लखनऊ : 29 नवंबर। वाश शैली के प्रसिद्ध चित्रकार एवं कला एवं शिल्प महाविद्यालय के 9वें प्राचार्य रहे प्रो सुखवीर सिंघल की स्मृति में उनके 16 वीं पुण्यतिथि पर लखनऊ के महापौर संयुक्ता भाटिया ने उनके निवास स्थान कैसरबाग में सफेद बारादरी के पीछे बेगम हजरत महल पार्क से लेकर अमीर-उद-दौला पब्लिक लाइब्रेरी तक स्थित मार्ग का नामकरण “प्रो सुखवीर सिंघल मार्ग” किया।
वाश चित्रण शैली में जहाँ बंगाल में अधिकतर पारंपरिक विषयो पर चित्रण हुए वही उत्तर प्रदेश के कलाकारों ने नवीन विषयो और रूपों का सृजन कर इस शैली में नवीन और असीमित प्रयोग किये है। उत्तर प्रदेश की कला में वाश शैली में चित्रण उसकी प्रमुख पहचान रही है। जो आज कम हो गया है। स्वतंत्रता पूर्व जब असित कुमार हल्दार लखनऊ कला महाविद्यालय के प्राचार्य बने तब ही वाश चित्रण शैली की नींव पड़ गई थी और उनके शिष्य बद्रीनाथ आर्य और सुखवीर सिंह सिंघल ने इस वाश शैली का इतना विकास किया कि आज उनके चित्र उत्तर प्रदेश की चित्रकला का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन कलाकारों ने अधिकतर मानवीय आकृतियों के संयोजन निर्मित किये है। क्योंकि अपनी पूर्ण विविधता में भारतीय यथार्थता को मानवीय आकृति के निरूपण द्वारा ही अभिव्यक्त किया जा सकता है। सिंघल के अधिकांश चित्रों में भारतीय जन मानस के प्रति जुड़ाव और राष्ट्रीय अनेकता में एकता का बोध होता है। कम आकृतियों के साथ प्रमुख विषय को बनाने वाले वाश शैली में चित्रण करने वाले दूसरे कलाकार बद्रीनाथ आर्य रहे। जिन्होंने अपनी विशेष प्रतिभा और उत्कृष्ट चित्रण द्वारा वाश शैली को उत्तर प्रदेश की सीमाओं से निकाल कर राष्ट्रीय पहचान दी। उनके प्रारम्भिक विषय परंपरागत विषय, धार्मिक, पौराणिक ,सामाजिक जैसे सांवरी, पी कहाँ, पेड़ की छांव , खेत की ओर आदि इनमें उत्कृष्ट रेखाओं द्वारा साधारण जीवन का अति माधुर्यता से दर्शाया है। बद्री नाथ आर्य के शिष्य में भैरोनाथ शुक्ल,राजेन्द्र प्रसाद, राजीव मिश्र प्रमुख है।
वाश शैली में जन साधारण अभिव्यक्ति करने वाले चित्रकरो में सनद चटर्जी, नित्यानंद महापात्रा, एस अजमत शाह, गोपाल मधुकर चतुर्वेदी, और डी पी धुलिया भी है। इन सभी ने वाश शैली में पारंपरिक विषयों और रूपों को छोड़ कर समकालीन जीवन का चित्रण किया है। इसी से इनके चित्रों में रूपों की विविधता है।
– भूपेंद्र कुमार अस्थाना
29।11।2022