विगत दशकों में देश भर में कला गतिविधियों में बढ़ोत्तरी अवश्य देखी जा रही है। पिछली सदी तक सिर्फ महानगरों एवं चंद चुनिंदा शहरों तक सिमटी समकालीन कला की गतिविधियों का विस्तार देश के विभिन्न हिस्सों के स्थानीय कस्बों में भी अब हो चला है। किन्तु इसके बावजूद हमारे देश के एक महत्वपूर्ण हिस्से यानी हमारे उत्तर पूर्व के राज्यों और देश के बाकी हिस्सों के बीच संवाद और समन्वय की कमी अरसे से महसूस की जाती रही है। सच तो यह है कि अपने देश के इस हिस्से की कला गतिविधियों से दिल्ली, मुम्बई या चेन्नई का कला जगत लगभग अनजान ही है। इस मामले में हममें से अधिकांश कलाकारों कि जानकारी असम खासकर गुवहाटी कि कला गतिविधियों तक सीमित ही कही जाएगी। ऐसी स्थिति में “कला चर्चा” समूह के कलाकारों द्वारा फोदोंग, मंगन, सिक्किम में आयोजित होने जा रहे कला शिविर का महत्व बहुत खास हो जाता है। खासकर इस स्थिति में जब यह पहल फोदोंग के स्थनीय कलाकारों, नागरिकों एवं कला चर्चा समूह से जुड़े उत्साही कलाकारों के आपसी समन्वय से हो रहा हो। जाहिर है इस पहल का स्वागत तो बनता ही है, साथ ही यह उम्मीद भी कि यह सिलसिला चलता रहे। इस आयोजन के पीछे वैचारिक पहल से लेकर इसे अमलीजामा पहनाने में मुख्य भूमिका जयपुर से जुड़े वरिष्ठ कलाकार और कला शिक्षक ताराचंद शर्मा की है। मेरी नज़र में ताराचंद उन गिने-चुने कलाकारों में हैं, जिनकी प्राथमिकता महानगर की कला गतिविधियों में भागीदारी से ज्यादा नयी पीढ़ी को कला में शिक्षित-दीक्षित करने की रहती है।
तो विस्तृत खबर यह है कि “कला चर्चा ट्रस्ट” एवं स्थानीय फोदोंग वासियों के सहयोग से कला मंथन (सीजन-2) सिक्किम संस्करण का आयोजन फोदोंग, जिला- मंगन (सिक्किम) में किया जाएगा। 19 से 23 मई तक के लिए आयोजित इस कला शिविर में देश के विभिन्न हिस्सों के समकालीन कलाकारों की भागीदारी होने जा रही है। इस अवसर पर अखिल भारतीय स्तर के कलाकार आमजन के समक्ष अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे और अपने अनुभव साझा करेंगे। पांच दिवसीय इस आयोजन में कला चर्चा ट्रस्ट की ओर से कलाकारों, स्थानीय कला प्रेमियों और कला विद्यार्थियों के मध्य संवाद स्थापित कर जागरूकता लाने का प्रयास किया जाएगा। कार्यशाला संयोजक ताशी भूटिया ने बताया कि इस कार्यशाला में वडोदरा (गुजरात) से वरिष्ठ कलाकार अजीत वर्मा, बनस्थली विद्यापीठ (राजस्थान) से जलरंग की सिद्धहस्त कलाकार डॉ. अन्नपूर्णा शुक्ला, उज्जैन (मध्य प्रदेश) से चंद्रशेखर काले, भारती काले, बड़ोदा (गुजरात) से पीनल पांचाल, ललिता वर्मा, लिली खोरनिया, जयपुर (राजस्थान) से पारंपरिक फड़ चित्रण की कलाकार भावना सक्सेना, पारंपरिक लघुचित्रण की सिद्धहस्त कलाकार अंजू शर्मा, जालोर से जलरंग के साधक राजशेखर गर्ग और वरिष्ठ कला शिक्षक एवं कलाकार ताराचंद शर्मा व सिक्किम के अन्य कई स्थानीय कलाकार भाग ले रहे है। जयपुर की जानी पहचानी फड़ एवं सृजनात्मक कलाकार भावना सक्सेना भी इस राष्ट्रीय कार्यशाला में भाग ले रही है। वे ये यहां स्थानीय युवाओं एवं छात्रों को फड़ कला का डेमों भी देंगी। इस शिविर में जिन स्थानीय कलाकारों की भागीदारी रहेगी वे हैं कुशुंग सुब्बा तथा ताशी तोपदेन भूटिया। इसके अलावा बड़ी संख्या में कला के छात्रों एवं युवा कलाकारों की भागीदारी भी रहेगी।
बताते चलें कि फोदोंग उत्तर सिक्किम का एक शहर है। जो सिक्किम की राजधानी गंगटोक से 38 किलोमीटर उत्तर में अवस्थित है। यह स्थान यहाँ अवस्थित फोडोंग “फोदोंग मठ” और “लाब्रांग मठ” के लिए प्रसिद्ध है। वैसे लाब्रांग मैथ फोडोंग मठ की तुलना में थोड़ी अधिक ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ के लोगों का मुख्य व्यवसाय सीढ़ीदार ढलानों पर खेती ही है, हालांकि हाल के वर्षों में, पर्यटन ने भी यहाँ कि अर्थव्यवस्था में योगदान दिया है। वैसे फोदोंग मठ (कर्म थुबतेन ताशी चोखोरलिंग) एक प्रमुख काग्यूपा संप्रदाय मठ है। इस मठ की स्थापना वास्तव में चौथे राजा ग्युर्मेद नामग्याल ने की थी लेकिन दुर्भाग्य से, 1734 में उनका निधन हो गया, यानी 12वें करमापा लामा के निधन के दो साल बाद। इसके बाद लामाओं ने आम लोगों के समर्थन से 1740 ईस्वी में इस मठ को पूरा किया। किन्तु एक बड़े भूकंप के दौरान, अट्ठारहवीं सदी वाली यह पुरानी संरचना कुछ इस कदर क्षतिग्रस्त हो गयी कि उसका पुनर्निर्माण संभव नहीं रह गया । इसके बाद लामाओं ने 1977 में एक नए मठ का पुनर्निर्माण किया जिसमें सरकार से भी वित्तीय सहायता मिली, यह नया भवन पुराने वाले से आकार में बड़ा है।