- पटना में ‘इमेजिनेटिव’ संस्था द्वारा पांच दिवसीय समूह प्रदर्शनी का आयोजन
अनीश अंकुर मूलतः संस्कृतिकर्मी हैं, किन्तु अपनी राजनैतिक व सामाजिक अभिव्यक्ति के लिए भी जाने-पहचाने जाते हैं। उनके नियमित लेखन में राजनीति से लेकर समाज, कला, नाटक और इतिहास के लिए भी भरपूर गुंजाइश रहती है। बिहार के मौजूदा कला लेखन की बात करें तो जो थोड़े से नाम इस विधा में सक्रिय हैं उनमें से एक महत्वपूर्ण नाम अनीश अंकुर हैं। उनकी सदैव कोशिश रहती है बिहार से बाहर के कला जगत को बिहार की कला गतिविधियों से रूबरू कराते रहा जाए। पिछले दिनों बिहार ललित कला अकादेमी की दीर्घा में पांच युवा कलाकारों की एक समूह प्रदर्शनी आयोजित हुयी। आलेखन डॉट इन के अनुरोध पर प्रस्तुत है इन युवा कलाकारों के सृजन संसार पर अनीश अंकुर की यह विस्तृत समीक्षात्मक रपट……
पिछले दिनों पटना स्थित ‘बिहार ललित कला अकादमी’ के ‘ बहुद्देशीय सांस्कृतिक परिसर’ में बिहार के पाँच कलाकारों की समूह प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। 26 मार्च से 31 मार्च तक चले वाले इस पांच दिवसीय प्रदर्शनी का आयोजन ‘इमेजिनेटिव’ संस्था द्वारा किया गया था। इस समूह प्रदर्शनी में शामिल पांच कलाकार थे अमित कुमार, मनीष उपाध्याय, रामु कुमार, मोहम्मद सुलेमान और सुमित ठाकुर। इन पांच में रामू को छोड़ सभी चित्रकार थे।
प्रदर्शनी का उदघाटन बिहार कला संग्रहालय के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह ने किया। इस मौके पर संग्रहालय के अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा भी उपस्थित थे।
इस प्रदर्शनी से न सिर्फ इन पांच चित्रकारों व मूर्तिकारों के बारे में बल्कि राज्य बिहार के युवा कला जगत की एक झलक दिखाई पड़ी। प्रदर्शनी में सभी कलाकारों के निरंतर विकसित हो रहे कला व्यक्तित्व से परिचित हुआ जा सकता था। इनकी कृतियों में एक विशिष्ट छाप छोड़ने की जद्दोजहद को महसूस किया जा सकता है।
अमित कुमार :
युवा चित्रकार अमित कुमार का ‘ पोर्ट्रेट ऑफ महात्मा’, ‘ बुद्धा’, ‘ होली वाल’, ‘बॉलीवुड एंड माई प्लाईवुड’, ‘ टॉर्न कौरुगेटेड’, ‘बाइस्कोप’ तथा अन्य कालकृतियाँ इस समूह प्रदर्शनी का हिस्सा थीं। अमित कुमार की अधिकांश रचनाएँ एक्रिलिक माध्यम में सृजित हैं।
अमित कुमार की हर कलाकृति में एक अलग पैटर्न नजर आता है । 2020 में महात्मा गांधी पर बने तस्वीर को उन्होंने गोलाकार कैनवास पर बनाया है। गांधी जी के 150 वीं वर्षगाँठ पर केंद्रित इस तस्वीर के लिए उन्होंने कत्थई रंग का इस्तेमाल किया है। बीच में सफ़ेद का कहीं- कहीं प्रभाव दिखता है. तस्वीर देखने से जंग खाये लोहे के टेक्सचर का अहसास होता है जो इस बात को अभिव्यक्त करता प्रतीत होता है कि गांधी जिन विचारों व मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते थे वे लम्बे समय से मानव जाति के मूल्य रहे हैं।
