महिला दिवस पर “पिंक आयरन”

कला जीवन का, सत्य का अनुभूत्यात्मक अन्वेषण है और हर अन्वेषण एक सर्जनात्मक प्रक्रिया और प्रत्येक सर्जन मूलत: और अन्तत: आत्म-सर्जन होता है। इसलिए दूसरे शब्दों में, यों भी कहा जा सकता है कि कला जीवन का, सत्य का, आत्म का अनुभूत्यात्मक सर्जन है।

– नन्द किशोर आचार्य

वस्तुत: देखा जाए तो कला मानव जीवन को सुरूचिपूर्ण बनाने का सशक्त माध्यम है। किंचित इन्हीं वजहों से हमारे लोक-जीवन से लेकर नागरी जीवन तक में कला की सहज स्वीकार्यता देखी जाती रही है। किन्तु ज्यादातर मामलों में होता यह है कि वे किसी कला महाविद्यालय या संस्थान तक अपनी पहुंच नहीं बना पाते हैं। या कहा जाए कि कला शिक्षा के लिए अपना पूरा समय देना उनके लिए संभव नहीं हो पाता है। ऐसे में अक्सर होता यह है कि कला से जुड़ने का उनका यह ख्वाब अधूरा ही रह जाता है। लेकिन इस तरह का ख्वाब तब हकीकत का जामा पहन लेता है, जब उसे अपने मनमाफिक समय में किसी व्यक्ति या संस्थान से उचित मार्गदर्शन मिल जाए। तो कला शिक्षा के लालायित इस तरह के व्यक्तियों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, आज कई निजी कला समूह हमारे आसपास सक्रिय दिखाई देने लगे हैं।

गुरुग्राम स्थित ‘विमला आर्ट फोरम’ के माध्यम से कंचन मेहरा विगत कई वर्षों से कुछ ऐसा ही प्रयास कर रही हैं। जिसके कारण यहां आसपास रह रहे बच्चों, स्कूली छात्र-छात्राओं से लेकर गृहणियों तक को कला शिक्षा उपलब्ध हो रही है। विदित हो कि उनके इस प्रयास में सहभागी हैं ‘ग्रेन्स ऑफ कैनवस’ के संचालक कलाकार दिलीप शर्मा। विदित हो कि दिलीप शर्मा समकालीन कला जगत में एक परिचित नाम हैं, जो लगभग दो दशक से अपने कला सृजन के साथ-साथ कला शिक्षा भी प्रदान कर रहे हैं।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर विमला आर्ट फोरम, गुरुग्राम द्वारा आयोजित महिला चितेरियों की यह समूह प्रदर्शनी; भारतीय समकालीन कला की बतौर बानगी कला-प्रेमियों के सामने है। बात इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की करें तो हम जानते हैं कि इसे प्रतिवर्ष 8 मार्च को दुनिया भर में मनाया जाता है। वैसे वर्ष 1975 में संयुक्त राष्ट्र ने इसे बतौर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत की। किन्तु 8 मार्च के दिन को ही इसे मनाने का निर्णय संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 1977 में लिया गया। वैसे जानकारी मिलती है कि पहली बार 28 फरवरी 1909 को सोशलिस्ट पार्टी के आहवान पर अमेरिका में महिला दिवस मनाया गया। तब इसे फरवरी के अंतिम रविवार को मनाया जाता था। इसे अंतर्राष्ट्रीय दर्जा दिलाने के जद्दोजहद की शुरुआत 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपनहेगन सम्मेलन के दौरान हुई। इस अभियान की अगुआई जर्मन एक्टिविस्ट व वकील क्लारा जेटकिन ने की थी। उनके प्रयासों से ही तब इस अवसर पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की जाने लगी। इसके लिए आठ मार्च निर्धारित होने के पीछे का इतिहास रूस से जाकर जुड़ता है।

Clara Zetkin

वर्ष 1917 में रूस की महिलाओं ने रोटी और कपड़ा की अपनी मांगों के लिए ऐतिहासिक हड़ताल करी। उस दौर में रूस में जूलियन कैलेंडर प्रचलित था और इसके अनुसार यह तारीख थी 23 फरवरी, किन्तु ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार यह तारीख बनती थी आठ मार्च। चूंकि आज दुनिया भर में अधिकांश देश में ग्रेगेरियन कैलेंडर ही प्रचलन में है। इसी आधार पर बाद में चलकर वर्ष 1921से इसके लिए आठ मार्च की तिथि ही निर्धारित की गई। वर्ष 2023 के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बात करें तो इसका सूत्र वाक्य है; डिजिटऑल: लैंगिक समानता के लिए प्राद्यौगिकी और नवाचार।

