एक अवांगार्द और अलमस्त का यूँ गुजर जाना

विनय कुमार बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं, इस पहचान के अलावा उनकी एक और जो पहचान है। वह एक कलाकार/ कला लेखक/ कला प्रशासक व कला आयोजक वाली भी है। बिहार के कला जगत में हम जैसे बहुत से लोग हैं जिनके लिए विनय कुमार की असल पहचान यही दूसरी वाली यानि एक संस्कृतिकर्मी वाली ही है। दूसरी तरफ बात करें कलाकार संजीव सिन्हा की तो बिहार की नयी पीढ़ी यानि अस्सी के दशक के बाद वाली पीढ़ी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहे व्यक्ति के तौर पर उनकी पहचान रही है। यहाँ प्रस्तुत है संजीव सिन्हा के आकस्मिक निधन पर विनय कुमार की त्वरित टिप्पणी…

Vinay Kumar

 

संजीव सिन्हा का अचानक गुजर जाना अखर गया। बल्कि कहें हिला गया। संजीव सिन्हा बिहार के एक महत्वपूर्ण आधुनिक कलाकार थे। वे खुले दिल से बिहार और बिहारी युवा कलाकारों के लिए हमेशा आगे रहे। आधुनिक कला के विकास में उनका योगदान अप्रतिम रहा। हालाँकि संवादहीनता की वजह से हमारे बीच बहुत सारे भ्रम रहे। मैं ज्यादातर उनसे, उनके विचारों से असहमत ही रहा पर कला में उनके योगदान के कारण मैं उन्हें पसंद भी करता रहा हूँ।

संजीव सिन्हा एक अलमस्त , बेफिक्र और बेपरवाह कलाकार थे। ” मैं जिंदगी को धुएं में उडाता चला गया ” के भाव से जिंदगी को जीनेवाला कलाकार। जिंदगी से और जिंदगी में इश्क़ और उसकी कलात्मक अभिव्यक्ति करने वाला मन संजीव के भीतर वास करता था।

Sanjiv Sinha

मेरा जो अनुभव है उनके यहाँ चाक्षुस से ऐन्द्रिय और बौद्धिक सौंदर्य की तरफ शिफ्ट देखा जाता है वंही उनका जीवन अंतर्विरोधों से भरा था। शुरुआती कलाकृतियां विजुअली काफी आकर्षित करनेवाली होती थीं। हम तब उनके चित्रों से हिप्नोटाइज़ होते रहते थे। पर धीरे – धीरे उनके विषयवस्तु बदल गए। फॉर्म और कंटेंट भी बदल गए। कंटेंट ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए। बोधगया में युद्ध नहीं बुद्ध चाहिए, सुजाता कहाँ हो, रिक्शा काँटों से भरा, स्टील एंड फीदर ऐसे कई इंस्टालेशन जो आम जीवन की आकाँक्षाओं को अभिव्यक्त करती हैं। पटना के राजधानी पार्क में उनके दो इंस्टालेशन जो नालंदा के ज्ञान के केंद्र के अवसान को केंद्र में रखकर बनाये गए हैं आपको सोचने के लिए मज़बूर करता है। ज्ञान का अद्भुत पहाड़ बनाया है। उसमे अवतरित होता और नष्ट किया जाता नालंदा विश्वविद्यालय। ज्ञान के प्रतीकों का खूब इस्तेमॉल है। संजीव अपनी कृतियों में शांति, सदभाव और बुद्ध को जोड़ते हैं पर कोई इडियम नहीं रचते हैं। समय से आगे सोचने के कारण वे हमेशा युवा कलाकारों के लिए आदर्श कलाकार की तरह रहे हैं।

संजीव सुबोध गुप्ता से भी पहले,बिहार के, दुनिया भर में बहुप्रदर्शित कलाकार थे।अपनी सफलताओं के बाद भी अपने पैर हमेशा जमीन पर ही रखे रहे। अपने अनुभवों को शेयर करने के कारण वे एक लोकप्रिय कलाकार भी थे। उनका ऐसे अचानक गुज़र जाना कला जगत की बहुत बड़ी क्षति है।

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