ठीक ऐसा ही प्रभाव वे इसी वर्ष बने ‘बुद्ध’ के चित्र से छोड़ने का प्रयास करते हैं। इस चित्र के किनारे से भी जँग लगे लोहे का इफेक्ट आता है। तस्वीर की विशेषता बुद्ध में नहीं बल्कि कैनवास के कलात्मक बरताव में है।
बुद्ध की प्रचलित छवि को कैनवास के रंग संयोजन में प्रयोग कर एक अर्थ प्रदान करने की कोशिश की गई है। यहां भी प्रेक्षक को ऐसा अहसास होता है कि प्राचीन छवियाँ आज भी अपनी प्रासंगिकता ढूंढने का प्रयास कर रही हैं।इन दोनों चित्रों में कैनवास का कलर स्कीम ध्यान आकृष्ट करता है।
इन चित्रों से भिन्न प्रभाव 72/48 इंच में बने ‘ होली वाल’ चित्र में है। थोड़ी दूर से देखने पर कैनवास पर साड़ी टंगे होने का अहसास होता है। हरे रंग की साड़ी को जैसे दीवाल वगैरह पर सूखने के लिए टांगा जाता है उस छवि को पकड़ने की कोशिश की गई है। कैनवास पर धर्म से संबंधित पंक्तियों को लिखा है जिस कारण दीवाल को ‘होली वाल’ यानी पवित्र दीवार के रूप में चित्रित किया गया है। अमित कुमार के बाकी चित्रों के बरक्स इस चित्र का रंग संयोजन थोड़ा अलग दिखता है। बाकी के ऐक्रेलिक से इतर ‘होली वाल’ तैलचित्र माध्यम में बना है।लेकिन अमित ने कैनवास का रचनात्मक इस्तेमाल करते हुए उसे एक विशिष्ट रंगबोध प्रदान करने का प्रयास किया है। दो तस्वीरों में अमित कुमार ने प्लाइवुड का इफेक्ट पैदा करने का प्रयास किया है। हल्के कत्थई रंग से पेंट कर अमित ने प्लाईवुड के छोटे -छोटे ब्योरों तक को कैनवास पर उतारा है।
‘टॉर्न कारूगेटेड’ एक अलग किस्म का काम दिखता है। इस चित्र में इंस्टालेशन का प्रभाव दिखता है। 72/48 इंच के लम्बे भूरे कैनवास के एक कोने पर पुराने रंगीन डाक टिकटों को सजाया हुआ है। डाक टिकटों वाला हिस्सा कुछ इस प्रकार से एकस्पोजड है जो देखने वाले को यह इम्प्रेशन देता है कि इस भूरे परत के नीचे रंगीन व पुराने डाक टिकट हैं। सिर्फ एक छोटे से हिस्से को फाड़कर उसका अहसास कराया गया है। इस तस्वीर को देखना एक भिन्न दृश्यानुभव से गुजरना है।
यह एक ऐसे ही बालीवुड पर बने चित्र में अमिताभ बच्चन की फिल्मों के डायलौग तक लिख डाला है।यह चित्र देखने वाले को सत्तर औरअस्सी के सुपर स्टार वाले दशक में हमें ले जाता है।
फिल्मों पर आधारित एक चित्र ‘बाइस्कोप’ शीर्षक भी है। हम सब के जेहन में, बाइस्कोप में फ़िल्मी सितारों को देखने का अनुभव मौजूद रहता है।अशोक कुमार, मीना कुमारी, संजीव कुमार सरीखे पुराने ज़माने के फिल्मे सितारों को एक क्रम में ठीक उसी प्रकार रखा है जैसे वे बाइस्कोप में एक के बाद एक दिखती नजर आती हैं। इस चित्र में हिट हिंदी फिल्मों के प्रमुख व लोकप्रिय संवादों को अपनी पेंटिंग का हिस्सा बनाया है। यहां संयोजन पर विशेष ध्यान रखा गया है। यहां भी अमित कुमार ने पुराने समय को सामने लेने के लिए कत्थई रंग का उपयोग किया है। कत्थई या भूरा रंगअमित कुमार का पसंदीदा रंग प्रतीत होता है। अमित के कैनवास अमूमन बड़े होते हैं। वे बड़े फलक पर चित्र बनाना पसंद करते हैं। मास मीडिया की पॉपुलर छवियों को वे अपने चित्रों का आधार या विषय बनाते हैं।अमित कुमार के चित्रों में एक फिजिकल क्वालिटी रहा करती है। उनकी कलाकृतियों को देखते हुए आपको कई स्तरों का अहसास होता है ।
