जब किसी अपने को आप अंतिम विदाई देते हैं तो नज़ीर अकबराबादी याद आते हैं अपने इन अल्फ़ाज़ों के साथ –
“हर मंजिल में अब साथ तेरे यह जितना डेरा डंडा है।
ज़र दाम दिरम का भांडा है, बन्दूक सिपर और खाँड़ा है।
जब नायक तन का निकल गया, जो मुल्कों मुल्कों हांडा है।
फिर हांडा है न भांडा है, न हलवा है न मांडा है।
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा॥”
हाँ बंजारा ही तो था वह कलाकार जिसे हम संजीव सिन्हा के नाम से जानते थे। जब भी मौका मिला पटना से दिल्ली और दिल्ली से पटना के अलावा देश के विभिन्न शहरों -महानगरों से लेकर दुनिया के विभिन्न हिस्सों की सैर पर निकल पड़ता था। निःसंदेह एक आघात सा था कल देर रात को मिला यह समाचार कि अपने कलाकार मित्र संजीव सिन्हा नहीं रहे। संजीव सिन्हा यानि कला महाविद्यालय के दिनों के अपने सीनियर, बिहार की युवा पीढ़ी के रोल मॉडल और बिहार की आधुनिक कला का संभवतः सबसे बड़ा स्टार कलाकार। जिस दौर में पटना कला महाविद्यालय में पढ़ने वाले हम में से अधिकांश का सपना होता था, पढ़ाई पूरी करने के बाद एक अदद नौकरी का जुगाड़।
तब अगर किसी छात्र के मुंह से यह निकलता हो कि मुझे तो फ्रीलान्स आर्टिस्ट ही बनना है, कुछ अलग सा लगता था । या कहें कि अविश्वसनीय सा लगता था, यहाँ तक कि बिहार से बाहर निकलकर कला जगत में पहचान बनाने की जिद भी तब कम ही दिखाई देती थी। पटना के बाद ललित कला अकादमी की छात्रवृति के सिलसिले में राष्ट्रीय ललित कला केंद्र, लखनऊ पहुंचना । फिर वहीँ रहते हुए मुंबई के जहांगीर आर्ट गैलरी में अपनी एकल प्रदर्शनी का आयोजन करना, और इसी क्रम में कला की दुनिया खासकर कला बाजार से जुड़े तमाम किस्सों और अनुभवों को समेटे लखनऊ या पटना आना एवं अपने खास अंदाज़ में हम संगी साथियों को सुनाना। सुनाने का कुछ ऐसा अंदाज़ कि हम घंटों मंत्रमुग्ध सा बस सुनते ही रह जाते थे।
फिर 1990 के आसपास अलग- अलग कारणों से हम सबका दिल्ली आना हुआ, और तब अक्सर किसी तय जगह पर मिलना- जुलना होता रहा। इस मिलने-जुलने और विचार विमर्श के केंद्र में होता था कला की दुनिया की ढेर सारी बातें, और इन्हीं बातों के क्रम में पलते थे ढेर सारे सपने। हम जैसों को यह स्वीकारने में आज भी कत्तई कोई संकोच नहीं है कि एक कलाकार के तौर पर संजीव हमारे बीच ट्रेंड सेटर थे। दुनिया को देखने समझने का उनका अपना खास नजरिया हम सबसे बिलकुल अलग और अनूठा था। तब इंटरनेट का ज़माना तो नहीं ही था, हर हाथ में मोबाइल जैसा भी कुछ नहीं था। इसके बावजूद दुनिया जहान की कला गतिविधियों की जानकारी उस शख्स तक कहाँ से पहुंचती थी, यह सब हमारे लिए आज भी किसी रहस्य से कम नहीं है। कितनी रातें हमने सिर्फ बतकही में जागकर बितायी है, कहना मुश्किल है। फिर कुछ ऐसा हुआ कि कुछ मामलों ने हमारे बीच वैचारिक दूरियों को तो बढ़ाया ही, हमारे आवास की भौगोलिक दूरियां भी बढ़ती चली गयीं ।
फिर भी इतनी उत्सुकता तो रहती ही थी कि संजीव इन दिनों क्या कर रहे हैं ? क्योंकि एक बात से हम मुतमईन थे कि वे जहाँ भी होंगे उनके आसपास उनकी कला की दुनिया तो होगी ही। अपनी शर्तों पर जीने के अभ्यस्त हो चुके इस कलाकार की एक और विशेषता थी अपनी पसंद के लोगों के बीच रहना। इसलिए उनके साथ आपके व्यक्तिगत संबंध कब और कैसे हों, यह वही तय कर सकते थे। और कुछ ऐसा रहा कि विगत लगभग एक डेढ़ दशक से अपने साथ बिलकुल अबोला सा ही रहा। पिछले दिनों १० अक्टूबर को धूमिमल गैलरी में वरिष्ठ कला आलोचक विनोद भारद्वाज की तीन पुस्तकों का विमोचन था, तब कुछ देर के लिए हम एकसाथ थे। क्योंकि इन पुस्तकों में एक थी कलाकार मित्र नरेंद्र पाल सिंह की कला यात्रा पर केंद्रित पुस्तक। तब हम में से किसी ने सोचा भी नहीं था कि इसके ठीक एक महीने बाद १० नवंबर की रात को यह ह्रदय विदारक समाचार सुनने को मिलेगा।
समकालीन होते हुए भी हम सबसे हमेशा आगे रहने की उनकी खास अदा से तो हम दशकों से परिचित थे। लेकिन यह कभी नहीं सोचा था कि छात्र जीवन में सीनियर रहे किन्तु उम्र में हमसे कुछ छोटे होने के बावजूद यहाँ भी हमसे आगे निकल जायेंगे। ऐसे में इस झटके से बहुत कुछ हमारे बीच अनकहा और अनसुना रह गया। ज़िन्दगी में पहले तो अपने लक्ष्य को तय करना और फिर उसे हर हाल में हासिल कर लेने वाले इस अद्भुत कलाकार को दुनिया छोड़ने की इतनी भी क्या जल्दी थी, समझ से परे है। अंततः आज दोपहर 1 बजे उनका पार्थिव शरीर गाजीपुर स्थित श्मसान में परिजनों और मित्रों की उपस्थिति में पंचतत्व में विलीन हो गया। मुखाग्नि उनके भतीजे मनीष ने दी, और हम सब बस देखते रह गए एक अनूठे कलाकार और अद्भुत बंजारे के इस महाप्रयाण को…..।
अब देखना है कि हम उनके विचारों की थाती और कलाकृतियों को किस तरह संभाल पाते हैं, क्योंकि दुर्भाग्य से हमने अपने यहाँ ऐसी कोई परंपरा विकसित तो की नहीं है। इस बीच आज शाम पटना कला महाविद्यालय में आयोजित एक शोक सभा में उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि दी गयी।