चितेरी ललिता लाजमी का जाना

वरिष्ठ कलाकार ललिता लाजमी ने 13 फ़रवरी को इस असार संसार से अपना नाता तोड़ लिया। बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी ललिता लाजमी फ़िल्मी दुनिया से लेकर कला की दुनिया के लिए एक परिचित हस्ताक्षर थीं। प्रस्तुत है उनके जीवन के विभिन्न पक्षों को रेखांकित करता कलाकार/ कला लेखक भूपेंद्र अस्थाना का यह आलेख, आलेखन डॉट इन के पाठकों के लिए….

Bhupendra Asthana

यदि आपने प्रसिद्ध अभिनेता आमिर खान की फिल्म तारे जमीन पर देखी हो तो उस फिल्म में जब एक चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित होती है तो प्रतियोगिता में निर्णायक की भूमिका में एक महिला आती हैं। वह महिला कोई और नहीं बल्कि देश की प्रसिद्ध चित्रकार और प्रसिद्ध निर्देशक गुरुदत्त साहब की बहन एवं फिल्म मेकर कल्पना लाजमी की माँ ललिता लाज़मी होती हैं। फिल्म में उनका परिचय स्कूल के प्रिंसिपल से यह कहते हुए कराया जाता है – ये ललिता लाज़मी जी हैं, मशहूर चित्रकार हैं। असल जीवन में भी उनका यही परिचय था। वही सौम्य व्यक्तित्व, वही शालीन व्यवहार। आज (13 फ़रवरी 2023 ) को सुबह 11:30 बजे चित्रकार ललिता लाजमी का निधन हो गया। वे 90 साल की थीं। अभी हाल ही में 12 जनवरी 2023 को एन जी एम ए, मुंबई में ललिता लाजमी की रेट्रोस्पेक्टिव प्रदर्शनी का उद्घाटन अभिनेता आमिर खान सहित अन्य अतिथियों की उपस्थिति में किया गया था। यह प्रदर्शनी अभी 26 फरवरी 2023 तक जारी रहेगी ।


मेरी मुलाक़ात लाज़मी जी से 2015 में जयपुर आर्ट समिट के दौरान हुई थी। ललिता लाजमी (जन्म 17 अक्टूबर 1932 – मृत्यु 13 फरवरी 2023) एक भारतीय चित्रकार थीं। वह कलाकार परिवार में पैदा हुई एक स्व-प्रशिक्षित कलाकार थीं, बचपन से ही उन्हें शास्त्रीय नृत्य का बहुत शौक था। वह हिंदी फिल्म निर्देशक, निर्माता और अभिनेता गुरु दत्त की बहन थीं । 1994 में, उन्हें नेहरू सेंटर, लंदन में भारतीय उच्चायुक्त गोपालकृष्ण गांधी द्वारा आयोजित गुरुदत्त फिल्म महोत्सव में उन्हें आमंत्रित किया गया था। उनकी कलाकृतियां उनके भाई गुरुदत्त, सत्यजीत रे और राज कपूर द्वारा बनाई गई भारतीय फिल्मों से भी प्रभावित थीं।

एक साक्षात्कार में ललिता लाजमी ने कहा था कि, मध्यम वर्गीय पृष्ठभूमि से होने के कारण, उनका परिवार उन्हें शास्त्रीय नृत्य कक्षाओं में शामिल होने का जोखिम नहीं उठा सकता था। वह एक पारंपरिक परिवार से थीं और इसलिए उन्होंने कला में रुचि विकसित की। उनके चाचा बी.बी. बेनेगल, जो कोलकाता के एक व्यावसायिक कलाकार थे, उनके लिए पेंट का एक डिब्बा लाए। उन्होंने 1961 में गंभीरता से पेंटिंग शुरू की, लेकिन उन दिनों कलाकृतियों का कोई बाजार नहीं था और इसलिए आर्थिक रूप से खुद का समर्थन करने के लिए उन्हें एक कला विद्यालय में पढ़ाना पड़ा। अध्यापन के दौरान उन्होंने विकलांग और वंचित बच्चों के साथ काम किया। एक जर्मन कला संग्राहक डॉ. हेंजमोड को महज 100 रुपये उन्होंने अपनी पहली पेंटिंग में बेची थी। हेंजमोड उनकी कलाकृतियां खरीदते रहे और बदले में उन्हें जर्मन कलाकारों की कृतियाँ या कुछ किताबें देते थे । लाज़मी के माता-पिता मूल रूप से कारवार में बसे थे, लेकिन बाद में बैंगलोर में स्थानांतरित हो गए।

