लगभग पिछले एक पखवाड़े से अधिक समय से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है। माना जाता है कि युद्ध भले ही भविष्य को संवारने के नाम पर लड़े जाते हों, किन्तु उसकी कीमत वर्तमान और इतिहास दोनों को चुकाना पड़ता है। तो इस युद्ध के हवाले से ताज़ा खबर यह है कि रूस ने रविवार तड़के लविव शहर के बाहर मिलिट्री बेस पर लगभग 30 क्रूज मिसाइलें दागीं। इस खबर ने दुनिया भर के कला एवं पुरातत्व प्रेमियों को विचलित कर रखा है। हो सकता है कि आप सोचें कि जब युद्ध की आग में पूरा यूक्रेन जल रहा हो, अभूतपूर्व मानवीय संकट हफ़्तों से जारी हो। तब लविव पर हो रहे हमले को अलग से क्यों देखा जाए। तो इसका जवाब है कि लविव वह शहर है जहाँ मौजूद है यूक्रेन का सबसे बड़ा कला संग्रहालय।
हालाँकि 24 फरवरी को यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध शुरू होने के बाद से पश्चिमी शहर लविवि में स्थित एंड्री शेप्त्स्की राष्ट्रीय संग्रहालय के दरवाजे बंद कर दिए गए हैं, क्योंकि युद्ध के जारी रहने की वजह से देश भर के विरासत स्थलों को खतरे का सामना करना पड़ रहा है। संग्रहालय के जनरल डायरेक्टर इहोर कोज़ान ने कहा कि उन्हें अन्य यूरोपीय सांस्कृतिक संस्थानों से मदद की पेशकश लगातार की जा रही है। वहीँ दुर्लभ पांडुलिपियों और पुस्तकों के विभाग की प्रमुख अन्ना नौरोबस्का ने कहा कि वह अभी भी नहीं जानती हैं कि बक्से में पैक की जा रही 12,000 से अधिक वस्तुओं के संग्रह को सुरक्षित रूप से कहाँ संग्रहीत किया जाए। विदित हो कि लविव स्थित एंड्री शेप्त्स्की राष्ट्रीय संग्रहालय यूक्रेन और दुनिया में सबसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय कला और संस्कृति कोषागारों में से एक है। यह 170,000 से अधिक प्रदर्शों का एक गौरवपूर्ण भंडार है जो दुनिया के आध्यात्मिक और कलात्मक खजाने के अभिन्न अंग के रूप में यूक्रेनी संस्कृति की प्रमुख उपलब्धियों को दर्शाता है। इस संग्रहालय के मुख्य आकर्षण में से 12 वीं – 18 वीं सदी की यूक्रेनी कला के विश्व संग्रह शामिल हैं । लगभग 4,000 से अधिक कलाकृतियों के इस संग्रह में जिन प्रतिष्ठित यूक्रेनी कलाकारों की कलाकृतियां शामिल हैं। उनमें से कुछ प्रमुख नाम हैं -तारास शेवचेंको, कोर्नीलो उस्तियानोविच, टेओफिल कोपिस्टिन्स्की, मायकोला मुराशको, सेरही वासिलकिव्स्की, फ़ोटिय क्रासीत्स्की, पेट्रो लेवचेंको, किरियाक कोस्टैंडी, ऑलेक्ज़ेंडर मुराशको, मायकोला इवासिक इत्यादि।
इतिहास की बात करें तो इस संग्रहालय की स्थापना यूक्रेनी ग्रीक कैथोलिक चर्च के मेट्रोपॉलिटन आर्कबिशप द्वारा 1905 में “चर्च के निजी संग्रहालय” के रूप में की गई थी। किन्तु जल्द ही इसका नाम बदलकर इसे “राष्ट्रीय संग्रहालय, लविव” घोषित कर दिया गया। और 13 दिसंबर, 1913 को इस राष्ट्रीय संग्रहालय का उद्घाटन समारोह हुआ और इसके संस्थापकों ने इसे यूक्रेनी जनता के हवाले कर दिया। मेट्रोपॉलिटन एंड्री शेप्त्स्की के निरंतर संरक्षण और पहले निदेशक प्रोफेसर इलारियन स्वेन्ट्स्स्की के लगातार प्रयासों के कारण जल्दी ही यह संग्रहालय यूरोप के एक महत्वपूर्ण विज्ञान और कला संस्थान के तौर पर अपनी पहचान बनाने में सफल रहा। दिसंबर 2005 में, संग्रहालय की स्थापना के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में इसका नामकरण इसके संस्थापक एंड्री शेप्त्स्की के नाम पर कर दिया गया। अपनी स्थापना के बाद से ही यह संग्रहालय लगातार राष्ट्रीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक गतिविधि का केंद्र बना रहा, खासकर पश्चिमी यूक्रेन के सार्वजनिक जीवन में अपनी अग्रणी भूमिका निभाता रहा है। बहरहाल अब दुनिया भर के कला-प्रेमियों की नज़र इस बात पर है कि इस भीषण युद्ध की परछाईं से यह संग्रहालय अपने को किस हद तक बचा पाता है।
