” मिथिला चित्रकला आज किसी परिचय की मोहताज नहीं “

  •  वास्तुकला एवं योजना संकाय में तीन दिवसीय मिथिला चित्रकला प्रशिक्षण और कार्यशाला का समापन।
  • मिथिला चित्रकार ने संकाय की दीवार पर मधुबनी शैली में बड़े भित्तिचित्र  का निर्माण किया ।

लखनऊ, 14दिसंबर 2022। डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के वास्तु कला एवं योजना संकाय, टैगोर मार्ग के आर्ट एंड ग्राफ़िक विभाग की तरफ से मिथिला चित्रकला पर चल रहे तीन दिवसीय प्रशिक्षण और कार्यशाला का समापन बुधवार को हुआ। उक्त कार्यशाला के लिए मधुबनी (बिहार) से पधारे मिथिला विशेषज्ञ चित्रकार श्री अवधेश कुमार कर्ण के निर्देशन मे वास्तुकला महाविद्यालय के छात्रों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया और विशेषज्ञ के निर्देशन में सभी प्रतिभागियों ( 80 छात्र ) ने एक-एक कृति का निर्माण भी किया। यह कार्यक्रम महाविद्यालय के डीन डा. वन्दना सहगल की अध्यक्षता में आयोजित किया गया था। महाविद्यालय के विभागाध्यक्ष प्रो. राजीव कक्कड़ ने तीन दिवसीय प्रशिक्षण और कार्यशाला का समापन पर चित्रकार अबधेश कुमार कर्ण को संकाय की तरफ से प्रतीक चिन्ह और शॉल देकर सम्मानित किया। इस तीन दिवसीय कार्यशाला के दौरान कलाकार अवधेश कर्ण ने अपनी कृतियाँ प्रदर्शित कर मिथिला (मधुबनी) चित्रकला की तकनीक, उत्पत्ति, विकास एवं वर्तमान परिवेश में उपयोगिता से परिचित कराया।


कार्यशाला के दूसरे दिन विशेषज्ञ अवधेश कुमार कर्ण के साथ मिलकर संकाय के कला शिक्षक गिरीश पाण्डेय, भूपेंद्र कुमार अस्थाना, रत्नप्रिया कांत एवं धीरज यादव और सभी प्रतिभागी छात्रों ने संकाय के (9×11 फुट चौड़ी) दीवार पर मधुबनी शैली में भित्तिचित्र का निर्माण किया जो बुधवार को पूरा हुआ। प्रशिक्षण के दौरान श्री कर्ण ने छात्रों को अनेकों मिथिला कला की बारीकियों से अवगत कराया। उसकी पारंपरिक शैलियों और तकनीकों को भी बताया। उन्होंने बताया कि पारंपरिक तरीके से मधुबनी की कलाकृतियों को तैयार करने के लिये हाथ से बने कागज़ को गोबर से लीपकर उसके ऊपर वनस्पति रंगों से पौराणिक गाथाओं को चित्रित किया जाता है। कलाकार अपने चित्रों के लिये रंग स्वयं तैयार करते हैं और बाँस की तीलियों में रूई लपेट कर अनेक आकारों की तूलिकाओं को भी स्वयं तैयार करते हैं। लेकिन समय के बदलते परिवेश को देखते हुए अब रसायनिक रंगों और अनेक प्रकार के कागजों का प्रयोग किया जाने लगा है। वहीँ विषयों में मानव और देवी-देवताओं के चित्रण के साथ साथ पशु-पक्षी, पेड़-पौधे और ज्यामितीय आकारों को भी मधुबनी की कला में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। ये आकार भी पारंपरिक तरीको से बनाए जाते हैं। तोते, कछुए, मछलियाँ, सूरज और चांद इस शैली के लोकप्रिय विषय हैं। हाथी, घोड़ा, शेर, बाँस, कमल फूल, लताएँ और स्वास्तिक धन धान्य की समृद्धि के लिये शुभ मानकर चित्रित किये जाते हैं। यह चित्रकला अपने आप में अनोखा और अद्भुत प्रतीत होता है। मधुबनी चित्रकला आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है। अपने अनूठे रंग रूप की वजह से देश-दुनिया में इस चित्रकला ने काफी शोहरत बटोरी है। मधुबनी चित्रकला की सबसे बड़ी विशेषता उसकी सादगी और सजीवता है।

– भूपेंद्र कुमार अस्थाना

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