“कला आत्मा के प्रतिध्वनित होने का अनुभव है” : डॉ. शुभ्रा नाग

रविवार की संध्या, लखनऊ स्थित ‘कला स्रोत आर्ट गैलरी’ में “एल्कमी ऑफ फॉर्म” शीर्षक से विख्यात महिला चित्रकार डॉ. शुभ्रा नाग की कृतियों की एकल प्रदर्शनी का आयोजन हुआ। यह रचनाएँ एक्रेलिक और जलरंग माध्यम में कैनवास और कागज़ पर साकार की गई हैं।

भूपेन्द्र कुमार अस्थाना

कला की दुनिया में कलाकार सदैव प्रकृति से ही प्रेरणा ग्रहण करते हैं और उसे अपनी कल्पना तथा अभिव्यक्ति का मूल स्रोत मानते हैं — इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रकृति ही अंतिम सत्य है। अनेक कलाकारों ने प्रकृति को अपनी अंतःप्रेरणा, भावनाओं और दृष्टिकोणों के माध्यम से चित्रित किया है। इस प्रदर्शनी में डॉ. शुभ्रा नाग ने भी प्रकृति को अपनी गहन कल्पनाओं और विचारों के साथ प्रस्तुत करने का सशक्त प्रयास किया है।

उनकी कला, प्रकृति, संस्कृति और मानवीय अनुभवों को एक सूत्र में बाँधती है। भारतीय और चीनी सौंदर्यशास्त्र से प्रेरित ब्रशवर्क और मिट्टी जैसे रंगों का संतुलित प्रयोग उनकी कृतियों को विशिष्टता प्रदान करता है। “Alchemy of Forms” में परंपरागत चित्रण तकनीकों को समकालीन दृष्टिकोण के साथ संयोजित किया गया है, जो उनकी सौंदर्य-चेतना और आध्यात्मिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।

प्रदर्शनी के उद्घाटन अवसर पर वरिष्ठ कलाकार जयकृष्ण अग्रवाल ने कहा, “शुभ्रा के कार्यों में उनका व्यक्तित्व झलकता है। कलाकार जिस परिवेश में जीता है, उसकी सोच और संवेदनाएँ स्वाभाविक रूप से उसके सृजन में प्रतिबिंबित होती हैं।” उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि उनकी जलरंग कृतियों में पारदर्शिता का अद्भुत सौंदर्य देखने को मिलता है, और चीन में निवास के दौरान वहाँ की कला का प्रभाव भी उनकी रचनाओं में स्पष्ट परिलक्षित होता है।

डॉ. शुभ्रा नाग की चिंतनशील कला-दृष्टि:

“कला आत्मा के प्रतिध्वनित होने का अनुभव है — एक गतिशील सह-अस्तित्व, जिसमें कलाकार और दर्शक दोनों की उपस्थिति आवश्यक होती है। प्रकृति के रूप, स्वरूप और प्रकाश की लय मुझे निरंतर प्रेरित करती रही है। ध्यान केंद्रित करना, माइंडफुलनेस (सजगता) की ओर ले जाता है, जो न केवल वर्तमान में रहने की कला है, बल्कि आंतरिक संतुलन, भावनात्मक लचीलापन और आत्म-विकास का स्रोत भी है।”

“मेरे लिए यह कला, मानवीय अंतर्संबंधों और परिवेश के साथ हमारी अस्थिर परंतु गहन जुड़ाव की यात्रा है। विचारों और इच्छाओं की भीड़ के बीच एक शांत विराम — एक क्षणिक अनुभूति जो प्राकृतिक रचनात्मकता की ओर ले जाती है।”

प्रकृति और कला का अंतरसंबंध:

संस्कृतियाँ प्रकृति के साथ गहरे संबंधों में विकसित हुई हैं। लेकिन आज के तीव्रगामी जीवन में, हम प्रकृति से कटते जा रहे हैं। धरती की गहराई और व्यापकता को अनदेखा करना अस्तित्वगत प्रश्नों को जन्म देता है। प्रकृति का अवलोकन न केवल सौंदर्यबोध को जागृत करता है, बल्कि हमें संरक्षण, जिम्मेदारी और टिकाऊ व्यवहार की ओर भी प्रेरित करता है।

डॉ. शुभ्रा नाग की समवर्ती कला-प्रथाएँ — मौन संप्रेषण, प्रकाश, तरलता और चिंतनशील कल्पनाओं के माध्यम से एक न्यूनतम दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती हैं। उनकी रचनाओं में एक ऐसा विराम है, जो हमें दृश्य के पार देखने और भावनाओं के पार महसूस करने का निमंत्रण देता है।

कलाकार का जीवन और कार्यक्षेत्र:

डॉ. शुभ्रा नाग वर्तमान में नई दिल्ली में निवास करती हैं। वह एक प्रतिष्ठित कला-शिक्षिका, शोधकर्ता, कला इतिहासकार और सौंदर्यशास्त्र, संस्कृति एवं पारिस्थितिकी पर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर स्पष्ट वक्ता के रूप में जानी जाती हैं। उनकी कृतियाँ अनेक राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय संग्रहों में संग्रहीत हैं — जिनमें ललित कला अकादमी, राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, दिल्ली आर्ट गैलरी, झेजियांग विश्वविद्यालय (चीन), राम छतपर शिल्पन्यास, और दक्षिणचित्र जैसे संस्थान प्रमुख हैं। उनकी कृतियों की प्रदर्शनी भारत, चीन और नेपाल में आयोजित हो चुकी हैं।

शैक्षणिक पृष्ठभूमि:

  • जन्म: 1981, बनारस (उत्तर प्रदेश)

  • कला शिक्षा: लखनऊ कला महाविद्यालय (1996–2001)

  • स्नातकोत्तर: काशी हिंदू विश्वविद्यालय, दृश्य कला विभाग (2003)

  • डिप्लोमा: एन.आर.एल.सी. लखनऊ से कला संरक्षण (2004)

  • उच्च शिक्षा: चीन अंतरराष्ट्रीय कला अकादमी से फिगरेटिव पेंटिंग (2006)

  • पीएच.डी. काशी हिंदू विश्वविद्यालय से दृश्य कला में शोध (2014)

  • भारत सरकार द्वारा छात्रवृत्ति प्राप्तकर्ता

  • बीते दो दशकों में भारत एवं विदेशों के अनेक मंचों पर सहभागिता

वर्तमान में वह दिल्ली के शिक्षा निदेशालय में वरिष्ठ कला शिक्षिका के पद पर कार्यरत हैं और यूजीसी से मान्यता प्राप्त विदुषी के रूप में कला समीक्षा व लेखन में भी सक्रिय हैं।


– भूपेंद्र कुमार अस्थाना, 15 जून 2025

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