति में ख़ासकर लाल रंग का उपयोग बेहद आकर्षक है।

या घट भीतर :
सनबोर्ड और प्लास्टिक ब्लॉक पर बनाई गई ‘ या घट भीतर ‘ शीर्षक के अंदर कई चित्र हैं। घड़े के अंदर स्याह व सफ़ेद व थोड़े पीले रंग के उपयोग से एक जैसे सम्पूर्ण जगत को चित्रित किया गया है। प्रकृति, जीवजगत तथा मनुष्य एक ही घड़े के अंदर इस प्रकार हैं जैसे उनमें एक अंदरूनी सहकार हो। हिरण, हाथी, कीट -पतंग सभी घड़े के अंदर एक साथ अस्तित्व में हैं। दो तीन रंगों के इस्तेमाल से मन पर प्रभाव छोड़ने वाली कृति बन पड़ी है ‘ या घट भीतर ‘।

2022 में बनी ‘सफ़ेद में सफ़ेदी’ भी आकृष्ट करने वाला काम है। श्याम शर्मा ने सनबोर्ड और एम.सिल ब्लॉक पर अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है। ज्यामीतीय आकारों, बिंदुओं तथा कई पारंपरिक चिन्हो की सहायता से ऐसे अमूर्त भावों को प्रकट किया जिसमें पुरातन अहसास निहित प्रतीत होता है। ‘ श्यामली’ , ‘नीला आदमी’, ‘कोयल काली’, ‘परिक्रमा’, ‘घर अपना -अपना’, ‘ स्याह – सफ़ेद’ सरीखी कृतियाँ छापा चित्रकला के उल्लेखनीय उदाहरण की तरह हैं।

श्याम शर्मा के पुराने और नए कामों को देखने पर एक निरंतरता व अलगाव दोनों महसूस किया जा सकता है। पहले और बाद के छापाचित्रों में सब्जेक्ट को देखें तो एक तरह के नजर आते हैं, उसमें ज्यादा बदलाव नहीं नजर आता है। लेकिन तकनीकी दक्षता पहले के मुकाबले स्पष्ट परिलक्षित होती है। श्याम शर्मा अपने छापा चित्रों में कलात्मक रूप से लगातार सम्पन्नतर होते चले गए है,उनके इस रिट्रोसपेक्टिव में इसे साफ -साफ महसूस किया जा सकता है।

समकालीन मुद्दे पर बन चित्रों के मुकाबले अमूर्तन के छापा चित्र मन पर अधिक असर छोड़ते हैं। श्याम शर्मा के यहां अमूर्त भावों को छापा कला की अनुठे तकनीक प्रयोगों के साथ अभिव्यक्त करने की कोशिश की गई है वहाँ चमत्कारिक प्रभाव हासिल कर पाए हैं।

श्याम शर्मा के काम में मिथकीय व धार्मिक बिंब धड़ल्ले से आते हैं। ताड़ पत्तों पर लिखे श्लोक, हिन्दू देवी -देवताओं की छवियाँ कई छापा चित्रों में आती हैं। वैसे वे चित्र अधिक सजीव व मन पर प्रभाव छोड़ते हैं जिसमें पेड़, पौधे, तने तथा उसके अंदर की जटिल बनावट, पेड़ के ऊपर उगे हरे पौधे दिखते हैं। लकड़ी के अंदर की धारीदार प्रभाव तथा उसपर अपने देशज उपकरणों से उकरी गई छवियाँ यह सब मिलकर प्रेक्षक को एक प्राचीनता का अहसास कराते हैं। ध्यान से देखने पर कई बार ऐसा प्रतीत होता है मानो हमारी अपनी सभ्यतागत स्मृति उसमें छुपी हो। मनुष्य का अपना अभ्युदय ही जैसे पेड़ों की छत्रछाया में हुआ है यह भाव उसकी स्मृति में बनी हुई है। कुछ -कुछ इस प्रकार का अहसास छापा चित्रों को देखते हुए होता है। यहां श्याम शर्मा के काम में कलात्मक प्रवीणता ऊंचाई पर जा पहुंचती है।

इस रिट्रोस्पेक्टिव से गुजरते हुए हमें छापा चित्रकला में श्याम शर्मा द्वारा स्वयं अर्जित अपने सृजनात्मक ऊँचाई को देखा और महसूसा जा सकता है। श्याम शर्मा की यह पुनरावलोकन प्रदर्शनी हमारी चाक्षुष दुनिया का विस्तार करती है, उसे समृद्ध करती है। स्पष्ट है कि श्याम शर्मा का रचना संसार समझने से ज्यादा अनुभव करने की चीज है।

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