सिद्धार्थ जी का जाना कला – जगत की एक बड़ी क्षति

सिद्धार्थ टैगोर का आकस्मिक निधन कला जगत के लिए किसी बड़े आघात से कम नहीं है I वरिष्ठ कलाविद जयंत सिंह तोमर ने अपने फेसबुक पोस्ट पर इन शब्दों में उन्हें श्रद्धांजलि दी है I -संपादक
Jayant Singh Tomar
‘आर्ट एंड डील’ पत्रिका के सम्पादक व ‘आर्ट कंसल्ट ‘ गैलरी के संस्थापक श्री सिद्धार्थ टैगोर नहीं रहे। आर्ट एंड डील पत्रिका में सह- संपादक रहीं ज्योति कठपालिया ने इस दुखद सूचना की पुष्टि करते हुए बताया कि सिद्धार्थ जी आज दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर गये थे। वहीं हाथ मुंह धोते समय अचानक दिल का दौरा पड़ा। सिद्धार्थ जी का जाना व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए बड़ी क्षति है। ऐसा कभी नहीं हुआ कि हौज़खास उनसे मिलने गया और उन्होंने बिना भोजन किये मुझे आने दिया हो। वे यशस्वी पिता के पुत्र थे। उनके पिता शुभो ठाकुर कला – आंदोलन ‘ कैलकटा ग्रुप ‘ के संस्थापक थे जिससे गोपाल घोष जैसे बड़े कलाकारों को पहचान मिली। हमारी अभिन्न मित्र डॉ शिवा श्रीवास्तव ने शुभो ठाकुर पर बड़े अच्छे कुछ लेख लिखे थे जिन्हें पढ़कर सिद्धार्थ जी बहुत प्रसन्न हुए थे।
चित्र – परिचय : आर्ट कंसल्ट में श्री सिद्धार्थ टैगोर का स्वागत कर रही हैं डॉ शिवा श्रीवास्तव
सिद्धार्थ टैगोर को शांतिनिकेतन में धनपति दा के विद्यार्थी रहे जिन्होंने रवीन्द्रनाथ ठाकुर को और उनके समय को देखा था। यह संयोग ही था कि शांतिनिकेतन के स्कूल में मुझे प्रवेश दिलाने के कुछ ही दिनों बाद धनपति दा ने अवकाश ग्रहण किया।
श्री सिद्धार्थ टैगोर ने अनेकानेक शानदार कला- प्रदर्शनियां आयोजित कीं। अनेक दुर्लभ पुस्तकों का सम्पादन और प्रकाशन किया। जब भी मैं उनसे भेंट करने दिल्ली जाता कोई न कोई पुस्तक भेंट में देते। उनकी दी हुई कोई भी किताब ढाई- तीन हजार रुपए से कम की नहीं होती थी , परंतु वे प्रसन्नता के साथ पुस्तक मुझे भेंट करते थे।
मेरे आग्रह पर उन्होंने ‘ आर्ट एंड डील ‘ को हिन्दी में निकालने की योजना बनाई थी। तय हुआ था कि पहले एक वार्षिक अंक निकालेंगे, फिर उसे द्वैमासिक या त्रैमासिक के रूप में लायेंगे। सम्पादन का दायित्व उन्होंने इन पंक्तियों के लेखक को सौंपने का निश्चय किया था। श्री सिद्धार्थ टैगोर बीते कुछ वर्षों से लोक- कलाओं के बड़े स्तर पर संग्रह में लगे थे। मैं जब भी उनके पास जाता वे कहते थे मध्यप्रदेश के श्योपुर में लकड़ी के खिलौने मिलते हैं, यदि सम्भव हो तो साथ-साथ श्योपुर चलें। बीते अप्रैल में जब ग्वालियर में कला- रसास्वादन का पाठ्यक्रम का संयोजन किया तब सिद्धार्थ जी ने उदारता पूर्वक पचास हजार रुपए की सहयोग राशि भेजी। उन्हें इस कार्यक्रम में ग्वालियर आना था पर वे आ न सके। सिद्धार्थ जी का जाना कला – जगत की एक बड़ी क्षति है। व्यक्तिगत रूप से मैंने तो अपना एक सच्चा हितैषी खोया है।

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