इस नजरिये से देखें तो ललित कला के क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को सुखद संकेत के तौर पर देखा जाना चाहिए। वैसे हाल के वर्षों में कला जगत में इस अवसर पर महिला कलाकारों की चित्र-प्रदर्शनी, कला-शिविर और कला-संवाद जैसे कार्यक्रमों के विशेष आयोजन होने लगे हैं। विमला आर्ट फोरम, गुरुग्राम द्वारा भी इसी परंपरा का अनुसरण करते हुए विगत वर्षों से इस अवसर पर कार्यक्रम आयोजित करती रही है। विदित हो कि विमला आर्ट फोरम एवं ग्रेन्स ऑफ कैनवस के माध्यम से लगभग प्रतिवर्ष कला प्रदर्शनियों का आयोजन पिछले दस वर्षों से दिल्ली समेत देश के विभिन्न महत्वपूर्ण शहरों में किए जाते रहे हैं। इतना ही नहीं इनके द्वारा समय-समय पर कला विषयक संवाद एवं परिचर्चाएं भी आयोजित किए जाते हैं। जाहिर है इसका मुख्य उद्देश्य इन संस्थाओं द्वारा संचालित केन्द्रों में कला शिक्षा पाने वाले कलाकारों के सर्वांगीण विकास को प्राथमिकता देना है।

विमला आर्ट फोरम द्वारा समाज में कला को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शौकिया कलाकारों एवं स्कूली छात्र-छात्राओं के लिए जो प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाते हैं। उसके तहत अभ्यर्थियों के लिए डिप्लोमा पाठ¬क्रम की व्यवस्था है। साथ ही विभिन्न कला महाविद्यालयों, एनआईडी एवं निफ्ट जैसे संस्थानों में नामांकन के लिए आयोजित प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी भी यहां कराई जाती है। हम जानते हैं कि दिल्ली एनसीआर में कलाकारों के लिए स्टुडियो की उपलब्धता बहुत सीमित है, ऐसे में इस फोरम के द्वारा युवा एवं संघर्षरत कलाकारों को यह सुविधा उपलब्ध तो कराई ही जाती है। समय-समय पर वरिष्ठ कलाकारों एवं कला-समीक्षकों के माध्यम से उन्हें कला-विषयक मार्गदर्शन भी प्रदान कराया जाता है। कला में महिलाओं की भूमिका या उपस्थिति की बात करें तो हम जानते हैं कि लोक-कला के क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति तो सदियों से देखी जाती रही है।

Drishti Gupta with Diilip Sharma

बल्कि अगर कहा जाए कि हमारे देश में लोक-कलाओं के क्षेत्र में महिलाओं का वर्चस्व है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। सिर्फ मिथिला चित्रकला की ही बात करें तो इसके लिए पद्म पुरस्कारों से सम्मानित कलाकारों की सूची में जो सात चित्रकार हैं, वे सभी महिलाएं ही हैं। वहीं अगर भारतीय आधुनिक कला की बात करें तो इसके आरंभिक कलाकारों में अमृता शेरगिल का नाम आता है। उसके बाद की पीढ़ी में भी अंजलि इला मेनन, नसरीन मोहम्मदी, बी.प्रभा, जरीना हाशमी, अर्पिता सिंह, अर्पणा कौर, माधवी पारेख एवं शोभा ब्रूटा जैसे नामों की एक लंबी सूची है। वैसे अगर देखा जाए तो इन कलाकारों को महिला-पुरूष के नजरिये से देखना या इनका आकलन करना उचित नहीं कहा जा सकता। क्योंकि ये वो नाम हैं जिनके जिक्र के बिना भारतीय समकालीन कला के किसी मुकम्मल तस्वीर की कल्पना नहीं की जा सकती है। कुछ यही बात इस प्रदर्शनी में शामिल अधिकांश कलाकारों पर भी लागू होती हैं। “पिंक आयरन” शीर्षक इस समूह प्रदर्शनी को क्यूरेट किया है युवा कलाकार दृष्टि गुप्ता ने एवं कोर्डिनेटर हैं कलाकार/ कला लेखक भुनेश्वर भास्कर। अंत में प्रदर्शनी के प्रतिभागियों समेत आयोजन से जुड़े सभी कलाकार मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं।

-सुमन कुमार सिंह
कलाकार/कला लेखक एवं आर्ट क्यूरेटर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *