सुरती साहब ने रेखाओं और शब्दों से गढ़े कई चर्चित चरित्र

  • कार्टून की दुनियाँ में “ढब्बूजी” और “बहादुर” जैसे बेहतरीन कार्टून किरदार के सृजनकर्ता हैं सुरती साहब, इन किरदारों की चर्चा देश विदेशों तक।

  • पानी की एक एक बूंद बचाने से ही जीवन बचेगा क्योंकि जल ही जीवन है – आबिद सुरती

    भूपेंद्र कुमार अस्थाना

जून 2018 में बनारस से किसी ने हमें एक पोस्ट टैग किया कि “अगर एक वृद्ध आदमी आपके घर की डोरबेल बजाकर पूछे कि क्या आपका नल टपकता है तो उसे पूरे अदब से सच बताइएगा। अगर नल में खराबी है तो उन्हें घर में आने दीजिएगा.. वो उसे अपने साथ आए प्लंबर से ठीक करा देंगे।” यह जानकर बड़ी हैरानी हुई। तो फिर उस व्यक्ति को जानने और पढ़ने की जिज्ञासा हुई। जब खंगालने लगा तो पता चला कि वह महान शख्स मशहूर कार्टूनिस्ट आबिद सुरती जी हैं। वर्षों से मिलने की इच्छा,आखिरकार गुरुवार को उत्तर प्रदेश प्रेस क्लब लखनऊ में पूरी हुई।

अनुभवी लेखक-चित्रकार-पर्यावरणविद् आबिद सुरती साहब अनेक विधाओं और संभावनाओं के धनी, विलक्षण प्रतिभा और विरले गुणों से युक्त, बहुमुखी सर्जक, स्वभाव से घुमक्कड़, फक्कड़ी एवं सरल स्वभाव, हिंदी-गुजराती भाषा के साहित्यकार, बाल साहित्यकार, लेखक-व्यंग्यकार, ‘ढब्बू जी’ के सर्जक, उपन्यासकार-कहानीकार, चित्रकार-कार्टूनिस्ट और समाजसेवी हैं। सुरती जी इन सब से बढ़कर एक सच्चे इंसान हैं जिन्होने इंसान का किरदार स्वयं जीते हुए अपने परिवार को भी इसी की शिक्षा दी।

80 से ज़्यादा किताबें लिखनेवाले,कॉमिक्स विधा में कई चरित्र विख्यात कार्टून ढब्बूजी, बहादुर वाले (आपको इनका गढ़ा हुआ चरित्र तमाम अखबारों, पत्रिकाओं में मिल जाएगा) 88 वर्षीय मशहूर कार्टूनिस्ट “आबिद सुरती” गुरुवार को लखनऊ स्थित यू पी प्रेस क्लब एवं उत्तर प्रदेश साहित्य सभा द्वारा आयोजित ” लखनऊ की एक शाम, आबिद सुरती के नाम ” कार्यक्रम में शिरकत किये। इस कार्यक्रम में अनेकों साहित्य,पत्रकारिता, कला क्षेत्र से जुड़े लोगों ने एक एक करके सुरती साहब के बारे में अपने भाव, विचार व्यक्त किए। उनके समसामयिक रचनात्मक यात्रा पर भी विस्तार से प्रकाश डाला। अंत मे सुरती साहब ने अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अनेकों संस्मरण स्वयं साझा किए, जिसमे पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक और रचनात्मकता के पक्ष को विस्तार से वर्णन किया। इस अवसर पर कला साहित्य पत्रकारिता और सामाजिक कार्य के क्षेत्रों से जुड़े लोग बड़ी संख्या मे उपस्थित रहे ।