उनके पिता एक कवि थे और उनकी मां एक बहुभाषी लेखिका। वह भवानीपुर में पली-बढ़ी। उनके चाचा बी.बी. बेनेगल बचपन से ही उन्हें पेंटिंग बनाते रहने के लिए प्रोत्साहित करते रहे। और पहली बार उनके लिए पेंट का एक डब्बा लेकर दिया तथा एक प्रतियोगिता के लिए उनकी कलाकृति भेजी। बाद में उन्हे पहला पुरस्कार मिला।1960 के दशक में पेंटिंग करने की उनकी ललक तेजी से विकसित हुई, और अब उन्होंने गंभीरता से पेंटिंग करना शुरू कर दिया। मुंबई के जहांगीर आर्ट गैलरी में आयोजित एक समूह प्रदर्शनी में पहली बार उनकी कलाकृति प्रदर्शित हुईं, उसके बाद 1961 में उन्होंने अपनी पहली एकल प्रदर्शनी भी आयोजित की थी। लाजमी ने दो दशक से अधिक समय तक कैंपियन स्कूल और कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी में पढ़ाया और बाद में जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला लिया ताकि वह अपनी कला में महारत हासिल कर सकें। लेकिन उनकी मां ने कहा कि चित्रकला में नहीं कमर्शियल आर्ट में आमदनी के ज़्यादा मौक़े मिलेंगे इसलिए कमर्शियल आर्ट में दाख़िला लेना पड़ा। ये वो दौर था जब देश आज़ाद हो रहा था, अपने फ़ैसले लेने की आज़ादी नहीं थी। ललिता लाजमी की कृतियाँ भारत में नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट और सी एस एम वी एस संग्रहालय और ब्रिटिश संग्रहालय में संग्रहित हैं। उन्होंने कैप्टन गोपी लाजमी से शादी की। उनकी बेटी कल्पना लाजमी चर्चित हिंदी फिल्म निर्देशक थीं।

ललिता लाजमी कहती हैं कि 1970 के दशक के अंत तक उनके काम की कोई खास दिशा नहीं थी। फिर वह तैलरंग और जलरंग में काम करने लगी। उनके 1990 के दशक की कलाकृतियां पुरुषों और महिलाओं के बीच मौजूद छिपे हुए तनावों को दिखाते हैं, वे यहाँ अपनी विभिन्न भूमिकाओं में नज़र आते हैं । लेकिन उनकी स्त्रियां विनम्र नहीं बल्कि मुखर और आक्रामक थीं। उन्होंने अपने चित्रों में काली और दुर्गा की छवियों का भी इस्तेमाल किया। उनकी सबसे करीबी प्रेरणा एक श्रृंखला थी जिसे उन्होंने “द फैमिली सीरीज़” नाम से चित्रित किया था और यह काम केमॉल्ड में प्रदर्शित किया गया था।

अपने 5 दशकों के करियर में, उन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों मंचों पर कई प्रदर्शनियाँ की थीं। उन्होंने भारत, जर्मनी और अमेरिका में अपनी कलाकृतियां प्रदर्शित की । लाजमी ने भारत और ब्रिटेन में भी कला पर व्याख्यान दिए हैं। उन्होंने मुंबई में प्रो. पॉल लिंगरीन की ग्राफिक कार्यशाला में भी अपने काम का प्रदर्शन किया और उनके दो प्रिंट्स “इंडिया फेस्टिवल” 1985, यूएसए के लिए चुनी गईं। उनका काम पृथ्वी आर्ट गैलरी, पंडोल आर्ट गैलरी, अप्पाराव गैलरी, चेन्नई , सेंटर फॉर विज़ुअल आर्ट, अहमदाबाद , आर्ट हेरिटेज, नई दिल्ली, गैलरी गे, जर्मनी सहित विभिन्न प्रसिद्ध कला दीर्घाओं में प्रदर्शित हो चुके हैं। इन प्रदर्शनियों में उनकी कालकृतियों को सराहना तो खूब मिली, किन्तु कला बाजार से कोई खास तवज्जो नहीं मिली। जिसके कारण उन्हें कैंपियन स्कूल और कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी में 20 से अधिक वर्षों तक अध्यापन करती रहीं। लाजमी ने अपनी कलाकृतियों में मां और बेटी के बीच के स्वाभाविक जुड़ाव को भी दिखाया है।


ललिता की अधिकांश कलाकृतियां मजबूत आत्मकथात्मक तत्वों को प्रदर्शित करती हैं । अपने शुरुआती कलाकृतियों के लिए उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन और टिप्पणियों से प्रेरणा ली, जबकि बाद की कलाकृतियों में पुरुषों और महिलाओं के बीच छिपे तनाव को दर्शाया गया। लाजमी की रचनाएं आलंकारिक प्रकृति की हैं – उनके पात्र हैं पुरुष, महिलाएं, बच्चे और विदूषक। वह लोगों की बातचीत को चित्रित करती हैं, उनके शुरुआती कार्य स्वभाव से उदासीन थे, वहीँ बाद की कलाकृतियां अधिक आशावादी हैं। इन सबके बावजूद उनकी अधिकांश कलाकृतियां आत्मकथात्मक रही हैं। वह अपनी महिलाओं को मुखर और आक्रामक व्यक्तित्व के रूप में चित्रित करती है। वह दुर्बल पुरुषों के शीर्ष पर दुर्गा या काली की छवियों का उपयोग करती है जो घुटने टेक रहे हैं। लाजमी के लिए, कला और सिनेमा के प्रति अपने जुनून को जारी रखना एक निरंतर संघर्ष था। उन्होंने आमिर खान की 2007 की बॉलीवुड फिल्म “तारे ज़मीन पर” में अतिथि भूमिका निभाई और अमोल पालेकर के एक नाटक के लिए कॉस्ट्यूम डिजाइनिंग भी की। वहीँ हिंदी फिल्म आघात में एक ग्राफिक्स कलाकार के रूप में भी काम किया है। बहुआयामी प्रतिभा की धनी ललिता लाजमी को विनम्र श्रद्धांजलि …

साभार @ गूगल और सोशल मीडिया से मिली जानकारी और चित्र के अनुसार।

 

भूपेंद्र कुमार अस्थाना
13 फरवरी 2023

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