मनीष उपाध्याय :
मनीष उपाध्याय के लगभग सभी काम में प्रेक्षक का सामना एक नीले कैनवास से होता है। उनकी अधिकांश कृतियाँ ” इनोसेंट-9, इनोसेंट-24, इनोसेंट-25, इनोसेंट श्रृंखला का हिस्सा हैं । नीले रंग के कैनवास पर बच्चे की निर्दोष भंगिमा को पकड़ने की कोशिश मनीष उपाध्याय द्वारा इस श्रृंखला में विशेष तौर पर दिखती है। 2012 से 2020 के दौरान बनी इस सीरीज में मनीष ने गरीब या आभाव ग्रस्त जीवन के खिलन्दड़ापन को कैद करने की कोशिश की है, जो उनके चित्रों में दिखती है। इस श्रृंखला के सभी चित्र एक्रिलिक माध्यम में बने हैं और ज्यादातर कैनवास के साइज 48 /72, 48/36 इंच के हैं।
भैंसकी पीठ पर सवार दो किशोरों की सेल्फी लेते हुए तस्वीर विशेष रूप से ध्यान आकृष्ट करती है ।ठीक ऐसे ही भारत के मानचित्र के समक्ष रंगीन चश्मा पहने नंगे बदन किशोर के खड़े होने के ढंग से उसकी समाजिक -आर्थिक पृष्ठभूमि का पता चलता है।
इसी कड़ी में मनीष उपाध्याय ने ‘बुद्ध-2’ भी चित्रित किया है। इस चित्र में वही नंगे बदन वाला नीला किशोर बुद्ध के समक्ष भिक्षापात्र लिए खड़ा है और सीढ़ियों से उतरते बुद्ध हल्के निरपेक्ष भाव से आशीर्वाद की मुद्रा में हैं। नीले कैनवास, नीले बदन के बीच बुद्ध का लाल वस्त्र और पीले- सफ़ेद रंग की सीढ़ी आदि इनोसेंट सीरीज की निरंतरता में ही नजर आता है।
यदि रंगों के लिहाज से देखें तो ‘ दुर्गा-4’ कुछ अलग है वैसे नीला कैनवास यहां भी मौजूद है। इस चित्र में मनीष ने शेर पर सवार दुर्गा के विभिन्न हाथों में पिस्तौल, कैंची, मोबाइल, बेलन, माइक आदि दर्शाया है। चित्रकार ने दुर्गा की पारम्परिक छवि को स्त्री के समकालीन अर्थ से जोड़ा है। यहाँ शेर की तिरछी नज़र भी ध्यान खींचती है।
ठीक इसी प्रकार एक चित्र ‘टाइम इज फ्लाइंग’ शीर्षक से है जिसमे तेज गति से दौड़ते घोड़े पीछे मुड़ घड़ी की ओर निहारते हैं। मनीष उपाध्याय के यहाँ नीला रंग प्रधान रहा करता है। दूसरे रंग उसके बाद आते हैं। परन्तु रंगों का चयन उन्होंने इस प्रकार किया है कि कोई रंग आँखों को चुभे नहीं, साथ ही अपने चित्रों से वे एक नैरेटिव भी गढ़ने का प्रयास करते हैं।
रामू कुमार :
पांच कलाकारों की इस समूह प्रदर्शनी में रामू कुमार इकलौते मूर्तिकार हैं। रामू कुमार की बनाई मूर्तियां बिहार के गांधी संग्रहालय से लेकर अन्य जगहों पर सुशोभित हैं। इस प्रदर्शनी में रामू के लगभग 20- 22 वर्षो के दौरान का काम शामिल हैं। इनमें सबसे पुराना काम 2001 का है। रामू ने कई माध्यमों में हाथ आजमाया है। टेराकोटा, ब्राउन्ज, फाइबर ग्लास, एल्युमीनियम इन सबों में बनाई उनकी कृतियाँ इस प्रदर्शनी का हिस्सा हैं।
