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तीन दिवसीय मिथिला चित्रकला पर व्याख्यान एवं कार्यशाला का शुभारम्भ।
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मधुबनी (बिहार) के चित्रकार अबधेश कुमार कर्ण ने बताया मिथिला कला का इतिहास, दिया डिमोंस्ट्रेशन।
लखनऊ ,12 दिसंबर 2022 । तीन दिवसीय मधुबनी पेंटिंग पर व्याख्यान एवं कार्यशाला वास्तुकला एवं योजना संकाय टैगोर मार्ग लखनऊ में सोमवार को शुरू हुआ। इस कार्यक्रम में विशेषज्ञ के रूप में मधुबनी बिहार से आए चित्रकार अबधेश कुमार कर्ण रहे। श्री कर्ण वर्तमान में नई दिल्ली में रहते हुए मिथिला लोकचित्रों की शैली में विशेष योगदान दे रहे हैं। कार्यशाला के प्रथम दिन मिथिला कला पर विस्तार में व्याख्यान चित्रों को दिखाते हुए श्री अबधेश कुमार कर्ण द्वारा दिया गया। उसके बाद छात्रों ने मिथिला पेंटिंग बनाना प्रारम्भ किया साथ ही विशेषज्ञ सभी छात्रों को इसकी बारीकियों से भी अवगत कराते रहे। मिथिला चित्रों के शैली पर चर्चा करते हुए इसकी चार शैलियों को बताया। भरनी, कचनी, तांत्रिक और गोदना शैली। भरनी, रेखांकन करने बाद उसमे रंग भरने कि परम्परा को कहते हैं कचनी में बाहरी रेखांकन के बाद अलग अलग काले रंग के रेखांकन से भरने को कहते हैं। गोदना में मानव के शरीर पर रेखांकन की कला है जो अब कागज पर किया जाने लगा है । उसके बाद तांत्रिक में दशावतार, भद्रकाली, भगवती के अलग अलग रूपों को बनाया जाता है, इस शैली में अर्धनारीश्वर भी अधिक संख्या में बनाया जाता है। इसके अलावां अनेको बारीकियों से छात्र अवगत हुए।
चित्रकार अबधेश कुमार कर्ण ने व्याख्यान के दौरान बताया कि मिथिला चित्रकला सदियों से बनाया जा रहा है। लोक कथाओं के अनुसार सीता जी की शादी में इस कला का प्रयोग सजावट के लिए किया गया था। कायस्थ परिवार की शादी में वर पक्ष के घर से जो सिंदूर का पांच पुड़िया जाता है और वधु पक्ष के घर में कोहबर घर मे जो कोहबर और नैना जोगिन बनाया जाता है वह मिथिला चित्रकला है। मनुष्य जबसे इस पृथ्वी पर आया है कलात्मक कार्य करता रहा है। प्राचीन काल से ही बिहार की कला बहुत ही उम्दा और आकर्षक रहा है। 1653 -1703 में निकोलाओ मानुची ने एक किताब लिखा था जिसमे उसने मिट्टी के बने कप को कांच के बने कप से ज्यादा अच्छा माना था। मिथिला चित्रकला आजकल मधुबनी चित्रकला के नाम से ज्यादा प्रचलित है। 1934 में भूकंप के बाद इस कला को दुनियाभर के लोगों ने देखा और जाना। उस समय के एस. डी. ओ. जे. बी. आर्चर के द्वारा नुकसान का जायजा लिया गया था। डॉक्यूमेंट्री में जो फ़ोटो लिया गया था वह आज भी ब्रिटिश म्यूसियम लंदन में सुरक्षित है। उस समय मार्ग मैगज़ीन निकलता था जिसमे इस कला को मैथिली चित्र लिखा गया है।