कार्टूनिस्ट सुरती साहब ने अपने जीवन के तमाम उतार चढ़ाव पर भी बात की, जिसे उन्होने जिया है। तमाम धार्मिक और राजनीतिक कुरीतियों पर भी व्यंगात्मक प्रहार भी किया। उन्होंने बताया कि एक वह भी समय था जब कार्टूनिस्ट को बड़े ही सम्मानित रूप में देखा और प्रोत्साहित किया जाता था, लोग इस विधा को एक सकारात्मक प्रभाव में लेते थे। लोग खुद अपने कार्टून बनवाने के लिए उत्सुक रहते थे। तमाम समाचार पत्र- पत्रिकाओं में कार्टून कोना हुआ करता था। लोगों का जुड़ाव सीधा इस माध्यम से कॉमिक किताबों से होता था।


सुरती साहब एक सजग-सचेत रचनाकार हैं। उनके पैनी निगाह को उनके रचनाओं में देखा जा सकता है। सुरती साहब सबसे पहले गुजराती पत्रिका चेत मछंदर में ‘बटुक भाई’ (बौने कद का आदमी) नामक चरित्र से रचना से शुरू किया जो प्रकाशित भी हुआ लेकिन लोगों को पसंद न आने पर प्रकाशन बंद करना पड़ा। उसके बाद धर्मवीर भारती के संपादन में साप्ताहिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ में पुनः सुरती साहब की रचनाएं प्रकाशित होनी शुरू हुई। इसके लिए धर्मबीर भारती जी खुद रुचि रखते थे। सुरती की जिस रचना गुजराती पत्रिका में लोगों ने नापसंद किया, वही रचना धर्मयुग के माध्यम से हिंदी भाषा के लोगों ने बहुत पसंद किया और सराहा। सुरती साहब ने गुजराती पत्रिका वाले चरित्र को नए स्वरूप में ढालकर उसे ‘ढब्बू जी’ बनाया। और इस चरित्र के लगातार प्रकाशित होने पर लोकप्रियता बढ़ने लगी। इस प्रकार उन्होंने अपने व्यंग्य साहित्य चित्र को लेकर देश विदेशों में प्रसिद्धि पायी और आज 88 वर्ष की आयु में भी एक युवा जोश से भरे हुए हैं। आज भी वे एक सक्रिय रचनाकार की भूमिका बखूबी निभा रहे हैं।

अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि किसी चीज़ को मानने से बेहतर उसे जानना बेहद जरूरी है। आंखे बंद कर किसी चीज़ पर विश्वास नहीं करना चाहिए। यह अंधकार आज की सबसे बड़ी समस्या है। लोग हमें तमाम भटकाव में डालते हैं लेकिन हमे अपनी बुद्धि- विवेक के साथ अपने कर्म को करते जाना है। आज मैं जो कुछ भी हूँ मेरे प्रशंसकों की वजह से हूँ । उनका प्यार स्नेह जो मिला वह मेरे जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है। लखनऊ में इस सुंदर कार्यक्रम के आयोजन करने के लिए वरिष्ठ कार्टूनिस्ट, कवि हरिमोहन वाजपेई माधव एवं स्माईल मैन हास्य व्यंग्य कवि डॉ सर्वेश अस्थाना का विशेष रूप से आभार एवं धन्यवाद करना चाहता हूँ।

आबिद सुरती (जन्म 5 मई 1935) भारत के एक चित्रकार, लेखक, कार्टूनिस्ट, पत्रकार, पर्यावरणविद्, नाटककार और पटकथा लेखक हैं। उन्हे 1993 में “तीसरी आंख” नामक लघु कहानियों की एक श्रृंखला लिखने के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। सुरती साहब कहते हैं कि एक बड़ा चित्रकार बनने के सपने को लेकर मैंने 1954 में जे जे स्कूल ऑफ आर्ट में शामिल हुआ और कला में डिप्लोमा प्राप्त किया। वह 20वीं सदी के बंगाली उपन्यासकार शरत चंद्र चटर्जी के लेखन से बहुत प्रभावित रहे हैं। हिंदी और गुजराती के लेखक होने के अलावा, वह उर्दू के भी जानकार हैं। उन्होंने अपना करियर एक फ्रीलांसर के रूप में शुरू किया। साहित्य के क्षेत्र में सुरती साहब ढब्बूजी, लघु कथाएँ, उपन्यास, नाटक, बच्चों की किताबें और यात्रा वृतांत लिखे है। उनकी कई पुस्तकों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद भी किया गया है। वह लंबे समय से हिंदी और गुजराती समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए भी लिखते रहे हैं। 2007 में, उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा हिंदी साहित्य संस्थान पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। कला जगत में सुरती साहब को एक चित्रकार के रूप में प्रशंसित किया गया है, उन्हें तैल और जल रंगों से पेंटिंग करने के लिए रचनात्मक और मूल तकनीकों का उपयोग करने का श्रेय दिया जाता है।