हालिया दशकों में युद्ध का खामियाज़ा भुगत चुके ऐतिहासिक, पुरातात्विक और कलात्मक संग्रहों की बात करें तो लगभग छह साल पहले दुनिया ने उस स्थिति को देखा था जब आईएसआईएस द्वारा इराक के मोसुल सांस्कृतिक संग्रहालय पर हमला किया गया था। देखते-देखते इस पुरातात्विक खजाने पर स्लेजहैमर के प्रहार से ऐतिहासिक असीरियन मूर्तियों को नष्ट कर दिया गया था। उन आतंकियों की नज़र में यह विनाश देश की पूर्व-इस्लामी सांस्कृतिक विरासत को मिटाने के अभियान का हिस्सा था। हालाँकि तब संयुक्त राष्ट्र द्वारा युद्ध अपराध के रूप में इसकी निंदा भी की गई थी। इस घटना के दो साल बाद जब इराकी सैनिकों ने दुबारा इस संग्रहालय पर कब्जा किया, तब जाकर पहली बार दुनिया को इस विनाश की पूरी जानकारी मिल पाई। इस बीच जो बहुमूल्य कलाकृतियां लापता हुईं उसके अलावा संग्रहालय के पुस्तकालय से 25,000 खंड जला दिए गए थे और इमारतों को काफी नुकसान पहुंचा दिया जा चूका था। इस तरह से कुछ चंद मिनटों में आईएसआईएस ने वो तबाही मचा दी थी जिसे ठीक होने में अभी सालों लगेंगे।
कुछ इसी अंदाज़ में वर्ष 2017 में आईएसआईएस ने सीरिया के पलमायरा के आधुनिक शहर और आसपास के प्राचीन खंडहरों पर कब्जा कर लिया। इन उग्रवादियों ने शुरू में साइट के स्तंभों और मंदिरों को अछूता छोड़ने का वादा किया था। किन्तु बाद में ये वादे खोखले ही साबित हुए थे। उन्होंने सीरियाई पुरातत्वविद् खालिद अल-असद को सार्वजनिक रूप से न केवल मार डाला, बल्कि उनके सिर रहित शरीर को एक स्तंभ से लटका दिया। और तो और बाद में इस आतंकी समूह ने 1,900 साल पुराने बालशामिन मंदिर को विस्फोटकों से उड़ाने वाले उग्रवादियों की तस्वीरें भी जारी कीं। यह पलमायरा की सबसे अच्छी संरक्षित इमारतों में से एक थी, जो मूल रूप से फोनीशियन तूफान देवता को समर्पित थी। किन्तु अब यहाँ मलबे के सिवा कुछ नहीं है। इसके कुछ ही दिनों बाद पास के एक और मंदिर में विस्फोटों की सूचना मिली। विनाश का यह सिलसिला यहीं नहीं रुका जब आईएसआईएस आतंकवादियों ने पलमायरा के पास सीरिया के शहर अल-क़रायतैन पर कब्जा कर लिया तब चौथी शताब्दी के संत को समर्पित एक महत्वपूर्ण ईसाई तीर्थ स्थल पर हमला किया। जहाँ इसकी दीवारों को गिराने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल किया गया और उसके बाद इस विनाश की तस्वीरें भी ट्विटर पर पोस्ट कीं। कुछ इसी अंदाज़ में आईएसआईएस द्वारा रोमन-युग के व्यापारिक शहर अपामिया को बुरी तरह से लूट लिया गया। दुर्भाग्य से यह सिलसिला यहीं नहीं थमा और ड्यूरा-यूरोपोस, कांस्य युग में 3000 और 1600 ईसा पूर्व के बीच फली-फूली सभ्यता के शहर मारी के पुरातात्विक धरोहरों को भी तहस नहस कर दिया।
इस क्रम में चर्चा अगर अपने भारतीय उप महाद्वीप की करें तो वर्ष 2001 में बामियान, अफ़ग़ानिस्तान स्थित दो विशाल बुद्ध प्रतिमाओं के विनाश को भी दुनिया ने देखा है। जब 26 फरवरी, 2001 को तालिबान के नेता मुल्ला मुहम्मद उमर ने अफगानिस्तान में सभी गैर-इस्लामी मूर्तियों और अभयारण्यों को खत्म करने का आदेश जारी किया। और इस तरह से इन दो विशालकाय बुद्ध प्रतिमा के खिलाफ एक तरह का जिहाद शुरू कर दिया गया था। तब तालिबान के प्रवक्ता ने बड़े फक्र से घोषणा की थी -“हमारे सैनिक कड़ी मेहनत कर रहे हैं; वे इसके खिलाफ सभी उपलब्ध हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं।” अंततः रॉकेट, टैंक के गोले और डायनामाइट की मदद से 14 मार्च को इसे ध्वस्त कर दिया गया।
बहरहाल इन तमाम कटु अनुभवों के बावजूद दुनिया भर के पुरातत्व व कला प्रेमियों को रूस के सैन्य नेतृत्व से ऐसा कुछ नहीं करने की अपेक्षा है, जिससे लविव का यह शानदार और महत्वपूर्ण संग्रहालय को किसी तरह का नुकसान पहुंचे । उन्हें उम्मीद है कि जिस तरह पिछले दो विश्व युद्धों की विभीषिका से यह संग्रहालय अपने को बचा ले गया, इस बार भी ऐसा ही कुछ हो। ताकि आनेवाली पीढ़ियां भी इस विरासत का दीदार कर सकें।
-सुमन कुमार सिंह