शांभवी सिंह के Lullaby यानी “लोरी” शीर्षक की सात कलाकृतियां शामिल हैं वरिष्ठ कलाकार ज़रीना हाशमी को समर्पित उस समूह प्रदर्शनी में जिसका शीर्षक है उफ़ुक़ यानि क्षितिज। बड़े आकर में लोहे से बने सात पंखों का यह सेट शांभवी सिंह की उन यादों पर आधारित हैं जो बिहार में अपने दादा के खेत-खलिहान, गांव -घर और अपनेपन को सहेजे हुए हैं। इन यादों में समाहित है ताड़ के पेड़ों से घिरे वे खेत, जहाँ ये पेड़ झुलसती गर्मियों में छाया और आश्रय प्रदान करते थे। हवा में लहराते हुए ये पेड़ पसीने से तरबतर किसानों को माँ की गोद जैसी सुरक्षा का अहसास दिलाते थे। बिहार के भोजपुरी अंचल में अक्सर होता यह था कि गर्मियों में जब कोई बच्चा सोता था तो मांएं पंखा झलती थी, ताकि बच्चे को गर्मी की तपन से राहत मिले और वो सुकून की नींद ले सके। यूं तो ये पंखे कई प्रकार के होते थे लेकिन सबसे ज्यादा प्रचलित थे ताड़ के पत्तों से बने खास तरह के पंखे। शाम्भवी सिंह ने यहाँ खेती के लिए उपयोग में लाये जाने वाले कृषि उपकरणों का प्रयोग करते हुए सात विशाल पंखों की संरचना की है। इसके माध्यम से शाम्भवी उन क़ीमती व अविस्मरणीय क्षणों की स्मृतियों को दुहराती प्रतीत होती हैं । इस तरह लोरी शीर्षक ये कलाकृतियां शाम्भवी की ओर से जरीना के लिए एक व्यक्तिगत श्रद्धांजलि है।
बताते चलें कि उफुक शीर्षक यह प्रदर्शनी दस कलाकारों द्वारा जरीना हाशमी की कलात्मक और बौद्धिक विरासत को संजोने का एक प्रयास है। यह शीर्षक उनके द्वारा 2001 में रचे वुडकट माध्यम की कलाकृतियों से लिया गया है। इस प्रदर्शनी में शाम्भवी के अलावा अनीता दुबे, अंकुश सफाया, आस्था बुटैल, हेमाली भूटा, मिठू सेन, पारुल गुप्ता, शौर्य कुमार, श्रेयस कार्ले एवं वकास खान की कलाकृतियां शामिल हैं।
यूं तो ज़रीना हाशमी (16 जुलाई 1937 – 25 अप्रैल 2020) समकालीन कला जगत की बेहद चर्चित नाम रहीं हैं । किन्तु उनका एक संक्षिप्त परिचय कुछ यूं है : जरीना रशीद का जन्म 16 जुलाई 1937 को अलीगढ़ में तत्कालीन ब्रिटिश भारत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के फैकल्टी शेख अब्दुर रशीद और गृहिणी फहमीदा बेगम के घर हुआ। जरीना ने 1958 मेंअलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से ही गणित, बीएस (ऑनर्स) की डिग्री हासिल की। उसके बाद उन्होंने पहले थाईलैंड और फिर पेरिस में एटेलियर 17 स्टूडियो में, स्टैनली विलियम हेटर तथा टोक्यो, जापान में प्रिंटमेकर तोशी योशिदा के संरक्षण में प्रिंटमेकिंग यानी छापाचित्रण का अध्ययन किया। बाद के वर्षों में वह न्यूयॉर्क शहर में रहकर सृजनरत रहीं।1980 के दशक के दौरान, जरीना ने न्यूयॉर्क फेमिनिस्ट आर्ट इंस्टीट्यूट के बोर्ड सदस्य और संबद्ध महिला सेंटर फॉर लर्निंग में पेपरमेकिंग कार्यशालाओं के प्रशिक्षक के रूप में कार्य किया। नारीवादी कला पत्रिका हेरिसिज़ के संपादकीय बोर्ड में रहते हुए, उन्होंने “थर्ड वर्ल्ड वुमन” मुद्दे में अपना विशेष योगदान दिया। 25 अप्रैल 2020 को अल्जाइमर रोग की जटिलताओं से जूझते हुए लंदन में उनकी मृत्यु हो गई। वैसे उनका कला संसार ड्राइंग, प्रिंटमेकिंग और मूर्तिकला जैसी विधा तक फैला है। मिनिमलिस्ट आंदोलन से जुड़ी ज़रीना ने अपनी कलाकृतियों में अमूर्त और ज्यामितीय रूपाकारों को भी अपनाया।
इस प्रदर्शनी को क्यूरेट किया है डॉ. अर्शिया लोखंडवाला ने तथा इसकी प्रस्तुतकर्ता हैं सुनैना केजरीवाल। कमल नयन बजाज आर्ट गैलरी, मुंबई में 5 फ़रवरी से शुरू हुयी यह प्रदर्शनी 12 मार्च तक जारी रहेगी।