कविता में हर कवि की अपनी आवाज़ होनी चाहिए : अशोक वाजपेयी

  • मैंने जब अपनी आसन्न प्रसवा माँ पर कविता लिखी तो विवाद हो गया क्योंकि उसमें मैंने माँ के सौंदर्य का जिक्र किया था
  • मुझ पर पहले अज्ञेय फिर शमशेर और बाद में रघुवीर सहाय का प्रभाव पड़ा।
  • क्या किसी पुत्र को अपनी माँ की सुंदरता का वर्णन साहित्य में नहीं करना चाहिए?
  • क्या यह नैतिक रूप से अनुचित है?

हिंदी के प्रसिद्ध कवि एवम संस्कृति कर्मी अशोक वाजपेयी ने जब 19 वर्ष की अवस्था में अपनी माँ पर एक कविता लिखी थी तो लोगों ने आपत्तियां की थी और विवाद भी हुआ था। कल  दिल्ली में सिविल सर्वेंट ऑफिसर्स  मेस में  “चाय पर गुफ्तगू एवम कविता पाठ  “कार्यक्रम में  अपनी कविताओं को श्रोताओं के बीच पाठ करते हुए आसन्न प्रसवा माँ शीर्षक से लिखी कविता सुनाते हुए हुए उन्होंने इस विवाद का जिक्र किया। हालांकि इन 6 दशकों में हिंदी कविता बहुत आगे बढ़ी है और हिंदी समाज भी थोड़ा परिपक्व हुआ है।

पवन करण जैसे कवि ने एक दशक पहले विधवा माँ के प्रेमी पर कविता लिखी थी जिसमें एक युवक खिड़की से अपनी विधवा माँ के प्रणय को देखा था। हिंदी के चर्चित कवि और भारतीय ज्ञानपीठ के पूर्व निदेशक लीलाधर मंडलोई द्वारा कल आयोजित कार्यक्रम में श्री वाजपेई ने करीब 1 घंटे से अधिक समय तक अपनी कविताओं का पाठ किया और श्री मंडलोई के सवालों का जवाब भी दिया ।

समारोह के प्रारंभ में जब श्री मंडलोई ने श्री वाजपेई से पूछा कि जब आपकी कविता यात्रा जब शुरू हुई तो सबसे पहले किस कवि का आप पर प्रभाव पड़ा और आप हिंदी की किस कविता परंपरा में अपने को लोकेट करते हैं, इस प्रश्न के जवाब में श्री वाजपेयी ने कहा कि जब मैं ने कविता लिखना शुरू किया तो मुझ पर सबसे पहले अज्ञेय का प्रभाव पड़ा और उनकी तत्सम शब्दावली ने मुझे आकृष्ट किया। मैँ बी ए में संस्कृत का छात्र भी था। उसके बाद मुझे शमशेर की कविता ने प्रभावित किया और बाद में रघुवीर सहाय की कविता ने उसे पर प्रभाव डाला।

क्या यह माना जाए कि अशोक वाजपेयी की कविता इन तीनों के प्रभाव से बनी है या उनक़ा कुछ अपना तत्व  भी मिला हुआ है?वह  कविता  की किस परम्परा में आते हैं।निराला की परंपरा या प्रसाद की परंपरा क्योंकि अज्ञेय की कविता भी प्रसाद की परंपरा की छांव लिए हुए है।

उन्होंने कविता में परंपरा का जिक्र करते हुए कहा की हर कवि को कविता में अपनी आवाज होनी चाहिए लेकिन उसमें पुरखों की भी ध्वनियां अन्तर्हित होनी चाहिए। जाहिर है अशोक वाजपेयी की कविता अपनी परम्परा से जुड़ी है।

उन्होंने कविता के लिए तीन तत्वों को अनिवार्य  बताया और कहा कि स्थानीयता स्मृति और कल्पना से से ही कविता बनती  इनके इनके बिना कविता  संभव नहीं  है।स्मृति में निजी और जातीय स्मृति भी शामिल है। लेकिन उनके यहाँ स्मृति को लेकर कोई द्वंद है या स्मृति केवल छाया है? श्री वाजपेयी ने अपनी कविता का केंद्रीय भाव अपनी माँ बताया और इस संदर्भ में उंनको लेकर कविताएं सुनाई।