इस कला में प्राकृतिक रंग का उपयोग होता था। समय बदला है अब रासायनिक रंगों का प्रयोग किया जा रहा है। जे बी आर्चर की पत्नी मिल्ड्रेड आर्चर ने भी इस कला पर बहुत सारा लेख लिखा है। इस कला का विषय रामायण, कृष्ण लीला और समसामयिक विषय पर आधारित होता है। 1962 में ललित नारायण मिश्रा ने इंदिरा गांधी जो उस समय प्रधानमंत्री थीं से अनुरोध किया कि इस कला को रोजी रोटी से जोड़ा जाए। उस समय के डिज़ाइनर भास्कर कुलकर्णी के साथ पुपुल जयकर, उपेंद्र महारथी, शंखो चौधरी, मनु पारिख,ज्योति भट्ट सब ने मिलकर इस कला के उत्थान के लिए काम किया।1973 में एरिका मोजर ने चानो देवी के साथ मिलकर गोदना चित्र शैली के उत्थान के लिए काम किया।1970 -74 के बीच भारत सरकार ने सोना शॉप की शुरुआत की जिससे इस कला को एक बाजार मिल सके । जिसके तहत इस कला का प्रदर्शन फ्रांस, यूरोप और जापान में किया गया। जापान से हाशेगावा ने भी भारत आकर इस कला के ऊपर बहुत काम किया। आज इस कला में सात पद्मश्री हैं – जगदम्बा देवी (कायस्थ)-1975 , सीता देवी (महापात्र)-1981, गंगा देवी (कायस्थ)-1984, महासुंदरी देवी (कायस्थ)-2011 ,बौआ देवी (महापात्र) – 2017, गोदावरी दत्ता (कायस्थ)-2018 और दुलारी देवी (मल्लाह)- 2021 के नाम महत्वपूर्ण हैं।
कार्यक्रम में भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि मिथिला चित्रकार अबधेश कुमार कर्ण एक पूर्णकालिक पेशेवर चित्रकार हैं। मूल निवासी मधुबनी (बिहार, भारत) के हैं। अबधेश इस कला से बचपन से जुड़े हुए हैं, यह कला इनकी कई पीढ़ियों से होता आ रहा है। इन्होने मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा (बिहार, भारत) से स्नातक किया और फिर दिल्ली से केंद्रीय सरकार मिथिला पेंटिंग प्रशिक्षण कार्यक्रम (दरभंगा) और केंद्रीय सरकार मिथिला चित्रकला प्रशिक्षण कार्यक्रम प्राप्त किया। श्री अबधेश को बिहार सरकार से बिहार राज्य पुरस्कार (2015-16), रजत पुरस्कार पुरस्कार (2015-16),कलामनि पुरस्कार 2021,पद्मश्री गंगा देवी कला गुरु सम्मान 2021, बेस्ट फोक अवार्ड 2022 प्राप्त हुआ। अंतरराष्ट्रीय कला प्रदर्शनी (जनवरी 2021) के साथ इनके चित्रों की प्रदर्शनी भारत एवं बाहर देशों के विभिन्न भागों में लगाईं गई हैं तथा इन्होने पायल जैन द्वारा विल फैशन सप्ताह 2012 के लिए मधुबनी चित्रसज्जा के साथ कई प्रतिष्ठित संस्थानों में 100 से अधिक कार्यशालाएं की हैं। श्री कर्ण इस मिथिला चित्रकला को कागज, कैनवास, लकड़ी, धातु, दीवार के अलावा कपड़े पर भी बनाते हैं। अबधेश कहते हैं कि मैं अपने जीवन के अंतिम चरण तक इस मिथिला कला को जारी रखना चाहता हूं यही मेरी हार्दिक इच्छा है।
इस अवसर पर संकाय के विभागाध्यक्ष श्री राजीव कक्कड़, मोहम्मद सबहात, कला शिक्षक गिरीश पांडे, धीरज यादव, भूपेंद्र कुमार अस्थाना एवं रत्नप्रिया कान्त सहित वास्तुकला के छात्र उपस्थित रहे।