इटालियन आर्ट पेपर पर ऐक्रेलिक रंगों का उनका उपयोग भी इस दुनिया से बाहर माना जाता है। वे एक निपुण चित्रकार भी हैं, उन्होंने भारत और विदेशों में लगभग 16 प्रदर्शनियाँ आयोजित की हैं। अपने प्रारंभिक वर्षों में, उन्होंने “मिरर कोलाज” नामक एक नवीन तकनीक का आविष्कार किया था, जिसे जापान में आलोचनात्मक प्रशंसा भी मिली। कार्टूनिस्ट एवं कॉमिक क्षेत्र में सुरती साहब ने पहला कार्टून चरित्र 1952-53 में एक गुजराती पत्रिका रामकाडु के लिए बनाया था। इसमें तीन प्रमुख पात्रों – एक लड़का, एक लड़की और एक बंदर – के साथ रंग में चार पृष्ठों की एक कॉमिक फीचर शामिल थी, जिसका नाम रंग लखुड़ी था। एक कार्टूनिस्ट के रूप में, उन्होंने बाद में प्यारे सरल व्यक्ति ढब्बूजी की रचना की। मूल और लोकप्रिय कार्टून स्ट्रिप भारत में सबसे लंबे समय तक चलने वाली कॉमिक स्ट्रिप्स में से एक रही है, जो 30 वर्षों से अधिक समय से बिना रुके चल रही है। यह साप्ताहिक कॉमिक स्ट्रिप थी जो पहली बार हिंदी पत्रिका धर्मयुग में छपी थी। उन्होंने एक और कॉमिक बुक चरित्र, बहादुर भी बनाया, जब 1978 से इंद्रजाल कॉमिक्स का प्रकाशन शुरू हुआ, तो बड़ी संख्या में प्रशंसक प्राप्त हुए। उन्होंने इंस्पेक्टर आज़ाद, इंस्पेक्टर विक्रम और एक महिला चरित्र जैसे अन्य कॉमिक बुक पात्रों की भी रचना की।

ढब्बूजी और बहादुर, इंस्पेक्टर आज़ाद, इंस्पेक्टर विक्रम और शुजा की कॉमिक्स भी अंग्रेजी में प्रकाशित हुईं। राज कपूर एक बार इंस्पेक्टर आज़ाद पर आधारित एक फिल्म बनाना चाहते थे, जिससे पता चलता है कि उनकी कॉमिक स्ट्रिप्स की लोकप्रियता कितनी अधिक थी। इसके अलावा, उनकी प्रसिद्ध कॉमिक स्ट्रिप्स डॉक्टर चिंचू के चमत्कार, जो 1963 से 1965 तक हिंदी पत्रिका पराग में प्रकाशित हुई थी, को नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा डॉक्टर चिंचू के कारनामे के रूप में जाना जाता है। सुरती साहब को जनवरी महीने के लिए कॉमिक्स थ्योरी द्वारा जारी लीजेंड कैलेंडर 2019 में आबिद सुरती को भारतीय कॉमिक्स लीजेंड क्रिएटिव के रूप में चित्रित किया गया है। उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार 1993, हिंदी साहित्य संस्था पुरस्कार, गुजरात गौरव से भी सम्मानित किया गया है।

 

भूपेंद्र कुमार अस्थाना

7011181273, 9452128267

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