उन्होंने आसन्न प्रसवा माँ शीर्षक से लिखी कविता  का जिक्र करते हुए कहा कि जब वह 19 वर्ष के थे और उनके छोटे भाई उदयन वाजपेयी का जन्म होने वाला था, तब यह कविता लिखी थी I जिसको लेकर कॉलेज में विवाद खड़ा  हो गया क्योंकि उसमें मां की सुंदरता का जिक्र था। लोगों का कहना  था कि कोई पुत्र अपनी कविता में मां के सौंदर्य का जिक्र कैसे कर सकता है। बाद में मुझे  पता चला  निराला ने तो अपनी प्रसिद्ध कविता सरोज स्मृति में अपनी बेटी की सुंदरता का जिक्र किया है।

श्री वाजपेयी ने अपनी बहुचर्चित कविता “मौत की ट्रेन में दिदिया” कविता का भी पाठ किया जो उन्होंने अपने माँ के निधन पर लिखी थी।वे अपनी माँ को “दिदिया” कहते थे। उन्होंने अपने पोते के जन्म पर लिखी कविता का भी पाठ किया। लेकिन उनकी कविता का परिवार निजी परिवार तक सीमित नहीं रहा बल्कि उसकी एक बड़ी दुनिया है। इसलिए उनकी कविता का परिसर विस्तृत और बहुरंगी भी है।

श्री वाजपेयी ने अपने कविता परिवार का जिक्र करते हुए कुमार गंधर्व और मल्लिकार्जुन मंसूर को उस परिवार का हिस्सा बताया और उनपर लिखी कविताओं का भी पाठ किया। उन्होंने बताया कि इंदौर में उनक़ा कविता पाठ कुमार गंधर्व की मौजूदगी में होने वाला था लेकिन मेरे जन्म दिन के ठीक एक दिन पहले कुमार जी का निधन हो गया। यह मेरे लिए स्तब्धकारी घटना थी।

श्री वाजपेयी ने मल्लिकार्जुन मंसूर की बीमारी की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि मल्लिकार्जुन मंसूर को 60 वर्ष की उम्र तक वह सम्मान प्रतिष्ठा नहीं मिली जिसके वे हकदार थे I क्योंकि समय ने उन्हें तब तक नहीं पहचाना था। श्री वाजपेयी ने बहुरि अकेला से उंनको लिखी गयी कविताओं का एक अंश सुनाया।

21वी सदी में बाजार तकनीक के बदलाव और 2014 के बाद भारतीय समाज और राजनीति के परिवर्तन से पैदा हुए हालात को दर्ज करने वाली कविताओं को भी उन्होंने सुनाया औऱ अपने समय के अंधेरे का कई बार जिक्र किया और चकाचौंध को व्यर्थ बताया। उन्होंने बताया कि 60 साल के सार्वजनिक जीवन में उन्होंने सत्ता के रौब ताकत और क्रूरता को भी देखा है।उन्होंने अपने समय मे कई बहुरूपियों को भी देखा है।

लेकिन उन्होंने कुछ अच्छा बचे रहने का भी भरोसा दिलाया । उनके लिए कविता जीवन और सौंदर्य तथा अपने समय के भीतर भी एक हस्तक्षेप भी। उन्होंने बताया कि वे आजकल अपना आत्म वृतान्त भी दर्ज करवा रहे हैं और 100 घण्टे की बातचीत रिकार्ड करवाई है। अभी औऱ 50 घण्टे दर्ज होने की उम्मीद है।

इस तरह एक हज़ार पृष्ठ से अधिक पन्ने होंगे।उन्होंने इस बात की चिंता जाहिर की कि कौन इतना पढ़ेगा। श्री वाजपेयी कई पत्रिकाओं के अंक आ चुके हैं ।उनपर लेखों की किताब भी आ चुकी है।सारे महत्वपूर्ण पुरस्कार भी मिल चुके हैं । वे जीते जी एक सफल और सार्थक लेखक हैं।उन्होंने अपने जीवन मे एक संस्था की तरह काम किया है,उनक़ा विशद अवदान है , फिर भी उनके मन में कोई संशय बना रहता है या हिंदी जगत को उंनको लेकर संशय बना रहता है?

कल उनके  काव्यपाठ ने कई सवालों के जवाब भी दिए और कई सवाल लोगों के मन में भी उभरे। इस तरह कई गुत्थियां सुलझी कई सूत्र मिले उन्हें जानने समझने के। कवि के साथ गुफ्तगू से  कविता भी कुछ कहने लगती है।कल उनकी कविताओं ने बहुत कुछ कहा।उनके शब्दों में  साहित्य थोड़ा सा कुछ  दे जाता है।अंधेरे में थोड़ी रौशनी की तरह।

3 Replies to “कविता में हर कवि की अपनी आवाज़ होनी चाहिए : अशोक वाजपेयी

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