असली कलाकृति जैसा कुछ भी नहीं

नीदरलैंड में वैज्ञानिकों ने आई-ट्रैकिंग और एमआरआई स्कैन तकनीक का उपयोग करके पता लगाया है कि असली कलाकृतियों और उनके पोस्टरों के बीच ‘बहुत बड़ा अंतर’ है I यह एक ऐसी सच्चाई है जिसका पता मार्विन गे और टैमी टेरेल ने 1968 में ही लगा लिया था, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इसे साबित कर दिखाया है कि: असली कलाकृति जैसा कुछ भी नहीं है।

नीदरलैंड में एक न्यूरोलॉजिकल अध्ययन से पता चला है कि संग्रहालय में असली कलाकृतियाँ मस्तिष्क को इस तरह से उत्तेजित करती हैं जो उस कलाकृति के छापाचित्र या पोस्टर देखने से 10 गुना अधिक होती है।

प्रख्यात चित्रकार जोहान्स वर्मीर की “गर्ल विद ए पर्ल इयरिंग” जो हेग के मॉरिट्सहुइस संग्रहालय की अमानत है, इस संग्रहालय  द्वारा कराये गए इस स्वतंत्र अध्ययन में वास्तविक कलाकृतियों और प्रतिकृतियों को देखने वाले स्वयंसेवकों की मस्तिष्क गतिविधि को रिकॉर्ड करने के लिए आई-ट्रैकिंग तकनीक और एमआरआई स्कैन का उपयोग किया गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि 20 स्वयंसेवकों की प्रतिक्रिया 10 गुना अधिक थी।

निदेशक मार्टीन गोसेलिंक

मॉरिट्सहुइस की निदेशक मार्टीन गोसेलिंक ने बुधवार को कहा, “10 का कारक एक बहुत बड़ा अंतर है, और ऐसा तब होता है जब आप किसी वास्तविक काम की तुलना में किसी प्रतिकृति को देखते हैं। जब आप चीज़ों को देखते हैं, तो आप मानसिक रूप से समृद्ध हो जाते हैं, चाहे आप इसके बारे में सचेत हों या नहीं, आप अपने मस्तिष्क में इसका विशेष संबंध बनाते हैं।”

गोसेलिंक ने कहा कि अध्ययन से पहले उन्हें वास्तविकता की शक्ति के बारे में आश्वस्त किया गया था, लेकिन वह चाहती थीं कि उनके इस अनुमान की औपचारिक रूप से जांच की जाए। “हम सभी अंतर महसूस करते हैं – लेकिन क्या यह मापने योग्य है, क्या यह वास्तविक है?” उन्होंने कहा कि यह सवाल उन्होंने एक साल पहले अपने सहयोगियों से पूछा था। किन्तु अब, आज हम वास्तव में कह सकते हैं कि यह सच है।

मार्टिन डी मुनिक

न्यूरेंसिक्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के सह-संस्थापक मार्टिन डी मुनिक, जिन्होंने अन्य न्यूरोलॉजिकल विशेषज्ञों के साथ मिलकर शोध किया, ने कहा कि अध्ययन में दो तत्व थे। 21 से 65 वर्ष की आयु के स्वयंसेवकों को एक इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम (ईईजी) ब्रेन स्कैनर और आई-ट्रैकिंग उपकरण से जोड़ा गया और उन्हें संग्रहालय में पाँच पेंटिंग और संग्रहालय स्थित दुकान में उनके पोस्टर देखने को कहा गया।

शोधकर्ताओं ने एम्स्टर्डम विश्वविद्यालय की कार्यात्मक एमआरआई स्कैनिंग मशीन के अंदर स्वयंसेवकों के चश्मे पर दिखाई गई वास्तविक कृतियों की छवियों बनाम प्रतिकृतियों के प्रभावों को भी देखा। उन्होंने कहा, “यदि आप जानना चाहते हैं कि लोग क्या सोचते हैं, तो उनसे पूछने के बजाय इसे मापना बेहतर है। क्योंकि इससे निकले परिणाम असाधारण थे।”

शोधकर्ताओं ने कहा कि वास्तविक कलाकृतियों ने प्रीक्यूनस में एक मजबूत सकारात्मक प्रतिक्रिया उत्पन्न की, जो चेतना, आत्म-प्रतिबिंब और व्यक्तिगत यादों से जुड़ा मस्तिष्क का एक खास हिस्सा है। उदाहरण के लिए, गेरिट वैन होन्थोर्स्ट की “द वायलिन प्लेयर” ने वास्तविक जीवन में 1 में से 0.41 का सकारात्मक “दृष्टिकोण” वाला प्रोत्साहन दिया, लेकिन पोस्टर के रूप में सिर्फ़ 0.05।

“द वायलिन प्लेयर”

शोध में “गर्ल विद ए पर्ल इयररिंग” का भी विश्लेषण किया गया। इस लोकप्रिय कलाकृति ने सबसे ज़्यादा ध्यान आकर्षित किया और शोधकर्ताओं ने इसे “निरंतर ध्यान लूप” के रूप में वर्णित किया – लड़की की हाइलाइट की गई आंख, मुंह और मोती की बाली के बीच एक त्रिकोण के तौर पर।

क्लिनिकल न्यूरोसाइकोलॉजी के प्रोफेसर एरिक शेरडर ने परिणामों पर टिप्पणी करते हुए कहा – “यह दिखाता है कि जब आप कोई कलाकृति देखते हैं तो यह आपके मस्तिष्क के लिए क्या करता है,” उन्होंने कहा। “यह एक समृद्ध वातावरण है जो वास्तव में अंतर पैदा करता है … विशेष रूप से विकसित हो रहे बच्चों के मामले में।”

स्रोत: द गार्डियन डॉट कॉम

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