टेराकोटा माध्यम में उनका एक प्रमुख काम ‘मदर एंड चाइल्ड’ है। इस सीरीज के दो काम हैं। पहला काम 2018 का जबकि दूसरा 2022 का है। पहली कृति का साइज 40/21/17 जबकि दूसरी का 60/34/26 है । पहली कृति पूर्व में भी प्रदर्शनियों का हिस्सा रह चुकी है। इस पहली कृति में एक शिशु पेट के बल लेटी अपनी मां की पीठ पर आकाश की ओर चेहरा कर लेटा है तथा अपनी मां के पैर से अपने पैर मिलाकर खेल रहा है। वहीं दूसरी कृति में बच्चा बैठी हुयी मां की पीठ से पीठ सटाये बैठा है।
रामू के इन दोनों कृतियों में माँ के अंदर के वातसल्य भाव को उभारने का प्रयास किया है। वैसे इस मूर्ति की छवि भारतीय जनजीवन की प्रचलित छवि ही है परन्तु आपने हाथों के कलात्मक इस्तेमाल से रामू ने मां एवं शिशु के मध्य के वातसल्य व लगाव को अभिव्यक्त करने की सफल कोशिश की है। टेराकोटा माध्यम में ही एक अन्य काम है ‘थिंकर’। चिंतन की भावप्रवण मुद्रा में बैठे पुरुष की आकृति यहाँ है।
यदि फाइबर में देखें तो ‘टू वोमेन’ और ‘इन सर्च ऑफ़ ट्रुथ’ महत्वपूर्ण काम है। ‘टू वोमेन’ में दो उम्रदराज महिलाएं एक दूसरे के आगे पीछे, एक दूसरे से मुखातिब नजर आती हैं। उन दोनों के संबंधों में एक अदृश्य तनाव अभिव्यक्त होता है। रामू कुमार ने उन महिलाओं के देखने और देह में हल्का मोड़ लाकर यह भाव प्रकट किया है।
‘इन सर्च ऑफ ट्रुथ’ में बौद्ध भिक्षु समूह नालंदा के खंडहरों में विचरण कर रहे हैं । फाइबर की यह कृति ऊपर से देखने पर तो सामान्य प्रतीत होती है पर गौर से देखने पर सत्य, अहिंसा, परिग्रह से जुड़े भाव देखने वाले के अंदर आते हैं। रामू सामग्री का इस कदर सृजनात्मक उपयोग कर उसमें मनोवांछित प्रभाव पैदा कर पाते हैं। फाइबर में ‘लॉकडाउन’ भी प्रदर्शनी में शामिल है। लॉकडाउन की प्रचलित परिघटना को अमूर्त आकार देने की कोशिश यहाँ की गई है।
रामू कुमार के अन्य महत्वपूर्ण कामों में है अलयुमिनियम माध्यम में निर्मित ‘ ग्रोथ’। पृथ्वी के सतह से जीवंनांकुरो के उभरने की प्रक्रिया को इसमें आकार देने की कोशिश गई है।
रामू कुमार गांधी पर अपने काम के लिए चर्चित रहे हैं। प्रदर्शनी में ब्राउन्ज में गांधी की आकृति को उन्होंने ‘ थॉट सेलर’ के रूप में ढ़ाला है। महात्मा गांधी की मुखाकृति के साथ उनके माथे को खुला रख गांधीवाद के प्रतीक स्वरूप उनके तीन बंदरों को रखा गया है। यह मूर्ति गांधी के चिंतन के आयाम को सामने लाता है। रामू के कार्यों में सामग्री के साथ लगाव व बरताव के सहजता व स्वाभाविकता नजर आती है।
सुमित ठाकुर :
सुमित ठाकुर की पेंटिंग्स एक्रिलिक में बनाई गई है। ‘गोल्ड़न लेडी’ श्रृंखला के चित्र इस प्रदर्शनी का हिस्सा हैं । सुमित ठाकुर ने स्त्रियों को अपने चित्रों का विषय बनाया है। कैनवास पर इनकी स्त्रियां एक दूसरे से संबोधित करती नजर आती साथ ही उनके मध्य का अंदरूनी तनाव भी उभर कर आया है। एक कैनवास में कई स्त्रियों को अलग -अलग मुद्रा में चित्रित किया है । हल्के पीले, लाल और काले रंगों की मदद से सुमित ठाकुर ने अपनी समकालीन स्त्री की भावनाओं को चित्रित करने की कोशिश की है। उनके रंग संयोजन में पीला रंग प्रमुखता से उभर कर आया है। पीले रंग के कई टोन सामने लाये गए हैं। पीले के साथ लाल रंग का भी उपयोग किया गया है। कुछ चित्र में लाल रेखा के रूप में तो कई में लाल रंग अधिक स्पेस घेरता है। वैसे लाल रंग में टोन की विविधता इतनी अधिक नहीं है।
