ललित कला अकादेमी, नई दिल्ली के रवींद्र भवन स्थित दीर्घा में 2 से 15 जनवरी तक के लिए “टुगेदर 2023” शीर्षक की समूह प्रदर्शनी आयोजित हुई। वर्तमान माहौल में मेरे लिए यह प्रदर्शनी एक सुखद आश्चर्य था। क्योंकि इस प्रदर्शनी में शामिल कलाकारों की संख्या 92 थी। इतने सारे मित्रों को एक मंच पर जुटाना, मेरी नजर में कोई सामान्य बात नहीं है। खासकर दिल्ली जैसे महानगर में। विगत दशकों में हमने यह महसूस किया है कि विस्तृत होते जा रहे इस महानगर की सीमा की वजह से एक साथ मिल पाना या एक जगह जुट पाना आसान नहीं रह गया है। जिन संस्थाओं या अकादमियों को यह करना चाहिए, वे या तो गहरी नींद में हैं या अकर्मण्यता की सीमा को कब का लांघ चुके हैं। ऐसे में विकल्प के तौर पर इस तरह के कलाकार समूहों का आगे आना स्वागत योग्य है। हालाँकि आज आवश्यकता इस बात की है कि देश के विभिन्न भागों में ऐसी ही कुछ पहल सामने आये। क्योंकि मेरा शुरू से यह मानना रहा है कि व्यक्ति, समाज और सरकार तीनों की सक्रिय भागीदारी के बिना किसी भी देश या भूभाग में कलाओं का विकास असंभव है।
दीर्घा में ही मुलाकात होती है वरिष्ठ कलाकार संतोष भाई से, जो स्वयं इस प्रदर्शनी के प्रतिभागी भी हैं। उनसे ही जानकारी मिली कि इस समूह द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित की जानेवाली समूह प्रदर्शनी का यह छठा आयोजन है। बीच में कोरोना के चलते हुए लॉक डाउन की वजह से दो साल यह स्थगित रहा। बहरहाल इस प्रदर्शनी में कला जगत के वे अधिकांश चेहरे शामिल हैं जो पिछले कई दशकों से दिल्ली एनसीआर में सक्रिय दिखते रहे हैं। 92 कलाकारों की इस सूची पर नजर डालें तो अपर्णा कौर, वेद नायर, गोगी सरोज पाल, निरेन सेन गुप्ता, परमजीत सिंह और मुकुल पवार जैसे वरिष्ठों की भागीदारी है। तो वहीं भोला कुमार और अरुण पंडित जैसे अपेक्षाकृत युवा भी हैं। लगभग अपने हम उम्र मित्रों की बात करूं तो संतोष वर्मा, ईशान दत्त बहुगुणा, मामून नोमानी, हेमराज, ओमपाल, मोईन फातिमा, आनंद सिंह जैसे चेहरे अपनी कलात्मक उपस्थिति यहां दर्ज करा रहे हैं। प्रदर्शनी में छापा चित्र, सिरेमिक शिल्प, मूर्तिशिल्प से लेकर जलरंग, आयल और ऐक्रेलिक माध्यम से निर्मित कलाकृतियां हैं तो डिजिटल तकनीक से निर्मित कलाकृतियां भी। कुल मिलाकर यह एक ऐसी प्रदर्शनी है जो सिर्फ दिल्ली एनसीआर के कला जगत ही नहीं भारतीय कला जगत का प्रतिनिधित्व करती नज़र आती है।

बहरहाल यह मैत्रीभाव और अपनापन बना रहे और साल दर साल इसी तरह अपनी कलाकृतियों से हमें समृद्ध करते रहें। क्योंकि आज हम इस बात से भलीभांति वाकिफ हो चुके हैं कि कला एवं संस्कृति अब इस देश की सत्ता की प्राथमिकताओं में कहीं भी नहीं है। दिन रात नेहरू की गलतियां गिनाते रहने वालों के पास न तो नेहरू वाली कलादृष्टि है और न तो नेहरू की तरह संस्थाओं के निर्माण की इच्छाशक्ति। बहरहाल लंबी सूची हो जाने की वजह से कुछ नाम शामिल नहीं हो पाए, इसे अन्यथा न लिया जाए। इसी उम्मीद के साथ सभी कलाकार मित्रों को सादर शुभकामनाएं…