इम्प्रेशनिस्ट प्रभाव वाले इन चित्रों में स्त्री व्यक्तित्व के विविध स्वरूप कैनवास पर आकार ग्रहण करते प्रतीत होते हैं । इन चित्रों की खासियत इनका प्रेक्षक के अंदर भवानाओं का संचार करना है। चित्र संकेत में कुछ कहते प्रतीत होते है। चित्र अपने स्पेस, संरचना और रंगों के अलग -अलग आयाम के कारण भी आकृष्ट करते हैं। एक रंग से दूसरे में सहज व स्वाभाविक रूपांतरण होता है।
मोहम्मद सुलेमान :
पांच दिवसीय इस प्रदर्शनी के पांचवे कलाकर सुलेमान के अधिकांश चित्र अपेक्षाकृत छोटे आकर के हैं। सुलेमान के चित्र हिन्दू धार्मिक व मिथकों को आधार पर बनाई गई है। बैल, हाथी सरीखे जानवर जो हमारे देवताओं की सवारी हुआ करते हैं । सुलेमान ने उन्हें अपने चित्रों का विषय बनाया है। अमूमन हल्के हरे रंग के कैनवास वाली पृष्ठभूमि पर चित्रकार ने आकृतियाँ उभारने की कोशिश की है। हरे कैनवास पर कत्थई रंग का प्रमुखता से उपयोग किया गया है। साथ ही लाल रंग भी इस्तेमाल में लाया गया है। भूरा रंग सुलेमान की रंगपरियोजना का अविभाज्य हिस्सा है।
एक कैनवास भले लाल रंग का है परन्तु भूरा रंग स्थाई रूप से उनकी कृतियों में बना रहता है। इस लिहाज से देखें तो सुलेमान भले धर्म संबंधी विषयों तक सीमित हों लेकिन उनके रंगों के उपयोग में एक रचनात्मक प्रतिभा के संकेत मिलते हैं। बैठे हुए गणेश की तस्वीर जिसमें उनके हाथों में कुल्हाड़ी और उनकी सवारी चूहे की अत्यंत छोटी उपस्थिति तथा लाल, पीले, बैंगनी, भूरे रंगों का उपयोग तथा स्पेस डिवीजन व कम्पोजीशन इसे विशिष्ट बनाते हैं।
इसके अलावा उनके द्वारा बनाई आकृतियों में एक गठन, एक संतुलन तथा सफाई दिखाई पड़ता है। इन्हीँ वजहों से सुलेमान रंगों रेखाओं की सहायता से दर्शकों पर प्रभाव छोड़ने में सफल रहते हैं।
इन पांच कलाकारों की प्रदर्शनी को देखा जाए तो सभी युवा कलाकार अपनी-अपनी कला भाषा को अर्जित करने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। इन सबों में एक कलात्मक दक्षता हासिल करने की दिशा में अग्रसर होने की ललक दिखती है। हाँ विषय के स्तर पर देखें तो अधिकांश पुरानी किस्म की प्रचलित छवियों के प्रभाव में नजर आते हैं। अपनी शैली को लेकर ये अभी जितने सतर्क व सावधान हैं; अपने कंटेंट को लेकर पुरानी पीढ़ी के नजर आते हैं। यदि कुछ बने बनाये क्लिशे को लेकर अपने पूर्वाग्रहों से मुक्त हो सकें तो उनकी तरक्की और बेहतर होगी। यदि दूसरे शब्दों में कहें तो जिस प्रकार कला की बारीकियों, रंगों के इस्तेमाल तथा रेखाओं को लेकर इनमे जैसी सजगता दिखती है; वैसी ही सतर्कता क्या बना रहे हैं उसे लेकर रहे तो उनके काम में और अधिक निखार आएगा।